Thursday 10 March 2022

छत्तीसगढ़ी पद्य म नारी विमर्श

*विषय - छत्तीसगढ़ी पद्य साहित्य मा नारी विमर्श*

छत्तीसगढ़ी साहित्य बड़ जुन्ना अउ समृद्ध हे, जिहाँ आदिकाल ले नारी शक्ति के बरोबर दर्शन होथे। प्राचीन कालीन कथा कहानी अउ मुहाचाही साहित्य येखर  साक्षात प्रमाण हे, जेमा फुलबासन गाथा, केवला रानी गाथा, अहिमन रानी गाथा, दशमत कयना, नगेश्वर कयना  येखर संगे संग आधुनिक काल के साहित्य मा घलो नारी शक्ति मनके बढ़ चढ़के दर्शन होइस, जेमा बिलासा बाई केवटिन, राजिम माता, बिन्नी बाई, बहादुर कलारिन, मिनीमाता जइसे महान विभूति मन शामिल हें। छत्तीसगढ़ के सबे क्षेत्र के साहित्यकार मन अपन अंचल विशेष के नारी मनके सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक, खेल, शिक्षा, साहित्य,संस्कृति, संस्कार आदि सबो क्षेत्र मा योगदान ला बखूबी शब्द दिये हे, ता आवन करिन छत्तीसगढ़ी साहित्य मा नारी शक्ति के दर्शन, वो नारी बेटी, बहिनी, पत्नी, महतारी, सियनहीन, ऊँच नीच, छोटे बड़े कोनो भी हो सकथे, कवि मन हर नारी मा उंखर शक्ति ला देखे हे अउ लिखे हे-

*पं सुंदर लाल शर्मा कृत दानलीला भले पौराणिक राधा कृष्ण के कथा आय, फेर पढ़ब सुनब मा गोप गुवालिन, गांव गली, चाल चलन सबे मा छत्तीसगढ़ के दर्शन होथे। गुवाइन मन छत्तीसगढ़ के नारी के प्रतिनिधित्व करत दिखथे, उन मन अपन पैत्रिक काम धाम के संगे संग साज सृगार के घलो विशेष ध्यान देथे*-

जतका-दूध-दही-अउ-लेवना। जोर-जोर-के दुधहा जेवना॥
मोलहा खोपला चुकिया राखिन। तउला मा जोरिन हें सबझन।
दुहना-टुकना-बीच मड़ाइन। घर घर ले निकलिन रौताइन॥
एक जंवरिहा रहिन सबे ठिक। दौंरी में फांद के-लाइक॥
कोनों ढोंगी कोनो बुटरी। चकरेट्ठी दीखैं जस पुतरी॥
ऐन जवानी उठती सब-के। पन्द्रा सोला बीस बरस के॥
काजर आंजे अंलगा डारे। मूड़ कोराये पाटी पारे॥
पांव रचाये बीरा खाये। तरुवा-में टिकली चटकाये॥
बड़का टेंड़गा खोपा-पारे। गोंदा खोंचे गजरा डारे॥

*इही कलेवर दलित जी के काव्य मा घलो दिखथे। काम बूता ला छत्तीसगढ़ के नारी मन कभू बोझ नइ माने ,बल्कि सज सँवर अपन काम धाम करथें*-

छन्नर छन्नर पैरी बाजे, खन्नर खन्नर चूरी।
हाँसत कूदत मटकत रेंगें, बेलबेलहिन टूरी।

*जनम भूमि के सुरता कभू नइ भुलाय, फेर नारी मन ला वो भुइयाँ ला तजना पड़थे, तभो अपन मइके के दर्शन तीजा के लुगरा मा कर लेथे, इही बानगी दिखथे रविशंकर शुक्ल जी के काव्य मा*-

दाई के मया,
ददा के मया,
झलकत हे रेसमइहा, लुगरा मा मोर।

*बेटी,बहिनी,महतारी,पत्नि के संगे संग सियनहीन मनके योगदान घलो काम बूता मा दिखथे, दलित जी अपन काव्य मा लिखथे*-

रोज टपाटप मोर डोकरी दाई बीने सीला।
कूटय पीसय राँध खवावय,वो मुठिया अउ चीला।

*काम बूता के बात चलत हे ता कोनो काम छोटे बड़े नइ होय नारी शक्ति अपन बूता काम ले घर परिवार ला सदा चलावत आये हे, इही बात कहिथे लक्ष्मण मस्तूरिहा जी*-

गोदना गोदाले रीठा ले ले वो मोर दाई।

ले ले बाबू ले ले ले ले
बधिया के तेल ले ले।

*नारी ले संस्कृति अउ संस्कार हे, नारी प्रीत ए,नारी गीत ए, नारी रीत ए, जेन दया मया जे पूल बाँधत अपन लोक लाज के संगे संग घर परिवार के मान मर्यादा ला घलो जानथे, मस्तूरिहा जी लिखथे-*

कर्मा सुनेल चले आबे गा।
करमा मा तहूँ ला मिला लेबों।

मोला जान देना रे अलबेला मोर।
अब्बड़ बेरा होगे मोला जान देना।

*नारी शक्ति मनके योगदान खेल के क्षेत्र मा आज कखरो ले छुपे नइहे, सबे खेल मा देश विदेश मा नारी मन परचम लहरावत हे, खेल खेलत घलो अपन अउ अपन परिवार के खियाल नारी मन रखथे, तभे तो खरघुदिंया खेलत नोनी मनके विचार ला शब्द देवत मुकुंद कौशल जी कहिथे*-

चलो बहिनी जाबों अमरइया मा खेले बर खरघुदिंया।
खोर के खेलई मा ददा खिसियाथे।
घर के खेलाई मा दाई।

*धन दौलत,देख देखावा ले परे नारी शक्ति मन अपन सिंगार मा गोदना ला सहज स्वीकारे हे, इही बात ला रामरतन सारथी जी कहिथे*-

तोला का गोदना ला गोदँव वो, मोर दुलउरिन बेटी।
नाक गोदाले नाक के फुल्ली।
माथ गोदाले बिंदिया।
बाह गोदाले बॉह बहुटिया,
हाथ गोदाले ककनी।

*धन दौलत चरदिनिया अउ आखरी समय संग मा नइ जावय,तेखर सेती बेटी ला गोदना रूपी धन देवत महतारी, कवयित्री शोभामोहन श्रीवास्तव जी के शब्द मा कहिथे*-

का तोला देवंव बेटी, मया के चिन्हारी ।
गोदना गोदा ले रे ,मोर राजदुलारी ।।
चूरी चूरा देहूँ बेटी,
टूटी फूटी जाही ओ ।
पइसा कउड़ी देहूँ,
खरचा होही सिराही ओ ।।
मरत जीयत , संगदेवा संगवारी ।
गोदना गोदा ले रे, मोर राजदुलारी ।।
लोहा मुरचाही बेटी,
काठ घुना खाही ओ ।
सोन चाँदी देहूँ तेनो,
टूटही खियाही ओ ।।
काटे झन सकै जेला, बेरा के कटारी ।
गोदना गोदा ले रे, मोर राजदुलारी।।
सतरंग लुगा देहूँ ,
रंग छूट जाही ओ ।
घर बारी ब्यारा देहूँ,
पर पोगराही ओ ।।
सब हे नसनहा रे, मोर सुकुमारी ।
गोदना गोदा ले रे मोर राजदुलारी ।।

*पत्नी अपन पति ला धन दौलत मानथे,विरह मा धन दौलत महल अटारी सब फीका लगथे, तभे तो मस्तूरिहा जी कथे*-

धनी बिना जग लागे सुन्ना रे
नई भावे मोला
सोना चांदी महल अटारी
नई बाचय चोला
धधकत हे छतिया मा आगी
धनी बिना जग लागे सुन्ना रे
घर बन बैरी लागे
गली गाँव कुल्लुप लागे
अन्न पानी जहर भईगे
बोली हंसी जुलुम लागे
अन्न पानी जहर भईगे
बोली हंसी जुलुम लागे
तन मन ह लागत हाबय घुन्ना रे

*वइसे तो दलित जी अउ कतको कवि मन अपन काव्य मा सजन ला परदेश मा काम बूता करे बर जाय बर रोके हे,काबर कि सजनी कभू सजन के साथ ला नइ छोड़ना चाहे अउ परदेश के चकाचौन्ध घातक ही होथे, संग जीये मरे के किरिया बिहाव मा खाथे, अउ सदा साथ रहे के उदिम करथे, अउ कभू कहूँती काम बर जाना भी पड़थे ता पाछू नइ हटे, इही बात ला शोभामोहन श्रीवास्तव जी कहिथे*-

नवा बहुरिया सजन सँवरिया,
संग कमाये जावत हे।
छन-छन-छन पैजन छनके ले,
मंगल सगुन जनावत  हे ।
फुलकारी  होये लुगरा के,
हे अँचरा झलझल-झलमल ।
महर महर ममहावत हावय,
हाँसत हे खलखल खलखल।।
खन-खन-खन चूरी  खनकावत,
अंतस ला झनकावत  हे ।
नवा बहुरिया सजन सँवरिया,
संग कमाये जावत हे।

*नारी अपन सुख दुख के संगे संग गाँव घर के आरो ला अपन अँचरा मा सदा गठियाके चलथे, इही बात ला दानेश्वर शर्मा जी लिखथे*-

रइपुरहिन बहिनी कहूँ आये होही,
अंचरा मां बांधे मया लाये होही,
मिल भेंट लेबो दूनों जांवर जाही
आमा के आमा अउ गोही के गोही
मइके कोती के आरो लेके आबो।।
के दिन के जिनगी अउ के दिन के मेला

*महतारी के कोरा लइका मन बर सरग समान हे, महतारी बिना दुनिया के बढ़वार सम्भव नइ हे, जीतेंन्द्र वर्मा खैरझिटिया महतारी ला नमन करत लिखथे*-

महतारी कोरा मा लइका,खेल खेले  नाच।
माँ के राहत ले लइका ला,आय नइ कुछु आँच।
दाई दाई काहत लइका,दूध पीये हाँस।
महतारी हा लइका मनके,हरे सच मा साँस।

*आज नारी सबे क्षेत्र मा काम बूता करत हे, उंखर महत्ता कखरो ले छुपे नइहे, नारी बेटी,बहिनी, महतारी, पत्नी सबो रूप लिए बूता साधथे,इही बात ला कवि मन लिखथे*-

सुखी सब ला मया भर के, रखे परिवार हे नारी।
मिले दुख सार जीवन के, सहे सब भार हे नारी।।
अनेको रूप नारी के, कभू दुर्गा कभू काली।
धरे माँ रूप धरती मा, दया अँवतार हे नारी।।
चन्द्रहास पटेल

नारी जनम भगवान के,वरदान हावै मान लौ।
देवी बरोबर रूप हे,सब शक्ति ला पहिचान लौ।।
दाई  इही  बेटी   इही, पत्नी   इही  संसार मा।
अलगे अलग सब मानथे,जुड़थे नता ब्यौहार मा।।
बोधनराम निषाद राज

आँखी तरी सागर बसे,अउ हाथ मा सब स्वाद हे।
धुन साज लोरी मा बसे,सब ग्रंथ के अनुवाद हे।
माटी कहाँ ले लाय हे,नारी ल विधना जब गढ़े।
गीता करम पोथी धरम, तँय पाय नारी बिन पढ़े।
आशा देशमुख

नारी तँय नारायणी, तँय ममता के रूप।
देवी तँय सौंदर्य के, सहस छाँव अउ धूप।।
सहस छाँव अउ धूप,जगत जननी कहलाथस।
बेटी बहिनी मातु, अबड़ तँय रुप मा आथस।
कहिथें जग के लोग, तहीं हर पालनहारी।
घर हा सरग कहाय,रहय जब घर मा नारी।।
अजय अमृतांशु

बनके जननी जीव के, करथे वो उपकार।
माँ धरनी के रूप मा, हावय पालन हार।।
हावय पालन हार, हवय जग सिरजनकारी।
नर के हे जी संग, देख लव हर पल नारी ।।
सबो हवँय संतान , जान लौ ऊंकर मनके।
देथे जिनगी तार, जगत मा जननी बनके ।।
अश्वनी कोशरे

का बरसा का धूप, दुख पीरा सहिथे गजब।
त्याग तपस्या रूप, दया मया बाँटय सदा।।
सदा नवावव शीश, नारी के सम्मान बर।
करथे तब जगदीश, मनवांछित पूरा हमर।।
गावय बेद पुरान, नारी के महिमा सदा।
ऋषि मुनि अउ भगवान, पार कहाँ पाथे इँखर।
ज्ञानु दास मानिकपुरी

बेटी कहाँ कमजोर होथे,देखले संसार ला।
अँचरा म सुख के छाँव देथे,गाँव अउ घर द्वार ला।
ए फूल कस जी महमहाथे,जोड़थे परवार ला।
अनमोल हीरा ताय बेटी,तारथे ससुरार ला।।
डी पी लहरे

*अंचल विशेष के अचरा मा बंधाय नारी, बर बिहाव करके सात समुन्दर पार चकाचौन्ध के कभू सपना नइ देखे, इही बात ला वासंती वर्मा जी लिखथें*-

तरिया जातेंव तँउरे बर।
डुबक डुबक नहातेंव।
तरिया के शिव भोला मा,
पानी रोज चढ़ातेंव।
गीत गावत पूजा पाठ करतेंव भगवान के द्वार।
काबर मोला भेजथस सात समुंद के पार।

*नारी अबला नही सबला हे, अपन आत्म बल ले सबे कोती राज करथें, इही बात का सीता के अगिन परीक्षा मा महाकवि कपिलनाथ कश्यप जी लिखथें*-

अबला नही नारी कतका,
सबला होथे ये दिख जाही।
झूठा बंधना टोर टोर के,
नारी मन जब बाहिर आही।

*नारी संस्कृति अउ संस्कार के संगे संग समाज मा फैले अंधियारी के बादर ला घलो टारे बर सतत उदिम करत दिखथे, इही बात ला अपन प्रबन्धकाव्य महाप्रसाद मा मनिरामसाहू मितान जी माता करमा के माध्यम ले लिखथें*-

किंजर किंजर के करमा मइया।
सत्य धरम के पाठ पढ़ावय।
मनखे मनला खूब जगावय।
काहय छुवा छूत ला बारव।
भेद रोग डर सुद्धा बारव।
सब मनखे हे एक बरोबर।
एक भाव सब रखव सबे बर।
ऊँच नीच जे डबरा पाटव।
बैर भाव के रुखवा काटव।

*नारी मया ममता के खान होथे, मनखे मन ला घलो मया रूप मा देखथें, इही बात ला गीता विश्वकर्मा नेह जी कहिथें*-

दाई मोर लागे लाई सरीख।
ददा मोर लागय बताशा सरीख।
भाई हर लागे मुर्रा के लाड़ू।
बहिनी चना फुटेना सरीख।

*नारी ला दू कुल के शान माने गेहे, नारी मइके अउ ससुराल रूपी गघरा ला अइसे बोहे चलथे कि ना कभू गिरे अउ ना ओमा भराय पानी छलके, तभे तो    कहिथें*-

मूड़ मा बोहे गघरा दुहरा।

*ममतामयी मिनीमाता भारतीय राजनीति मा अपन विशेष स्थान रखथे, देश समाज राज मा उंखर योगदान ला कभू नइ भुलाये जा सके, गजानन्द पात्रे जी लिखथें*-

राजनीति मा अगुवा गुरु जी, काम करे जन प्रिय भावन।
लोकसभा मा सांसद बनगे, सन उन्निस सौ जी बावन।।
अगम दास सतलोकी होगे, तरस गये माँ सुख अंगद।
सन तिरुपन के उपचुनाव मा, बनिस मिनीमाता सांसद।।
मध्यप्रदेश अविभाजित के, सांसद पहिली महिला ये।
ज्ञानवान माँ प्रखर प्रवक्ता, विचार जेखर गहिला ये।।

*बेटी लक्ष्मी काली दुर्गा सरस्वती के रूप आय, जे घर बेटी हे,ओ घर तीरथ के कमती नइहे, सुशील भोले जी उही बात ला बढ़ावत कहिथे*-

छुन-छुन पैरी कान सुनाथे मन ल गजब सुहाथे
घर-अंगना म खेलत बेटी मन-अंतस जुड़वाथे
कहां जाबे तैं देवता-धामी कहां मंदिर के दरसन
घर म जेकर बेटी हावय सरी तीरथ उहें जनाथे

*बेटी मन उछिन्द फुरफुंदी बरोबर सबे कोती आशा के पाँख लगाके उड़ाना चाहथे, इही बात ला शकुन्तला तरार जी लिखथे*-

लीम के छईहाँ मा चंदा के बारी मा
फुरफुंदी धरे बर आ जाबे ना
दाई के अँचरा मा ददा के मया मा
फुगड़ी खेले बर आ जाबे ना
अमली के ठौर अउ आमा के मौर मा
घाट घटऊंदा अउ चिरगुन के सोर मा
परसा के फूल मा रे बरसा के चिखला मा
करमा गाये बर आ जाबे ना
बादर के संग-संग मन के चिकारा मा
लहलहावत सोन सही बाली के रंग मा
करिया किसान के झेंझरा कस फरिया मा
मछरी झोरे बर आ जाबे ना
माटी के गंध मा रे होरी के रंग मा
कोयली के कुहू-कुहू अउ खड़पड़ा के सोर मा
दाई के लोरी मा ददा के सपना मा
ददरिया गाये बर आ जाबे ना

*नारी घर दुवार मा काम करत आज जल, थल, आकास, पताल सबे मा अपन समान योगदान देवत हे, कोनो भी क्षेत्र होय सब मा परचम लहरावत हे, इही सब ला समेटत छन्दविरबा पुस्तक मा कवि श्री चोवाराम वर्मा बादल जी लिखथें*-

चउँकी चूल्हा संग मा, बेटी शिक्षा पाय।
आज समय विज्ञान के, पढ़ लिख नाम कमाय।
पढ़ लिख नाम कमाय, बनै साहब सरकारी।
आगू पाँव बढ़ाय, छोड़ जम्मो लाचारी।
होथें अबड़ सजोर, लबारी नोहे गउकी।
सैनिक थानेदार, फभय बड़ बइठे चउँकी।

*नारी शक्ति अपन मान मर्यादा, मया दया ला कभू नइ गँवान दे, गहना गुठिया कस जोर सकेल के रखथे, अउ कुछु ऊँच नीच हो जथे ता, भारी मन ले संसो घलो करथे, इही संसो मा परे नारी के स्वभाव ला कवि श्री पी सी लाल यादव जी लिखथे*-

गँड़ई-मड़ई म झूलत त रहिचुली
नाक के गँवागे मोर सोनहा फुली
खोजत-खोजत मैं होगेंव हलाकान
धक-धक करे मोर जीवरा परान
धनी मोर पूछहि त का मैं बताहूँ?
सास गरी दीही, ससुर खिसियाही
तेखर ले छोटकी ननँद लिगरी लगाही।
सोन के गँवई ह गोठ नोहे मामुली
धनी मोर पूछहि त का मैं बताहूँ?

*बेटी बढ़के बहिनी,पत्नी, महतारी सबे भूमिका अदा करथे, अउ घर परिवार देश राज मा अपन योगदान देथे।बेटी के महत्ता बतात अरुण निगम जी लिखथे*-

बेटी बिन सुन्ना हे, घर परिवार
बेटी बनके लछमी, ले अउतार।
घर के किस्मत देथे, इही सँवार
बिन बेटी के कइसे, परब-तिहार।
बेटी के किलकारी, काटय पाप
मंतर जइसे गुरतुर, मंगल जाप।
तुलसी के बिरवा कस, बेटी आय
जेखर आँगन खेले, वो हरसाय।
सुनो गुनो का कहिथें, सबो सियान
महादान कहिलाथे, कन्या-दान।

जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा(छग)

No comments:

Post a Comment