Saturday 12 March 2022

धरम युद्ध कहानी

कहानी//     धरम युद्ध
    कोल्हान नरवा के खंड़ म एक ठन पांच हाथ चउंच-चाकर के मंदिर बने हे, फेर वोमा आज तक कलस नइ चघे हे. सुराजी बबा बताथे, के एला एक नवंबर सन् दू हजार म बनवाए रिहिसे, जब ए भुइयाॅं ल अलग राज के रूप म चिन्हारी मिले रिहिसे. मंदिर भीतर जाबे त बड़ा अचरज लागथे. उहाँ एक ठन नक्शा के छोड़ अउ कुछू नइए, फेर रोज संझा-बिहनिया दीया-अगरबत्ती जलबेच करथे. सुराजी बबा खाए-पीए बर भुला जाही, फेर उहाँ दीया-अगरबत्ती करे बर कभू नइ भुलावय. कतकों जुड़, घाम या पानी-बादर राहय, वो अपन कोकानी लाठी ल धरे बस्ती ले रेंगत ठाकुर देव-बोहरही दाई के खंड म पहुँची जाथे. चार कोरी ले उप्पर अकन होगे होही वोकर उम्मर ह, फेर बीस बछर के नेवरिया टूरा मन घिलर जाहीं वोकर रेंगई म. मार किलो भर के गरू पनही ल पहिर के खड़ंग-खड़ंग रेंगथे, त अच्छा-अच्छा बर वो ह देखनी हो जाथे. चक-उज्जर धोती, तेकर उप्पर म खादी के  कुरता अब्बड़ फभथे सुराजी बबा ल. पूरा ऐतराब के गाँव-बस्ती म वोकर नांव के डंका बाजथे. सत्, धरम अउ ईमान के जब कहूँ चर्चा होथे, त लोगन वोकरे नांव के किरिया खाथें.
    गाँव म एकक झन सेठ, पुरोहित अउ गौंटिया घलो हें, फेर वोमन ल मीठ-मीठ गोठिया के लोगन ल लूटे-खसोटे अउ भरमाए के छोड़, अउ कुछू नइ आवय. नवा राज बने के बाद एकरे मन के बुगबुगी ह बाढ़गे हे. जब देखबे त हरहा बिजार मन बरोबर बोरक्का मारत रहिथें. एकर मन के सबले बड़े गुन एक ठन ए हे, के जेन कोनो दल के सरकार बनथे, उही दल के मुखौटा ल अपन टोटा म ओरमा लेथें. राजधानी के जुड़वासा कुरिया म खुसरे लोगन का जानयं, के कोन लोगन के हितु-पिरुतु आय, अउ कोन लंदी-फंदी? वोमन तो सिरिफ टोटा म ओरमाए मुखौटा भर ल देखथें. एकरे सेती आजो इहाँ के मनखे सुराज के सेवाद ल चीखे नइ पाए हें. ए भुइयाॅं ल सरग बनाए बर हमर पुरखा मन अपन खून-पछीना ल कतेक एक नइ करिन हें, फेर दिन के दिन नरक के रद्दा ह चाकर होवत जावत हे.
    सुराजी बबा काहत रिहिसे- 'जब तक हमर मन के वोट ह दारू-कुकरी अउ चिटिक पइसा-कौड़ी के लालच म गलत मनखे मन के खीसा म हमावत जाही, तब तक ए सोनहा भुइयाॅं के सुख के मुंहाटी म लोहाटी तारा ओरमे रइही. हमन अपने घर-कुरिया म जेल कस धंधाए रहिबो अउ बाहिरी मनखे हमर जम्मो खेत-खार, बारी-बखरी अउ जंगल-झाड़ी म रार मचावत रइही. धरती दाई के गरभ म समाए हीरा, लोहा अउ आनी-बानी के रतन-खजाना मन म लूट मचावत रइही. का इही दिन ल देखे खातिर हमन सुराज के लड़ई लड़ेन, अउ वोकर पाछू नवा राज के सपना संजोएन?
    सुराजी बबा बतावत रिहिसे- 'मैं कोल्हान खंड़ म बनाए अपन मंदिर म एकरे सेती कलस नइ चघाए हौं, काबर ते सिरिफ अलग राज बने भर ले मोर नमसुभा ह पूरा नइ हो पाए हे. जब तक इहाँ के जम्मो हवा-पानी, रोजी-रोजगार, उद्योग-बैपार अउ शासन-प्रशासन म मोर जम्मो दुलरवा मन नइ बइठ जाहीं, तब तक मैं वो छत्तीसगढ़ महतारी के मंदिर म कलस नइ चघावौं. महतारी ल अपन मंदिर म कलस चघवाए के सउंख होही, त मोर मन के साध ल पूरा करही.'
    एक दिन मैं सुराजी बबा ल पूछ परेंव-' कस बबा! अपन माटी के दुलरवा बेटा तैं काला मानथस?'
    बबा कहिस- 'जेन ये माटी संग मया करथे. एकर बोली-भाखा अउ संस्कृति ल जीथे, एकर मान-सम्मान अउ गौरव के रकछा खातिर अपन तन-मन अउ धन-दोगानी ल अरपन करे बर तियार रहिथे, अउ सबले बड़का बात इहाँ के लोगन संग मया करथे, इंकर मनके बढ़वार खातिर जम्मो किसम के बुता करथे.
    अउ बबा ह जेन मनला दुलरवा नइ मानय, तेकर मनके थाह ले खातिर मैं सुराजी बबा ल फेर पूछेंव. त वो कहिस-' ए माटी म जनम धरे भर म कोनो ल इहाँ खातिर ईमानदार नइ माने जा सकय. कतकों अइसन हें, जेन इहाँ के खाथें-पीथें अउ बाहिर के गुन गाथें. बाहिर ले आए कतकों मनखे मन संग कुछ इहों के मन अइसनेच करत हें. राष्ट्रीयता-राष्ट्रीयता कइहीं अउ बाहिर ले अपन संग लाने बोली-भाखा अउ संस्कृति ल इहाँ लादे के उदिम रचहीं... अरे इहाँ हें, त ए माटी खातिर ईमानदार बनयं. इहाँ के बोलयं-गोठियावंय अउ अपन मन-अंतस म धारन करयं तब तो.'
    मैं बीच म टोकत केहेंव-' फेर बबा ये देश म कोनो मनखे ल कोनो भाग म आए-जाए अउ रहे-बसे के अधिकार हे न?'
    -हां-हां राहय-बसय न, फेर जिहां रहिथें, तिहां के लोगन के, उहाँ के अस्मिता के उपेक्षा करे के अधिकार या नियम-कायदा तो नइ बने हे न?'
   बबा के ए बात मोला ठउका लागिस. जिहां तक शासन करे अउ योग्यता के बात हे, त अंगरेज मन घलोक आज इहाँ जेन शासन के नांव हमेरी बघारत हें, तेकर मन ले कम नइ रिहिन हें, त फेर वोमन ल इहाँ ले खदेरे के का जरूरत परगे?
    मोर मन म राज-धरम अउ शासन-सत्ता के बारे म अउ जाने-समझे के भाव जागिस, त मैं बबा जगा पूछ परेंव-' अच्छा बबा, ये बतावौ के राज-धरम का होथे, राजा के कर्तव्य कइसे होना चाही?'
    सुराजी बबा कहिस-' सबले पहिली तो ए हे, के जेन मनखे जिहां हे, वोला उहें अतका रोजी-रोजगार अउ सुख-समृद्धि दे जाय, तेमा वो ह कोनो दूसर के भुइयाॅं या अधिकार म बरपेली जाके झपा मत जावय. काबर ते कोनो भी दूसर मनखे के अधिकार म हिस्सा मंगई ह कोनो भी दृष्टि ले न्याय के बात नइ माने जा सकय. ए भुइयाॅं ल अलग राज के दर्जा मिले हे, त उही सबला गुन के मिले हे. हर राज के अपन भाखा होथे, संस्कृति होथे, गौरव होथे, इतिहास होथे, रीति-नीति अउ अधिकार होथे, वो सबके रक्षा करे जाना चाही. इही ल न्याय या राज धरम कहिथें. शासन के मतलब कोनो ल सटासट पीटना अउ वोकर मन के जम्मो अस्मिता के लरी-लरी करना नइ होवय.
    सुराजी बबा थोरिक चुप रहिस, तहाँ ले फेर कहिस-'बेटा! भगवान मनके जीवन-दरसन अउ बोली-बचन ह हमर मन बर सुग्घर आदर्श होथे.'
    भगवान राम ल देख, वोहर अइसन बेरा आइस, ते बाली ल मारना परिस, रावन ल मारिस. फेर वोकर मन के राज म राजा बनके बइठिस का, ते अपन भाई-बंद मनला उहाँ के राजा बना के बइठारिस? नहीं न... वो उहें के मनखे मनला, चाहे वो सुग्रीव के रूप म होय चाहे विभीषण के रूप म होय, उहिच मनला बइठारिस न. एकर असली कारन इही आय, के जेन जिहां के मूल निवासी होथे, उही उहाँ के पीरा ल जानथे, उहाँ के बोली-भाखा, संस्कृति अउ जम्मो गौरव के मरम अउ महत्व ल समझथे. एकरे सेती भगवान ह उहाँ के मूल निवासी मनला उहाँ के राजा बनाइस. भगवान राम के इही सब शासन व्यवस्था ल वोकरे सेती सबले आदर्श, सुखी अउ  लोकप्रिय माने जाथे, के वोहर कोनो मनखे के मूल अधिकार ऊपर कोनो दूसर ल नइ बइठन दिस.
    सुराजी बबा के ए बात महूं ल सोला आना सच लागिस. हर मनखे के मौलिक अधिकार के रक्षा होना चाही. वोकर बोली-भाखा, संस्कृति अउ इतिहास ऊपर दूसर डहार के बोली-भाखा, संस्कृति ल नइ थोपे जाना चाही. न राष्ट्रीयता जइसन लोक-लुभावन नारा के नांव म कोनो भी बाहिर के मनखे ल वोकर ऊपर राजा के रूप म लादे जाना चाही. तभे तो राज धरम के स्थापना होही. सही अरथ म रामराज के स्थापना होही.
    सुराजी बबा के एकक ठन बात ह मोला अमरित के बूंद पियाए कस लागे लागिस. अभी तक महूं ह परबुधिया भरम म बूड़े रेहेंव. हां भई राष्ट्रीयता के मापदंड क्षेत्रीय उपेक्षा कभू नइ होय. जे मन अइसन कहिथें या करथें, वो मन लोगन ल भरमाथें अउ बदमासी करथें. तब तो अइसन करइया मनके जरूर विरोध होना चाही. उंकर मनके गलत काम ल रोके अउ छेकें जाना चाही. सुराजी बबा करा ले जइसे-जइसे सत् गियान के अमरित बूंद मोर कान म परत गिस, तइसे-तइसे मोर मन-अंतस जागे अउ अन्याय संग लड़े बर टांठ अउ चेम्मर होवत गिस.
    सुराजी बबा मोला चिंतन-मनन के समुंदर म लहरा मारत देखिस, त कहिस-' इही धरम ये बेटा, अउ एकर रकछा के बुता ह धरम युद्ध'.
    धरम युद्ध के बात सुनके मैं हड़बड़ा गेंव. मैं आजतक सोचत रेहे हौं, के पूजा-पाठ अउ देवता-धामी के नांव मन म जेन लड़ई-झगरा अउ युद्ध होथे, उही ह धरम युद्ध आय कहिके, फेर सुराजी बबा ह तो अपन अधिकार अउ गौरव के रक्षा खातिर लड़ई ल धरम युद्ध काहत हे. मैं ए बात ल बने फोरिया के बताए ल कहेंव, त बबा कहिस-' बेटा! तैं ये बता, भगवान कृष्ण ह कुरुक्षेत्र के मैदान म अरजुन ल काला धरम युद्ध केहे रिहिसे? अपन अधिकार अउ गौरव के रक्षा करना ल न? त फेर तैं काबर अन्ते-तन्ते अउ एती-तेती के बात म बूड़े हस? जे मन पूजापाठ के विधि अउ अलग-अलग देवता के नांव म लड़ाथें, वो ह तो सिरिफ बदमासी आय. तोर देवता अउ मोर देवता के नांव म लड़ई ह हमर मनके अज्ञानता अउ मुरखता आय. धरम युद्ध तो सिरिफ अपन भाखा, संस्कृति, गौरव, अधिकार अउ अपन सम्पूर्ण अस्मिता के रक्षा खातिर संघर्ष करई ल कहे जाथे.
    सुराजी बबा के रूप ह आज मोला साकछात भगवान के रूप लागे लागिस. मोला अइसे लागिस, जइसे वो मोला अपन विराट रूप के दरसन करावत हे, अउ मैं वोकर आगू म हाथ जोड़ के मुड़ी नवाए खड़े हौं. वो काहत रिहिसे-' बेटा! अपन ये धरम या अस्मिता अधिकार के रकछा खातिर हमन ल अपन सगा, संबंधी या नता-गोता के चिंता-फिकर नइ करना चाही. भगवान कहे हे न-' अरजुन, दुसमन संग खड़ा होवइया मन घलो तोर दुसमन आय, एकरो मनके संहार जरूरी हे. वो मुड़ा म जतका झन खड़े हें, वोमा के एको झन तोर कका-बबा या गुरु नोहय. न कोनो हितवा या भाई-बंद यें. सोसक, अत्याचारी अउ दूसर के अधिकार म बंटमारी करइया दुसमन संग खांध म खांध मिलाके रेंगने वाला घलोक सिरिफ दुसमन होथे. अउ जब दुसमन के संहार के बात आथे, त वोमा कोनो किसम के कानून-कायदा लागू नइ होवय. अइसन बेरा म एकमात्र लक्ष्य होथे, सिरिफ दुसमन के संहार.
    -'फेर लोकतंत्र म अइसन कइसे हो सकथे बबा? हमर इहाँ तो कानून के राज चलथे?'
    मोर बात ल सुनके बबा कहिस-' बेटा! लोकतंत्र म चुनावी व्यवस्था ह हमर धरम युद्ध के दूसरा रूप आय. इही म बने-गिनहा अउ अउ अपन-बिरान के बेवस्था ल पूरा करे जा सकथे.
    मोर मन म फेर एक ठन शंका के पीका फूटिस, मैं बबा सो पूछेंव-' बबा, फेर उहाँ राजधानी म बइठे मनखे मन चुनावी टिकिस बांटे म जेन भेदभाव करथें, तेकर का उपाय हे?'
    बबा झट कहिस-' अपन हाथ ले टिकिट बांटे के काम करव, अउ एकर एके ठन उपाय हे- अपन खुद के पारटी बनावौ. जब तक  दूसर के मुंह देखिहौ तब तक दुसरेच ल अपन मुड़ म बइठे पाहव. चाहे कुछू काम-बुता खातिर होवय, एकरे सेती बड़े-बड़े गुनिक अउ पुरखा सियान मन कहें हें- 'अपन दीया खुदे बनौ... अपन मारग घलो खुदे बनावौ.'
    सुराजी बबा संग गियान चरचा के बाद महूं कोल्हान के खंड़ म बने छत्तीसगढ़ महतारी के मंदिर म संझा-बिहनिया जाए लगेंव. सुराजी बबा संग भितरी म माढ़े नक्शा के आरती अउ हूम-धूप करे लागेंव, संग म गाँव के जम्मो जउंरिहा लइका मनला घलो एकक दू-दू करके उहाँ लेगे लागेंव. सुराजी बबा के संगत म आके जम्मो लइका मन के ऊपर ले भरम के भूत उतरे लागिस. धीरे-धीरे करके हमन एक गाँव ले दूसर गाँव, अउ दूसर ले तीसर करत चारों मुड़ा के गाँव मन म धरम युद्ध के बाजा गदकाए लागेन.
    हमर मन के जवनहा जोश म परलोखिया मनके पेट पिराए लागिस, उन लइका मनला भरमाए के, स्वारथ के दलदल म बोरे के अउ एती-तेती के गलत आरोप म डरवाए-फंसवाए के घलोक खेल खेले लागिन. फेर जवानी तो जवानी होथे, जब तक वो नइ जागे राहय, तभे तक वोला कोनो ठग सकथे या वोकर ऊपर राज कर सकथे. अउ कहूँ जागगे त फेर ककरो छेंके नइ छेंकावय, बिल्कुल नंदिया के उफनत धारा कस.
    नंदिया के उफनत धारा ल कोनो रोके सकथे जी? वोला कतकों रोक ले, तोप ले, छेंक ले, मूंद ले, फेर वो अपन आगू बढ़े के रद्दा निकालिच लेथे. कतकों बड़े-बड़े बांधा आ जाय, वोकर रद्दा म तभो वोला घेपय नहीं. कइसनो न कइसनो करके बांधा के गरब ल टोरिच देथे. अइसने जवानी के जोश घलो होथे. सुराजी बबा के संग जुड़े जम्मो दुधरू जवान मन चारों मुड़ा धरम युद्ध के जागरन अउ अपन खुद के पारटी-बेनर के जयकारा बोलाए लागिन.
    ठउका उहिच बखत चुनाव के घोसना होइस. जम्मो लइका मन खाए-पीए ल तियाग दिन. वोकर मन जगा पइसा-कौड़ी के तो कमी रिहिसे, फेर सुराजी बबा के ये भाखा सबो झनला सुरता रिहिसे-' लोकतंत्र म भीड़ संपन्न मनखे सबले बड़े होथे. जेकर संग भीड़ या बहुमत हे, वोकर जगा सबकुछ हे. बस तुंहर मनके एकता कभू मत टूटय, कोनो विभिसन कस घर फोरुक मनखे ह तुंहर मनके दल म मत खुसरय, अतके भर के चेत राखिहौ, तहाँ ले सब ठीक-ठाक निपट जाही.'
    लइका मन के पंदरा दिन ले बइहा-भुतहा सहीं किंदरई ह आखिर सुफल होइस. पइसा-कौड़ी, लाठी-बेड़गा अउ छल-छिद्र के ऊपर आखिर सत्-विसवास अउ एकता के जीत होइस. आज जम्मो लोगन ल भरोसा होगे के परमात्मा आखिर सत्-नियाय के रद्दा म रेंगइया मनला साथ देथे. परीक्षा जबड़ लेथे, फेर जीतवाथे घलोक उहिच ल जेन सत् के मारग ल धरे रहिथे.
    सुराजी बबा के आज खुशी के ठिकाना नइए. जतका खुशी वोला पंदरा अगस्त सन् सैंतालिस के होए रिहिसे, वतकेच खुशी आजो लागत हे. वो देश के आजाद होए के खुशी रिहिसे, आज अपन घर-कुरिया अउ अस्मिता के आजाद होए के खुशी ए. कोनो मनखे चाहे कतकों गरीब-गुरबा राहय, अप्पढ़ राहय तभो अपन घर के सियानी ल कोनो दूसर ल नइ देवय. जे मन अइसन सोचथें-गुनथें, ते मन सिरिफ उपद्रव के गोठ करथें.
    जवनहा लइका मन बाजा गदकावत सुराजी बबा मेर आइन अउ वोला फूल-माला म लाद दिन. चारों मुड़ा सिरिफ उमंग अउ उत्साह दिखत राहय. चारों मुड़ा, जिहां तक नजर जाय, कटकट ले मनखेच-मनखे. सुराजी बबा जम्मो मनखे मनला सबासी देवत कहिस-' बाबू हो, तुंहर मनके परसादे आज मोर सपना सुफल होइस. अब सबले पहिली छत्तीसगढ़ महतारी के मंदिर म कलस जघाबो, उहाँ छत्तीसगढ़ महतारी के साकछात मुरति बइठारबो, तेकर पाछू फेर राजधानी म अपन सरकार के शपथ ग्रहन करवाबो. तुमन जेकर जइसन योग्यता हे, तेकर मुताबिक पद अउ विभाग के बंटवारा खातिर लेखा-जोखा कर लेवौ. अब महूं ए बस्ती भीतर के घर-कुरिया ल बेंच-भांज के कोल्हान खंड म छत्तीसगढ़ महतारी के मंदिर करा एकाद खंड़ के अपन रेहे बर खोली बना लेहूं, अउ बांचे जिनगी ल इंहचे महतारी के सेवा करत बिताहूं. अब मोला लागत हे, के मोर चोला ले परान ह हांसी-खुसी निकल जाही.'
    दुरिहा ले सुराजी बबा के मंदिर ले छत्तीसगढ़ महतारी के आरती-वंदना के आवाज सुनावत राहय-
    अरपा-पइरी के धार
    महानदी हे अपार
    इंदरावती ह पखारय तोर पइयां
   महूं पांवें परंव तोर भुइयाॅं
    जय हो जय हो छत्तीसगढ़ मइया...
(कहानी संकलन 'ढेंकी' ले साभार)
-सुशील भोले
संजय नगर, रायपुर
मो/व्हा. 9826992811

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