Thursday 26 October 2023

कोंदा भैरा के गोठ-8

कोंदा भैरा के गोठ-8

-आज बस्तर दशहरा ल बिन कोनो बाधा के मनाय खातिर काछन देवी ह अनुमति देही जी भैरा.. चलना काछन देवी के दरस करे बर नइ जावस?
    -काछन देवी.. ए ह का होथे जी कोंदा?
   -75 दिन चलइया विश्व प्रसिद्ध बस्तर दशहरा के ए ह सबले महत्वपूर्ण विधान आय, जेमा काछन देवी ह आज कुंवार अमावस के कांटा के झूलना म बइठ के दशहरा मनाय के अनुमति देथे.
   -अच्छा.
   -हहो.. पनिका, मिरगान या माहरा समाज के कुंवारी नोनी ऊपर काछन देवी के सवारी आथे. पाछू बछर आठ साल के पीहू नॉव के नोनी ऊपर सवारी आय रिहिसे, इहू बछर उहिच नोनी ऊपर काछन देवी ह बिराजित होय हे, एकरे सेती कक्षा दूसरी म पढ़इया पीहू ह रोज संझा-बिहनिया देवी के पूजा-पाठ म लगे हे. आज वोला बेल के बड़े-बड़े कांटा ले बने झुलना म बइठारे जाही, जेमा बइठ के राजा ल फूल दे के दशहरा परब ल मनाय के अनुमति देही.
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-अभी नवरात म उपास-धास तो चलत होही जी भैरा?
   -हव जी कोंदा.. माता रानी के किरपा ले पूरा नौ दिन सक जाथौं.
   -अच्छा हे.. कई किसम के रोग-राई मन के नियंत्रण म उपास-धास ह फायदा के होथे.. अउ फरहार म का लेवत होबे?
   -चोबीस घंटा म एक पइत साबुदाना, सिंघाड़ा जइसन जिनिस मन ला ले के पानी उनी पी लेथौं जी संगी.
   -स्वास्थ्य विशेषज्ञ मन के कहना हे के साबुदाना अउ सिंघाड़ा जइसन जिनिस के बलदा मिलेट्स माने हमर इहाँ जेन कोदो, कुटकी, रागी जइसन मोटहा अनाज मिलथे ना अइसन मन के उपयोग करे जाय त ए ह शरीर खातिर जादा फायदा के हो सकथे.
   -अच्छा!
   -हव.. अइसने भाजी-पाला मन म घलो कोंहड़ा, रखिया जइसन फाइबर वाले जिनिस मन के उपयोग करे म कतकों किसम के रोग-राई मन घलो नियंत्रण म रइही.
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-हमर छत्तीसगढ़ म अइसन कतकों परंपरा हे, जे मन देश के अउ कहूँ भाग म देखब म नइ आय जी भैरा.
   -ए बात तो सिरतोन आय जी कोंदा.. अब देखना बस्तर दशहरा के ही विधान मनला काछन देवी ले कुवांर अमावस के अनुमति मिले के  बाद कुवांर अंजोरी एकम माने नवरात के पहला दिन जोगी बिठाई के रसम करे गिस.
   -अच्छा..
   -हव.. एमा सिरहासार भवन म 6 ×3 फुट के गड्ढा कोड़े जाथे, जेमा हल्बा जनजाति के लोगन ल मावली देवी के पूजा करे के बाद बइठारे जाथे. ए बछर आमाबल गाँव के 22 बछर के रघु ल जोगी के रूप म बइठारे गे हे, जे ह पूरा 9 दिन तक योगासन के मुद्रा म उही गड्ढा म बइठे रइही.
   -वाह भई.. अद्भुत हे हमर इहाँ के परंपरा अउ एकर साधक मन. जय मावली दाई.
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-पंचमी जोहार जी भैरा.
   -जोहार जी कोंदा.. आज पंचमी के तुमन कोन माता के पूजा करत हौ जी?
   -हमन तो इहाँ के जेन पारंपरिक पूजा विधि, प्रतीक अउ मान्यता हे तेकरे मुताबिक पूजा-सुमरनी करथन संगी.
  -अच्छा.. माने नौ दिन ले नौ माता मन के जेन परंपरा हे तेकर मुताबिक नइ करौ?
   -हमर इहाँ के परंपरा म सतबहिनिया माता के पूजा परंपरा हे. हमन पुरखौती बेरा ले इही दाई मन के पूजा- सुमरनी करत आवत हन. हाँ.. फेर अब कतकों लोगन जेन इहाँ के मूल परंपरा ले परिचित नइए वो मन जरूर नौ माता मन के मान्यता के मुताबिक चल लेथें.
   -अच्छा हे... सम्मान तो सबो के करना चाही जी, फेर जिहां तक जिए के बात हे, त सिरिफ अपन मूल संस्कृति ल ही जीना चाही.
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-दाई-ददा के सेवा ल भगवान के सेवा मान के उंकर जतन करे के बात ल पोथी-पतरा म पढ़े-सुने बर मिल जावत रिहिसे जी भैरा, फेर अभी मैं हमर गाँव के एक सीमा नॉव के नोनी ल घलो अपन सियान के देखरेख अउ सेवा खातिर अपन जम्मो सांसारिक सुख-सुविधा ल छोड़ के अइसने सेवा-जतन करत देखे हौं.
   -भागमानी मनला अइसन शिक्षा अउ संस्कार मिले रहिथे जी कोंदा. अपन निजी मोह-माया ले उबर के दाई-ददा के सेवा ह सबले बढ़ के परमारथ अउ देव सेवा के कारज होथे, एकरे सेती तो आज घलो हमन श्रवण कुमार के नॉव ल जानथन न.
   -हव जी.. भगवान गणेश ल घलो तो अपन महतारी-सियान ल पूरा दुनिया मान के उंकर तीन भांवर किंजर के पूजा करे के सेती प्रथम पूज्य के आशीर्वाद मिले रिहिसे.
   -सिरतोन आय संगी.. अपन जीयत दाई-ददा के सेवा ह सबो जिनिस खातिर फलदायी होथे. अइसन सेवा करइया के नॉव ह जुग-जुग बर अम्मर हो जाथे.
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-ए बछर हमर गाँव म के घर जंवारा बोए हें जी भैरा?
   -याहा... ए कुवांर नवरात म कहाँ जंवारा बोथें जी कोंदा.. हाँ.. चइत वाले म बोथें भई बदना बदे वाले मन.
   -अरे हव जी.. मोरो चेत ह कती अभर गे रिहिसे ते.
   -हमन लइका रेहेन त जंवारा सरोए के दिन भंइसासुर बनन तेकर सुरता हे नहीं जी?
   -रइही कइसे नहीं संगी.. मार तरिया के चिखला-माटी ल देंह भर बोथ के तरिया म जामे नार-ब्यार मनला मुड़ म बोहे राहन अउ जंवारा सरोए बर जावत लोगन के आंवर-भांवर  कूदत राहन.
   -हव जी.. हमर इहाँ के कतकों परंपरा मन शास्त्र आधारित परंपरा ले अलगेच हे भई.. दुर्गा दाई ह जेन भंइसासुर (महिषासुर) के संहार करथे, हमर इहाँ वोकरो मान-गौन अउ पूजा करे जाथे.
   -हव जी.. जंवारा सरोए के बेर तो लोगन भंइसासुर बनबे करथें, इहाँ के कतकों गाँव मन म भंइसासुर (भंइसादेव) के देवता के रूप म पूजा घलो करे जाथे. उंकर निर्धारित ठउर  म हूम-धूप दिए जाथे.
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-छत्तीसगढ़ राज स्थापना दिवस के बधाई जी भैरा.
   -तहूं ल बधाई जी कोंदा, हमर नवा राज सिरजन दिवस के.
   -मन म खुशी तो होथे संगी अलग छत्तीसगढ़ राज बने के, फेर हमर पुरखा मन के सपना ह आजो अधूरा जनाथे.
   -कइसे भला?
   -हमर पुरखा मन ह भाषाई अउ सांस्कृतिक अस्मिता ऊपर आधारित अलग छत्तीसगढ़ राज के सपना देखे रिहिन हें. उन चाहत रिहिन हें, के इहाँ भाखा अउ संस्कृति के स्वतंत्र पहचान बनय, फेर अइसन आज राज बने दू दशक बीते के बाद घलो नइ हो पाय हे.
   -हाँ जी अइसन तो महू ल जनाथे. आने-आने राज म लिख के लाने गे पोथी-पतरा मनला ही इहाँ के सांस्कृतिक चिन्हारी के मापदंड के रूप म हमर आगू म रखे जाथे. भाखा के घलो इही घ हाल हे.
   -हव जी संगी अउ जब तक अइसन होवत रइही.. हमर भाखा संस्कृति के स्वतंत्र पहचान नइ बनही तब तक अलग छत्तीसगढ़ राज निर्माण के अवधारणा अधूरा ही रइही.
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-एक बात मोला समझ नइ आय जी भैरा, मैं देखथौं ते कतकों झन अइसन साधू, संत अउ तपस्वी हें, जे मन कोनो न कोनो किसम के शारीरिक दुख-पीरा म बूड़ेच असन दिखथें. भई हमर असन लंदर-फंदर मनखे के अइसन तकलीफ ह तो फभ जथे, फेर तपस्वी मन घलोक अइसनेच म अभरे रहिथें.
   -हाँ.. अइसन तो होथेच जी भैरा.. एला अध्यात्म म प्रारब्ध भोग कहिथें.
   -प्रारब्ध भोग?
   -हहो.. अउ एला पूरा करे बिना कोनो ल मोक्ष या कहिन सद्गति नइ मिलय.
   -अच्छा... ताज्जुब हे भई!
   -ए ह वो तपस्वी मन के पाछू जनम मन म कोनो भी कारन ले होय गुण-दोस मनला बराबर करे के एक प्रक्रिया होथे, जेला अध्यात्म के भाखा म प्रारब्ध भोग कहे जाथे. मान ले वो तपस्वी ह ए जनम म ए प्रारब्ध भोग ल पूरा नइ करही, त वोला फेर दूसर जनम ले बर लागही, फेर वोला पूरा करेच बर लागही.
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-कातिक जोहार जी भैरा. कते डहार ले आवत हस?
   -जोहार जी कोंदा.. एदे लइका मनला आज ले कातिक नहाए ले जाही कहिके उठा के आए हौं. हमन लइकई म कातिक नहाए ले जावन तेकर सुरता हे नहीं जी संगी?
   -रइही कइसे नहीं संगी.. पारा भर के नोनी मनला मुंदरहा ले उठावन तहाँ तरिया जावन.
  -हव जी उंकर मन बर फूल अउ बेलपान तो हमीं मन सकेलन, फेर उंकर मन के नाहवत ले तरिया पार के चिरी-उरी अउ सुक्खा असन लकड़ी मन ल सकेल के भुर्री बारन.
  -सही आय संगी, नोनी मन नहा-धो के भुर्री ताप लेवय तहाँ ले महादेव के पूजा करय अउ भोग-परसाद चघावय, ते मनला तो फेर हमीं मन झड़कन ना.
   हव जी.. अउ संझा बेरा जब नोनी मन सुवा नाचे बर जावंय, तब वो मनला मिले चॉंउर-दार ल धरे बर झोला घलो तो हमीं मन धरे राहन ना.
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-अब देवी देवता मनला दे जाने वाला बलि प्रथा म थोक-बहुत बदलाव अउ कमी आवत असन जनाथे जी भैरा. काली महाअष्टमी परब के दिन ऐतिहासिक बस्तर दशहरा के बेरा म निशा जात्रा म रतिहा 12 बजे 12 बोकरा मन के बलि दे गइस. पहिली न इहाँ रियासत काल के बेरा म अतके अकन भैंसा के बलि दे जावय.
   -सबके अपन परंपरा अउ मान्यता होथे जी कोंदा, फेर मोला लागथे के देवी-देवता मनला सात्विक पूजा ले घलो मनाए जा सकथे. हमर गाँव म पहिली मातर परब म बोकरा अउ कुकरा मन के बलि दे जावय, अब बोकरा के बलदा कोंहड़ा रखिया मनला काट के काम चला लेथें.
   -अच्छा हे संगी.. हमर रायपुर के बंगाली समाज वाले मन अभी अष्टमी के दिन काली माता के पूजा म सादा रंग के कोंहड़ा अउ कुसियार के पूजवन देइन हें. अइसने सबो समाज के लोगन मनला सोच-विचार करत सात्विकता डहर बढ़ना चाही.
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-लोगन ल अगुवा बन के मुड़ म पागा खापे के गजब साध रहिथे जी भैरा.
   -ए तो मानव स्वभाव आय जी कोंदा.. कोनो पगबंधी के पागा अउ पगरईती के पागा के अंतर ल भले नइ समझय, तभो ले अस्मिता के रखवार होय के रूप म अपन आप ल सबले बड़का गुनिक अउ सबले जादा योग्य मानथे.
   -हव जी संगी.. महूं ल अइसने जनाथे, तभे तो उन ए बात ल समझ नइ पावंय के पगबंधी कोनो मनखे के मरे के बाद दशगात्र के दिन वोकर बड़े बेटा या उत्तराधिकारी के मुड़ म खापे जाथे, जबकि पगरईती के पागा वोकर मुड़ म खापे जाथे, जे ह कोनो बड़का बुता या कारज के सियानी करे खातिर सबले योग्य अउ गुनिक जनाथे.
   -हव जी.. हमन ल अइसन नासमझ लोगन के सियानी ले बांच के रेहे बर लागही.. अइसन मन के हाथ म अपन अस्मिता ल रखवारी ल सौंपे नइ जा सकय.
   -सही आय संगी.. सड़क म वानर सेना बरोबर उछल कूद करना आने बात आय अउ कोनो गंभीर विषय म कारज करना आने बात.
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-अब जिनगी के संझौती बेरा म धरम के कुछू ठोसहा बुता करे के मन होथे जी भैरा.
    -ए तो बने बात ए जी कोंदा.. अउ मोला लागथे के लोगन ल धरम के नॉव म बगरे डर, अज्ञानता अउ अंधविश्वास ले बचाय के उदिम ह सबले ठोसहा बुता हो सकथे.
   -वो कइसे?
   -चाहे कोनो धरम-पंथ हो सबो म लोगन ल देवी-देवता के नॉव म डरवाए, भरमाए अउ अंधविश्वास म बोरे के जादा चलन देखे ले मिलथे. अइसे करबे त अइसे हो जाही अउ अइसे नइ करबे त दइसे. भइगे.. अतके के नॉव ले ही लोगन चमकथें-झझकथें अउ उंकर भंवरलाल म अरझत जाथें, अपन सरी जिनिस अउ जिनगी ल उंकर बहकावा म खिरोवत जाथें.
   -तोर कहना वाजिब आय संगी.. देवी-देवता मन कोनो दुष्ट-चंडाल नइ होय जेमा उन फोकटे-फोकट कोनो ल दुख-तकलीफ या पीरा देहीं. उन तो लोक कल्याण अउ सुख-शांति के पोषक होथें. असल म ए तो जे मन देवी-देवता मन के आड़ म अपन रोजगार चलाथें ना वोकर मन के बगराय भरम-जाल होथे. आज जरूरी हे, लोगन ल अइसन भरम जाल ले निकाले जाय. आज के बेरा म इही सबले बड़े धरम कारज आय.
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-बछर 2019 म 3 नवंबर के राजधानी रायपुर के साइंस कॉलेज मैदान म आयोजित राज्योत्सव म हमर राज के राजगीत 'अरपा पैरी के धार... ' ल राजगीत घोषित करे गे रिहिसे जी भैरा.. तैं जानथस आज हमन एला जेन धुन म सुनथन वोकर पहिली एला दू अउ धुन म गाये जावत रिहिसे.
   -अच्छा.. बताना जी कोंदा.
   -डॉ. नरेंद्र देव वर्मा जी जब ए गीत ल लिखिन तब उन खुदेच एला अपन बनाए धुन म गावंय. पाछू जब उन 'सोनहा बिहान' संग जुड़िन त वो बखत उहाँ के गायक केदार यादव ह एमा थोड़ा परिमार्जित कर के अपन ढंग ले गाये लगिस. बाद म जब शास्त्रीय संगीत के जानकर गोपाल दास वैष्णव जी के हाथ म ए गीत आइस, त उन एकर धुन म अउ परिमार्जित करीन. ए नवा परिमार्जित धुन ह सोनहा बिहान के सर्जक महासिंह चंद्राकर जी ल गजब सुहाइस, त फेर वो ह एला केदार यादव के बलदा ममता चंद्राकर जगा मंच म गवाए लगिन, फेर आगू चल के ममता के ही आवाज म एकर रिकार्डिंग होइस, जे आज हम सब के कंठ म राजगीत के रूप म बिराजे हे.
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-शरद पुन्नी के आते मौसम म कुंवर जुड़हा के आरो मिले ले धर ले हे जी भैरा..
   -हव जी कोंदा.. मोर घर तो अब ए चरमस्सी जुड़हा म गोरसी तापे के उदिम चालू हो जाही.
   -हाँ भई सियाना देंह-पॉंव खातिर जोखा तो करेच बर लागथे. महूं ह ए चार महीना म जुड़हा बानी के खान-पान ले बाॅंच के रहिथौं.
   -फेर ए जुड़हा बेरा ह जवनहा मन बर देंह-पॉंव ल तंदरुस्त राखे के बढ़िया बेरा होथे जी संगी.. हमन जब वो अवस्था म रेहेन तब रोज मुंदरहा ले उठन अउ बस्ती के बाहिर म पैंठू म जाके कसरत करन, तहाँ ले बेरा के उवत ले कबड्डी नइते अउ काॅंही खेल खेलतेच राहन.
   -हर उमर के अलग उदिम होथे जी संगी.. अब हमर बर वो सब हा तइहा ल बइहा लेगे बरोबर होगे हे.
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Wednesday 18 October 2023

कोंदा ह बोलथे अउ भैरा ह सुनथे आखिर कइसे?

कोंदा ह बोलथे अउ भैरा ह सुनथे .. आखिर कइसे?

   सोशलमीडिया म 'कोंदा भैरा के गोठ' शीर्षक ले सरलग लिखत धारावाहिक ल लगभग आठ महीना होगे हे. ए धारावाहिक ल जेन दिन ले, माने 26 फरवरी'23 ले लिखे के शुरू करेंव, उहिच दिन ले लोगन ए पूछत रहिथें, के एमा के कोंदा ह बोलथे कइसे अउ भैरा ह सुन कइसे डारथे?

   असल म ए धारावाहिक के अंतर्गत आने वाला दूनों पात्र कोंदा अउ भैरा ल लोगन सामान्य अर्थ के अंतर्गत देख लेथें, तेकर सेती उनला भोरहा हो जाथे, के दू दिव्यांग मनखे (कोंदा भैरा) आपस म गोठ-बात कइसे कर लेथें? उनला एकर नामकरण खातिर ताज्जुब होथे.

   फेर जब मैं ए धारावाहिक के पात्र मन के नॉव धरेंव, त मोर मन म ए मन दिव्यांग मनखे के प्रतीक नइ रिहिन, भलुक ए मनला मैं इहाँ के आम आदमी के प्रतीक के रूप म रखेंव, जेन हमर गाँव-गंवई म आम रूप म प्रचलित रहिथे.

   हमर गाँव-गंवई म एक परंपरा हे. आप सबो झन वोकर ले चिन्हारी राखत होहू. हमर इहाँ के कतकों समाज म भौजी, काकी या मामी के नता वाली मन अपन देवर, भतीजा या भांचा आदि के नॉव नइ लेवंय. अइसन बेरा म वोमन देवर, भतीजा या भांचा ल संबोधित करे खातिर कोंदा, भैरा, लेड़गा, कनवा, खोरवा, ठेमना या बिलवा जइसन कतकों अकन दुलार के नॉव रख लेथें. अउ जब वो मन अपन अइसन नता मनला कोंदा भैरा जइसन नॉव ले हुंत कराथें या संबोधित करथें, त उंकर मन के संगे-संग गाँव के अउ आने लोगन घलो उनला उही नॉव ले संबोधित करे लग जाथें. तहाँ ले फेर उहीच नॉव ह वो मनखे के 'निक नेम' के रूप धारण कर लेथे, वोकर डहर चलती के नॉव बन जाथे.

    ए निक नेम या डहर चलती के नॉव ह वोकर उपहास के या ताना मारे के नॉव नइ होय, भलुक वो ह वोकर मया अउ दुलार के नॉव होथे. एकरे सेती वो नाॅव विशेष ले न तो बोलने वाले ल कुछू अलकरहा गोठियाय कस जनावय, अउ न ही सुनने वाले ल.
-सुशील भोले-9826992811

Sunday 15 October 2023

सुंदर लाल कौशिक सुरता

5 जनवरी जयंती म सुरता//
दान-धरम के सउंहे रूप सुंदर लाल जी कौशिक

छत्तीसगढ़ के पावन भुइयाॅं पावन इहाँ के लोग
महादेव कस औघड़ दानी कतकों संग बनगे संजोग
धन-दौलत तो देबेच करीन सउंहे देंह घलो कर दीन दान
एकरेच सेती पावत हें अब उन इहाँ देवता बरोबर मान

    छत्तीसगढ़ दान-पुन्न अउ सेवा-धरम के भुइयाॅं आय. एकरे सेती इहाँ के कण-कण म नर ल नारायण मान के दान-धरम करत लोगन के पबरित अउ महान रूप देखे बर मिल जाथे.
    ए बात ल तो आज सबो जान डारे हवंय के पूरा दुनिया म सिरिफ छत्तीसगढ़ ही ह एकमात्र अइसन भुइयाॅं आय जिहां दान देवई अउ लेवई ल परब के रूप म मनाए जाथे. एकरे सेती ए दान के परब 'छेरछेरा' ह इहाँ के लोगन के भीतर संस्कार  के रूप म संचरे असन जना जाथे.
    हमर इहाँ इतिहास के सबले बड़का दानी के रूप म राजा मोरध्वज ल जानथन, जेन ह अपन बेटा ताम्रध्वज ल सउंहे आरा म दू फांकी काट के परीक्षा लेवत भगवान कृष्ण के आगू म मढ़ा दिए रिहिन हें.
   आज के बेरा म घलो अइसन औघड़ दानी के रूप हमला बेरा-बेरा म देखे ले मिलत रहिथे. हमन इहाँ दाऊ कल्याण सिंह, सेठ किरोड़ी मल, नगरमाता बिन्नीबाई सोनकर जइसन मनला देखत आए हन. दान-धरम अउ नर ल नारायण के रूप मान के सेवा करइया के इही रद्दा म रेंगइया सुंदर लाल कौशिक जी ल घलो अभीचे देखे हावन.
   बछर 1956 म 5 जनवरी के दिन गाँव कमरीद जिला जांजगीर चांपा के किसान सुदर्शन प्रसाद जी कौशिक अउ महतारी राधा देवी जी के घर अवतरे सुंदरलाल जी संग मोर साक्षात भेंट तो नइ हो पाइस, फेर उंकर गुनवंतीन बेटी ऋतंभरा कौशिक जी के माध्यम ले उनला जाने-समझे के सौभाग्य मिलिस.
   सुंदर लाल जी दान-धरम के कारज के संगे-संग लोगन म संचरे अज्ञानता अउ भरम के मायाजाल ले घलो लोगन ल निकाले के उदिम करत राहंय. उन अनाथ लइका मन के बारे म बगरे भरम ले निकाले खातिर खुदे अनाथ लइका मन संग राहंय, उंकरे रांधे-चुरोए भात-बासी ल खावंय अउ उंकरेच मन द्वारा बोरिंग या कुआँ-बावली ले लाने पानी ल पीयत राहंय. उनला अपन सग लइका ले बढ़ के मया अउ दुलार करंय. नान्हे लइका मनला अपन संस्था 'माँ भगवती देवी वात्सल्य मंदिर' कमरीद म राख के सेवा करंय.
   सुंदर लाल जी तीन भाई अउ दू बहिनी म जेठ रहिन. जब उन 10 बछर के रहिन तभे उंकर सियान सरग सिधार दिए रहिन हें. घर के जेठ बेटा होय के सेती घर के जम्मो जवाबदारी तब उंकरेच ऊपर आगे रिहिसे.
   खेती-खार तो सुंदर लाल जी मन के भरपूर रिहिस, फेर वो बखत धान-पान के ऊपज ह आज असन नइ हो पावत रिहिसे, तेकरे सेती उनला परिवार के भरन-पोसन खातिर आने ठउर म जा के काम-बुता करे बर लागिस.
   अपन गाँव कमरीद म उन सुंदर गौंटिया के नॉव ले जाने जावंय. लइकई उमर ले उन रामायण गाये अउ प्रवचन करत रिहिन. लोगन उंकर प्रतिभा ल देख के मोहित हो जावंय. उंकर रामायण के सुघ्घर प्रस्तुति खातिर कतकों जगा ईनाम अउ सम्मान मिलत राहय.
     सुंदर लाल जी के स्कूली पढ़ई गाँव अफरीद म होइस, तेकर पाछू फेर जांजगीर म दसवीं तक पढ़ीन. कुछ बछर तक उन गाँव जोबी म राहत कृष्ण लीला म भाग लेवत रिहिन. उंकर बिहाव 16 बछर के उमर म गाँव नैला के नीरा देवी संग होए रिहिसे.
   सुंदर लाल जी के सियान धार्मिक स्वभाव के रिहिन, तेकर सेती उहू मनला विरासत म अइसन गुन मिले रिहिसे. बछर 1978 म सुंदर लाल जी गायत्री परिवार संग जुड़िन तहाँ ले उन सामाजिक कारज म पूरा जुड़गे रिहिन. बछर 1980 म पं. श्रीराम शर्मा जी ले दीक्षा ले के ए संस्था के प्रचारक बनगे रिहिन. इहाँ ले फेर उंकर उल्लेखनीय कारज शुरू होइस.
    पहिली गाँव कमरीद म प्रायमरी तक ही स्कूल रिहिस, जेला आगू बढ़ावत उन अपन बेटा स्व. जगदीश प्रसाद कौशिक के नॉव ले मिडिल तक करवाईन. अपन महतारी स्व. राधा देवी के नॉव ले आचार्य श्रीराम शर्मा हाई एवं हायर सेकेंडरी स्कूल अपन खुद के जमीन बेच के करवाईन अउ बछर 1990 ले संचालित घलो करत रिहिन.
   अपन सियान स्व. सुदर्शन प्रसाद जी के नॉव म गायत्री शक्तिपीठ चांपा के मंदिर ऊपर तीन ठन कुरिया बनवाईन. माता भगवती देवी वात्सल्य मंदिर कमरीद के नॉव ले अनाथालय बनवाईन, जिहां लइका मनला पढ़ा लिखा के बर-बिहाव घलो करवाईन. उन बछर भर कुष्ठ निवारण संघ कात्रे नगर चांपा  म रहि के सेवा घलो करीन.
   कुर्मी समाज के फिरका परस्ती ल टोर के अपन बेटा बद्रीविशाल के बिहाव आने फिरका ले करवा के एक मिशाल पेश करीन. अपन गाँव के तीन ठन तरिया मनला कोड़वा के मुक्ति धाम, शौचालय, चौरा आदि बनवाईन. गरीब निवाज सेवा समिति के माध्यम ले गरीब मन के मदद जिनगी भर करीन. पर्यावरण खातिर सचेत राहत उन सौ ले आगर पौधा लगाईन, जे मन आज सउंहे रूख बन के उंकर महिमा के गान करत हें.
   सांकरा म विश्वविद्यालय खातिर लाखों रुपिया देइन त चिल्हाटी म हाई स्कूल के बढ़ोत्तरी खातिर घलो आर्थिक सहयोग देइन संग म अपन सुवारी दूनों तन मन धन ले कारज करत रिहिन.
   बछर 2020 म अपन घर म यज्ञ करवा के परिवार वाले मन के आगू म अपन देहदान के घोषणा करत जीतेच जीयत अपन खुद के श्राद्ध तर्पण घलो कर डारे रिहिन. देह दान करे के संग ही सुंदर लाल जी अपन जीवन दान घलो करे रिहिन. देहदान के बाद तीन बछर तक उन घर-परिवार के त्याग कर के शक्तिपीठ अउ प्रज्ञापीठ मन म समयदान करत जनजागरन के कारज करत रिहिन.
   अपन देहत्याग के पाछू कोनो किसम के भोज नइ करवाए के संग कोनोच किसम के क्रिया-क्रम करे बर बरजे रिहिन हें. उन चेताय रिहिन हें के अगर कुछु देना ही हे, त गरीब लइका मन बर जेन फंड बनाए हे, वोमा दान कर देहू या फेर वृक्षारोपण जइसन लोकहित के कारज करे बर कहे रिहिन हें.
  लइका मन के विकास खातिर बाल संस्कार शाला के स्थापना करे रिहिन हें, जेकर संचालन खातिर बाल आचार्य के रूप म विवेकानंद कौशिक अउ प्रज्ञानंद कश्यप ल जिम्मेदारी दे रिहिन हें. युवा मन के विकास खातिर घलो वो मन युवा जागरण शिविर चलावंय उंकर संगठन बनाईन, जेकर मुखिया बद्रीविशाल कौशिक ल बनाईन.
   महिला मनला आगू बढ़ाय खातिर 'सविता महिला मंडल' के गठन कर एकर जवाबदारी ऋतंभरा कश्यप ल देइन. अइसने चांपा के गायत्री शक्तिपीठ म अपन परिवार वाले मन जगा आर्थिक सहयोग करवा के गजब अकन निर्माण कारज करवाए रिहिन हें.
   अनाथ लइका मन के पालन पोषण अउ विकास खातिर अपन एक एकड़ जमीन ल ट्रस्ट ल दान कर दिए रिहिन हें. गाँव के चहुंमुखी विकास खातिर घलो उन कतकों किसम के आयोजन अउ कारज करतेच राहंय.
   नर ल ही नारायण के सउंहे रूप मान के उंकर सेवा करत सुंदर लाल कौशिक जी 27 फरवरी 2023 के अपन नश्वर देह के त्याग कर के अपन सूक्ष्म शरीर ल माँ गायत्री के चरण म समाहित कर देइन. उंकर सुरता ल पैलगी जोहार.
-सुशील भोले
संजय नगर, रायपुर
मो/व्हा. 9826992811

Wednesday 11 October 2023

कोंदा भैरा के गोठ-7


-कतकों लोगन अभी घलो हमर महतारी भाखा छत्तीसगढ़ी ल बोली आय कहिथें जी भैरा.
  -वो मनला भाखा के मानक के जानकारी नइ होही जी कोंदा.
   -कइसे भला?
   -जे भाखा के माध्यम ले हम अपन मन-अंतस के बात ल कोनो भी दूसर मनखे ल जस के तस समझा सकन वो सब भाखा ही कहाथे.
   -फेर लोगन तो जेकर व्याकरण अउ लिपि होथे, तेने ल भाखा कहे जाथे कहिथें.
   -जिहां तक व्याकरण के बात हे, त छत्तीसगढ़ी के व्याकरण ह बछर 1880 ले 1885 के बीच म काव्योपाध्याय हीरालाल चंद्रनाहू जी के द्वारा लिखे गे रिहिसे, जेला तब के बड़का व्याकरणाचार्य सर जार्ज ग्रियर्सन ह बछर 1890 म छत्तीसगढ़ी अउ अंगरेजी म समिलहा छपवाए रिहिसे. अउ तैं जानथस संगी?
   -का?
   -तब तक हिंदी के व्याकरण नइ बन पाए रिहिसे. हिंदी के व्याकरण ह बछर 1921 म कामता प्रसाद गुरु के माध्यम ले आइस.
   -अच्छा.. माने छत्तीसगढ़ी के व्याकरण ह हिंदी ले पहिली बने हे. फेर लिपि तो नइए न छत्तीसगढ़ी के?
   --कोनो भी भाखा खातिर लिपि के होना जरूरी नइए. हिंदी के लिपि कहाँ हे? एला तो नागरी लिपि म लिखे जाथे. संस्कृत, मराठी आदि ल घलो नागरी म ही लिखे जाथे. आज दुनिया भर म राज करत अंजरेजी के अपन खुद के लिपि नइए, उहू ल रोमन लिपि म लिखे जाथे. हाँ, छत्तीसगढ़ी के पहिली लिपि रहिसे जेला हर्ष लिपि कहे जाय, इहाँ के जुन्ना मंदिर मन म वोला अभी घलो शीलालेख के रूप म देखे जा सकथे.

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-राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मोहन भागवत ह जब तक समाज म भेदभाव हे, तब तक आरक्षण ल चालू रहना चाही काहत हे जी भैरा.
    -बने तो काहत हे जी कोंदा. काबर ते आरक्षण ह समाज म बनाए गे ऊंच नीच वाले सामाजिक व्यवस्था के सेती पिछवाए लोगन ल बरोबरी के ठउर म लाने खातिर बने हे, अउ जब तक समाज म बरोबरी के दर्शन नइ हो जाही तब तक ए आरक्षण ल चालू रहना चाही.
   -हव जी हजारों बछर ले चलत भेदभाव ह आरक्षण के नॉव म सिरिफ कुछ बछर के सहुलियत म भरा नइ पावय. मोहन भागवत के कहना वाजिब जनाथे.
    -हव जी.. जब तक सामाजिक भेदभाव कोनो न कोनो रूप म दिखत हे तब तक आरक्षण रहना चाही. काबर ते एकर निर्धारण आर्थिक असमानता के सेती नहीं, भलुक सामाजिक असमानता के सेती होय हे. संग म वो ग्रंथ मनला घलो प्रतिबंधित करना चाही, जेकर मन के सेती सामाजिक असमानता ह जड़ खोभे हे.

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-कहाँ चले जी भैरा.. चुकिया-पोरा धर के?
   -एदे गा अभी लइका मन बर नदिया बइला म डोरी बांध के खेत डहार जावत हौं, तैं नइ जावस जी कोंदा खेत म पोरा चघाए बर?
   -जाए बर तो महूं जाहूं जी.. फेर मोला एक बात समझ नइ आवय.. हर बछर पोरा परब के दिन पोरा म रोटी-पीठा भर के हमन खेत म मढ़ा के हूम-धूप काबर देथन?
   -अतको ल नइ जानस बइहा.. हम अपन धान के फसल ल सधौरी खवाथन जी आज के दिन.
  -फसल ल सधौरी?
   -हहो.. जइसे नवा बेटी-माई मन पहिली बेर गरभ धारण करथें त सात महीना म वो मनला सधौरी खवाथन नहीं.. ठउका वइसने हमर खेत म लहरावत खड़े अन्नपूर्णा दाई ह घलो जब पोठरी पान धरथे, त उहू ल सधौरी के नेंग करे खातिर पोरा म रोटी-पीठा धरके खेत म मढ़ा के हूम-धूप देथन जी, इही ह तो हमर मन के पुरखौती परंपरा आय.

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-जहाँ चुनाव लकठाथे, तहाँ ले एक-दूसर के धरम-पंथ के कमी-खनगी बताए-देखाए के चालू हो जाथे जी भैरा.
    -अतकेच भर नहीं जी कोंदा, कतकों लोगन तो वो धरम-पंथ ल पूरा के पूरा बीमारी अउ अछूत असन घलो कहि देथें.
   -फेर अइसन बात ह फभिक नइ हो सकय जी संगी. मोला लागथे, ए ह अज्ञानता अउ अज्ञानता ले बढ़ के कुंठा के सेती हो सकथे.
   -हव जी.. कोनो भी धरम-पंथ ह चुकता हीने के लाइक नइ हो सकय. हाँ भई.. वोमा कुछ मान्यता अउ परंपरा ह बेरा के मुताबिक फभिक नइ जनावत होही, वो मन म बदलाव अउ सुधार के उदिम करे जाना चाही. वोकर हीनमान अउ  अलगाव के नहीं.
    -सही आय... मोला लागथे- अब राजनीति के मंच ले धर्म अउ धर्म के मंच ले राजनीति के बात म प्रतिबंध लगाए जाना चाही.

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-एक बात बता जी भैरा.. आज के युग म धरमयुद्ध कइसे लड़े जा सकथे. कोनो ल मारबे-काटबे तब तो सोज्झे फॉंसी म ओरमा दिए जाबे?
   -धरमयुद्ध तो सबो युग म लड़े बर लागथे जी कोंदा. हाँ भई एकर स्वरूप अलग अलग होथे. पहिली राजा मन के बनाय नियम के अंतर्गत रहिके लड़े बर परय. आज के लोकतांत्रिक व्यवस्था म कानून अउ संविधान के अंतर्गत रहि के उहि सब करना हे. आज हम अपन अधिकार, अपन गौरव अउ अपन अस्मिता खातिर लोकतांत्रिक ढंग ले लड़थन, इहू तो हमर धरमयुद्ध ही आय जी.
  -अच्छा..!
  -हहो.. भगवान ह गीता म अइसने बात ल तो धरमयुद्ध कहे हे ना. आज हमन अपन भाखा, संस्कृति, ऐतिहासिक गौरव अउ अस्मिता के सुरक्षा संग बढ़वार खातिर संघर्ष करत हन, ए सबो ह धरमयुद्ध के ही रूप आय. अउ एकर खातिर हमला बिना ककरो मुलाजा करे रद्दा म अवइया जम्मो किसम के अवरोध अउ भरमाय भटकाय के उदिम ल चतवारत आगू बढ़त जाना हे.

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-कहाँ चले जी भैरा.. आज तो खॉंटी श्रमिक सजन बरोबर दिखत हावस?
   -जोहार जी कोंदा.. हव आज श्रम के देवता विश्वकर्मा जी के पूजा कार्यक्रम हे ना हमर कारखाना म.. उंहचे जावत हौं.
  -अच्छा हाॅं.. आज विश्वकर्मा भगवान के जयंती आय ना?
  -अरे नहीं बइहा.. विश्वकर्मा जी के जयंती तो माघ महीना के अंजोरी पाख म तेरस तिथि के आथे.
   -त फेर आज पूजा काबर?
   -आज के ए अंगरेजी तारीख ल सब कल-कारखाना म बुता करइया अउ आने श्रम साधक  मन बर अपन-अपन कार्यस्थल म पूजा करे खातिर जोंगे गे हे. तभे तो ए पूजा दिवस ल अंगरेजी तारीख के हिसाब ले मनाए जाथे. जयंती के रूप म मनाए जातीस त हमर भारतीय काल गणना के मुताबिक माघ अंजोरी तेरस के मनाए जातीस.

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-गणपति जोहार जी भैरा..
  -जोहार जी कोंदा.. कहाँ चले..
   -एदे जी लइका मन आज पंडाल बना के गणपति महराज ल बइठारत हें, तेही कोती जावत हौं.
   -बने बात आय.. फेर आजकाल लइका मन गणपति महराज के पंडाल ल कुछू सिद्धांत विशेष के फैलाव-बगराव बर कम अउ हॉंसी-तमाशा के माध्यम जादा बना डारथें. वोकर मूर्ति घलो ल कइसे आने-आने संग संघार डारथें.
   -हव जी.. गंभीरता अउ मर्यादा नंदाय असन जनाथे, जबकि एकर शुरूआत ह देश ल आजादी देवाय के आन्दोलन म बड़का भूमिका निभाय के रूप म रहे हे.
   -सही आय.. फेर अब तो अइसन पंडाल मन के आड़ म चंदाखोरी, मंद-मउहा अउ डीजे-फीजे संग रंगबाजी के नजारा जादा देखे म आवत रहिथे.
    -सही आय जी.. धरम के झंडा उठइया मनला एती चेत करना चाही, आस्था के नॉव म होवत अइसन चरित्तर ले बचाव करना चाही.

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-ऋषि पंचमी जोहार जी भैरा.. अब तो आज के जमाना म द्रोणाचार्य जइसन गुरु देखे-सुने म घलो नइ आवय जी संगी.
   - जोहार जी कोंदा.. अब के चेला मन घलो तो अर्जुन बरोबर समर्पित अउ सेवाभावी तो नइ मिलय जी संगी.. आधुनिक गुरुकुल म  जतका आथें सब दुर्योधन असन सिरिफ सत्ता प्रेमी मन ही आथें.
   -त अब के लइका मनला सार्थक अउ सही मायने म आदर्श शिक्षा पाए बर का करना चाही?
   -अब तो एके ऊपाय हे संगी- एकलव्य के परंपरा म आगू बढ़ के जिहां-जिहां ले सार अउ सार्थक ज्ञान मिलथे वो मनला खुदे होके बटोरे अउ आत्मसात करे जाना चाही.
  -फेर हर मनखे के जीवन म एक गुरु के होना तो जरूरी होथे कहिथें ना?
   -हाँ.. अध्यात्म म विधिवत एक गुरु बनाय के जरूरत तो होथे, फेर ज्ञान के मामला म सिरिफ वोकरे ऊपर ही आश्रित नइ रहि के जिहां-जिहां ले ज्ञान अउ आशीर्वाद मिलथे सबोच ल अपना लेना चाही.

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-देखत हस जी भैरा.. जब ले महिला आरक्षण बिल ह संसद म पेश होय हे, तब ले हमर इहाँ के सियानीन ह ए बछर के चुनाव ल महिच ह लड़हूं कहिके रोम्हिया दे हे.
   -बने तो आय जी कोंदा.. जब वो मन घर-परिवार ल सुघ्घर असन चला-सम्हाल सकथें, त देश ल काबर नहीं? बपरी मन सूत के उठते छरा-छिटका, गोबर-कचरा ले लेके रात के सोवा परत बेर अपन आदमी के मुरसरिया के खाल्हे म लोटा भर पानी के रखत तक कतेक  जिम्मेदारी के साथ बुता करथें तेला. मोला पूरा भरोसा हे, देश खातिर घलो अइसने करहीं.
   -फेर हमन गाँव के पंचइती म सरपंच-पति ल जम्मो कारज ल करत देखथन अउ बपरी सरपंचइन ह मुड़ ल ढांक के वोकर पाछू म मुस्की ढारत खड़े रहिथे. कहूँ संसद मन म घलो अइसने नजारा देखे बर मिल जाही त?
   - अइसन कुछू नइ होवय संगी.. धीरे धीरे उन सबो ल सीख जाहीं.. अरे एक पइत म नहीं ते दू पइत म, फेर सीखहीं जरूर. देखथस नहीं अब उही सरपंचइन ल दुसरइया बेर म सबो बुता ल कइसे खुदेच कर डारथे तेला.

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- सियनहा दिवस के जोहार जी भैरा.
    -जोहार जी कोंदा. फेर ए सियनहा दिवस का होथे, नवा जिनिस सुनत हौं.
   - वाह.. आज 1 अक्टूबर ल हमरे असन सियनहा मन के देखरेख के चेत कराए बर अंतर्राष्ट्रीय वृद्ध दिवस मनाए जाथे न जी.. फेर का बात हे संगी, तैं तो आजो बने टन्नक दिखत हस? अउ एदे मोला देख.. पेट ह कोहड़ा बरोबर फूलत जावत हे.
   -तोर अउ मोर उमर तो एके हे जी संगी, फेर तोर रहन-सहन मोर म अंतर हे.
   -वो कइसे?
   -तैं ह नौकरी ले रिटायर होगेंव कहिके घर म खुसरे रहिथस. खाथस-पीथस अउ गोड़ लमाके सूते रहिथस. अउ मोला देख, आजो नानमुन काम-बुता ल तो करतेच रहिथौं उप्पर ले मोर लिखना-पढ़ना अउ एती-तेती के कार्यक्रम म जवई ल घलो बढ़ा दिए हौं. अब तहीं बता, अइसे म मोर देंह-पाॅंव बने टन्नक दिखही के नहीं?
   -हव जी, तोर कहना तो सही आय.
   -अरे बइहा इही उमर म सक्रियता अउ जादा जरूरी होथे, जिहाॅं अलाली करे त वो तोला पूरा के पूरा बइठार देही.

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-आज के वैज्ञानिक युग म जइसे-जइसे हमन दुनिया संग जुड़े बर सोशलमीडिया के नॉव म अगास म उड़ियावत हावन.. वइसनेच-वइसे अपन जड़ अउ घर-परिवार ले दुरिहावत जावत हन जी भैरा.
   -कइसे जी कोंदा?
   -देखना.. सोशलमीडिया म कहे बर तो हमर हजारों संगी-साथी अउ हितु-पिरितु हे, फेर जब कभू जर-बुखार म खटिया धर लेथन त कोनो पानी पुछइया तक हमर तीर म नइ राहय.
   -ए बात तो सोला आना आय जी संगी.. अउ हम उही बिन आधार के संगी मन के चक्कर म अपन घर-परिवार सबो ले तिरिया जाथन. उंकर संग न कभू गोठ-बात न कभू मेल-जोल.
   -हव जी.. दुनिया संग जुड़े के नॉव म अगास म उड़ियाना तो ठीक हे, फेर अपन जमीन ल छोड़ के उड़ियाना ह जी के काल आय.

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-लोगन ल ए काहत सुनथन न जी भैरा.. वोला अतेक खवाएंव-पियाएंव फेर नमक नइ लगिस.. नमकहराम निकलगे.. न गुन के होइस न जस के.
   -हाँ.. लोगन कहिथें तो जी कोंदा.. ए तो चलन म हावय.
   -फेर चिकित्सा वैज्ञानिक मन के कहना हे- दूसर के नून ल तो खानच नइ चाही अपन घर-परिवार म घलो कमतीच नून बउरना चाही.
   -अच्छा.
   -हहो.. अभी हमर देश के राष्ट्रीय रोग सूचना विज्ञान अउ अनुसंधान केंद्र ह जेन सर्वेक्षण करे हे, तेकर मुताबिक इहाँ के लोगन रोज अपन खाना म 8 ग्राम नून के उपयोग कर डारथें, जबकि हमर देंह बर 5 ग्राम नून ह पर्याप्त होथे.
   -वाह भई.. हमला तो एकर गमे नइ रिहिसे.
   -चिकित्सा वैज्ञानिक मन के कहना हे- बीपी, स्ट्रोक, गैस्ट्रिक कैंसर जइसन कतकों किसम के रोग-राई अभी जेन देखे ले मिलत हे, तेन सबो ह जादा नून खाए के सेती ही होवत हे.

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-पितर जोहार जी भैरा.
   -जोहार जी कोंदा. तुंहर इहाँ पितर मिलाथौ नहीं जी.
    -हाॅं मिलाथन ना.. इही बहाना पुरखा मनला सुरता-जोहार कर लेथन, नइते काम-बुता के चेत म कहाँ ककरो चेत रहिथे.
    -हव जी सिरतोन आय.. फेर कतकों झन मन पितर मिलई ल अन्ते-तन्ते गोठिया के ढोंग अउ आडंबर आदि कहिथें ना.
   -ककरो कुछू गोठियाए म का होथे संगी.. हम तो ए मानथन के हमर जे पुरखा मनला मोक्ष या सद्गति मिल गे रहिथे, वो मन अपन परब-तिथि म जरूर आथें अउ हमर श्रद्धा के चढ़ावा झोंकथें घलो.
   -हव जी मोरो अइसने मानना हे.. हॉं भई जे मनला देंह छोड़े के तुरते बाद कोनो आने देंह या योनि मिल जाय रहिथे, ते मन भले नइ आवत होहीं, फेर जे मनला जीवन-मरन के फेर ले मुक्ति मिल गे रहिथे, वो मन खंचित आथें. तभे तो कहिथें-
   पुरखा मन बिसरय नहीं,
   लइका भले बिसर जाथे.
   भाव श्रद्धा के झोंके बर,
   देवता सही उन सउंहे आथे.

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-गणपति महराज ल विसर्जित कर के आगेव जी भैरा?
   -हव जी कोंदा.. दस दिन बने श्रद्धा-भक्ति ले पूजा-सुमरनी करेन, तहाँ ले एदे अभीच्चे सरो के आए हन जी.
   -अच्छा.. फेर मोला एक बात समझ म नइ आय जी संगी, के उनला दसेच दिन बर ही बइठार पूजा-सुमरनी काबर करे जाथे?
   -अइसे मान्यता हे, के एक पइत महर्षि वेदव्यास ह गणेश जी ल महाभारत कथा ल सरलग लिखे के अरजी करिस. तब गणेश जी एकेच आसन म बइठ के लिखे लागिन. बिन खाए-पीए अउ बिन नहाए-धोए. एकरे सेती दस दिन के सरलग लिखई म वोकर देंह म धुर्रा-माटी जम गे रिहिसे. जब लिखई बुता झरिस, तब सरस्वती नदिया म जाके गणेश जी नहाइन अउ अपन देंह म जमे धुर्रा-माटी ले मुक्ति पाईन. एकरे सेती हमन हर बछर गणेश चतुर्थी के गणपति महराज ल बइठारथन अउ दस दिन के पाछू कोनो पबरित नदिया-तरिया म सरो देथन जी.

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-नवरात जोहार जी भैरा. शीतला देवाला डहार जावत हावस तइसे जनाथे?
    -माता जोहार जी कोंदा. हव जी संगी ए बछर शीतला दाई के नौ दिन सेवा करे के मोरे भाग जागगे हे.
   -ए तो बने बात आय संगी. भागमानी मनला नवरात म पंडा बनके महतारी के सेवा करे के सौभाग्य मिलथे.
   -हाँ ए तो ठउका आय. फेर मोला एक बात जानना रिहिसे जी.. सबो देवता मन के तो बछर म एके पइत जयंती परब आथे, फेर माता दाई के जयंती परब ह बछर म दू पइत काबर?
   -लोकमान्यता ए हे संगी के माता दाई ह पहिली सती के रूप म अवतरे रिहिसे अउ फेर वोकर बाद म पार्वती के रूप म तेकर सेती हमन माता दाई के जयंती परब ल बछर म दू पइत मनाथन.
   -फेर पोथी-पतरा के जानकर मन बछर म चार बेर नवरात आथे कहिथें, चैत अउ कुवांर के छोड़े दू ठन गुप्त नवरात बताथें.
   -पोथी-पतरा वाले मन कुछू बतावंय या मानंय. हमर लोक परंपरा म तो सिरिफ दूएच आथे- चैत अउ कुवांर म.

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-वइसे तो मैं जात-पात ल मानौं नहीं जी भैरा, फेर देश म बगरे लोगन के मानसिकता ल देखबे त ए ह अमरबेल कस रोज के रोज छछलत असन जनाथे.
   -महूं ल अइसने जनाथे जी कोंदा. अभी देखना बिहार राज म जाति आधारित जनगणना होय हे त चारों मुड़ा ले एकर ऊपर राजनीतिक तिरिक-तिरा चालू होगे हे.
   -हव जी.. अभी प्रधानमंत्री ह हमर बस्तर म आके कहि दिस के ए देश म गरीबी ह इहाँ के सबले बड़का जाति आय.
   -ए तो वोकर धरम के नॉव म बना के राखे गे वोट बैंक ल बचा के राखे खातिर आय संगी. ए मन नइ चाहय के लोगन धरम के एकमई झंडा ल छोड़ के अलग-अलग जाति के झंडा धर लेवंय.
   - महूं ल अइसने जनाथे जी.. सिरिफ अमीरी-गरीबी ह जाति के मानक होतीस, त इहाँ के उच्च जाति के गरीब मन निम्न जाति के गरीब माने जाने वाला मन संग रोटी-बेटी के संबंध ल हरहिंछा होके बनावत नइ जातीन? फेर ए जगा अमीरी गरीबी के बदला कुल-जात काबर देखे जाथे?

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-छत्तीसगढ़ी भाखा ल कक्षा 1 ले कक्षा 8 तक पढ़ई के माध्यम बनाय खातिर जेन हाईकोर्ट म याचिका दायर करे गे हवय तेमा हाईकोर्ट ह याचिका ल छत्तीसगढ़ी भाखा म का कहिबो कहिके पूछे हवय जी भैरा.
   -जिहॉं तक याचिका शब्द के बात हे, त याचिका माने याचना करना या मॉंगना बर गोहराना या केलौली/गेलौली करना जइसन वैकल्पिक शब्द के उपयोग करे जा सकथे जी कोंदा. फेर मोला लागथे अभी अइसन किसम के जतका भी तकनीकी शब्द हे, वो मनला जस के तस लिए जा सकथे. छत्तीसगढ़ी के गुनिक मन के बीच अभी जेन गोठबात चलत हे, तेमा अइसन निर्णय लिए गे हवय के कोनो भी वाक्यांश ल छत्तीसगढ़ी म तो होना चाही. फेर वोमा हिंदी, अंगरेजी जइसन आने भाखा ले आने वाला शब्द मनला बिना टोर-फोर के जस के तस बउरे म कोनो किसम के अनफभिक नइ होही.
   -तोर कहना महूं ल वाजिब जनाथे. अब हमन टेलीविजन, कम्प्यूटर जइसन शब्द मनला जस के तस बउरथन नहीं. मोला लागथे के जेन शब्द मन आम बोलचाल म हवय, वोकर मन के अनावश्यक अनुवाद या रूपांतरण ले बॉंचे जाना चाही.

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-कहाँ चले जी भैरा.. आज तो गजब चिक्कन-चॉंदन अस जनावत हस?
-शहर कोती जावत हौं जी कोंदा, आज कवि सम्मेलन होवइया हे ना.. चल तहूं चलबे ते..
   -वइसे कवि सम्मेलन सुने तो गजब दिन होगे हे जी, आज कोन-कोन आवत हे ते?
   -वाह.. देश के जतका नामी हास्य कवि हें सबो सकलावत हें.
   -अरे ददा रे.. हास्य वाले मन! त फेर तहीं जा संगी, मोला हाहा-भकभक जमय नहीं, अउ सबले बड़े बात मैं अइसन मनला कवि मानौं नहीं.
   -त कइसन ल कवि मानथस जी?
   -जे मन लोगन के दुख-पीरा अउ न्याय के बात करथें, नीत-अनीत ल फोरिया के सफ्फा-सफ्फा लिखथें-कहिथें ना ते मनला. अउ कहूँ अइसन कबीर परंपरा के कवि मन के सम्मेलन होही ना, त जरूर बताबे.. खंचित जाहूं.

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-ए बछर के नोबेल शांति पुरस्कार खातिर ईरान के मानवाधिकार कार्यकर्ता नरगिस मोहम्मदी के नॉव ल सुन के मन आनंदित होगे जी भैरा.
   -होना ही चाही. जेन किसम ले वो ह ईरान म महिला अधिकार अउ लोकतंत्र जइसन मुद्दा मनला लेके सरलग संघर्ष करे के संग लिखत-पढ़त हे, वो ह सम्मान के पात्र तो बनाबे करथे.
   -हाँ जी.. संघर्ष अउ योग्यता के तो सम्मान होना ही चाही. फेर हमर इहाँ तो अइसन सम्मान ह योग्यता ले जादा आपसी सांठगांठ अउ चापलूसी ऊपर जादा आधारित होथे.
   -हव जी.. तभे तो हमर इहाँ हरि ठाकुर, लक्ष्मण मस्तुरिया अउ खुमान साव जइसन मनला उंकर कद के मुताबिक घलो सम्मान नइ मिल पावय अउ जोक्कड़, जोजवा अउ जुगाड़ू मन अपन घेंच म बड़का-बड़का तमगा लटका के किंजरत रहिथें.

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-चलना रावनभांठा डहार नइ जावस जी भैरा?
  -फेर अभी तो विजयादशमी ह गजब दिन बांचे हे ना जी कोंदा?
   -अरे.. का बताबे गा, ए बछर रावन बनवाय के जोखा ल मुही ल सौंप दे हे नेताजी ह. वो काहत रिहिसे- हमर पारा के रावन ल वो पारा के रावन ले ऊंचहा बनाना हे.
   -अच्छा..  फेर तुमन ए बात ल जानथौ का के विजयादशमी अउ दशहरा परब ह दू अलग-अलग प्रसंग के सेती मनाए जाथे?
   -नहीं भई.. हमन तो राम-रावन के छोड़े अउ कुछूच ल नइ जानन.
   -हाँ.. असल म राम-रावन वाले परब ह विजयादशमी आय अउ दशहरा ह दंस+हरा माने दंसहरा अर्थात विषहरण के परब आय. फेर हमर मन के अज्ञानता के सेती ए दूनों परब  ल संघार के एकमई कर दिए गे हे.
   -वाह भई!
   -समुद्र मंथन ले निकले विष के पान करे सेती भोलेनाथ ल नीलकंठ कहे गे रिहिसे ना.. तेकरे सेती ए परब के दिन नीलकंठ माने टेहर्रा चिरई ल देखना शुभ माने जाथे. अउ विषहरण के पॉंच दिन पाछू फेर अमरित पाए के परब शरदपुन्नी के रूप म मनाथन, काबर के विषहरण के पॉंच दिन बाद समुद्र मंथन ले अमृत निकले रिहिसे.

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-हमन लइका रेहेन त रोज बिहनिया प्रभात फेरी निकाल के गाँव भर घूमन अउ देश भक्ति गीत संग भजन कीर्तन घलो करत राहन जी भैरा.
   -हव जी कोंदा.. फेर अब के लइका मन तो बेरा उवे के बाद सूत के उठथें, तहाँ ले मोबाइल-सोबाइल म अॉंखी गड़िया के बइठ जाथें.
   -सही आय जी.. एकरे सेती अभी के लइका मन पहिली असन चेम्मर बानी के नइ जनावंय.. देखबे ते एकदम फोसफोसहा बानी के हरू जनाथें.
   -फेर कतकों जुन्ना बेरा के लोगन अभी ले प्रभात फेरी के टकर ल छोड़े नइएं. अभी 6 अक्टूबर के स्वामी आत्मानंद जी के जयंती के दिन अइसने एक सियान भक्तूराम वर्मा के स्वामी जी के जनमभूमि गाँव बरबंदा म सम्मान करे गिस.
   -अच्छा..
   -हव.. भक्तूराम वर्मा ह अभी 75 बछर के सियान होगे हे, अउ वोला बिना नागा के प्रभात फेरी करत 50 बछर ले आगर होगे हे.

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-एदे आचार संहिता लगे के संग चुनावी डुगडुगी बाजगे जी भैरा. तैं ए बछर कोन पार्टी ल वोट देबे ते?
   -मैं पार्टी के आधार म कभू वोट नइ देवौं जी कोंदा. हमर क्षेत्र ले जे उम्मीदवार सबले गुनी, काम-बुता म सक्रिय अउ हमर अस्मिता संग मया करइया जनाथे उहीच ल वोट देथौं.
   -तब तो तोर वोट पाए मनखे ह कतकों पइत हार घलोक जावत होही?
   -हार-जीत ले मतलब नइ राखौं संगी, मैं सबो दृष्टि ले अपन सिद्धांत के मुताबिक योग्य मनखे ल वोट डारे हौं, ए बात के मन म संतुष्टि होथे, इही ह मोर बर सार बात आय.
   -बने बात आय जी, अब महूं ह पार्टी-उर्टी के बदला मनखे अउ वोकर योग्यता ल देखहूं.
  -जरूरी हे, काबर ते कभू-कभार पार्टी के नॉव म खेदू-बिसाहू किसम के लोगन ल घलो चुनावी मैदान म उतार दिए जाथे, अइसन मन ले हमला सावचेत रहे बर लागही.

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