नारी विमर्श अउ सीता के अगनी परीछा..
छत्तीसगढ़ी भाखा म जब कभू नारी विमर्श के बात चलही त, मध्यप्रदेश शासन के लोक साहित्य के प्रतिष्ठित पुरस्कार 'ईसुरी सम्मान' ले सम्मानित महाकवि कपिलनाथ कश्यप जी के खण्डकाव्य 'सीता के अगनी परीछा' के चर्चा करे बिन अधूरा रइही.
वइसे तो उन नारी मन खातिर बहुतेच संवेदनशील अउ संचेतक कवि रहे हें, जेला वोकर मन के रचना संसार- बावरी राधा, कंस कारागार, सुलोचना विलाप आदि हिन्दी के खंडकाव्य मन म देख सकथन. फेर आज हम उंकर छत्तीसगढ़ी खंडकाव्य 'सीता के अगनी परीछा' ऊपर ध्यान देबो जेन उंकर 1976 के रचना आय.
ए खंडकाव्य के नौवां अध्याय म राम द्वारा सीता के तिरस्कार करे जाथे. राम ह समाज के लाज रखे के नांव म सीता ल तिरस्कृत करत कहिथें-
लोक लाज से अब तो बचना हावय मोला
अवध लहुट के अब कइसे संग लेजॅंव तोला
दस महिना ले रहे अकेल्ला तैं लंका म
निंदा करही अब समाज पर के संका म
अब एकर पाछू सीता के फटकार, जेन दसवाँ अध्याय म हे. देखव-
सब मनसुभा सीता के माटी म मिलगे
सोचे रहय अमर फर पाहॅंव महुरा मिलगे
***
राघव का तू मोला समझ लिये हा वइसन
करथा तू वैवहार मोर सो कुल्टा जइसन
फोकट के अपमान करत हा कार अइसन
***
सीता अइसन मानसिकता ल चुनौती देवत कहिथे-
निरमल अपन चरित के राघव,
अब मैं तुॅंहला परछो देहॅंव.
पथरा छाती ला समाज के,
बता परीछा पघला देहॅंव..
***
नारी जीवन के राघव ये मोर कहानी
सबल पुरुस के अबला ऊपर ये मनमानी
कइसे बंधना ये समाज के समझ न आवय
नारी के रोना-धोना ल सुन नइ पावय
***
अइसन घृनित प्रथा समाज म रइही जब ले,
नारी के उद्धार न होवे पावय तब ले.
***
कवि ह ए खंडकाव्य म सीता ल सबला बतावत लिखे हें-
अबला नहीं नारी कतका,
सबला होथें ये अब दिख जाही.
झूठा बंधना टोर टोर के,
नारी मन जब बाहिर आहीं..
***
देके परीछा मरजादा राखिस,
आगी लगा के तन म बिचारी.
छाती दहलथे सुन के सबे के,
सीता सती के दुखमय कहानी..
-सुशील भोले
Wednesday, 9 March 2022
नारी विमर्श अउ सीता के अगनी परीछा
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