Tuesday 29 March 2022

गुरु बनावौ जान के .. कहानी

कहानी// गुरु बनावौ जान के
    अपन डीह-डोंगर के संगे-संग जम्मो देवी-देंवता- ठाकुर देव, मारो देव, साड़हा देव, गौरा-चौंरा, शीतला दाई, बूढ़ा देव जम्मो म मूठ धरे के दिन आगे हे, अउ एती नांगर के संवागा ल कहिबे त एक ठन बइला के खोरई अभी माढ़े नइए अउ उप्पर ले दूसर बइला के लहकई चालू होगे हे... तेमा ए सरगनच्चा टूरा झिथरू... दिन न बादर अउ गेंड़ी चघहूं कहिके बेलबेली मढ़ाए हे. काला-काला करबे अउ काला नहीं गुनत बुधारू अपन सुवारी भगवंतीन ल कहिथे- 'बादर ह लिबलिबाए ले धरले हे, कतका जुवर गदगद-गदगद रितो दिही ते ठिकाना नइए. तैं बिजहा ल बने जोर-जंगार के राखबे कइसनो करके धरती महतारी के कोरा ल तो हरियाएच बर लागही न'.
    बुधारू के गोठ पूरे नइ रिहिसे अउ एती वोकर बेटा झिथरू फेर अपन ददा करा गोहराए लागिस- 'आंय ददा... खोरवा ह एकदम हमला देख-देख के मचत रिहिसे... हमूं वोला लुलुवावत ले ललचाबो गा..'
    -'राह न रे.. दिन न बादर अउ गेंड़ी चघबे, कुछू संसो हे तोला... ए लोगन के तरुवा धमकत हे, कइसे मूठ धरे के जोखा माड़ही कहिके अउ तोला गेंड़ी मचई सूझे हे. जा अभी हरेली म बना देबो.
    -ऊँ... वोकर ह एकदम रचरिच-रचरिच बाजत रिहिसे गो... आंय ददा...
    -तोला कहि देंव न... हरेली म रचरचा लेबे... कभू नंदिया बइला म चघहूं कइही, कभू गेंड़ी मचमचाहूं कइही, कभू फिलफिली चलाहूं कइही, त कभू तुतरू बजाहूं कइही. इही एक झन लोखन के लइका ए. सिरतोन म एकलमुंडा लइका झन होवय कहिथे सियान मन तेन सिरतो ए. ए लोगन के मरना दिखत हे, अउ एला मसमोटी सूझे हे.
    -त का होगे... लइका के जात, खेलही-कूदही नहीं... एक छिन बना देबे त का हो जाही- काहत बुधारू के गोसईन भगवंतीन बाप-बेटा के गोठ म झपा परिस.
    -तहूं टूरा डहार गोठियाबे... लोखन के लइका बिया डारे हस तेला पंदोली देबे, कहिके बुधारू खिसियाय असन करीस.
    भगवंतीन घलो बेलबेलाय असन कहिस- 'अई... सबो अपन लइका बर मया करथे, फेर तहीं कइसन बाप अस ते... जब देखबे ते बपरा ल हुदेनेच असन गोठियाथस'.
    -नहीं त, मंदरस चंटाए अस गोठियाववौं वो तोर टूरा संग?'
    -त का हो जाही, अपन लइका संग मया-मंदरस कस गोठिया लेबे त? भगवंतीन अउ लमाए कस कहिस.
    -हहो-हहो तुंहरे दाई-बेटा बर तो मैं ह घानी फंदाए हौं ओ... ए लोगन ल जब देखबे ते हटरे-हटर. कभू गिरे-परे म तेल चुपर दे कहिबे... त हम वोतको के पुरती नइ होवन... अउ ए टूरा ह.. गोंहगोंह ले खाए रइही, तभो करोनी करो लेना बेटा कहिके सइघो दुहना ल वोकर आगू म मढ़ा देथस.
    -हहो-हहो.. खवाबो, अउ खवाबो... कोन हमर चउदा झन खवइया हे तेमा... एक झन बेटा... मन भर के खवाबो.
    -तोर अइसने चरित्तर के सेती तो टूरा ह दिन के दिन लेड़ब्बा होवत जात हे. एकर जउंरिहा गाँव के अउ आने लइका मनला देख... कइसे बने स्कूल जाए बर धर लिए हें. नान-नान लइका मनला बस्ता धर के स्कूल जावत देखबे त मन ह भर जाथे... अघात सुग्घर लागथे... अउ हमर ए हुड़म्मा ह... अभी ले ठेठा चिचोरत किंजरत रहिथे. सब तोरे सेती ए... महूं ह कोनो पढ़े-लिखे ल गोसईन बना के लाने रहितेंव, तब वो ह जानतीस-समझतीस पढ़े लिखे के महत्व ल.
    -त लान ले नइ रहिते... मैं बरपेली थोरे आए हौं तोर घर म.
    -अरे का बतावौं... ददा ह मोला देखे बर नइ जावन दिस तेकरे सेती आय... नइते तोर असन छेपकी नाक के ठेमनी ल कोन लानतीस- काहत बुधारू ह घर ले निकल गे.
* * * * *
    गाँव म हांका परत राहय- 'अब्बड़ दुरिहा ले संत-महात्मा मन आए हें, ए बछर के चौमासा ल हमरे गाँव म बिताहीं.. चलौ-चलौ परघाए बर.' बुधारू के कान म हांका के भाखा परिस, त उहू गुनिस- रात-दिन के किटिर-काटर ले चलव महूं संत-महात्मा मनके दरसन कर लेथौं.
    बस्ती बीच के लील्ला चौंरा मार सैमो-सैमो करत राहय. गाँव भर के परानी वो मेर जुरियागे राहंय. का लइका का सियान जम्मो अपन-अपन सख के पुरती वोकर मनके सेवा-जतन म भीड़े रहंय. वोती ले भजनहा मन घलो बाजा-रूंजी संग आगे राहंय, अउ परघउनी भजन गा-गा के उनला परघावत राहंय-
  ये भजन बोलो भगवान के
  तोर नइया ल लगाही,
  वो ह पार हो
  ये भजन बोलो...
    भजन पूरा सिराय घलो नइ रिहिसे अउ भंडार मुड़ा ले उठत बादर ह कड़कड़ाय  लगिस. बिजुरी झमाझम लउके लागिस तहाँ ले छिन भर म मूसर कस पानी ह दमोर दिस. जम्मो मनखे एती-तेती जिहां छइहां दिखिस तिहां ओधगें. कतकों मनखे बरखा के पानी म भिंजते-भिंजत अपन-अपन घर कोती भागिन- चल दाई छेना-पैरा ल सकेलबो काहत. बुधारू घलो घर कोती भागीस. वोकर दूनों बइला बाहिर म बंधाए रिहिसे, कोन जनी भगवंतीन ह वोमन ल ढील के कोठा म लेगिस होही धुन नहीं ते?
    घर आइस त सिरतोन म बइला मन पानी म घुरघुरावत खड़े राहंय. बुधारू वोमन ल ढील के कोठा म लेगिस. तहाँ ले रंधनी खोली म चुनुन-चानन करत भगवंतीन ल कहिस- 'देख मैं तोला कहे रेहेंव न, बरखा दाई कतका जुवर बरस जाही तेकर भरोसा नइए कहिके, आजेच मोर बात ह सिरतो होगे. काल बिहंचे मैं मूठ धरहूं, तैं बिजहा के धान ल टुकना म तोप के मढ़ा दे रहिबे.
    भगवंतीन रंधनी खोली के भितरेच ले कहिस- 'फेर बइला मन तो बीमार हे काहत रेहेव न?
    देखबो, बनत भर ले बनाबो, नइते आन के बइला ल मांगबो... फेर कुछू होवय धरती के गरभ म बीजा तो छींचेच ले लागही न- काहत बुधारू फेर लील्ला चौंरा कोती चल देइस. उहाँ जम्मो मनखे अपन-अपन घर चलदे राहंय. पानी घलो थिरागे राहय. बुधारू एक झन सियान असन दिखत महात्मा के पैलगी करके वोकरे तीर बइठ गे. महात्मा वोकर नांव पूछिस, त बुधारू बताइस.
    बुधारू के हाव-भाव ल देख के महात्मा समझगे के ए ह वोकर संग गोठियाना चाहत हे. उन पूछिन- 'कइसे जी तुंहर गाँव म खेती-किसानी के का हालचाल हे?'
    -काला कहिबे महात्मा बबा. जबले ए बड़का-बड़का फेक्टरी मन गाँव के भांठा म रकसा बरोबर खड़ा होगे हें, तबले पानी हुल मारथे. ले देके एके फसल हो पाथे, उहू म धान के बाली ह ओकर मनके धुंगिया के मारे कोइला रचाए कस करिया-करिया दिखथे. सेवाद ल कहिबे त भसभस ले लागथे. भइगे भूंसा बरोबर पगुरावत रहिथन.
    -अउ पहिली कइसे राहय जी?'
    -पहिली कहेस महात्मा बबा. पहिली चुरोए दूध कस गुरतुर लागय भात ह. धान के बाली मन मार सोन के गहना-गुरिया कस चमकत राहय, अउ नहीं-नहीं म साल म दू फसल तो लेबेच करन. फेल अब तो नंदिया-नरवा, कुआँ-बावली जम्मो के पानी ल इही भांठा म खड़े रकसा मन पी डारथें. अउ एकरो ले अभियावन बात हे महात्मा बबा...!
    -का बात हे जी- महात्मा अचरज ले पूछिस.
    ए रकसा मन संग बाहिर ले आवत मनखे मन तो हमर मनके जम्मो जिनिस के सइतानास करत हें. एक डहार जिहां दाई-बहिनी मनके मरजाद म नीयत खोरी होवत हे, उहें हमर मनके जम्मो कला-संस्कृति, साहित्य अउ भाखा के बरबादी करत हें, वोकर हिनमान करत हें, हमर गौरव-इतिहास ल अन्ते-तन्ते लिख-लिख के वोमा सेंधमारी अउ मिलावटखोरी करत हें. फेर थोरिक गुन के कहिस- अच्छा ए तो बतावौ महात्मा बबा, काली मैं मूठ धरहूं त सबले पहिली उही बाहिर ले रकसा संग आके भांठा म बसे पुरोहित घर धान अमराहूं?
    -नहीं तो... तैं कइसे गोठियाथस बुधारू.. देवी-देंवता, डीह-डोंगर ले बढ़के कोनो नइ होय. ए पेट-पोसवा मन जम्मो धरम-करम के रीत-नीत ल बिगाड़ डारे हें. अच्छा बता पहिली कइसे करत रेहे?
    -पहिली... पहिली तो गाँव के जम्मो देवी-देंवता मन म धान चढ़ावन, तहाँ ले बांचे धान मनला खेत म लेग के ओनार देवत रेहेन.
    -त अभी घलो वइसने करबे. अपन पुरखौती के परंपरा ल मानबे. बाहिर ले आए पेट-पोसवा मनके भभकी म मत आबे.
    -हौ काहत बुधारू अपन घर कोती रेंग दिस. रतिहा जादा नइ होए रिहिसे, फेर कतकों घर ले थारी-लोटा के ठुनुर-ठानर सुनाए ले धर ले रिहिसे. पढ़इया लइका वाले घर के मन जल्दी बियारी कर डारथें न. अओ भगवंतीन बेंस ल हेर न- कहिके बुधारू दरवाजा ल खटखटाइस. बेंस के हिटते वो घर भीतर चल दिस.
    पल्हरा मनके अवई-जवई म कभू-कभार चंदैनी मन जुगुर-जागर दिख घलो जायं, फेर चंदा कती मेर हे तेकर गम नइ मिलत रहय. भंइसा मुंहन अंधियार म घलो बुधारू के नींद नइ परत रिहिसे. बस वोला काल बिहंचे होत मूठ धरे के चिंता राहय... कब कुकरा बासही तेकर अगोरा राहय.
    आखिर बुधारू के अगोरा सिराइस. कुकरा बासे के भाखा सुनाइस. वो धरारपटा खटिया ले उठ के मुंह-कान धोए बर बारी कोती चल दिस. आज भगवंतीन घलो वोकर उठे के आरो पाते उठ के बुधारू बर चहा-पानी तिपो डारिस, तहाँ ले बिजहा ल टुकना म जोर-सकेल के परछी म मढ़ा दिस. बुधारू बारी कोती ले आइस तहाँ ले चहा पी के एक टुकना के धान ल उठाइस अउ देवता खोली म माढ़े कुल देवता के संग घर के जम्मो देवता मन म एकक मूठा धान चढ़ावत गाँव के जम्मो देवी-देंवता म धान चढ़ावत अपन खेत कोती चल दिस. भगवंतीन घलो दूसर टुकना के धान ल बोह के खेत के रद्दा धर लिस.
* * * * *
    गरुवा धरसत खेत ले लहुटिस बुधारू ह. दिन भर के जांगर-टोर मिहनत म थकगे राहय. भगवंतीन तुरते वोकर बर चहा तिपो डारिस अउ एक गिलास पानी संग वोकर आगू म मढ़ा आइस. बुधारू चाय पिइस तहाँ ले माखुर झर्रावत बाहिर कोती जाए बर धरिस, त भगवंतीन वोला बरजे असन करिस- 'दिन भर के थके-मांदे आए हौ... थोरिक सुरता लेतेव नहीं. भइगे तुंहर पांव तो घर म माढ़बे नइ करय, जब देखबे ते एती-तेती किंजरई.
    -अरे बही मैं एती-तेती थोरे जाथौं तेमा... ओ महात्मा मन आए हें न तेन कोती जाथौं... एक झन सियान मुढ़न ह अब्बड़ सुंदर गोठियाथे, बने-बने गियान के बात बताथे.
    -का बताथे?
    -काहत रिहिसे... ये पेट-पोसवा मनके बात ल नइ मानना चाही. ए मन हमर धरम के मूल भाव ल मेंटत हें. वोकर सरूप ल बिगाड़त हें. महात्मा बबा काहत रिहिसे- बाहिर ले आए मनखे मन बरपेली हमर इहाँ
ऊंच-नीच अउ छोटे-बड़े के बिजहा बो डारे हें. मनखे मन जम्मो एक बरोबर होथें. जम्मो के भीतर एक परमात्मा के अंश आत्मा के रूप म समाए हे, जेला हम जीव घलो कहि देथन. आज मैं ह बबा जगा चौमासा के बारे म पूछिहौं.
    -हाँ हाँ ले जवौ.. तहाँ ले महू ल बताहौ- काहत भगवंतीन रंधनी खोली डहार चल देथे.
    लील्ला चौंरा म अबड़ झन सकलाए राहंय. अपन-अपन ले महात्मा बबा मनके सेवा-जतन अउ गियान चरचा म लगे राहंय. बुधारू उही सियान बबा जगा जाके वोकर पैलगी करके बइठ गे. महात्मा बबा वोला देख के मुसकाइस, पूछिस-' फेर कोनो बिसय ऊपर तोला गोठियाए के साध लागत हे?
    -हौ महात्मा बबा... जब ले तुमन पेट-पोसवा मन के भरम जाल ले बाहिर निकले के बात बताए हौ, तबले मोला अबड़ अकन जाने-समझे के साध लागत हे. मैं जानना चाहत रेहे हौं के चौमासा म संत-महात्मा मन एके जगा काबर रहिथें, आने बखत सहीं एती-तेती काबर नइ आवयं-जावयं?
    महात्मा बबा कहिस- कुछू नहीं, सिरिफ झड़ी-बादर के सेती. पहिली अब्बड़ पानी गिरय, चारों मुड़ा दलदली माते राहय, उप्पर ले आवागमन के कोनो साधन नइ रिहिसे, न तो आज असन चिक्कन-चांदन सड़क-डगर. बस एकरे सेती ए चौमासा ल एक जगा बइठ के पहावंय पहिली के संत-महात्मा मन.
    -फेर ए चार महीना म तो पूजा-पाठ, कोनो शुभ कारज नइ करना चाही कहिथें... देवता मन सूते रहिथें कहिथें?
    परलोखिया मन अइसन कहिथें... देवता कभू सूतही भला? जेन सूतगे तेन फेर देवता कइसे होइस... अउ हां..! इही चार महीना म सबले जादा शुभ कारज अउ पूजा-पाठ करना चाही, काबर ते जम्मो विघ्न मनके हरइया गनपति महराज के जनम, मातेश्वरी के नवरात अउ महादेव के सावन पूजा तो इही चौमासा म आथे, दसरहा-देवारी आथे. तब भला तहीं बता, एकर ले बढ़के अउ कोनो शुभ बेरा हो सकथे?
    बुधारू अपन मुड़ ल खजवावत कहिस- फेर जेठउनी के पहिली तो कोनो शुभ कारज नइ करना चाही कहिथें, वो भांठा म आके बसे पुरोहित मन.
    -ये बाहिर ले आके बसे जम्मो मन रकसा आयं... चाहे दू गोड़िया मनखे होवय... चाहे लोहा के बड़े-बड़े धुंगिया उगलत चिमनी वाले फेक्टरी होवय. हमर गाँव-घर अउ धरम-संस्कृति बर दूनों के दूनों भांठा के रकसा आयं... ये भांठा के रकसा मनला घर-परिवार म कभू झन संघरन देहू, तभे तुंहर पुरखा के परंपरा अउ संस्कृति बांचे रइही. नइते ए पेट-पोसवा मन वोकर गती-गती कर देहीं. वोकर मनके चिक्कन-चांदन रूप-रंग अउ गुरतुर-गुरतुर बोली-भाखा म झन आहू... ए हर सिरिफ ठगे खातिर आय. बनौका के बनते, इन अपन असली रूप ल देखाय लगथें. देखत हस नहीं तुंहर जम्मो जीए अउ राज करे के अधिकार म आज उही मन कइसे संचर गे हें! काबर ते धरम अउ संस्कृति ह असली होथे, जेकर नांव म उन तुंहर मुड़ी म बइठिन, तहाँ ले फेर उन सकल पदारथ म तुंहर मुड़ी म बइठे के उदिम करहीं. तेकरे सेती इही असली चीज ले उनला उतारे अउ खेदारे के जरूरत हे.
    -फेर जेठउनी के पहिली तो कोनो शुभ कारज नइ करना चाही कहिके तो हमर गाँव-बस्ती म खुसरे पुरोहित मन घलो कहिथें महात्मा बबा?
    -अरे ए सब बदमासी के बात आय बेटा. अच्छा मोला बता- इहाँ तुमन गौरा अउ ईसरदेव के बिहाव ल कब करथौ... वोकर परब कब मनाथौ?
    -गौरा पूजा के दिन.
    -अउ गौरा पूजा कब होथे?
    -कातिक अमावस के.
    -अच्छा ए बता... जेठउनी पहिली आथे ते कातिक अमावस ह?
    -आए बर तो कातिक अमावस ह पहिली आथे महात्मा बबा.
    -हाँ... आथे न.. माने इहाँ के सबले बड़का भगवान के बिहाव ह जेठउनी के पहिली हो जाथे न.. त तहीं बता बेटा... जब भगवान के बिहाव ह जेठउनी ले पहिली हो जाथे, त हमर मनके बिहाव-भांवर के संगे-संग जम्मो किसम के शुभ कारज ह काबर पहिली नइ हो सकही?
    -केहे बर तो ठउका कहिथौ महात्मा बबा... जब भगवान के बिहाव जेठउनी ले पहिली हो सकथे, त हमर मनके काबर नइ हो सकय? एकदम  सिरतोन ए. ये पेट-पोसवा मन तो सिरतोन म हमन ल बिल्होरत हें. जइसे पावत हें तइसे धरम के नांव म बेलबेली करत हें... अउ हमूं मन बिन कुछू गुने-बुझे वोकर मनके भभकी म आवत जाथन. अब मैं जान डरेंव ददा ये पेट-पोसवा मनके भभकी म कभू नइ आवौं. तभे तो हमर सियान मन ठउका कहे हें-
   गुरु बनावौ जान के,
   अउ पानी पीयौ छान के.
(कहानी संकलन 'ढेंकी' ले साभार)
-सुशील भोले
संजय नगर, रायपुर
मो/व्हा. 9826992811

Saturday 26 March 2022

शुभकामना.. अशोक पटेल

शुभकामना संदेश..
    अशोक पटेल 'आशु' के कविता संकलन 'छत्तीसगढ़ के चिन्हारी' के पांडुलिपि देखे बर मिलिस. एमा समाए जम्मो 45 रचना अपन गाँव-गंवई अउ परब-तिहार के चिन्हारी कराथे. छत्तीसगढ़ के असल चिन्हारी तो इही सब मन आय, जेला गाँव के संगे-संग साहित्य म घलो संजो के राखे के जरूरत हे.
     आज हम आधुनिकता के नांव म अपन मूल चिन्हारी मनले दुरिहावत जावत हन. सबोच दृष्टि ले. परब-तिहार, गाँव-बस्ती, पहनावा- ओढ़ावा सबो म ए सब दिखत हे. अब तो हमर लेखन म घलो आने-आने भाखा मनके लेखन शैली दिखे लगे हे, एकरे सेती कोनो छंद के नांव म लघु-गुरु के मात्रा गिनत हे, त कोनो गजल-सजल के जोम करत हे. लेखन के भाखा भले छत्तीसगढ़ी हे, फेर शैली आने-आने. जबकि हमर छत्तीसगढ़ी के पद्य लेखन तो सुर अउ ताल ऊपर आधारित होथे. सुर अउ ताल बद्ध होथे.
    मोला आज छत्तीसगढ़ी के महान संगीतकार खुमान साव जी के सुरता आवत हे. उन बतावंय- 'एक बेर 'चंदैनी गोंदा' के गीत मनके रिकार्डिंग खातिर मुंबई गे रेहेन. उहाँ रिकार्डिंग स्टूडियो म एक करमा गीत-
दिया के बाती ह वो कइसे सच बात ल कहिथे जले के बेर...
     एकर गायन अउ ताल ल सुनके उहाँ बइठे मुंबइया संगीतकार मन माथा धर लिन, काबर ते ए करमा गीत म पांच मात्रा के ताल हे. दुनिया के जतका संगीत हे सबमा दू मात्रा चार मात्रा आदि के सम ताल होथे, फेर ए गीत म पांच मात्रा के विसम ताल रिहिसे. उहाँ बइठे जम्मो मुंबइया संगीतकार मन वो ताल ल बजाए के कोशिश करिन, फेर बजा नइ पाइन.
    एकरे सेती कहिथौं, हमन अपन पारंपरिक लेखन शैली, गायन अउ वादन शैली के संगे-संग जम्मो किसम के परंपरा के पोसन करना चाही. आधुनिकता अउ कथित विकास के नांव म दूसर मनके अंधानुकरण नइ करना चाही.
    मोला अशोक पटेल के 'छत्तीसगढ़ के चिन्हारी' संकलन म सकलाए जम्मो रचना मन अपन परंपरा के संरक्षण करत लागिस. बड़ सुग्घर लागिस. इही किसम जम्मो नवा रचनाकार मनला अपन पारंपरिक जम्मो जिनिस के संरक्षण-संवर्धन के बुता म आगू आना चाही.
    मोर शुभकामना हे, अशोक जी के सुग्घर उदिम ह जम्मो झनला भावय, अउ वोकरे सहीं अपन परंपरा के पोसन खातिर सबला अंजोर देखावय.
   बधाई 🌹🌹
-सुशील भोले
संजय नगर, रायपुर
मो/व्हा.9826992811

Wednesday 23 March 2022

शिक्षा माध्यम के महत्व..

शिक्षा माध्यम के महत्व..
    जेन भाखा म हम शिक्षा पाथन वो भाखा के संगे-संग वोकर ले जुड़े कला, संस्कृति, साहित्य, इतिहास अउ गौरव सबके हमन ल जानकारी होवत जाथे. वोकर ले जुड़े धर्म, पूजा उपासना के प्रतीक अउ जीवन पद्धति घलोक कोनो न कोनो माध्यम ले हमर जिनगी म समावत जाथे.
    आज अपन आसपास ल देख लेवव. हमन ल हिन्दी भाखा के माध्यम ले शिक्षा दिए गे हे, तेकर सेती जतका हिन्दी भासी क्षेत्र अउ राज्य हे, उन सबो ले जुड़े संस्कृति अउ परंपरा ल घलो हमला पढ़ाए गे हे. जबकि हमर महतारी भाखा छत्तीसगढ़ी आय, फेर हमला छत्तीसगढ़ी के माध्यम ले शिक्षा नइ दिए गे हे, तेकर परिणाम ए आय के हम छत्तीसगढ़ी ले जुड़े संस्कृति अउ परंपरा ल वतका नइ जानन जतका हिन्दी ले जुड़े संस्कृति अउ परंपरा ल जानथन-समझथन. इही शिक्षा के माध्यम के सेती आज हम अपन मूल संस्कृति अउ परंपरा ल बिसरावत जावत हन. एकर ले बचे बर एकर असल कारन, माने शिक्षा के माध्यम ल अपनाना परही. जब हमर शिक्षा के माध्यम छत्तीसगढ़ी बनही, तभे छत्तीसगढ़ अउ छत्तीसगढ़ी ले जुड़े जम्मो कला, संस्कृति परंपरा, इतिहास अउ गौरव बांचे पाही, हमर आने वाला पीढ़ी जान पाही, आत्मसात कर पाही.
    मैं तो इहाँ तक कहिथौं, हमन ल धर्म अउ पूजा उपासना के बारे म घलो इही मानक ल अपनाना चाही. मैं हमेशा लिखत-बोलत रहिथौं- छत्तीसगढ़ आध्यात्मिक रूप म अतका समृद्ध हे, ते हमला कोनो भी बाहर के न कोनो गुरु के जरूरत हे, न कोनो ग्रंथ के, न कोनो उपासना के प्रतीक या विधि के. इहाँ सबकुछ हे, बस जरूरत अतके हे, के हम अपन पुरखौती परंपरा ल झांकन, वोला धो-मांज के उजरावन अउ अपन संगे-संग जम्मो पिरोहिल मनला आत्मसात करे बर जोजियावन.
    आज हमन छत्तीसगढ़ी भाखा ल शिक्षा के माध्यम बनाए खातिर सरकार जगा गोहरावत रहिथन, वोकर इही सब कारन आय. जे दिन छत्तीसगढ़ी इहाँ के शिक्षा के माध्यम बन जाही, हमर हर किसम के विकास अपने-अपन हो जाही. हमला
कोनो भी कारन ले ककरो मुंह देखे के जरूरत नइ परही.
जय छत्तीसगढ़.. जय छत्तीसगढ़ी
-सुशील भोले
संजय नगर, रायपुर
मो/व्हा. 9826992811

Sunday 20 March 2022

छत्तीसगढ़ी सेउक जागेश्वर प्रसाद

14 जुलाई जनमदिन//
छत्तीसगढ़ी के जबर सेउक जग्गू दादा..
    छत्तीसगढ़ी भाखा म जब कोनो ठाढ़ जवान मनखे ल 'दादा' कहि देबे, त वो ह तोला आंखी ततेरे असन जरूर करही. काबर ते वोला लागही, के एहर मोला हिन्दी वाले दादा मतलब पितामह, जेला छत्तीसगढ़ी म बबा कहिथन, काहत हे कहिके.
    तब मोला बड़ा अचरज लागय के छत्तीसगढ़ी सेवक के संपादक जागेश्वर प्रसाद जी लो लोगन 'दादा' काबर कहिथें? काबर ते हमर छत्तीसगढ़ी भाखा म तो दादा शब्द हइच नइए, त फेर ए छत्तीसगढ़ी के जबर सेउक ल, जेन अतका ठाढ़़ जवान हे, एला छोटे ले बड़े तक अउ ते अउ बुढ़वा मन तको 'दादा' कहिथें?
    बाद म जब मैं वोमन ल लकठा ले देखेंव. उंकर मनके आध्यात्मिक उपासना विधि अउ जीवन पद्धति ल समझेंव, त जानेंव के एमन बंगाल के श्री पी.आर. सरकार जी जेला श्री श्री आनंद मूर्ति घलो कहिथें, तेकर द्वारा प्रतिपादित आध्यात्मिक पद्धति के अनुयायी आयं, एकरे सेती बंगाल आदि प्रदेश म बड़े भाई खातिर कहे जाने वाला शब्द 'दादा' के प्रयोग एमन सबो झन बर करत रहिथें. असल म ए ह उहें ले प्रभावित  आध्यात्मिक संस्कृति ल जीए के खातिर आय.
    ए विषय ऊपर मोर जागेश्वर जी संग कई बेर चर्चा घलो होवय, के जब हमन इहाँ छत्तीसगढ़ी भाखा, छत्तीसगढ़ी कला-संस्कृति अउ राजनीतिक क्षेत्र म घलो  आरुग छत्तीसगढ़िया के बात करथन, त आध्यात्मिक क्षेत्र म घलो छत्तीसगढ़ के पारंपरिक पूजा-उपासना विधि अउ जीवन पद्धति के बात काबर नइ करन? त वोमन आध्यात्म म सब चलथे कहि देवत रिहिन हें.
    ए विषय ल लेके कतकों बेर हमन म मतभेद असन बात घलो हो जावत रिहिसे. ए विषय ऊपर मैं संत कवि पवन दीवान जी के बड़ा प्रशंसक हौं. जब डाॅ. परदेशी राम वर्मा जी संग मिलके दीवान जी 'माता कौशल्या गौरव अभियान' चालू करिन, त एक बात ल वोमन हर मंच म कहयं-" बंगाल के मन अपन देंवता धर के आइन हम उंकरो पांव परेन. गुजरात महाराष्ट्र के मन अपन देंवता धर के आइन हम उंकर पांव परेन. उत्तर प्रदेश अउ बिहार के मन अपन देंवता धर के आइन हम उंकरो पांव परेन. उड़ीसा अउ आने प्रदेश के मन अपन-अपन देंवता धर के आइन हम उन सबके पांव परेन. फेर मैं कहिथौं, अरे ददा हो, भइगे हमन दूसरेच मन के देंवता के पांव परत रहिबोन, त अपन देंवता के कब पांव परबोन? ए देख लेवव उंकर मन के देंवता के पांव परई म हमर माथा खियागे हे, अउ ए परदेसिया मन एकरे मन के आड़ म इहाँ के जम्मो शासन-प्रशासन म छागे हें.
    मोला पवन दीवान जी के ए बात ह बहुते अच्छा लागय. सही बात आय, जब हम छत्तीसगढ़िया राज के बात करथन, छत्तीसगढ़ी भाखा, साहित्य, कला अउ संस्कृति के बात करथन त फेर छत्तीसगढ़ के पारंपरिक पूजा प्रतीक, उपासना विधि अउ जीवन पद्धति के बात काबर नइ करन? आगू चलके इही मूल उद्देश्य ल लेके हमन एक समिति 'आदि धर्म जागृति संस्थान' के पंजीयन घलो करवाएन अउ एकर बेनर म अपन सख भर जनजागरण के उदिम करत रहिथन.
    14 जुलाई 1946 के हथबंद जगा के गाँव बिटकुली म एक सामान्य किसान परिवार म जनमे जागेश्वर जी संग वइसे केहे बर तो मोर चिन्हारी बचपन ले हे. जागेश्वर जी जब मिडिल स्कूल पास करे के बाद  हाईस्कूल पढ़े खातिर अपन गाँव ले भाठापारा शहर आइन, त हमन परोसी होगे रेहेन. हमर सियान तब भाठापारा के मेन हिन्दी स्कूल म पढ़ावत रिहिन. तब हमन एके जगा राहन, तेकर सेती जागेश्वर जी मोला स्कूल जाए के पहिली अउ फेर स्कूल ले आए के बाद पावय, खेलावय. मतलब मैं वोकर गोदी म खेले हौं.
    फेर वोकर संग असली पहचान तो रायपुर आए के बाद होइस. काबर ते कोनो मनखे संग असली चिन्हारी तो तब होथे, जब हम वोला सैद्धांतिक रूप म जानथन-समझथन अउ संगत करथन.
    सन् 1983 म मैं दैनिक अग्रदूत प्रेस म काम करे बर धर लिए रेहेंव. तब उहाँ के साप्ताहिक अंक म मोर एकाद ठन नानमुन रचना छप जावत रिहिसे. वो बखत जागेश्वर प्रसाद जी अग्रदूत म कार्यरत वरिष्ठ पत्रकार-साहित्यकार टिकेन्द्रनाथ टिकरिहा जी संग भेंट करे बर आवयं. तब उहाँ मोर छपे रचना मनला देख के टिकरिहा जी ले पूछिन, के ए सुशील वर्मा (तब मैं सुशील वर्मा के नाम ले ही लिखत-पढ़त रेहेंव) कोन आय? तब टिकरिहा जी मोला उंकर संग भेंट कराइन.
    बातचीत म जागेश्वर जी बताइन, के उहू मन छत्तीसगढ़ी भाखा म एक साप्ताहिक पत्र 'छत्तीसगढ़ी सेवक' निकालथें, उहू म अपन रचना दे कर कहिन. संग म अपन हांडीपारा कार्यालय म घलो आए बर कहिन.
    तब तक मैं ए जागेश्वर प्रसाद ल भुलागे रेहेंव. जब उंकर कार्यालय म लगातार जाए लगेंव अउ बातचीत के दौर बाढ़त गिस, तब जानेंव, के ए ह भाठापारा वाला उही जागेश्वर प्रसाद आय, जेन मोला बचपन म पाके घुमावय-खेलावय. स्वभाविक हे, वो बचपन के बात के सुरता आए ले उंकर संग आत्मीयता थोकुन जादा जनाए लागिस.
    बाद म जब आत्मीयता बाढ़त गिस तब उन मोला आनंद मार्ग ले संबंधित किताब पढ़े खातिर दे लागिन. तब मोर रुचि तो वो सबमा जादा नइ रिहिसे. एक तो मैं थोकन जनवादी विचारधारा ले प्रभावित रेहेंव, ऊपर ले थोर-बहुत धरम-करम ल मानंव घलो त वो सिरिफ छत्तीसगढ़ के पारंपरिक मनला जेला अपन घर-परिवार म देखत-सुनत आवत रेहेन. फेर जागेश्वर जी पूछंय, के किताब ह कइसे लागिस कहिके त बने हे कहि देवत रेहेन, भले वोला पढ़े नइ राहत रेहेन.
    इही बेरा म मैं रायपुर के छत्तीसगढ़ी साहित्य समिति ले जुड़े जम्मो साहित्यकार मन संग घलो जुड़त गेंव, संग म छत्तीसगढ़ राज आन्दोलन म घलो. छत्तीसगढ़ राज  आन्दोलन ले संबंधित जतका गतिविधि रायपुर म होवय, चाहे वो कोनो संस्था या बेनर के सबो म जावौं. एकर सेती मोर दीमाग ह पूरा के पूरा छत्तीसगढ़, छत्तीसगढ़िया अउ छत्तीसगढ़ी होगे रिहिस. एकर परिणाम ए होइस, के आगू चलके 9 दिसंबर 1987 ले महूं ह छत्तीसगढ़ी भाखा म एक मासिक पत्रिका 'मयारु माटी' के नांव ले निकाले लागेंव.
    वइसे तो छत्तीसगढ़ी भाखा म अउ कतकों पत्र-पत्रिका निकले हे, अभी घलोक निकलत हे, फेर ए छत्तीसगढ़ी पत्र-पत्रिका के क्षेत्र म जागेश्वर जी के जेन योगदान अउ समर्पण हे, वो ह बेजोड़ हे. एकर खातिर उंकर नांव हमेशा इतिहास के सोनहा आखर म लिखे जाही. जागेश्वर जी अक्टूबर 1965 म रायपुर आइन, वोकर बाद ले ही शुरू होए हे 'छत्तीसगढ़ी सेवक' म प्रबंधक के रूप म सफर ह, जेन ह संपादक ले होवत पूरा सर्वस्व तक चलिस.
    वो बखत के सियान साहित्यकार मन बतावंय, जागेश्वर जी ह छत्तीसगढ़ी सेवक खातिर एक अकेला फौज के रूप म काम करय. सइकिल म चारों मुड़ा घूम-घूम वोकर खातिर संबंधित साहित्य सकेलय, फेर वोला छपवाए, प्रूफ पढ़े अउ फेर छपे के बाद बांटे के उदिम घलो खुदेच करंय. मैं तो 1983 ले देखेंव, फेर जब छत्तीसगढ़ी सेवक के जुन्ना अंक मनला देखावय त अचरज के संग बड़ा गरब घलो होवय. वोकर साप्ताहिक अंक मन तो सहेजे के लाइक रहिबे करय, बेरा-बेरा म कोनो परब विशेष म जेन विशेषांक निकाले जाय, उहू मन गजब के संग्रहणीय राहय.
    जागेश्वर जी अपन जिनगी के 75 बछर ल ठउका पूरो डारे हें, तभो हमर छत्तीसगढ़ के पुरखौती देवता, कुल देवता अउ जम्मो मूल देवता मनले अरजी हे, उनला जतका जादा हो सकय जिनगी के बढ़वार देवंय, तेमा छत्तीसगढ़ महतारी के सेवा खातिर उन जेन-जेन सपना देखे हें, सबो उंकर जीवन काल म ही छाहित हो जावय.
जय छत्तीसगढ़.. जय छत्तीसगढ़ी
-सुशील भोले
संजय नगर, रायपुर
मो/व्हा. 9826992811