Friday 28 February 2014

छत्तीसगढ़ी रचनाओं को शास्त्रीय रागों में गाने वाले देश के एकमात्र कलाकार कृष्ण कुमार पाटिल....




 संगीत रत्न, संगीत मर्मज्ञ, दाऊ महासिंग चंद्राकर जैसे कई सम्मान से विभूषित ग्राम चीचा पाटन के संगीतज्ञ कृष्ण कुमार पाटिल छत्तीसगढ़ी भाषा में शास्त्रीय संगीत को ढालकर छत्तीसगढ़ी भाषा को राष्ट्रीय पहचान देने के लिए संकल्पबद्ध हैं।
28 सितंबर 1969 को जगतराम एवं खोरबाहरीन बाई पाटिल के पुत्र के रूप में ग्राम चीचा (पाटन) जिला-दुर्ग में जन्में कृष्ण कुमार पाटिल का मानना है कि जिस राज्य की भाषा और संगीत शास्त्र सम्मत होता है वह भाषा और संगीत समृद्धता की श्रेणी में आ जाता है। कृष्ण कुमार कहते हैं छत्तीसगढ़ी लोकसंगीत में प्रचलित गांजा पीने, बीड़ी पीने के संदर्भ संस्कृति नहीं बल्कि अपसंस्कृति के परिचायक हैं। इस लिहाज से छत्तीसगढ़ भाषा की गरिमा के लिए इसे शास्त्रीय संगीत में रूपान्तरित किए जाने की जरुरत है। हिंदुस्तानी संगीत में जबकि कई प्रादेशिक बोलियों का समायोजन है छत्तीसगढ़ी को इससे वंचित नहीं रखना चाहिए। छत्तीसगढ़ी भाषा शास्त्रीय संगीत के लिए न सिर्फ अनुकूल है वरन इसमें माधुर्य भी है।
आकाशवाणी और दूरदर्शन के लोक संगीत एवं सुगम संगीत के कलाकार कृष्ण कुमार पाटिल ने बताया कि उनके पिता लोक संगीत के जानकार हैं। उन्होंने अपने पिता से हारमोनियम बजाना सीखा। संगीत सीखने की लालसा से वह संगीत विद्यालय जरुर गए लेकिन वहां की शिक्षण पद्धति उन्हें रास नहीं आई। गुरु शिष्य परंपरा में उन्होंने प्रारंभ में पं. जगन्नाथ भट्ट से ठुमरी तथा लहरा बजाना सीखा। संगीत में उन्हें पं. अभयनारायण मलिक (दिल्ली) का मार्गदर्शन भी मिला। पंडित प्रभाकर धाकड़े (नागपुर) से हारमोनियम की शिक्षा प्राप्त करने के साथ-साथ उन्होंने ठाकुर रघुनाथ सिंह (भिलाई) से संगीत की शिक्षा प्राप्त की। वर्तमान में उनकी संगीत साधना जारी है। वे प्रतिदिन छ: से सात घंटे तक रियाज करते हैं।
छत्तीसगढ़ी में लगभग 30 छोटा ख्याल और ठुमरी की रचना करने वाले भिलाई इस्पात संयंत्र में कार्यरत कृष्ण कुमार पाटिल कहते हैं शास्त्रीय राग में छत्तीसगढ़ी छोटा ख्याल और ठुमरी की रचना करके मैं चाहता हूं कि छत्तीसगढ़ी भाषा देश की दूसरी भाषाओं की तरह सर्वव्यापी हो जाए।
राग यमन, भीमपलासी, देस, गूर्जरी तोड़ी, जोगिया जैसे रागों में छोटा ख्याल की रचना करने वाले कृष्ण कुमार ने मिश्र खमाज जैसे राग में ठुमरी की रचना भी की है। रायगढ़ से छत्तीसगढ़ी शास्त्रीय प्रस्तुति की शुरूआत करने वाले कृष्ण कुमार बिलासा महोत्सव, संस्कृति विभाग द्वारा आयोजित कार्यक्रम और राज्योत्सव में छत्तीसगढ़ी ख्याल की प्रस्तुति दे चुके हैं।
कृष्ण कुमार कहते हैं सरल और रंजक प्रस्तुति ही संगीत का मापदंड है और मैं इसी दिशा में प्रयास कर रहा हूं। शासन अगर छत्तीसगढ़ नाद संस्थान की स्थापना के लिए सहयोग करे तो मेरा सपना साकार हो सकता है।

Wednesday 26 February 2014

लोकवाद्यों के पुजारी रिखी क्षत्रिय...

रिखी क्षत्रिय
छत्तीसगढ़ी में प्रचलित लोकवाद्य भिलाई के रिखी क्षत्रिय की धरोहर है। अथक प्रयास से विगत 26 सालों से रिखी क्षत्रिय ने न सिर्फ लोकवाद्यों को तलाशा है वरन् इन वाद्यों को बजाने में वह माहिर भी है। खैरागढ़ विश्वविद्यालय से लोकसंगीत में एमए रिखी क्षत्रिय की लोकरागिनी सांगीतिक संस्था है। लोक संस्कृति से बेहद लगाव रखने वाले रिखी क्षत्रिय मानते हैं कि लोकवाद्यों की दृष्टि से छत्तीसगढ़ बेहद समृद्ध है।
रिखी क्षत्रिय ने बताया कि विगत 26 सालों से वह छत्तीसगढ़ के दूरदराज गांव में जाकर उन्होंने 156 लोकवाद्यों का संग्रह किया है। रिखी क्षत्रिय कहते हैं छत्तीसगढ़ में लोकवााद्यों की पैठ संस्कृति से है। कई वाद्य ऐसे हैं, जिन्हें देवस्थल पर रखकर पूजा जाता है। इन वाद्यों को आमतौर पर आदिवासी नहीं बेचते हैं।
डांहक वाद्य के संबंध में रिखी क्षत्रिय ने बताया कि वनबिलाव के चमड़े से बना यह वाद्य नवरात्रि में सिर्फ ज्योत स्थापना के समय ही बजाया जाता है। डमरुनुमा घुंघरुओं से आबद्ध इस वाद्य को पैर में बांधकर बजाया जाता है। झरी डंडा का बस्तर में चलन है। बीजों की मदद और खास तकनीक से बजे बांस के वाद्य से झरने की ध्वनि आती है।
धातु की खोज जब नहीं हुई थी। उस समय बैल के सींग की तुरही का उपयोग किया जाता था। सूपे में घुंघरु और कौड़ी की मदद से बनाया गया। लोकवाद्य 'सुरपा" बस्तर में प्रचलित है। आमतौर पर नवाखाई के समय इसका उपयोग किया जाता है। इसी तरह रेला नृत्य के साथ 'चटका" लोकवाद्य बजाने की परंपरा है।
अंजली जोशी, रिखी क्षत्रिय और मैं सुशील भोले
लोकवाद्यों की गहनता से पड़ताल करने वाले रिखी क्षत्रिय ने बताया कि लोकवाद्यों का आदिवासियों से प्राकृतिक रिश्ता है। सुख-दु:ख में भागीदार रहने के अलावा लोकवाद्य कई बार शिकार के लिए, तो कभी खेतों की रखवाली के लिए भी बनाए जाते थे।
रोंझू एक ऐसा वाद्य है। जिसका प्रयोग खरगोश को पकडऩे के लिए किया जाता था। इसी तरह घड़े से बनाया गया लोकवाद्य 'घूमरा"

जिसकी आवाज शेर की दहाड़ की तरह होती है। खेती की रखवाली के लिए की जाती थी।
भेर का प्रयोग रायगढ़ जिले में स्थान शुद्धि के लिए, चटका का उपयोग रेला नृत्य में और माडिय़ा ढोल का उपयोग गौर नृत्य के लिए किया जाता है। रिखी क्षत्रिय का मानना है कि लोकवाद्य छत्तीसगढ़ की धरोहर है इस नाते से वह उसका व्यक्तिगत तौर पर संरक्षण कर रहे हैं और इस संरक्षण के लिए शासन से वह किसी तरह की उम्मीद नहीं रखते हैं।

छत्तीसगढ़ी सम्मेलन और मित्रों का साथ...

छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग द्वारा 24-25 फरवरी 2014 को रायपुर के रविन्द्र सांस्कृतिक मंच पर आयोजित द्वितीय प्रादेशिक सम्मेलन में प्रदेश भर से आये साहित्य, संस्कृति एवं कला क्षेत्र के अनेक मित्रों का भी सानिध्य प्राप्त हुआ। कुछ ऐसे ही पल...
* बालको-कोरबा की वरिष्ठ कवयित्री लता चंद्रा जी के साथ...

अंजली जोशी, रिखी क्षत्रिय और मैं सुशील भोले

पूरे प्रदेश भर से आये साहित्यिक मित्रों के साथ...

पूरे प्रदेश भर से आये साहित्यिक मित्रों के साथ...

प्रसिद्ध हास्य कवयित्रि शशि दुबे जी के साथ..

दुर्ग के वरिष्ठ साहित्यकार प्रदीप वर्मा एवं अन्य मित्रों के साथ

छत्तीसगढ़ी गीतों को शास्त्रीय राग-रागिनियों में गाने वाले कृष्ण कुमार पाटिल के साथ

Tuesday 25 February 2014

राजभाषा आयोग के मंच पर काव्य पाठ...

छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग द्वारा 24-25 फरवरी 2014 को रायपुर के रविन्द्र सांस्कृतिक मंच में आयोजित द्वितीय प्रादेशिक सम्मेलन में मेरा काव्य पाठ.....

भाषा के मंच पर संस्कृति के रंग....
छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग के दो दिवसीय सम्मेलन में यहां की जोशी बहनों ने छत्तीसगढ़ की विविध लोक कलाअों को प्रस्तुत किया....





Monday 24 February 2014

छत्तीसगढ़ी सम्मेलन का दूसरा दिन.....

छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग के वार्षिक सम्मेलन के दूसरे दिन आज 25 फरवरी को उच्च शिक्षा मंत्री प्रेम प्रकाश पाण्डेय ने दीप प्रज्जवलन कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया। इस अवसर पर उन्होंने पांच साहित्यकारों की विभिन्न कृतियों का विमोचन भी किया....







छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग का सम्मेलन प्रारंभ....

छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग का 24-25 फरवरी 2014 को आयोजित दो दिवसीय प्रादेशिक सम्मेलन आज प्रातः 10 बजे संस्कृति मंत्री अजय चंद्राकर के कर कमलों से दीप प्रज्वलन के साथ प्रारंभ हो गया। इस कार्यक्रम में पूरे छत्तीसगढ़ प्रदेश से साहित्यकार, पत्रकार, कलाकार एवं समाजसेवी सम्मिलित हुए। छत्तीसगढ़ विधान सभा का सत्र भी इन दिनों यहां हो रहा है, इसलिए अनेक मंत्री और विधायक भी इस गरिमामय कार्यक्रम में अपनी सुविधा के अनुसार उपस्थित हो रहे हैं......







Sunday 23 February 2014

महेश सक्सेना के सम्मान में....

जागृति मंच, रायपुर के तत्वावधान में रविवार 23 फरवरी 2014 को पुराना अग्निशमन चौक, रायपुर स्थित जिला ग्रंथालय में गाजियाबाद के वरिष्ठ साहित्यकार महेश सक्सेना के सम्मान में एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम में मेरा कविता पाठ....

Saturday 22 February 2014

हमर गंवई के खई-खजेना....




हमर गंवई के खई-खजेना, रोटी-पीठा के अलग पहिचान
ठेठरी-खुरमी करय ठनाठन, अउ देहरउरी के गजब हे शान...

नवां चांउर के दूध-फरा ह, जब खदबद ले डबकथे
घर के ओनहा-कोनहा ह, तब महर-महर महकथे
जे चीख लेथे एक बखत, फेर जिनगी भर करथे गुनगान...

चीला-फरा अउ मुठिया ह, दमदम-दमदम करथे
अंडापान म सेंके अंगाकर, जस पेट म धमकथे
बरा-बिजौरी अउ बोबरा ह, तब घर के बढ़ाथे शान...

बरी महेरी अउ बटकर के, कभू-कभू चिखना मिलथे
झो-झो के अमसुरहा बोली, अउ खेंड़हा के पंगत चलथे
मुनगा घलोक छेवारी मन बर, आय दवई के खान....
                                                          (फोटो-गुगल से)

सुशील भोले
संजय नगर (टिकरापारा)  रायपुर (छ.ग.)
मोबा. नं. 080853-05931, 098269-92811
ई-मेल -   sushilbhole2@gmail.com

Friday 21 February 2014

सियादेवी धाम...

बालोद जिला के अंतर्गत नारागांव के सरहद पर स्थित सियादेवी धाम धार्मिक एवं प्राकृतिक सुंदरता के लिए विख्यात है, यही कारण है कि यहां सियादेवी के दर्शन के साथ ही साथ लोग प्रकृति के सानिध्य में अपना समय बीताने के लिए भी आते हैं।
वैसे तो यहां प्रतिदिन लोगों का आना-जाना लगा रहता है, लेकिन छुट्टियों और पर्व विशेष के अवसरों पर लोगों का रेला उमड़ पड़ता है।
चित्र में मैं सुशील भोले और गुंडरदेही के अधिवक्ता मित्र राजेश सोनी जी.....



Thursday 20 February 2014

छत्तीसगढ़ी के महाजलसा....

संगवारी हो अवइया 24-25 फरवरी दिन सोमवार-मंगलवार के रविन्द्र सांस्कृतिक मंच कालीबाड़ी रायपुर म छत्तीसगढ़ी राजभाषा आयोग के वार्षिक सम्मेलन हवय। आप जम्मो संगवारी मनला एमा झारा-झारा नेवता हे।

Wednesday 19 February 2014

भक्तिन राजिम मंदिर...

छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक एवं धार्मिक पहचान बन चुकी राजिम नगरी में त्रिवेणी संगम के समीप स्थित प्रसिद्ध राजीव लोचन मंदिर प्रांगण में ही भक्तिन राजिम मंदिर का भी निर्माण किया गया है।
भक्तिन राजिम के संबंध में ऐसी मान्यता है कि भगवान राजीव लोचन की प्रतिमा उन्हें ही त्रिवेणी संगम पर प्राप्त हुई थी, जिसे वे अपने घर ले गई थीं। बाद में राजा जगतपाल के अनुरोध पर उन्हें मुख्य मंदिर में स्थापना के लिए दे दी थीं।
इन्हीं भक्तिन राजिम तेलीन की भक्ति और स्मृति को अक्षुण्ण बनाये रखने के लिए राजीव लोचन मंदिर परिसर के भीतर ही भक्तिन राजिम के नाम पर भी एक मंदिर बनाया गया है। ऐसी भी मान्यता है कि राजिम नगर का नामकरण भी इन्हीं भक्तिन राजिम के नाम पर ही किया गया है।


Tuesday 18 February 2014

लोमश ऋषि आश्रम ..


छत्तीसगढ़ के प्रयाग के नाम से विख्यात प्रसिद्ध धर्म नगरी राजिम के त्रिवेणी संगम पर स्थित लोमश ऋषि आश्रम को आदिकाल से ऋषि-मुनियों के साधना स्थल के रूप में पहचाना जाता है।
ऐसा भी कहा जाता है कि वनवास काल में भगवान राम भी यहां सीता और लक्ष्मण के साथ ठहरे हुए थे। उसी दौरान महानदी, पैरी नदी और सोंढूर नदी के  त्रिवेणी संगम के बीचों-बीच स्थित कुलेश्वर महादेव की स्थापना सीता ने अपने हाथों से की थी।
आज भी लोमश ऋषि का यह आश्रम लोगों को तप-साधना के लिए प्रेरित करता है। यहां का शांत वातावरण मन में शांति और सुकुन पैदा करता है।  

Monday 17 February 2014

तांदुला जलाशय पर एक शाम....

छत्तीसगढ़ की बड़ी और प्रसिद्ध नदियों में शामिल तांदुला एवं सूखा नदी के संगम पर बने बांध तांदुला पर एक शाम....
ज्ञात रहे जिला बालोद में स्थित तांदुला जलाशय को बनने में कुल पंद्रह वर्ष लगे थे। सन 1905 में इसका निर्माण कार्य प्रारंभ हुआ था, जो 1920 में पूर्ण हुआ था। जिला मुख्यालय बालोद से तीन कि.मी. की दूरी पर स्थित तांदुला जलाशय में ब्रिटिश कालीन इंजीनियरिंग का नमूना देखने को मिलता है। आज भी ब्रिटिश कालीन उपकरण वैसे ही काम कर रहे हैं, जैसा वे अपने लगने के समय पर करते रहे होंगे। आज के देसी इंजीनियरों के कारनामों को सुनकर सहसा उन पुराने दिनों की याद ताजा हो जाती है, जब दुश्मनों के कार्य भी विश्वसनीय और सरहनीय हुआ करते थे।
चित्र में मैं सुशील भोले और साथ में गुंडरदेही के अधिवक्ता राजेश सोनी जी...



सुलेखा जी के निवास पर..

इस रविवार 16 फरवरी को फेसबुक पर मित्र बनीं श्रीमती सुलेखा सोनी जी के घर पर जाने और उनके पूरे परिवार के साथ समय व्यतीत करने का सुखद संयोग बना। अवसर था ग्राम-लाटाबोड़, जिला-बालोद में आयोजित कवि सम्मेलन में भागीदारी करने का।
तहसील मुख्यालय गुंडरदेही में नोटरी का कार्य करने वाली सुलेखा जी ने मुझे पास के गांव में आने का समाचार पाकर अपने निवास पर आमंत्रित किया था। उनके साथ उनके जीवनसाथी श्री राजेश सोनी जी, उनकी सासू माँ और दोनों बेटे भी मौजूद थे।
रायपुर से मैं अकेला ही गया था, लेकिन मेरे पुराने कवि मित्र केशवराम साहू वहां पर साथी बन गये थे। आगे झलमला के पुष्कर राज भी साथ हो लिए थे। उनके साथ ग्राम पंचायत चौरेल के तांदुला नदी के समीप  स्थित प्राचीन शिव मंदिर, प्रसिद्ध सियादेवी मंदिर और तांदुला जलाशय जाने का अवसर प्राप्त हुआ। यह कवि सम्मेलन से भी ज्यादा सुखद और स्मरणीय रहा।



Sunday 16 February 2014

काव्यपाठ एवं सम्मान

ग्राम-लाटाबोड़, जिला-बालोद में रविवार 16 फरवरी 2014 को आयोजित कवि सम्मेलन में काव्यपाठ एवं सम्मान....