Wednesday 2 March 2022

एॅंहवाती कहानी

कहानी//         एॅंहवाती
    भूरी के भाग आज नंठागे. अब्बड़ सेवा-जतन करिस. डॉक्टर-बइद मन जइसन कहिन तइसन दवई-दारू करिस, फेर वोकर चूरी छरियाइच गे. माँग के सेंदुर बने जात के गढ़ा नइ पाइस अउ जम्मो ह धोवई धोए कस धोवा गे. पारा-परोस के मन आनी-बानी के गोठियावयं, कोनो कहय- रांड़ी ह जवान गोसइयां ल खा डरिस. आॅंखी हर तो बिटबिट ले दिखबे करथे, फेर एला अपनेच घर के ह मिलिस वो... कोनो कहय- मोला तो वो छोकरा बपरा ल दवई-दारू म कुछू-कांही करके देदे हे ताइसे लागथे. देवर संग लुहुर-टुपुर करत रहिथे, तेकरे सेती जोड़ी ह अब सिट्ठाए कस लागत रिहिस होही. कोनो कहय- हहो ठउका काहत हस, तभे तो टूरा बपरा ह बेमारी के मारे कल्हरत परे राहय अउ ए ह छछिंदरिन कस किंजरत राहय. कभू तो बपरा ल तेल-पानी चुपरत देखतेन, जब देखतेन त सोन-परी बरोबर सज-सम्हर के हांसत भकभकावत देखतेन!
    भूरी के अंतस के पीरा ल भूरिच ह जानत रिहिसे, ते वोकर भगवान ह. दूसर म अउ कोनो जाने-टमड़े के लइक रिहिसे ते वोकर देवर कमल ह, जेन ह दुख के बेरा म भइया-भउजी के सेवा-चाकरी म रात-दिन भीड़े राहय. बाकी सबो झनला सिरिफ भूरी के चारी करे म मजा आवय. उहू चारी अइसन, जेकर कोनो गोड़-मुड़ी नइ राहय. एको झन तो भूरी के पीरा म आंसू बोहा लेतिन! बपरी ह भरे जवानी म अपन जोड़ी ल बिसार डारिस. ओकर टीबी के जबर बेमारी के इलाज म अपन जम्मो गहना-गुरिया, बारी-बखरी ल बेंच डारिस फेर वोला बचाए नइ पाइस. अब कुल सम्पत्ति वोकर दू झन लइका के छोड़ अउ कुछू नइए. एक झन पांच बछर के रिंकू अउ दू बछर के टिंकू. कइसे करके अतेक बड़ जिनगी ल पहाही, नान-नान लइका मनला कइसे करके पढ़ाही-लिखाही, उनला पांव म खड़ा करही..?
    घर-परिवार अउ समाज के असली चेहरा ल अइसने बेरा देखे-परखे बर मिलथे. जतका झन समाज सेवा के नांव म मुड़ म पागा खापे किंजरत रहिथें. वो मनला तो सिरिफ खात-खवई भर के चिंता रहिथे. भूरी ह अपन गोसइयां के किरिया-करम म लाड़ू-पपची खवाही नहीं? अउ बरा-सोंहारी के सेवाद चिखवाही नहीं? सबो घर तो अपन ह किंजर-किंजर के खाए हे, तब सोझ म उहू ल खवाए बर लागही. अउ कहूँ नइ खवाही, त सोझ-बाय वोला डांड़-बोड़ी खाए बर लागही. बस समाज अतके म मगन राहय. एको झन लइका मनला अनाथ होए ले कइसे बचाए जा सकही, वोकर मरनी-हरनी के बेवस्था ल कर पाही धुन नहीं ते? कभू नइ गुनय!
* * * * *
    किरिया-करम के पाछू भूरी ल लइका मनके चिंता बजुरा-पहार बरोबर लागे लागिस. बाप ह कतकों बीमार रिहिसे तभो लइका मनके मुंह म चारा डारे के अलवा-जलवा बेवस्था करिच डारत रिहिसे. अब घर म सियान के नांव म एक झन सास भर ह रहिगे हे, तेनो ह दिन-रात खांसी-खोखी म बूड़े रहिथे. कभू कनिहा पीरा ते कभू छाती पीरा, बस वो ह वतके म बिपतियाए रहिथे. देवर कमल ह छोटे-मोटे रोजी-मजूरी करथे, फेर वतकेच म का होथे? दिन के दिन बाढ़त मंहगाई के सेती अब ककरो घर के पेट-पसिया बने गतर के नइ चल सकत हे. भूरी के आंखी म रतिहा नींद नइ आवय. वो गुनथे अब महूं ल घर के डेहरी नहाक के कहूँ काम-बुता म जाए बर लागही तभे बनही. आज लइका मन नान-नान हें,  साल दू साल म स्कूल जाए के लाइक हो जाहीं, तहाँ ले खरचा अउ बाढ़ जाही. फेर सबले बड़े बात तो ए हे, के कमल एक ले दू हो जाही, अउ वोकर सुवारी कहूँ थोरको खइटकार होइस, तहाँ ले तो मरे बिहान हो जाही.
    भूरी अपन भविष्य के ताना-बाना म बिपतियाए रिहिसे, तभे वोकर छोटे बेटा चिंकू सूते खातिर रोए लागिस. भूरी वोला लोरी सुना-सुना के रोजे सुतावय, तेकर सेती वोकर सूते के पहिली लोरी सुने के टकर परगे राहय. भूरी समझगे ये लोरी सुने बर रोवथे कहिके. तब अंतस के पीरा अपने-अपन वोकर मुंह ले फूट परिस-
    कइसे झुलावौं झुलना गरीब के लाल,
    डेहरी म खड़े हे लेगे बर मोला  काल...
    भरे जुवानी म ददा तोर बिसरगे, बेटा ल चुमे बिन सुरता म सजगे.
    जीते-जी मरे कस आज होगे मोर हाल..
   डेहरी म खड़े हे लेगे बर मोला काल...
* * * * *
    रतिहा जब जादा होवय त वोकर सास कइसनो करके सूती जावय, फेर देवर कमल ह भूरी के पीरा ल समझ के वोला टकटकी लगाए देखत राहय. वो मने-मन गुनय घलो एकर दुख ल मैं कइसे कम कर सकथौं? वो भूरी संग एती-वोती के गोठ करके वोकर मन ल हरू करे के उदिम रचय, फेर भूरी के अंतस तो दुख के खदान बनगे राहय. वो कमल ल कहिस-' कइसे  करबे बाबू.. तोर अकेल्ला के कमई म तो घर के खरचा चलई ह मुसकुल जनाथे, कोनो मेर मोरो लइक बुता-काम देखना.'
    भूरी के बात म कमल के अंतस रो डारिस. वो गुनथे- हे भगवान, अइसनो दिन देखे के बदे रिहिसे? हमर घर के मरजाद ल डेहरी ले पांव निकाले के दिन आगे? वो कहिस-' मैं तो कमातेच हौं न, कइसनो करके पेज-पसिया के बेवस्था होइच जाथे. तब तोला घर के डेहरी छोड़े के का जरूरत हे?'
    अइसने म के दिन चलही बाबू, फेर आज नहीं ते काल तहूं एक ले दू होबे, तहाँ ले तोरो लोग-लइका होही, तब एके झन के कमई म सबो झन कइसे जीबो?'
    -अउ मैं बिहाव नइ करहूं त?
    -कइसे बइहा बानी के गोठियाथस तैं ह.
    -सिरतोन काहत हौं, मैं तुंहरे मनके सेवा-जतन म ए जिनगी ल बिता देहूं, इही लइका मनला देख के अपन लइका के सपना ल पूरा कर लेहूं.
    -कइसे गोठियाथस बाबू... तहाँ ले ए समाज ह मोला जीयन देही? आज अतेक दुख-पीरा के पहार म चपकाए हौं, तब तो रकम-रकम के गोठियाथें, काली कहूँ तैं बिहाव नइ करबे त मोला का-का कइहीं तेकर सरेखच नइए. मोर बर तो मरे बिहान हो जाही- काहत भूरी रो डारिस.
    कमल वोला पोटार के चुप कराइस तहाँ ले कहिस-' ले ठीक हे, मैं तोर लइक कोनो मेर बुता-काम देखत हौं. काल बिहन्चे संगवारी मन करा गोठियाहूं काहत भूरी ल वोकर जठना म सूता के कथरी ल ओढ़ा दिस, अउ अपनो ह अपन कुरिया म आके सूतगे.
* * * * *
    कुकरा बासत कमल के नींद खुलगे. रोजे सहीं वोहा लोटा-मुखारी धर के तरिया कोती चल दिस. तरिया म रोजे कस गुरुजी संग भेंट होइस. दूनों के जोहार-पैलगी होइस, तहाँ ले गुरुजी वोला पूछ परिस-' कइसे कमल आज तैं पछुवा गेस, नइते आन दिन तोर ले पाछू मैं आवत रेहेंव?'
    -का करबे गुरुजी रात भर आंखी म टकटकी धरे रहिथे, तेकर सेती अतका बेर देरी से नींद खुलथे.
    -कइसे का होगे जी?
    -जानत तो हस गुरुजी घर म घटे घटना ल. अब भौजी ह काम खोजदे काहत हे.
    -बने तो काहत हे कमल. अपन लोग-लइका खातिर तो वोला घर के डेहरी ल नाहकेच बर लागही.
    -त मैं ह तो कमातेच हौं न गुरुजी, अलवा-जलवा तो चलतेच हे पेज-पसिया ह.
    -तोर कमई म वोकर जीवन कइसे चलही कमल, फेर तहूं ल अभी एक ले दू होना हे, त फेर वो ह कइसे करही?
    कमल मुखारी चगलत घठौंदा के पखरा म बइठत कहिस-' अउ मैं जीवन भर बिहाव नइ करहूं त गुरुजी?'
    गुरुजी नहाए के बाद कपड़ा ल फलियारत कहिस-' अइसे कइसे हो सकथे, ए तो जीवन के रिवाज आय. सबो ल एक ले दू अउ दू ले चार होना परथे, तभे तो सृष्टि के क्रम ह चलथे बेटा.'
    -कुछू होवय गुरुजी.. फेर मैं अपन घर के मरजाद ल डेहरी ले बाहिर नइ निकलन देवौ.
    गुरुजी लोटा म पानी धरके शिव मंदिर म जल चढ़ाए जावत कहिस-' अइसन हे, त एक रस्ता हे बेटा...
     -का गुरुजी?
    -तैं अपन भौजी संग बिहाव कर ले, कहिके गुरुजी मंदिर भीतर खुसरगे. महादेव म जल चढ़ा के निकलिस, त कमल कमल कथे-' कस गुरुजी तैं काहत हस तेन फभे के लइक हे? अरे भई तुहीं सियान मन तो कहिथौ, देवर-भौजी के नता ह महतारी-बेटा कस होथे कहिके.'
    गुरुजी कच्चा कपड़ा मनला सकेल के सुक्खा कपड़ा पहिनत कहिथे-' सब परिस्थिति अउ समय के बात आय बेटा. ए पुरुष प्रधान समाज ह सबो नियम-कायदा ल अपन स्वारथ के मुताबिक बनाय हे. अउ वोला बेरा-बखत म एती-वोती घलो करत रहिथे. जब कोनो आदमी के घरवाली मर जथे, त बहिनी के लोग-लइका मनला  सम्हालही कहिके वोहा अपन सारी ल बिहा के लान लेथे. अइसने इहू काबर नइ सोचे जाय के बड़े भाई के लोग-लइका मनला अनाथ होए ले बचाए खातिर देवर संग वोकर भौजी के  बिहाव करवा दिए जाय. दूनों झन तो आखिर हमजोली होथे. फेर उहू बपरी ल तो एक जीवन साथी के जरूरत होथे, त फेर वोकरो व्यवस्था काबर नइ होना चाही?'
    -फेर मैं तो अपन भौजी ल अइसन नजर ले कभू सपना म तक नइ देखे हौं गुरुजी.
    -ए तो तोर अच्छा नीयत अउ चरित्र के परमान आय बेटा, फेर अब एला समय अउ परिस्थिति के अनुसार बदल. आखिर भगवान मन घलो तो अइसन व्यवस्था ल चलाए हे. त फेर हमन ल वोला काबर नइ मानना चाही?
    -भगवान मन अइसना व्यवस्था चलाए रिहिन हें? कमल ल बड़ा अचरज लागिस. त गुरुजी वोला समझाइस-' हां बेटा, भगवान मन घलो अइसन व्यवस्था करे रिहिन हें. अच्छा ए बता, भगवान राम ह बाली ल मारे के बाद वोकर सुवारी अउ बेटा अंगद ल सुग्रीव ल सौंप के वोकर मन के पालन-पोसन के जम्मो व्यवस्था ल पूरा करे के जवाबदारी दे रिहिसे के नहीं?'
    कमल ह मुड़ खजवावत कहिस-' हां ए बात तो सही हे.'
    गुरुजी फेर पूछिस-' अच्छा ए बता, वोकर बाद रावन ल मारे के बाद, वोकरो गोसइन मंदोदरी ल विभिसन ल सौंप के वोकर जम्मो व्यवस्था ल पूरा करे के जवाबदारी दे रिहिसे के नहीं?'
    कमल फेर हां म मुड़ डोलाइस.
    -त फेर अउ का बात हे?' कहिके गुरुजी घर कोती रेंगे लागिस, त कमल वोला फेर कहिस-' केहे बर तो तैं ठउका कहिथस गुरुजी, फेर मैं भौजी अउ अपन दाई संग अइसन बात ल कइसे केहे सकहूं?
    गुरुजी थोरिक ठाढ़ होए कस होके कहिस-' अरे बेटा एकर चिंता ल तैं काबर करथस? मैं करहूं सबो संग गोठबात ल. घर, परिवार, समाज, पंच-पंचायत, मंदिर-देवाला सबो जगा मैं खड़ा होहूं.' कहिके गुरुजी अपन घर कोती चल दिस.
    गुरुजी के बात ल सुन के कमल के मुड़ के चिंता ह थोरिक हरू होए असन लागिस. तहाँ ले उहू जल्दी-जल्दी नहाइस अउ घर कोती रेंग दिस.
    फागुन तिहार के मनाते कमल के अंगना म बाजा गदके लागिस. गाँव के पढ़े-लिखे लइका मन अपन गाँव म एक नवा इतिहास लिखे जाय के खुशी म गदकत राहयं. वोमन ल हांसत-नाचत देख के कुछ रूढ़िवादी मन कुलबुलावयं घलो, फेर गुरुजी के तर्क-वितर्क अउ वोकर चेला मनके उत्साह ल देख के उन जुड़ा जायं घलो. भूरी के मड़वा ल गुरुजी खुद अपन अंगना म गड़िया के वोकर कन्यादान करिस.
    चारे महीना म भूरी फेर एॅंहवाती के एॅंहवाती होगे. वोकर लइका मनके मुड़ म फेर बाप के छांव आगे. कमल घलो नवा साल म जब बड़े बेटा रिंकू ल पढ़े खातिर पहली कक्षा म भरती करिस, त वोकर बाप के नांव के जगा म अपन नांव ल लिखा के लइका मनला घलो पूरा के पूरा अपन बना लिस.
(कहानी संकलन 'ढेंकी' ले साभार)
-सुशील भोले
संजय नगर, रायपुर
मो/व्हा. 9826992811

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