Friday 9 March 2018

* . ज्ञान-सार..*


**ज्ञान-सार**
*  ज्ञान और आशीर्वाद चाहे जहाँ से भी मिले उसे अवश्य ग्रहण करना चाहिए।

*  दुनिया का कोई भी ग्रंथ न तो पूर्ण है, और न ही पूर्ण सत्य है। इसलिए सत्य को
 जानने के लिए साधना के माध्यम से आत्मज्ञान प्राप्त करें। केवल तप, साधना और
 अनुभव के द्वारा प्राप्त ज्ञान ही सत्य तक पहुंचने का एकमात्र उत्तम रास्ता है।

*  जहाँ तक सम्मान की बात है, तो दुनिया के हर धर्म और संस्कृति का सम्मान करना
 चाहिए, लेकिन जीएं सिर्फ अपनी ही संस्कृति को, क्योंकि अपनी ही संस्कृति
 व्यक्ति को आत्म गौरव का बोध कराती है, जबकि दूसरों की संस्कृति गुलामी का
 रास्ता दिखाती है। 

*  भारत संस्कृतियों का देश है। यहाँ हर राज्य की अलग संस्कृति है। हर क्षेत्र की
 अलग संस्कृति है। हर समूह की अलग संस्कृति है। इसके बावजूद मैं छत्तीसगढ़ के
 संदर्भ में जिस मूल संस्कृति की बात करता हूं, वह केवल एक संस्कृति ही नहीं,
 अपितु एक संपूर्ण जीवन पद्धति है, एक संपूर्ण धर्म है, जिसे मैं आदिधर्म कहता हूं।

-सुशील भोले
आदि धर्म जागृति संस्थान
54/191, कस्टम कालोनी के सामने वाली गली, संजय नगर
(टिकरापारा) रायपुर-492010
मो/व्हा. 9826992811


**....हमर मूल परब-तिहार..**

*  चैत अंजोरी एकम - हमर संस्कृति के नवा बछर
* चैत अंजोरी नवमी - नवरात (माता शक्ति ·के सती रूप म अवतरण दिवस)
* बइसाख अंजोरी तीज - अक्ति (किसानी ·के नवा बछर)
* असाढ़ अमावस्या - जुड़वास
* असाढ़ पुन्नी - गुरु पूर्णिमा
* सावन अमावस - सवनाही / हरेली (मांत्रिक शक्ति प्रागट्य दिवस)
* सावन अंजोरी पंचमी - नाग पंचमी (वासुकी जन्मोत्सव)
* सावन अंजोरी पंचमी/नवमी ले पूर्णिमा तक- भोजली परब
* सावन पुन्नी - परमात्मा के शिव लिंग रूप म अवतरण दिवस
* भादो अंधियारी छठ - कमरछठ (कुमार षष्ठ कार्तिकेय जन्मोत्सव)
* भादो अमावस - पोरा (नंदीश्वर जन्मोत्सव)
* भादो अंजोरी चौथ - गणेश जन्मोत्सव
* ऋषि पंचमी/दशहरा/अन्नकूट - नवा खाई (एला अलग-अलग समुदाय के मन अलग-अलग दिन मनाथें)
* कुंवार अंधियारी पाख - पितर पाख
* कुंवार अंजोरी नवमी - नवरात (माता शक्ति के पार्वती रूप म अवतरण दिवस)
* कुंवार अंजोरी दशमी - दंसहरा (समुद्र मंथन ले निकले विष के हरण दिवस)
* कुंवार पुन्नी - शरद पुन्नी (समुद्र मंथन ले निकले अमरित पाए के परब)
* कातिक अंधियारी पाख - कातिक नहाए अउ सुवा नाच के माध्यम ले ईसरदेव-
गौरा के बिहाव के तैयारी परब-पाख
* कातिक अमावस - गौरी-गौरा परब (ईसरदेव-गौरा बिहाव परब)
* कातिकपुन्नी ले शिवरात्रि तक - मेला-मड़ई के परब
* अगहन पुन्नी - परमात्मा के ज्योति स्वरूप म प्रगट दिवस
* माघ अंजोरी पंचमी - बसंत पंचमी (शिव तपस्या भंग करे बर कामदेव अउ रति
के आगमन के प्रतीक स्वरूप अंडा पेंड़ (अरंडी) गडिय़ाना, नाचना-गाना सवा
महीना के परब मनाना)
* पूस पुन्नी - छेरछेरा (शिवजी द्वारा पार्वती घर नट बनकर जाकर भिक्षा मांगने का परब )
* फागुन अंधियारी तेरस - महाशिवरात्रि (परमात्मा के जटाधारी रूप म प्रगटोत्सव पर्व)
* फागुन पुन्नी - होली / कामदहन परब (तपस्या भंग करे के उदिम करत कामदेव
ल क्रोधित शिव द्वारा तीसरा नेत्र खोल के भसम करे के परब)
* चैत अंधियारी पाख - गौना (गवन) के पाख ।

-सुशील भोले
आदि धर्म जागृति संस्थान
54/191, डाॅ . बघेल गली, संजय नगर
(टिकरापारा) रायपुर (छत्तीसगढ)
मो/व्हा. 9826992811, 7974725684

Tuesday 6 March 2018

"आदि धर्म जागृति संस्थान" पंजीकृत

छत्तीसगढ के मूल धर्म, संस्कृति एवं सम्पूर्ण अस्मिता के लिए कार्यरत "आदि धर्म सभा" को सहायक पंजीयक आर. आर. भानू द्वारा "आदि धर्म जागृति संस्थान" के नाम पर पंजीकृत कर क्र. 122201889720 प्रदान किया गया है।
जो मित्र अपने पुरखों की विरासत को उसके मूल रूप में जानने, समझने और उसे संरक्षित कर आने वाली पीढी के लिए जीवंत रूप में रखने में रूचि रखते हैं, वे हमसे जुड़ने के लिए सम्पर्क कर सकते हैं।
इससे संबंधित विषयों पर सभा, संगोष्ठी, व्याख्यान एवं अन्य धार्मिक-सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित करने के लिए भी सम्पर्क किया जा सकता है।
-सुशील कुमार वर्मा "भोले"
संयोजक, आदि धर्म जागृति संस्थान
54/191, डाॅ . बघेल गली, संजय नगर 
(टिकरापारा) रायपुर (छत्तीसगढ)
मो/व्हा. 9826992811, 7974725684

"आदि धर्म जागृति संस्थान" की प्रथम बैठक


"आदि धर्म जागृति संस्थान" की प्रथम बैठक रविवार 4 मार्च को तात्यापारा, रायपुर स्थित दानवीर भोला कुर्मी छात्रावास के सभाकक्ष में संपन्न हुई। बैठक में संयोजक सुशील वर्मा "भोले" ने संस्था के पंजीयन के संबंध में उपस्थित सदस्यों को जानकारी दी।

बैठक में निर्णय लिया गया कि आगामी बैठक 29 मार्च को आयोजित होगी जिसमें पदाधिकारियों की विधिवत घोषणा की जाएगी। उसके पश्चात ही संस्थान के माध्यभ से यहां की मूल संस्कृति एवं सम्पूर्ण अस्मिता के प्रचार-प्रचार एवं पुनस्थापना के लिए जमीनी कार्य प्रारंभ होगा।

आज की बैठक में संयोजक सुशील भोले, डाॅ. सुखदेव राम साहू , रामशरण कश्यप, ललित टिकरिहा, बंशीलाल कुर्रे, रामजी ध्रुव, हीरा लाल साहू, कमल निर्लकर, देवनाथ साहू आदि उपस्थित थे।

मूल संस्कृति अउ धुर-पंचमी...?

छत्तीसगढ के मूल संस्कृति म होरी परब, जे असल म काम-दहन के रूप म मनाए जाथे, वो ह बसंत पंचमी ले लेके फागुन पुन्नी तक करीब 40 दिन के परब होथे, जेला हम वसंतोत्सव के रूप म घलो जानथन। 

इहां के मूल संस्कृति म रंग-पंचमी या धुर-पंचमी के कोनो ठउर नइए। ए असल म बाहिरी संस्कृति, जेला हम होलिका दहन के रूप म सुनथन तेकर अंग आय। होलिका दहन फागुन पुन्नी ले लेके चैत अंधियारी पाख के पंचमी तक मनाए जाथे। जबकि हमर इहां के मूल संस्कृति ल बसंत पंचमी ले लेके फागुन पुन्नी तक।

जे मन इहां के भाखा, संस्कृति अउ अस्मिता ल लेके काम करत हें, वो मनला चेत राखे के जरूरत हे, कोन हमर मूल संस्कृति आय अउ कोन हमर मूड़ म थोपे गे बाहिरी संस्कृति। तभे हमर मूल संस्कृति के आरुग चिन्हारी हो सकथे।

-सुशील भोले
संयोजक, आदि धर्म जागृति संस्थान, रायपुर
मुंहाचाही : 9826992811