Sunday 20 March 2022

छत्तीसगढ़ी सेउक जागेश्वर प्रसाद

14 जुलाई जनमदिन//
छत्तीसगढ़ी के जबर सेउक जग्गू दादा..
    छत्तीसगढ़ी भाखा म जब कोनो ठाढ़ जवान मनखे ल 'दादा' कहि देबे, त वो ह तोला आंखी ततेरे असन जरूर करही. काबर ते वोला लागही, के एहर मोला हिन्दी वाले दादा मतलब पितामह, जेला छत्तीसगढ़ी म बबा कहिथन, काहत हे कहिके.
    तब मोला बड़ा अचरज लागय के छत्तीसगढ़ी सेवक के संपादक जागेश्वर प्रसाद जी लो लोगन 'दादा' काबर कहिथें? काबर ते हमर छत्तीसगढ़ी भाखा म तो दादा शब्द हइच नइए, त फेर ए छत्तीसगढ़ी के जबर सेउक ल, जेन अतका ठाढ़़ जवान हे, एला छोटे ले बड़े तक अउ ते अउ बुढ़वा मन तको 'दादा' कहिथें?
    बाद म जब मैं वोमन ल लकठा ले देखेंव. उंकर मनके आध्यात्मिक उपासना विधि अउ जीवन पद्धति ल समझेंव, त जानेंव के एमन बंगाल के श्री पी.आर. सरकार जी जेला श्री श्री आनंद मूर्ति घलो कहिथें, तेकर द्वारा प्रतिपादित आध्यात्मिक पद्धति के अनुयायी आयं, एकरे सेती बंगाल आदि प्रदेश म बड़े भाई खातिर कहे जाने वाला शब्द 'दादा' के प्रयोग एमन सबो झन बर करत रहिथें. असल म ए ह उहें ले प्रभावित  आध्यात्मिक संस्कृति ल जीए के खातिर आय.
    ए विषय ऊपर मोर जागेश्वर जी संग कई बेर चर्चा घलो होवय, के जब हमन इहाँ छत्तीसगढ़ी भाखा, छत्तीसगढ़ी कला-संस्कृति अउ राजनीतिक क्षेत्र म घलो  आरुग छत्तीसगढ़िया के बात करथन, त आध्यात्मिक क्षेत्र म घलो छत्तीसगढ़ के पारंपरिक पूजा-उपासना विधि अउ जीवन पद्धति के बात काबर नइ करन? त वोमन आध्यात्म म सब चलथे कहि देवत रिहिन हें.
    ए विषय ल लेके कतकों बेर हमन म मतभेद असन बात घलो हो जावत रिहिसे. ए विषय ऊपर मैं संत कवि पवन दीवान जी के बड़ा प्रशंसक हौं. जब डाॅ. परदेशी राम वर्मा जी संग मिलके दीवान जी 'माता कौशल्या गौरव अभियान' चालू करिन, त एक बात ल वोमन हर मंच म कहयं-" बंगाल के मन अपन देंवता धर के आइन हम उंकरो पांव परेन. गुजरात महाराष्ट्र के मन अपन देंवता धर के आइन हम उंकर पांव परेन. उत्तर प्रदेश अउ बिहार के मन अपन देंवता धर के आइन हम उंकरो पांव परेन. उड़ीसा अउ आने प्रदेश के मन अपन-अपन देंवता धर के आइन हम उन सबके पांव परेन. फेर मैं कहिथौं, अरे ददा हो, भइगे हमन दूसरेच मन के देंवता के पांव परत रहिबोन, त अपन देंवता के कब पांव परबोन? ए देख लेवव उंकर मन के देंवता के पांव परई म हमर माथा खियागे हे, अउ ए परदेसिया मन एकरे मन के आड़ म इहाँ के जम्मो शासन-प्रशासन म छागे हें.
    मोला पवन दीवान जी के ए बात ह बहुते अच्छा लागय. सही बात आय, जब हम छत्तीसगढ़िया राज के बात करथन, छत्तीसगढ़ी भाखा, साहित्य, कला अउ संस्कृति के बात करथन त फेर छत्तीसगढ़ के पारंपरिक पूजा प्रतीक, उपासना विधि अउ जीवन पद्धति के बात काबर नइ करन? आगू चलके इही मूल उद्देश्य ल लेके हमन एक समिति 'आदि धर्म जागृति संस्थान' के पंजीयन घलो करवाएन अउ एकर बेनर म अपन सख भर जनजागरण के उदिम करत रहिथन.
    14 जुलाई 1946 के हथबंद जगा के गाँव बिटकुली म एक सामान्य किसान परिवार म जनमे जागेश्वर जी संग वइसे केहे बर तो मोर चिन्हारी बचपन ले हे. जागेश्वर जी जब मिडिल स्कूल पास करे के बाद  हाईस्कूल पढ़े खातिर अपन गाँव ले भाठापारा शहर आइन, त हमन परोसी होगे रेहेन. हमर सियान तब भाठापारा के मेन हिन्दी स्कूल म पढ़ावत रिहिन. तब हमन एके जगा राहन, तेकर सेती जागेश्वर जी मोला स्कूल जाए के पहिली अउ फेर स्कूल ले आए के बाद पावय, खेलावय. मतलब मैं वोकर गोदी म खेले हौं.
    फेर वोकर संग असली पहचान तो रायपुर आए के बाद होइस. काबर ते कोनो मनखे संग असली चिन्हारी तो तब होथे, जब हम वोला सैद्धांतिक रूप म जानथन-समझथन अउ संगत करथन.
    सन् 1983 म मैं दैनिक अग्रदूत प्रेस म काम करे बर धर लिए रेहेंव. तब उहाँ के साप्ताहिक अंक म मोर एकाद ठन नानमुन रचना छप जावत रिहिसे. वो बखत जागेश्वर प्रसाद जी अग्रदूत म कार्यरत वरिष्ठ पत्रकार-साहित्यकार टिकेन्द्रनाथ टिकरिहा जी संग भेंट करे बर आवयं. तब उहाँ मोर छपे रचना मनला देख के टिकरिहा जी ले पूछिन, के ए सुशील वर्मा (तब मैं सुशील वर्मा के नाम ले ही लिखत-पढ़त रेहेंव) कोन आय? तब टिकरिहा जी मोला उंकर संग भेंट कराइन.
    बातचीत म जागेश्वर जी बताइन, के उहू मन छत्तीसगढ़ी भाखा म एक साप्ताहिक पत्र 'छत्तीसगढ़ी सेवक' निकालथें, उहू म अपन रचना दे कर कहिन. संग म अपन हांडीपारा कार्यालय म घलो आए बर कहिन.
    तब तक मैं ए जागेश्वर प्रसाद ल भुलागे रेहेंव. जब उंकर कार्यालय म लगातार जाए लगेंव अउ बातचीत के दौर बाढ़त गिस, तब जानेंव, के ए ह भाठापारा वाला उही जागेश्वर प्रसाद आय, जेन मोला बचपन म पाके घुमावय-खेलावय. स्वभाविक हे, वो बचपन के बात के सुरता आए ले उंकर संग आत्मीयता थोकुन जादा जनाए लागिस.
    बाद म जब आत्मीयता बाढ़त गिस तब उन मोला आनंद मार्ग ले संबंधित किताब पढ़े खातिर दे लागिन. तब मोर रुचि तो वो सबमा जादा नइ रिहिसे. एक तो मैं थोकन जनवादी विचारधारा ले प्रभावित रेहेंव, ऊपर ले थोर-बहुत धरम-करम ल मानंव घलो त वो सिरिफ छत्तीसगढ़ के पारंपरिक मनला जेला अपन घर-परिवार म देखत-सुनत आवत रेहेन. फेर जागेश्वर जी पूछंय, के किताब ह कइसे लागिस कहिके त बने हे कहि देवत रेहेन, भले वोला पढ़े नइ राहत रेहेन.
    इही बेरा म मैं रायपुर के छत्तीसगढ़ी साहित्य समिति ले जुड़े जम्मो साहित्यकार मन संग घलो जुड़त गेंव, संग म छत्तीसगढ़ राज आन्दोलन म घलो. छत्तीसगढ़ राज  आन्दोलन ले संबंधित जतका गतिविधि रायपुर म होवय, चाहे वो कोनो संस्था या बेनर के सबो म जावौं. एकर सेती मोर दीमाग ह पूरा के पूरा छत्तीसगढ़, छत्तीसगढ़िया अउ छत्तीसगढ़ी होगे रिहिस. एकर परिणाम ए होइस, के आगू चलके 9 दिसंबर 1987 ले महूं ह छत्तीसगढ़ी भाखा म एक मासिक पत्रिका 'मयारु माटी' के नांव ले निकाले लागेंव.
    वइसे तो छत्तीसगढ़ी भाखा म अउ कतकों पत्र-पत्रिका निकले हे, अभी घलोक निकलत हे, फेर ए छत्तीसगढ़ी पत्र-पत्रिका के क्षेत्र म जागेश्वर जी के जेन योगदान अउ समर्पण हे, वो ह बेजोड़ हे. एकर खातिर उंकर नांव हमेशा इतिहास के सोनहा आखर म लिखे जाही. जागेश्वर जी अक्टूबर 1965 म रायपुर आइन, वोकर बाद ले ही शुरू होए हे 'छत्तीसगढ़ी सेवक' म प्रबंधक के रूप म सफर ह, जेन ह संपादक ले होवत पूरा सर्वस्व तक चलिस.
    वो बखत के सियान साहित्यकार मन बतावंय, जागेश्वर जी ह छत्तीसगढ़ी सेवक खातिर एक अकेला फौज के रूप म काम करय. सइकिल म चारों मुड़ा घूम-घूम वोकर खातिर संबंधित साहित्य सकेलय, फेर वोला छपवाए, प्रूफ पढ़े अउ फेर छपे के बाद बांटे के उदिम घलो खुदेच करंय. मैं तो 1983 ले देखेंव, फेर जब छत्तीसगढ़ी सेवक के जुन्ना अंक मनला देखावय त अचरज के संग बड़ा गरब घलो होवय. वोकर साप्ताहिक अंक मन तो सहेजे के लाइक रहिबे करय, बेरा-बेरा म कोनो परब विशेष म जेन विशेषांक निकाले जाय, उहू मन गजब के संग्रहणीय राहय.
    जागेश्वर जी अपन जिनगी के 75 बछर ल ठउका पूरो डारे हें, तभो हमर छत्तीसगढ़ के पुरखौती देवता, कुल देवता अउ जम्मो मूल देवता मनले अरजी हे, उनला जतका जादा हो सकय जिनगी के बढ़वार देवंय, तेमा छत्तीसगढ़ महतारी के सेवा खातिर उन जेन-जेन सपना देखे हें, सबो उंकर जीवन काल म ही छाहित हो जावय.
जय छत्तीसगढ़.. जय छत्तीसगढ़ी
-सुशील भोले
संजय नगर, रायपुर
मो/व्हा. 9826992811

No comments:

Post a Comment