Tuesday 8 March 2022

धरमिन दाई .. कहानी

कहानी//    धरमिन दाई
    आज गाँव म चलत पुरवाही म गजब उछाह दिखत हे. सरर-सरर एती सरर-सरर वोती, जम्मो पेंड़ के डारा-पाना मन हरर-हरर हालत-डोलत हें. चिरई-चिरगुन मन घलो वोकर मन के संग म पांखी फड़फड़ावत हें. तरिया के लहरा मन घठौंदा के पखरा मनला मार छपाछप पोटार-पोटार के मया करत हें. चारों मुड़ा उमंग-उत्साह, गाय-गरु मन अपन डहार ले बोरक्का मारत हें, त मनखे मन घलो हांसत-गावत अउ कुलकुलावत हे. अइसन म सुरूज नरायन कइसे लोगन के संग म नइ संघरतीन? उहू ठउका बेरा म चकचक ले ऊ के सीत म सिला बिनइया लइका मनला कुनकुनावत ले मजा देवत हे.
    गाँव म आज अतका उमंग-उत्साह दिखत हे, तेकर असल कारन आय- धरमिन दाई. गाँव के बीचो-बीच महमाई चौक म आज वोकर कांसा के बने मुरति के मुंह-उघरई होही. ए राज के मुख्यमंत्री के संगे-संग बड़े-बड़े नेता, समाज-सेवक अउ साहेब-सिपाही मन अवइया हें. कोतवाल काली रतिहा हांका पारत बताए रिहिसे- ठउका दस बजे हेलीकॉप्टर ह स्कूल भांठा म उतर जाही, तहाँ ले सबो मंत्री मनला गंड़वा बाजा म परघा के महमाई चउंक लाने जाही, तेकर पाछू फेर मुख्यमंत्री ह धरमिन दाई के मुरति म ढंकाए कपड़ा ल अलगिया के वोला फूल-माला पहिराही तहाँ ले चंदन-बंदन बुक के जोहार-पैलगी करही.
    एकरे सेती आज लोगन आठ के बजतीच-बजती अपन-अपन काम-बुता ल सकेल-जोर के महमाई चउंक म जुरियाए लगे हें. खोरवा मंडल के उछाह ह आज देखतेच बनत हे. आज के कार्यक्रम के पगरइत घलो तो उहिच हर हे, काबर ते धरमिन दाई के नता-रिश्ता कहाए के लइक मनखे म एक उही तो हे, भले लरा-जरा के आय. फेर आय तो भतीजच. तहाँ ले तो अउ वोकर कोनोच नइए.
    खोरवा मंडल के मन म आज कतका गरब जनावत हे तेला तो उहिच ह जान सकत हे. जतका झन मंत्री अउ साहेब-सिपाही आहीं, सब वोकरेच संग तो भेंट करहीं. आखिर वोकरे संग किंजर-किंजर के धरमिन दाई ह आज जेन मान-सम्मान अउ पूजापाठ होवत हे, तेकर लाइक बने हे. खोरवच मंडल ह तो धरमिन दाई के लाठी-बेड़गा अउ सटका ये, वोकरेच अंगरी ल धर-धर के वोहा दान-दच्छिना के जम्मो रद्दा म आगू बढ़य, तेकरे सेती ए गाँव के संगे-संग तीर-तखार के जम्मो गाँव मन म वोकरे दान के पइसा म स्कूल, अस्पताल अउ धरमशाला बन-बन के लोगन के दुख-पीरा अउ शिक्षा के बेवस्था ल पूरा करत हे. ए गाँव म जतका बड़का कुआँ-बावली अउ पानी के आने जोखा हे, सब धरमिन दाई के परसादे हे.
    खोरवा मंडल के तीर म बइठ के जब कहूँ धरमिन दाई के गोठ कर देते, त वो अतका मगन हो जाय के गोठियावत-गोठियावत दूसरेच दुनिया म पहुँच जावय, तहाँ ले अपनेच-अपन वोकर मुंह ले बोली फूटे लागय- 'होत मुंदरहा धरमिन दाई के एक्केच बुता राहय. अपन कोकानी लउठी ल धर के बारी कोती जाना, उहाँ कुआँ म गड़े टेंड़ा ल टेंड़-टेंड़ के जम्मो साग-भाजी मन म पानी पलोना. बेरा के उवत ले जम्मो मांदा मन म पानी रेंग जाय, तब फेर दतवन-मुखारी अउ नहाना-धोना करय. तहाँ ले कच्चा लुगरा ल पहिरेच-पहिरे साग-भाजी अउ जम्मो पेड़-पौधा मन के आरती करना. तेकर पाछू फेर जुक्खा लुगरा पहिर के पचकठिया टुकना भर के पुरती साग मनला बजार म बेचे खातिर टोरना.
    वोकर बारी के साग-भाजी मन अतका गुरतुर लागय के घर ले बजार जावत ले रद्दच म आधा ह बेचा जावय, अउ बांचे आधा ह बजार म बइठतेच बेचा जावय. धरमिन दाई बजार म बने असन बइठे घलो नइ पावय, अउ लहुटे के बेरा हो जाय.
    धरमिन दाई के असली नांव बिन्नी बाई हे, फेर एतराब के मनखे वोकर दान-दच्छिना अउ धरम-करम म बूड़े जीवन ल देख के धरमिन दाई ही कहिथें. बारीच म लगे वोकर घर घलो हे. अब वोला घर कहिले के छितका कुरिया दूनों एकेच बरोबर हे. सत्तर साल के धरमिन दाई अउ वोकर घर एकेच बरोबर दिखथें. जइसे घर के कांड़ अउ मिंयार मन टूट के पेचके असन होगे हे, तइसने वोकर मुंह के दांत मन घलो टूट के पेचके असन होगे हे. एके खोली के घर म वोहा राहय घलो अकेल्ला. कभू जर-बुखार धर लेतीस त वोला देखइया घलो कोनो नइ मिलतीस, तइसे केहे कस.
    वइसे तो धरमिन दाई जगा बारी-बखरी अउ खेत-खार अतका अकन रिहिसे के वोकर ले बनिहार-सौंजिया के भरोसा बइठे-बइठे खा सकत रिहिसे, फेर वो ह खुद मिहनत करके साग-भाजी उपजावय अउ उही ल बेंच के गुजर-बसर करे के बुता ल सांस के टूटत ले नइ छोड़िस. कतकों जाड़ राहय, घाम के तालाबेली होवय, या फेर करा-पानी रटाटोर दमोरत राहय, फेर वो जम्मो जोखा ल पूरा करके टुकनी धरय अउ बजार चउंक म पहुंची जाय.
    कतकों अपढ़ किसम के मनखे मन वोकर घिलर-घिलर के साग-भाजी  बेचई ल देख के हांसय घलो, उन बेलबेलाय अस कहि देवॅंय घलो- 'ये डोकरी ल अतेक का हदरही धर लेहे भई, घर म अतेक खाए-पीए के जिनिस हे तभो ले. फेर जे मन समझदार किसम के राहयं ते मन वोकर बड़ई करयं, वो मन आपस म गोठियावयं घलो- ' वाजिब म मनखे ल अइसने होना चाही ग, जीयत अपन जांगर के भरोसच जीना चाही. अइसन म देंह-पांव घलो बने रहिथे अउ उप्पर ले लछमी दाई के किरपा घलो छाहित रहिथे.
    खोरवा मंडल बतावय- संझा के बेरा धरमिन दाई के कुरिया म किस्सा-कहिनी सुनइया मनके दरबार सजय. पारा भर के माईलोगिन उहाँ जुरिया जाए रहयं, तहाँ ले फेर एक झन के हुंकारू देके ओसरी लगय अउ धरमिन दाई ह कहानी सुनावय. रोज नवा कहानी, कोन जनी वोकर अंतस ले कइसे उदगरय ते उही जानय? एको कनिक पढ़े लिखे नइ रिहिसे, तभो ले उंकर कंठ म सरसती दाई के साकछात बसेरा रिहिसे. जइसन दिन, तिथि, परब अउ महीना राहय, तइसने वाला कहानी सुनते वोकर जगा. तीजा-पोरा, कमर छठ, सवनाही या फेर अगहन महीना आतीस त वोकर जगा चारों मुड़ा ले नेवता आवय, कथा-कहानी सुनाए बर. मंदिर-देवाला के पुजेरी तको मन तो नरियर धर के पहुँच जायं धरमिन दाई ल नेवता दे बर. वो जावय घलो, कोनो मनखे ल निरास नइ करय. अपन सख के पुरती सबो जगा जाय.
    धरमिन दाई अतेक सब करय फेर ककरो जगा पाॅंच पइसा तो झोंक लेतिस दान-दक्छिना के नांव म. कभू नहीं. वोकर सोझ कहना राहय-' अतका करे-धरे के बलदा मैं कुछू लेहूं, त फेर पुन्न ल कइसे पाहूं? जेन परमात्मा के दिए मोला गियान अउ बोली-भाखा मिले हे, तेन सब उही ल अरपन हे. मोर का हे... ए जांगर के छोड़ अउ कुछू तो नइए, त फेर इही जांगर के परसादे खाहूं, कुछू बनाना अउ खाना होही तेला.'
     दान-दक्छिना के संबंध म घलो वोकर सफा कहना राहय-' मैं उही जिनिस खातिर दान करहूं जेकर ले लोगन ल सोज्झे-सोझ फायदा पहुंचथे. ठलहा बइठ के पेट ल फूलोवत मनखे मनला देवई ह मोला पाप करे असन लागथे. मैं जीव सेवा ल ही शिव सेवा मानथौं, एकरे सेती रोज बिहन्चे नहाते साथ अपन बारी के भाजी-पाला मनके आरती करथौं, काबर ते उही मन मोर भगवान आय. मैं तो सबके जीव म परमात्मा रूपी शिव देखथौं, काबर उहिच मन तो मोर पालन करथें, अउ जे मन पालन करथें, उही मन भगवान होथें.
    धरमिन दाई अपन जाए के बेरा ल जान डरे रिहिसे, वोकरे सेती वो जाए के पहिली रात के खोरवा मंडल ल चेता डारे रिहिसे-' आज तक तो मैं जतका दान-दच्छिना करेंव तेन हर मोर साग-भाजी बेच-बेच के सकेले पइसा के आय, एकरे सेती जगा-जगा नानमुन स्कूल, अस्पताल, धरमशाला अउ कुआँ-बावली, बोरिंग कोड़वा देंव, फेर मोर इच्छा हे के ए गाँव म बेटी मनके पढ़े खातिर बड़का वाले कालेज बनय. मोर जाए के बाद जतका भी खेती-खार अउ बारी-बखरी हे, तेन मनला बेंच के बेटी मनके पढ़े खातिर बड़का वाला कालेज इही हमर गाँव म बनवा देबे. मोर जगा कहानी सुने ले अवइया नोनी मन काहत रहिथें-' का करबे दाई, हमरो मनके गाँव म या तीर-तखार म एको ठन बड़े वाला कालेज होतीस, त  हमूं मन वोमा पढ़ के बड़का पद म जाके बइठ जातेन ओ..! फेर बेटी के जात.. टूरा पीला मन बरोबर दुरिहा तो जाए नइ सकन, तेकरे सेती मन मार के रहि जाथन.' बतावत-बतावत खोरवा मंडल के आॅंसू बोहाए लागिस.
    ठउका वतकेच बेरा राजधानी मुड़ा ले हेलीकॉप्टर आए के आवाज सुनाए लगिस. लोगन महमाई चउंक ले स्कूल भांठा डहर भागे लागिन. खोरवा मंडल घलो लकर-धकर फूल-माला के संवागा करे लागिस. जम्मो पंच-सरपंच, गाँव के आने सियान मन जुरिया गिन. आसपास के गाँव के सियान-सरपंच मन घलो आए राहयं, तेनो मन सब जुरिया के गंड़वा बाजा वाले मन संग मंत्री मनला परघाए बर गिन.
    स्कूल भांठा ह मनखे मन के समुंदर बरोबर दिखत राहय. चारों खुंट मुड़ीच-मुड़ी. ए बस्ती म आज के पहिली अतका भीड़ कभू सुरता म घलो देखे ले नइ मिले रिहिसे. गाँव म मड़ई-मातर होवय, अठवाही बजार भरावय, तभो स्कूल भांठा म अतका जगा बांची जाय ते मनखे बने हेल-मेल रेंग जावय. फेर आज तो खड़े जगा ले एक ठन पांव के उसलई ह घलो मुसकुल कस होगे हे. भांठा के एक मुड़ा म हेलीकॉप्टर उतरे खातिर ठउर बनाए गे रिहिसे, तेकर बीच म दू ठन आड़ी-आड़ा डांड़ खींचे गे रिहिसे. हेलीकॉप्टर ह भुन्नाटी मारत आके वोकरे उप्पर ठाढ़ होगे. वोकर डेना मनके आंवर-भांवर घूमत ले चारों मुड़ा धुर्रच-धुर्रा पट्टागे राहय. थोरके पाछू जब सबो ह थीर-थार होइस, तब हेलीकॉप्टर ले जम्मो मंत्री मन निकल के बांस के बने घेरा ले बाहिर आइन.
    मंत्री मनला फूल-माला पहिराए के बाद सबले पहिली खोरवा मंडल ले मिलवाए गिस. सरपंच ह बताइस, के इही ह धरमिन दाई के भतीजा आय, जेकर संग घूम-घूम के वोहर जम्मो दान-पुन्न के काम ल करय, वोकर मनके सोर-संदेशा लेवय. मुख्यमंत्री ह खोरवा मंडल ल पोटार के वोकर पीठ ल थपथपाइस, तहाँ ले फूल-माला माँग के वोला पहिरावत कहिस-' तुमन तो बड़े-बड़े सेठ-महाजन अउ गौंटिया ले बढ़के हौ जी. कोनो मंदिर-देवाला के पुजेरी ह तुंहर मनके सत्-चरित अउ आदर्श जीवन ल नइ पा सकय, न तुंहर अतका पुन्न कमा सकय.
    धरमिन दाई के मुरति ऊपर ढंकाय कपड़ा ह मुख्यमंत्री के बटन दबाते घुंचिस, तहाँ ले लोगन के ताली चारों मुड़ा ले गड़गड़ागे. मुरति म चंदन-बंदन अउ फूल-माला पहिराए के बाद मुख्यमंत्री कहिस-' आज के दिन ल मैं कभू नइ भुलावौं, धन भाग ये गाँव के जिहां धरमिन दाई अपन जिनगी बीताइस. हमन बड़े-बड़े राजा-महाराजा अउ सेठ-साहूकार मन के कहानी सुने हावन, फेर धरमिन दाई के जीवन-दरसन के आगू म सब नान्हे हे. मोरो धन भाग हे, के ये गाँव के माटी ल मोला अपन माथा म लगाए के सौभाग्य मिले हे. ए गाँव के धुर्रा म पट्टाए मोर कपड़ा-लत्ता ह मोला गंगा म चिभोरा मार के निकले असन जनावत हे. आज धरमिन दाई के पहिली बरसी के दिन इहाँ के लोगन वोकर मुरति स्थापना करा के वोकर खातिर अपन मया अउ सरधा ल समरपित करत हें, तेनो ह हमर मनके माथ नवाए कस बुता ये. आज मैं घोसना करत हौं, धरमिन दाई के जयंती के दिन हमर सरकार डहर ले हर साल दू अइसन लोगन या संस्था के सम्मान करे जाही, जे मन सच्चा समाज सेवा के डगर म धरमिन दाई कस आदर्श स्थापित कर के देखाए रही. अउ हां... ए सम्मान ल धरमिन दाई के सुरता म वोकरे नांव ले दिए जाही.
(कहानी संकलन 'ढेंकी' ले साभार)
-सुशील भोले
संजय नगर, रायपुर
मो/व्हा. 9826992811

No comments:

Post a Comment