छत्तीसगढ़ के मैदानी भाग में प्रचलित संस्कृति के मूल स्वरूप पर आधारित आलेखों का संकलन- "आखर अंजोर"...
मित्रों, छत्तीसगढ़ की संस्कृति को जिस तरह से बिगाड़ कर या कहें कि अन्य प्रदेशों की संस्कृति और वहाँ लिखे गए ग्रंथों के साथ घालमेल कर जिस तरह से लिखा जा रहा है, यह निश्चित रूप से दुखद और निंदनीय है।
मूल का मतलब होता है मूल निवासियों की संस्कृति। अन्य प्रदेशों से आये हुए लोगों की संस्कृति को किसी भी प्रदेश की मूल संस्कृति नहीं कह सकते, लेकिन छत्तीसगढ़ का दुर्भाग्य है कि यहां अन्य प्रदेशों से आये लोगों की संस्कृति को ही छत्तीसगढ़ की संस्कृति के रूप में प्रचारित किया जाता रहा है। इन्ही सब विसंगतियों से लोगों को अवगत कराते हुए यहाँ की मूल सांस्कृतिक पहचान को पुनर्स्थापित करने के उद्देश्य से "आखर अंजोर" के नाम से एक किताब का प्रकाशन करवाया गया है, जिसे "आदि धर्म जागृति संस्थान" के माध्यम से प्रचार प्रसार कर जमीन पर स्थापित करने का कार्य किया जा रहा है।
सभी अस्मिता प्रेमियों से आग्रह है, इसे खुद भी पढ़ें और अपने ईष्ट मित्रों में भी साझा करें।
धन्यवाद,
सुशील भोले
आदि धर्म जागृति संस्थान
संजय नगर, रायपुर (छ.ग.)
मोबा. /व्हा.नं. 98269-92811
No comments:
Post a Comment