Thursday 30 May 2019

ठेठरी खुरमी अउ जोहार...?

मूल संस्कृति के भावनात्मक रूप आय....
....ठेठरी-खुरमी अउ जोहार...?
छत्तीसगढ के मैदानी भाग म प्रचलित संस्कृति म वइसे तो किसम-किसम के रोटी-पिठा बनाए जाथे, फेर ठेठरी अउ खुरमी के अपन अलगेच महत्व हे। इहां के जम्मो तीज-तिहार म इंकर कोनो न कोनो रूप म उपयोग होबेच करथे। एकर असल कारन का आय? सिरिफ खाए-पीए के सुवाद के अउ कुछू बात?
असल म ए इहां के मूल आध्यात्मिक संस्कृति के भावनात्मक रूप आय, जेला हम भुलावत जावत हन। ये बात ल तो हम सब जानथन के छत्तीसगढ मूल रूप ले बूढादेव के रूप म शिव परिवार के संस्कृति ल जीने वाला अंचल आय। एकरे सेती इंकर हर रूप म इहां भावनात्मक दर्शन देखे ले मिलथे।
इहां एक "जोहार" शब्द के प्रचलन हे। हमला कोनो ल नमस्कार करना हे, मेल-भेंट करना हे, त वोला 'जोहार' कहिथन। ए "जोहार" का आय? इहू ह इहां के मूल संस्कृति के एक भावात्मक रूप आय, जइसे के ठेठरी-खुरमी आय।
जोहार ह "जय" अउ "हर" शब्द के मेल ले बने हे, जेकर मूल भाव भगवान शंकर के जयकार करना होथे। "हर" शिव जी ल ही कहे जाथे, ए बात ल आप सब जानथव। वोकरे सेती जय अउ हर के मेल ले बने ए शब्द आय जोहार। अभी एला बिगाड़ के लोगन "जय जोहार" बोले ले धर लिए हें, जे ह असल म एकर गलत रूप आय।
ठेठरी अउ खुरमी घलो अइसने इहां के मूल आध्यात्मिक संस्कृति के भावनात्मक रूप ल उजागर करे के माध्यम आय। ठेठरी ह जिहां शक्ति के प्रतीक स्वरूप रूप आय त खुरमी ह शिव के। आप मन जानत हवव के पूजा-पाठ म जब ठेठरी-खुरमी चढाए जाथे, त ठेठरी जेन जलहरी के आकार म बने रहिथे वोकर ऊपर शिव प्रतीक (लिंग)  के रूप म बने खुरमी (मुठिया वाला) ल रखे जाथे । तब दूनो मिल के एक पूर्ण शिव लिंग (जलहरी सहित वाला) बनथे।
पहिली खुरमी ल मुठिया के आकार म बनाए जाय, जे ह शिव प्रतीक के रूप होय अउ खुरमी जेला जलहरी के  रूप म बनाए जाय वो ह शक्ति के प्रतीक होय। फेर अब बेरा के संग हम अपन मूल आध्यात्मिक संदर्भ ल भुलावत जावत हन। आने-आने क्षेत्र ले आए लोगन अउ उंकर चलन के मुताबिक रेंगई म अपन मूल पहचान अउ स्वरूप ले भटकत जावत हन। एकरे सेती ठेठरी अउ खुरमी ल घलो जलहरी अउ मुठिया के आकार देना छोड़ के आनी-बानी के रूप अउ आकार म बनाए लगे हन।
जरूरी हे, अपन परंपरा अउ संस्कृति के मूल भाव ल जानना, तभे हमर अस्मिता के मानक अउ शुद्ध रूप बांचे रहि पाही। हमर छत्तीसगढिया होए के सांस्कृतिक चिन्हारी तभे सुरक्षित रहि पाही।
-सुशील भोले
आदि धर्म जागृति संस्थान
संजय नगर, रायपुर
मो/व्हा. 9826992811

"आखर अंजोर " काबर.......

छत्तीसगढ़ के मैदानी भाग में प्रचलित संस्कृति के मूल स्वरूप पर आधारित आलेखों का संकलन- "आखर अंजोर"...

मित्रों, छत्तीसगढ़ की संस्कृति को जिस तरह से बिगाड़ कर या कहें कि अन्य प्रदेशों की संस्कृति और वहाँ लिखे गए ग्रंथों के साथ घालमेल कर जिस तरह से लिखा जा रहा है, यह निश्चित रूप से दुखद और निंदनीय है।

मूल का मतलब होता है मूल निवासियों की संस्कृति। अन्य प्रदेशों से आये हुए लोगों की संस्कृति को किसी भी प्रदेश की मूल संस्कृति नहीं कह सकते, लेकिन छत्तीसगढ़ का दुर्भाग्य है कि यहां अन्य प्रदेशों से आये लोगों की संस्कृति को ही छत्तीसगढ़ की संस्कृति के रूप में प्रचारित किया जाता रहा है। इन्ही सब विसंगतियों से लोगों को अवगत कराते हुए यहाँ की मूल सांस्कृतिक पहचान को पुनर्स्थापित करने के उद्देश्य से "आखर अंजोर" के नाम से एक किताब का प्रकाशन करवाया गया है, जिसे "आदि धर्म जागृति संस्थान" के माध्यम से प्रचार प्रसार कर जमीन पर स्थापित करने का कार्य किया जा रहा है।

सभी अस्मिता प्रेमियों से आग्रह है, इसे खुद भी पढ़ें और अपने ईष्ट मित्रों में भी साझा करें।

धन्यवाद,
सुशील भोले
आदि धर्म जागृति संस्थान
संजय नगर, रायपुर (छ.ग.)
मोबा. /व्हा.नं. 98269-92811

Tuesday 28 May 2019

सिहावा के ऊँच डोंगरी ले....

सिहावा के ऊँच डोंगरी ले निकले हे निर्मल धारा
महानदी नांव धरा के जे बने हे सबके सहारा
सिंगी रिसी के घलोक आय इहीच ह पावन धाम
त्रेताजुग म राजा दशरथ के जे बनाइस ठउका काम
कहाँ जाथौ तब दुनिया किंजरे  तीरथ-बरत के नाम
हमरे भुइयां म सबोच भरे हे इहेंच हे चारों धाम
(संलग्न चित्र-महानदी उद्गम कुंड, सिहावा)
-सुशील भोले-9826992811

Sunday 26 May 2019

सावन का महीना इसलिए प्रिय है शिव जी को...

...इसलिए प्रिय है भगवान शिव को सावन का महीना....

सावन में भगवान शिव की पूजा का बहुत माना गया है और इस मौसम में भोलेनाथ की आराधना करने से सारी मनोकामनाओं की पूर्ति होती है...

क्यों प्रिय है भगवान शिव को सावन
सावन का महीना.?
पूरे देश में सावन के महीने को एक त्योहार की तरह मनाया जाता है और इस परंपरा को लोग सदियों से निभाते चले आ रहे हैं। भगवान शिव की पूजा करने का सबसे उत्तम महीना होता है सावन लेकिन क्या आप जानते हैं कि सावन के महीने का इतना महत्व क्यों है और भगवान शिव को यह महीना क्यों प्रिय है?
आइए जानते हैं इसके पीछे की मान्यताओं के बारे में...

सावन मास का महत्व...
श्रावण मास हिंदी कैलेंडर में पांचवें स्थान पर आता हैं और इस ऋतु में वर्षा का प्रारंभ होता हैं. शिव जी को श्रावण का देवता कहा जाता हैं, उन्हें इस माह में भिन्न-भिन्न तरीकों से पूजा जाता है। पूरे माह धार्मिक उत्सव होते हैं और विशेष तौर पर सावन सोमवार को पूजा जाता हैं। भारत देश में पूरे उत्साह के साथ सावन महोत्सव मनाया जाता है।

भगवान शिव को क्यों प्रिय है सावन का महीना?
कहा जाता है सावन भगवान शिव का अति प्रिय महीना होता है। इसके पीछे की मान्यता यह हैं कि दक्ष पुत्री माता सती ने अपने जीवन को त्याग कर कई वर्षों तक श्रापित जीवन जीया। उसके बाद उन्होंने हिमालय राज के घर पार्वती के रूप में जन्म लिया। पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए पूरे सावन महीने में कठोरतप किया जिससे प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उनकी मनोकामना पूरी की। अपनी भार्या से पुन: मिलाप के कारण भगवान शिव को श्रावण का यह महीना अत्यंत प्रिय है। यही कारण है कि इस महीने कुमारी कन्या अच्छे वर के लिए शिव जी से प्रार्थना करती है।
मान्यता हैं कि सावन के महीने में भगवान शिव ने धरती पर आकार अपने ससुराल में विचरण किया था, जहां अभिषेक कर उनका स्वागत हुआ था इसलिए इस माह में अभिषेक का महत्व बताया गया है।

सबसे महत्वपूर्ण बात यह है,  कि सृष्टि निर्माण के पश्चात जब देवताओं ने परमात्मा से उनकी पूजा उपासना के लिए प्रतीक और विधि की मांग की,  तब उन्होंने ने तेज रूप में समूचे ब्रहमाण्ड में व्याप्त अपने विराट रुप के प्रतीक स्वरूप "शिवलिंग" के रूप में श्रावण पूर्णिमा को प्रगट होकर अपना पूजा प्रतीक प्रदान किया। इसलिए श्रावण माह को शिव जी की पूजा के लिए सबसे श्रेष्ठ महीना माना जाता है।  इसीलिए शिव जी को भी यह महीना सबसे ज्यादा प्रिय है।
-सुशील भोले

Tuesday 21 May 2019

शिवलिंग की स्थापना....

शिवलिंग की स्थापना.....
आपको यह जानकर आश्चर्य होगा की भारत में ऐसे शिव मंदिर है जो केदारनाथ से लेकर रामेश्वरम तक एक सीधी रेखा में बनाये गये है। आश्चर्य है कि हमारे पूर्वजों के पास ऐसा कैसा विज्ञान और तकनीक था जिसे हम आज तक समझ ही नहीं पाये? उत्तराखंड का केदारनाथ, तेलंगाना का कालेश्वरम, आंध्रप्रदेश का कालहस्ती, तमिलनाडू का एकंबरेश्वर, चिदंबरम और अंततः रामेश्वरम मंदिरों को 79° E 41’54” Longitude के भौगोलिक सीधी रेखा में बनाया गया है।

यह सारे मंदिर प्रकृति के 5 तत्वों में लिंग की अभिव्यक्ति का प्रतिनिधित्व करते हैं, जिसे हम आम भाषा में पंच भूत कहते है। पंच भूत यानी पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और अंतरिक्ष। इन्ही पांच तत्वों के आधार पर इन पांच शिव लिंगों को प्रतिष्टापित किया है। जल का प्रतिनिधित्व तिरुवनैकवल मंदिर में है, आग का प्रतिनिधित्व तिरुवन्नमलई में है, हवा का प्रतिनिधित्व कालाहस्ती में है, पृथ्वी का प्रतिनिधित्व कांचीपुरम में है और अतं में अंतरिक्ष या आकाश का प्रतिनिधित्व चिदंबरम मंदिर में है! वास्तु-विज्ञान-वेद का अद्भुत समागम को दर्शाते हैं ये पांच मंदिर।

भौगॊलिक रूप से भी इन मंदिरों में विशेषता पायी जाती है। इन पांच मंदिरों को योग विज्ञान के अनुसार बनाया गया था, और एक दूसरे के साथ एक निश्चित भौगोलिक संरेखण में रखा गया है। इस के पीछे निश्चित ही कॊई विज्ञान होगा जो मनुष्य के शरीर पर प्रभाव करता होगा।

इन मंदिरों का करीब चार हज़ार वर्ष पूर्व निर्माण किया गया था जब उन स्थानों के अक्षांश और देशांतर को मापने के लिए कोई उपग्रह तकनीक उपलब्ध ही नहीं था। तो फिर कैसे इतने सटीक रूप से पांच मंदिरों को प्रतिष्टापित किया गया था? उत्तर भगवान ही जाने।

केदारनाथ और रामेश्वरम के बीच 2383 किमी की दूरी है। लेकिन ये सारे मंदिर लगभग एक ही समानांतर रेखा में पड़ते है। आखिर हज़ारों वर्ष पूर्व किस तकनीक का उपयॊग कर इन मंदिरों को समानांतर रेखा में बनाया गया है यह आज तक रहस्य ही है। श्रीकालहस्ती मंदिर में टिमटिमाते दीपक से पता चलता है कि वह वायु लिंग है। तिरूवनिक्का मंदिर के अंदरूनी पठार में जल वसंत से पता चलता है कि यह जल लिंग है। अन्नामलाई पहाड़ी पर विशाल दीपक से पता चलता है कि वह अग्नि लिंग है। कंचिपुरम के रेत के स्वयंभू लिंग से पता चलता है कि वह पृथ्वी लिंग है और चिदंबरम की निराकार अवस्था से भगवान के निराकारता यानी आकाश तत्व का पता लगता है।

अब यह आश्चर्य की बात नहीं तो और क्या है कि ब्रह्मांड के पांच तत्वों का प्रतिनिधित्व करनेवाले पांच लिंगो को एक समान रेखा में सदियों पूर्व ही प्रतिष्टापित किया गया है। हमें हमारे पूर्वजों के ज्ञान और बुद्दिमत्ता पर गर्व होना चाहिए कि उनके पास ऐसा विज्ञान और तकनीक था जिसे आधुनिक विज्ञान भी नहीं भेद पाया है। माना जाता है कि केवल यह पांच मंदिर ही नहीं अपितु इसी रेखा में अनेक मंदिर होगें जो केदारनाथ से रामेश्वरम तक सीधी रेखा में पड़ते है। इस रेखा को “शिव शक्ति अक्श रेखा” भी कहा जाता है। संभवता यह सारे मंदिर कैलाश को द्यान में रखते हुए बनाया गया हो जो 81.3119° E में पड़ता है!? उत्तर शिवजी ही जाने। ...

कमाल की बात है "महाकाल" से शिव ज्योतिर्लिंगों के बीच कैसा सम्बन्ध है......??
उज्जैन से शेष ज्योतिर्लिंगों की दूरी भी है रोचक-
उज्जैन से सोमनाथ- 777 किमी
उज्जैन से ओंकारेश्वर- 111 किमी
उज्जैन से भीमाशंकर- 666 किमी
उज्जैन से काशी विश्वनाथ- 999 किमी
उज्जैन से,मल्लिकार्जुन- 999 किमी
उज्जैन से केदारनाथ- 888 किमी
उज्जैन से  त्रयंबकेश्वर- 555 किमी
उज्जैन से बैजनाथ- 999 किमी
उज्जैन से रामेश्वरम- 1999 किमी
उज्जैन से घृष्णेश्वर - 555 किमी

हिन्दु धर्म में कुछ भी बिना कारण के नही होता था ।
उज्जैन पृथ्वी का केंद्र माना जाता है । जो सनातन धर्म में हजारों सालों से केंद्र मानते आ रहे है इसलिए उज्जैन में सूर्य की गणना और ज्योतिष गण ना के लिए मानव निर्मित यंत्र भी बनाये गये है करीब 2050 वर्ष पहले ।

और जब करीब 100 साल पहले पृथ्वी पर काल्पनिक रेखा (कर्क)अंग्रेज वैज्ञानिक द्वारा बनायीं गयी तो उनका मध्य भाग उज्जैन ही निकला । आज भी वैज्ञानिक उज्जैन ही आते है सूर्य और अन्तरिक्ष की जानकारी के लिये।जय श्री महाकाल राजा की।

Friday 17 May 2019

धूम्रपान निषेध दिवस....

31 मई : विश्व धूम्रपान निषेध......
नशा भले ही शान और लत के लिए किया जाता हो, पर यह जिंदगी की बेवक्त आने वाली शाम का भी मुख्य कारण है, जो कब जीवन में अंधेरा कर जाए, कुछ कहा नहीं जा सकता। आप इसका मजा भले ही दिनभर के कुछ सेकंड के लिए लेते हैं, लेकिन यह मजा, कब आपके लिए जिंदगी भर की सजा बन जाए, आप अंदाजा भी नहीं लगा सकते।

पिछले कुछ सालों में भारत के साथ ही पूरे विश्व भर में धूम्रपान करने और उससे पीड़ित लोगों की संख्या में लगातार इजाफा हुआ है। इस गंभीर लत ने कई लोगों को मौत का ग्रास तक बना दिया। इनके गंभीर रिणामों को देखते हुए धूम्रपान के नुकसान के प्रति जागरुक करने के लिए कई संस्थाएं भी आगे आई हैं।

तंबाकू और धूम्रपान के दुष्परिणामों को देखते हुए विश्व स्वास्थ्य संगठन के सदस्य देशों ने इसके लिए एक प्रस्ताव रखा जिसके बाद हर साल 31 मई को तंबाकू निषेध दिवस मनाने का निर्णय लिया गया। तभी से 31 मई को प्रतिवर्ष विश्व धूम्रपान निषेध दिवस के रूप में इसे मनाया जाता है।

तंबाकू से जुड़े कुछ तथ्य -

1. विश्व स्वास्थ्य संगठन डब्ल्यूएचओ के मुताबिक दुनिया के करीब 125 देशों में तंबाकू का उत्पादन होता है।

2.  दुनियाभर में हर साल करीब 5.5 खरब सिगरेट का उत्पादन होता है और एक अरब से ज्यादा लोग इसका सेवन करते हैं।

3. रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया भर में 80 फीसदी पुरुष तंबाकू का सेवन करते हैं, लेकिन कुछ देशों में महिलाओं में धूम्रपान करने की आदत काफी बढ़ी है।

4. दुनियाभर में धूम्रपान करने वालों का करीब 10 फीसदी भारत में है, रिपोर्ट के अनुसार भारत में करीब 25 हजार लोग गुटखा, बीडी, सिगरेट, हुक्का आदि के जरिये तंबाकू का सेवन करते हैं।

5.  भारत में 10 अरब सिगरेट और 72 करोड़ 50 लाख किलो तंबाकू का उत्पादन होता है।

6.  भारत तंबाकू निर्यात के मामले में ब्राजील, चीन, अमेरिका, मलावी और इटली के बाद छठे नंबर पर है।

7.  विकासशील देशों में हर साल 8 हजार बच्चों की मौत अभिभावकों द्वारा किए जाने वाले धूम्रपान के कारण होती है।

8.  दुनिया के किसी अन्य देश के मुक़ाबले में भारत में तंबाकू से होने वाली बीमारियों से मरने वाले लोगों की संख्या बहुत तेजी से बढ़ रही है।

9.  किसी भी प्रकार का धूम्रपान 90 प्रतिशत से अधिक फेफड़े के कैंसर, ब्रेन हेमरेज और पक्षाघात का प्रमुख कारण है।

10.  सिगरेट व तंबाकू -  मुंह , मेरूदंड, कंठ और मूत्राशय के कैंसर के रूप में प्रभावी होता है ।

11.  सिगरेट व तंबाकू में मौजूद कैंसरजन्य पदार्थ शरीर की कोशिकाओं के विकास को रोककर उनके नष्ट होने और कैंसर के बनने में मदद करता है।

12.  लंबे समय तक धूम्रपान करने से मुंह, गर्भाशय, गुर्दे और पाचक ग्रंथि में कैंसर होने की अत्यधिक संभावना होती है।

13.  धूम्रपान का सेवन और न चाहते हुए भी उसके धुंए का सामना, हृदय और मस्तिष्क की बीमारियों का मुख्य कारण है।

14.  धूम्रपान के धूएं में मौजूद निकोटीन, कार्बन मोनो आक्साइड जैसे पदार्थ हृदय, ग्रंथियों और धमनियों से संबंधित रोगों के कारण हैं।

भारत में सार्वजनिक स्थानों पर धूम्रपान पर पाबंदी है, इसके बावजूद लचर कानून व्यवस्था के चलते इस पर अमल नहीं हो पाता। भारत में आर्थिक मामलों की संसदीय समिति पहले ही राष्ट्रीय तम्बाकू नियंत्रण कार्यक्रम को मंज़ूरी दे चुकी है। इसका मक़सद तंबाकू नियंत्रण कानून के प्रभावी क्रियान्वयन और तम्बाकू के हानिकारक प्रभावों के बारे में लोगों तक जागरूकता फैलाना है।
  -सुशील भोले

कब खुलबे आचारसंहिता..

कब खुलबे जी आचारसंहिता
तोर सेती होगे जिनगी बिरथा
कोनो काम सिध नइ पर पाय
कहूं जाबे ते तोरे छेंका बताय
जइसे गांधीबबा के तीन बेंदरा
देखय न बोलय कान घलो भैरा
सुशील भोले 😊

Wednesday 15 May 2019

कबीर जयंती की शुभकामनाएं..

कबीर जयंती की हार्दिक शुभकामनाएँ....
संसारभर में भारत की भूमि ही तपोभूमि (तपोवन) के नाम से विख्यात है। यहाँ अनेक संत, महात्मा और पीर-पैगम्बरों ने जन्म लिया। सभी ने भाईचारे, प्रेम और सद्भावना का संदेश दिया है। इन्हीं संतों में से एक संत कबीरदासजी भी हुए हैं। इनका जन्म संवत्‌ 1455 की ज्येष्ठ शुक्ल पूर्णिमा को हुआ था। इसीलिए ज्येष्ठ शुक्ल पूर्णिमा के दिन देश भर में कबीर जयंती मनाई जाती है।

महात्मा कबीर समाज में फैले आडम्बरों के सख्त विरोधी थे। उन्होंने लोगों को एकता के सूत्र का पाठ पढ़ाया। वे लेखक और कवि थे। उनके दोहे इंसान को जीवन की नई प्रेरणा देते थे। कबीर ने जिस भाषा में लिखा, वह लोक प्रचलित तथा सरल थी। उन्होंने विधिवत शिक्षा नहीं ग्रहण की थी, इसके बावजूद वे दिव्य प्रभाव के धनी थे।

कबीरदासजी को हिन्दू और मुस्लिम दोनों ही संप्रदायों में बराबर का सम्मान प्राप्त था। दोनों संप्रदाय के लोग उनके अनुयायी थे। यही कारण था कि उनकी मृत्यु के बाद उनके शव को लेकर विवाद उत्पन्न हो गया। हिन्दू कहते थे कि उनका अंतिम संस्कार हिन्दू रीति से होना चाहिए और मुस्लिम कहते थे कि मुस्लिम रीति से।

किंतु इसी छीना-झपटी में जब उनके शव पर से चादर हट गई, तब लोगों ने वहाँ फूलों का ढेर पड़ा देखा। यह कबीरजी की ओर से दिया गया बड़ा ही सशक्त संदेश था कि इंसान को फूलों की तरह होना चाहिए- सभी धर्मों के लिए एक जैसा भाव रखने वाले, सभी को स्वीकार्य।

बाद में वहाँ से आधे फूल हिन्दुओं ने ले लिए और आधे मुसलमानों ने तथा अपनी-अपनी रीति से उनका अंतिम संस्कार किया। ऐसे थे कबीर।
आइए उस महान विभूति को उनकी जयंती पर नमन करें।
-सुशील भोले
व्हा.9826992811

बुद्ध पूर्णिमा की शुभकामनाएं..

बुद्ध पूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनाएँ....
वेसक (पालि: वेसाख, संस्कृत: वैशाख) एक उत्सव है जो विश्व भर के बौद्धों एवं अधिकांश हिन्दुओं द्वारा मनाया जाता है। यह उत्सव बुद्धपूर्णिमा को मनाया जाता है जिस दिन गौतम बुद्ध का जन्म और निर्वाण हुआ था तथा इसी दिन उन्हें बोधि की प्राप्ति हुई थी। विभिन्न देशों के पंचांग के अनुसार बुद्धपूर्णिमा अलग-अलग दिन पड़ता है। विभिन्न देशों में इस पर्व के अलग-अलग नाम हैं। उदाहरण के लिए, हांग कांग में इसे बुद्ध जन्मदिवस कहा जाता है, इण्डोनेशिया में 'वैसक' दिन कहते हैं, सिंगापुर में 'वेसक दिवस' और थाइलैण्ड में 'वैशाख बुच्छ दिन' कहते हैं।
-सुशील भोले

Wednesday 1 May 2019

कमरछठ और महुआ का उपयोग

कमरछठ और महुआ का उपयोग?
कार्तिकेय जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाने वाला पर्व "कमरछठ"   को बलराम जयंती के रूप में "हलषष्ठी" कहकर प्रचारित किया जाना कितना तर्क संगत और सत्य है? इस पर विचार किया जाना आवश्यक लगता है।
मेरे द्वारा पूर्व में किये गये पोस्ट (लेख) में संस्कृत भाषा के "कुमार षष्ठ" शब्द को छत्तीसगढ़ी अपभ्रंश के रूप में "कमरछठ" बनना बताया गया था। इस पर अनेक मित्रों ने इसकी सत्यता पर प्रश्न किया था।
मित्रों, यहां की मूल संस्कृति, जिसे मैं "आदि धर्म" कहता हूं, शिव परिवार पर आधारित संस्कृति है। इसीलिए यहां के हर एक पर्व का संबंध किसी न किसी रूप में शिव और उनके परिवार पर आधारित होता है।
आप सभी जानते हैं, कि यहां के मूल निवासियों के जीवन में "महुआ" का कितना महत्व है? जन्म से लेकर मृत्यु तक यह (महुआ) इनके जीवन का अनिवार्य अंग है। तब आपको क्या लगता है, कि जिस "कमरछठ" पर्व में महुआ पत्ते की पतरी, महुआ डंगाल का दातून और पसहर को पकाने (खोने) के लिए चमचा (करछुल) के रूप में महुआ-डंगाल का उपयोग और सबसे बड़ी बात, इसकी पूजा में चढ़ाए जाने वाले प्रसाद में (लाई के साथ) सूखे हुए महुए के फूल उपयोग में लाया जाता है, वह "आदि संस्कृति" के बजाए किसी अन्य संस्कृति का अंग होगा?
मित्रों, यह़ा के मूल धर्म और संस्कृति के ऊपर मनगढंत किस्सा-कहानी गढ़कर जिस तरह भ्रमित किया जा रहा है, बहुत चिंतनीय है। हमारी मूल पहचान को समाप्त करने के लिए सैकड़ों वर्षों से षडयंत्र रचा जा रहा है। बहुत जरूरी है, कि हम अपनी संस्कृति के संरक्षण-संवर्धन के नेतृत्व का ध्वज अपने हाथों में धारण करें। आइए "आदि धर्म जागृति संस्थान" के मिशनरी कार्य में हाथ से हाथ मिलाकर जुड़़े।
-सुशील भोले -9826992811

पोरा: नंदीश्वर जन्मोत्सव

पोरा : नंदीश्वर जन्मोत्सव..
भाद्रपद अमावस्या को भगवान शिव के सबसे प्रिय भक्त, सेवक और सवारी नंदीश्वर का जन्मोत्सव पूरे छत्तीसगढ़ में पोरा पर्व के रूप में धूम-धाम के साथ मनाया जाता है।
पोरा पर्व के अवसर पर मिट्टी से बने नंदी की पारंपरिक व्यंजनों का भोग लगाकर पूजा की जाती है। बच्चे इस दिन मिट्टी से बने नंदी (बैल) को खिलौनों के रूप में खेलते भी हैं। इस अवसर पर बैल दौड़ का आयोजन भी किया जाता है।
ज्ञात रहे कि छत्तीसगढ़ की मूल संस्कृति, जिसे मैं आदि धर्म कहता हूं, वह सृष्टिकाल की संस्कृति है। युग निर्धारण की दृष्टि से कहें तो सतयुग की संस्कृति है, और यह किसी न किसी दृष्टि से अध्यात्म पर आधारित है। इसकी अपनी स्वयं की पूजा और उपासना की विधि है, जुवन पद्धती है,  जिसे उसके मूल रूप में लोगों को समझाने और सिखाने के लिए हमें फिर से सामूहिक प्रयास करने की आवश्यकता है, क्योंकि कुछ लोग यहां के मूल धर्म और संस्कृति को अन्य प्रदेशों से लाये गये ग्रंथों और संस्कृति के साथ घालमेल कर लिखने और हमारी मूल पहचान को समाप्त करने की कोशिश कर रहे हैं।
मित्रों, सतयुग की यह गौरवशाली संस्कृति आज की तारीख में केवल छत्तीसगढ़ में ही जीवित रह गई है, उसे भी गलत-सलत व्याख्याओं के साथ जोड़कर भ्रमित किया जा रहा। मैं चाहता हूं कि मेरे इसे इसके मूल रूप में पुर्नप्रचारित करने के इस सद्प्रयास में आप सब सहभागी बनें...।
-सुशील भोले
संजय नगर, रायपुर (छ.ग.)
मोबा. नं. 098269-92811

पहिली सुमरनी तोर गजानन

पहिली सुमरनी तोर...
हमर इहां के परब-तिहार मन म भादो महीना के अड़बड़ महात्तम हे। ए महीना ल शिव-पार्षद मन के महीना कहे जाथे काबर के भगवान शिव के तीन प्रमुख पार्षद या गण मन के उत्पत्ति ये भादो महीना म होए हे। भादो के अंधयारी पाख के छठ तिथि म स्वामी कार्तिकेय के जनम जेला इहां कमरछठ के रूप म मनाये जाथे। भादो अमावस्या के नंदीश्वर के जनम जेला इहां पोरा के रूप म मनाये जाथे, अउ भादो अंजोरी पाख के चउथ तिथि के गणनायक गणेश के जनम होये हे। एकरे सेती ए तिथि ले पूरा दस दिन तक उत्सव के रूप म मनाए जाथे।
उपलब्ध ग्रंथ मन के पढ़े ले अइसे जानबा मिलथे के गनेस के उत्पत्ति माता पारवती ह अपन सरीर के मइल ले करे हे। एक पइत उन घर म अकेल्ला रहिन हें त नहाए के बेरा घर के पहरादारी करे खातिर एक गण (सेवक) के आवश्यकता परीस। एकरे सेती उन अपन सरीर के मइल ले एक ठन मुरती बना के वोमा जीव के संचार कर दिस अउ वोला अस्त-शस्त्र धरा के घर के दरवाजा म खड़ा करके नहाए ले चल दिस। अतके म भगवान शंकर आइन। तब गनेस वोला घर भीतर खुसरन नइ दिस। भोलेनाथ वोला अब्बड़ समझाइस- बुझाइस, लइका आय कहिके भुलवारीस-चुचकारीस अउ डेरवाइस घलोक। फेर गनेस मानबे नइ करीस भलुक वोकर संग लड़े-झगरे ले धर लेइस त रिस के मारे शंकर जी ह गनेस के टोटच ल काट दिस अउ घर भीतर खुसरगे।

पारवती जब नहा-धो के बाहिर निकलीस त भोलेनाथ ल ठाढ़े पाइस। वो ह अकचकाके पूछथे तुमन ल दरवाजा म कोनो छेंकीस नहींं का? भोलेनाथ कहिन- एक झन उतलइन लइका छेंकत रिहीसे फेर मैं वोला मार के भीतर आगेंव। अतका म पारवती ह गनेस के कटे मुड़ ल धर के रोए लागीस अउ वोला जीयाए खातिर गोहराए लागीस। आखिर म भोलेनाथ ल वतकेच जुवर मरे एकठन हाथी के मुड़ी ल मंगवा के गनेस के सरीर म जोर के वोमा जीवन के संचार करे बर लागीस। अइसे किसम गनेस ल एक नवा सिर अउ नवा नांव मिलिस-गजानन। गनेस जी अपन जन्म काल ले ही बड़ गुनीक अउ विद्धान रिहीसे तेकरे सेथी जब वोकर अउ स्वामी कार्तिकेय के बीच पृथ्वी के परिक्रमा करे के बात उठिस त वो अपन माता-पिता के परिक्रमा कर के उंकर आगू म हाथ जोड़ के बइठगे। स्वामी कार्तिकेय जब मयूर म बइठे-बइठे पृथ्वी के परिक्रमा करके आइस अउ गनेस ल माता-पिता के आगू हाथ जोड़ के बइठे देखिस त ये सोच के खुश होगे के शर्त के मुताबिक प्रथम पूज्य के अधिकार अब वोला मिल जाही काबर ते गनेस तो पृथ्वी के परिक्रमा करेच नइए। फेर जब गनेस ह अपने तर्क शक्ति द्वारा ए बात ल साबित करीस के माता-पिता के परिक्रमा ह पृथ्वी के परिक्रमा के समान होथे अउ वोला तो मैं ह कब के कर डरे हौं, त भगवान भोलेनाथ वोला समस्त देवमंडल म प्रथम पूज्य के अधिकार (वरदार) दे दिस।

अउ संग म जतका भी गण-पार्षद (सेवक) रिहिस हे तेकर मन के मुखिया बना दिस। एकरे सेती उनला विघ्न विनाशक के संगे-संग गणनायक माने गण मनके मुखिया घलोक कहे जाथे। सही बात आय ज्ञान ह हमेशा श्रेष्ठ होथे, बड़े होथे। तर्क अउ विवेक के द्वारा ही जम्मो किसम के संकट या विघ्न ले उबरे जा सकथे। भगवान गनेस ल एकरे सेती विघ्न विनाशक कहे जाथे, काबर के उन अपन ज्ञान अउ तर्क शक्ति के द्वारा जम्मो किसम के विघ्न-बाधा मन ले मुक्ति देवाथे।

भगवान गनेस के जन्मोत्सव ल पूरा देस के संगे-संग अब हमर छत्तीसगढ़ म घलो पूरा  दस दिन तक पूरा उल्लास के साथ मनाए जाथे। जगा-जगा पंडाल बनाके उंकर प्रतिमा स्थापित करे जाथे। रोज संझा-बिहनिया उंकर पूजा करे जाथे अउ कई किसम के सांस्कृतिक कार्यक्रम के आयोजन करे जाथे। भारत म प्रारंभ होए स्वतंत्रता आंदोलन म घलोक गनेस के सार्वजनिक पूजा के बड़का योगदान हे। एकर बहाना पूरा पारा-मोहल्ला के मनखे एक जगा सकलावंय अउ भगवत चरचा के संगे-संग देस के आजादी के चरचा घलोक करंय। अब तो सहर के संगे-संग गांव-गंवई म घलोक बड़े-बड़े प्रतिमा के स्थापना ए अवसर म करे जाथे। कतकों अकन सामाजिक अउ सांस्कृतिक संस्था मन गनेस उत्सव के स्थल सजावट अउ अनंत चौदस के बाद निकलने वाला विसर्जन झांकी के सजावट ऊपर  ईनाम घलोक देथें।
- सुशील भोले
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