Friday 27 February 2015
Thursday 26 February 2015
Wednesday 25 February 2015
Sunday 22 February 2015
होलिका दहन या काम दहन..?
छत्तीसगढ़ में जो होली का पर्व मनाया जाता है, वह वास्तव में 'काम दहन" का पर्व है, इसीलिए इसे मदनोत्सव या वसंतोत्सव के रूप में भी स्मरण किया जाता है, जिसे माघ महीने की शुक्ल पक्ष पंचमी तिथि से लेकर फाल्गुन मास की पूर्णिमा तिथि तक लगभग चालीस दिनों तक मनाया जाता है।
सती आत्मदाह के पश्चात तपस्यारत शिव के पास आततायी असुर के संहार के लिए शिव-पुत्र प्राप्ति हेतु देवताओं द्वारा कामदेव को भेजा जाता है, ताकि उसके (शिव) अंदर काम वासना का उदय हो और वे पार्वती के साथ विवाह करें, जिससे शिव-पुत्र के हाथों मरने का वरदान प्राप्त असुर के संहार के लिए शिव-पुत्र (कार्तिकेय) की प्राप्ति हो। देवमंडल के अनुरोध पर कामदेव बसंत के मादकता भरे मौसम का चयन कर अपनी पत्नी रति के साथ माघु शुक्ल पक्ष पंचमीं को तपस्यारत शिव के सम्मुख जाता है। उसके पश्चात वासनात्मक शब्दों, दृश्यों और नृत्यों के माध्यम से शिव-तपस्या भंग करने की कोशिश की जाती है, जो फाल्गुन पूर्णिमा को शिव द्वारा अपना तीसरा नेत्र खोलकर उसे (कामदेव को) भस्म करने तक चलती है।
छत्तीसगढ़ में बसंत पंचमी (माघ शुक्ल पंचमी) को काम दहन स्थल पर अंडा (अरंडी) नामक पेड़ गड़ाया जाता है, वह वास्तव में कामदेव के आगमन का प्रतीक स्वरूप होता है। इसके साथ ही यहां वासनात्मक शब्दों, दृश्यों और नृत्यों के माध्यम से मदनोत्सव का सिलसिला प्रारंभ हो जाता है। इस अवसर पर पहले यहां 'किसबीन नाच" की भी प्रथा थी, जिसे रति नृत्य के प्रतीक स्वरूप आयोजित किया जाता था।
'होलिका दहन" का संबंध छत्तीसगढ़ में मनाए जाने वाले पर्व के साथ कहीं पर भी दृष्टिगोचर नहीं होता। होलिका तो केवल एक ही दिन में चिता रचवाकर उसमें आग लगवाती है, और उस आग में स्वयं जलकर भस्म हो जाती है, तब भला उसके लिए चालीस दिनों का पर्व मनाने का सवाल ही कहां पैदा होता है? और फिर वासनात्मक शब्दों, दृश्यों और गीत-नृत्यों का होलिका से क्या संबंध है?
ज्ञात रहे कि छत्तीसगढ़ की मूल संस्कृति, जिसे मैं आदि धर्म कहता हूं वह सृष्टिकाल की संस्कृति है। युग निर्धारण की दृष्टि से कहें तो सतयुग की संस्कृति है, जिसे उसके मूल रूप में लोगों को समझाने के लिए हमें फिर से प्रयास करने की आवश्यकता है, क्योंकि कुछ लोग यहां के मूल धर्म और संस्कृति को अन्य प्रदेशों से लाये गये ग्रंथों और संस्कृति के साथ घालमेल कर लिखने और हमारी मूल पहचान को समाप्त करने की कोशिश कर रहे हैं।
मित्रों, सतयुग की यह गौरवशाली संस्कृति आज की तारीख में केवल छत्तीसगढ़ में ही जीवित रह गई है, उसे भी गलत-सलत व्याख्याओं के साथ जोड़कर भ्रमित किया जा रहा। मैं चाहता हूं कि मेरे इसे इसके मूल रूप में पुर्नप्रचारित करने के सद्प्रयास में आप सब सहभागी बनें...।
सुशील भोले
संजय नगर (टिकरापारा) रायपुर (छ.ग.)
मोबा. नं. 080853-05931, 098269-92811
ईमेल - sushilbhole2@gmail.com
Friday 20 February 2015
सुशील भोले के चार डांड़ी... (3)
कतकों जी-हुजुरी करले नइ मिलय अधिकार
थोर-बहुत भले मिल जाही चटनी के चटकार
एक बात तो गांठ बांध ले तैं भोले के बानी
जब लड़बे तैं भीरे कछोरा होही तभे उजियार
***
जे सच के संगवारी होथे तेला तो दुख मिलथे
कभू-कभू लबरा-टोली अपमान घलो कर देथे
फेर बेरा के पासा घलो चलथे गजब के चाल
जतका लंदी-फंदी उंकर जी-जंउहर कर देथे
***
लिगरी लगाथे अब मुड़ी के चूंदी
डाढ़ी अउ मेंछा ल कइसे के छेंकी
चारों मुड़ा होगे सादा-कपसा सहीं
उमर उडिय़ावत हे बनके फुरफुंदी
थोर-बहुत भले मिल जाही चटनी के चटकार
एक बात तो गांठ बांध ले तैं भोले के बानी
जब लड़बे तैं भीरे कछोरा होही तभे उजियार
***
जे सच के संगवारी होथे तेला तो दुख मिलथे
कभू-कभू लबरा-टोली अपमान घलो कर देथे
फेर बेरा के पासा घलो चलथे गजब के चाल
जतका लंदी-फंदी उंकर जी-जंउहर कर देथे
***
लिगरी लगाथे अब मुड़ी के चूंदी
डाढ़ी अउ मेंछा ल कइसे के छेंकी
चारों मुड़ा होगे सादा-कपसा सहीं
उमर उडिय़ावत हे बनके फुरफुंदी
Wednesday 18 February 2015
Saturday 14 February 2015
Friday 13 February 2015
सुशील भोले के चार डांड़....2
गोंदली के भाजी म चना के दार
लसुन अउ मिरचा के सुघ्घर बघार
हमरो घर साग तैं अमरा देबे भउजी
तोर बहिनी के हाथ देबे मया ल डार
*सुशील भोले*
-----------------
रोज नंदावत हावय संगी हमर गंवई के खाई
गस्ती खाल्हे बइठे राहय धर के मुर्रा-लाई
आवत-जावत स्कूल ले रोज खीसा भर लेवन
अब पेंड़ कटागे छांव नंदागे संग जिनगी के सुघराई
*सुशील भोले*
----------------------
एक हाथ म माला अउ दूसर म भाला
रोज सिखोवत हावस तैं ह काला-काला
धर लिए हे गुरुमंत्र नइ तबले कुछु जानय
जेन हवय पाखंडी निच्चट वोकरे परथे पाला
*सुशील भोले*
लसुन अउ मिरचा के सुघ्घर बघार
हमरो घर साग तैं अमरा देबे भउजी
तोर बहिनी के हाथ देबे मया ल डार
*सुशील भोले*
-----------------
रोज नंदावत हावय संगी हमर गंवई के खाई
गस्ती खाल्हे बइठे राहय धर के मुर्रा-लाई
आवत-जावत स्कूल ले रोज खीसा भर लेवन
अब पेंड़ कटागे छांव नंदागे संग जिनगी के सुघराई
*सुशील भोले*
----------------------
एक हाथ म माला अउ दूसर म भाला
रोज सिखोवत हावस तैं ह काला-काला
धर लिए हे गुरुमंत्र नइ तबले कुछु जानय
जेन हवय पाखंडी निच्चट वोकरे परथे पाला
*सुशील भोले*
Thursday 12 February 2015
राजिम कुंभ में सुशील भोले का सम्मान...
इस अवसर पर महामंडलेश्वर अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती, प्रेमानंद, प्रज्ञानंद, राष्ट्रीय संत असंग साहेब, साध्वी प्रज्ञा भारती, ज्ञान स्वरूपानंद अक्रिय महाराज, संत युधिष्टिर लाल महाराज, गोवर्धनशरण महाराज, संत पवन दीवान, राजिम विधायक संतोष उपाध्याय, पूर्व कृषि मंत्री चंद्रशेखर साहू, राज्य भंडार गृह निगम के पूर्व अध्यक्ष अशोक बजाज, नपं अध्यक्ष पवन सोनकर, नगर पालिका अध्यक्ष विजय गोयल, इतवारी अखबार के सहायक संपादक सुशील भोले, पं. ब्रम्हदत्त शास्त्री, तुकाराम कंसारी, दिनेश चौहान, लीलाराम साहू, आशीष शिन्दे, राकेश तिवारी सहित देश भर से आये साधु-संत एवं श्रद्धालुगण बड़ी संख्या में उपस्थित थे।
Wednesday 11 February 2015
इतवारी अखबार के राजिम कुंभ विशेषांक का विमोचन
छत्तीसगढ़ के प्रयाग के नाम से विख्यात राजिम में आयोजित कुंभ-मेला के अंतर्गत संत समागम के उद्घाटन अवसर पर 10 फरवरी को मुख्य मंच पर राजिम कुंभ 2015 पर आधारित दैनिक छत्तीसगढ़ की साप्ताहिक पत्रिका इतवारी अखबार के कुंभ विशेषांक का विमोचन प्रदेश के धर्मस्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल ने किया।
इस अवसर पर महामंडलेश्वर अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती, प्रेमानंद, प्रज्ञानंद, राष्ट्रीय संत असंग साहेब, साध्वी प्रज्ञा भारती, ज्ञान स्वरूपानंद अक्रिय महाराज, संत युधिष्टिर लाल महाराज, गोवर्धनशरण महाराज, संत पवन दीवान, राजिम विधायक संतोष उपाध्याय, पूर्व कृषि मंत्री चंद्रशेखर साहू, राज्य भंडार गृह निगम के पूर्व अध्यक्ष अशोक बजाज, नपं अध्यक्ष पवन सोनकर, नगर पालिका अध्यक्ष विजय गोयल, इतवारी अखबार के सहायक संपादक सुशील भोले, पं. ब्रम्हदत्त शास्त्री, तुकाराम कंसारी, दिनेश चौहान, लीलाराम साहू, आशीष शिन्दे, राकेश तिवारी सहित देश भर से आये साधु-संत एवं श्रद्धालुगण बड़ी संख्या में उपस्थित थे।
इस अवसर पर महामंडलेश्वर अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती, प्रेमानंद, प्रज्ञानंद, राष्ट्रीय संत असंग साहेब, साध्वी प्रज्ञा भारती, ज्ञान स्वरूपानंद अक्रिय महाराज, संत युधिष्टिर लाल महाराज, गोवर्धनशरण महाराज, संत पवन दीवान, राजिम विधायक संतोष उपाध्याय, पूर्व कृषि मंत्री चंद्रशेखर साहू, राज्य भंडार गृह निगम के पूर्व अध्यक्ष अशोक बजाज, नपं अध्यक्ष पवन सोनकर, नगर पालिका अध्यक्ष विजय गोयल, इतवारी अखबार के सहायक संपादक सुशील भोले, पं. ब्रम्हदत्त शास्त्री, तुकाराम कंसारी, दिनेश चौहान, लीलाराम साहू, आशीष शिन्दे, राकेश तिवारी सहित देश भर से आये साधु-संत एवं श्रद्धालुगण बड़ी संख्या में उपस्थित थे।
Tuesday 10 February 2015
नीला भाखरे को श्रद्धांजलि अर्पित....
वरिष्ठ कवयित्री श्रीमती नीला भाखरे का विगत दिनों निधन हो गया। उनकी स्मृति में गीतांजलि नगर, रायपुर स्थित उनके निवास स्थल पर 9 फरवरी को पाठक मंच एवं छत्तीसगढ़ हिन्दी साहित्य मंडल द्वारा श्रद्धांजलि गोष्ठी का आयोजन किया गया। जिसमें डा. सत्यभामा आड़िल, सुधा वर्मा, सुशील भोले, अमरनाथ त्यागी, लतिका भावे, प्रीति दावड़ा, गोपाल सोलंकी, तेजपाल सोनी सहित नगर के अनेक कवि एवं पारिवारिक सदस्यों ने उन्हें श्रद्धासुमन अर्पित किये।
Wednesday 4 February 2015
Tuesday 3 February 2015
Subscribe to:
Posts (Atom)