Wednesday 11 October 2023

कोंदा भैरा के गोठ-4


-चलना आज बोरे-बासी उत्सव म नइ जावस जी भैरा?
   -बोरे-बासी उत्सव?
   -हहो.. हमर छत्तीसगढ़ म अब 1 मई ल श्रमिक संगी मनला सम्मान देवत 'बोरे-बासी तिहार' के रूप म मनाए जाही ना, एकरे सेती आज हमर गाँव म 'बोरे-बासी उत्सव' मनाए जावत हे.
   -ए तो बने बात आय संगी. हमर पुरखौती खान-पान के महत्व ल जनवाना जरूरी हे.
   -हव जी, आज तो लोगन आॅंखी मूंद के दूसरेच के पाछू धर लेथें, चाहे परब-तिहार के बात होवय, ते रहन-सहन अउ खान-पान के. अउ एकरे फेर म अपन गुरतुर ल बिसरा के पर के चुर्रूक म पर जाथे.

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-दूसर राज के भाखा संस्कृति के मापदंड म लिखे पोथी-पतरा मनला पढ़-बॉंच के कोनो हमर राज के भाखा, संस्कृति अउ परंपरा के जानकर कइसे हो सकथे जी भैरा?
   -बिल्कुल नइ हो सकय जी कोंदा. सबो राज के परंपरा अउ रिवाज म थोर-बहुत बदलाव तो देखेच बर मिलथे. जइसे हमर इहाँ के संस्कृति म चार महीना के शुभ-अशुभ वाले बात ह लागू नइ होवय, ठउका वइसनेच अउ कतकों अकन रिवाज म घलो अइसन देखे म आथे.
   -तोर कहना वाजिब हे संगी, तभो हमर इहाँ के मंच मन म अइसनेच मन मटमटावत-बकबकावत दिख जाथें, अउ उन समझथें के दुनिया भर के परंपरा अउ रिवाज के उहिच मन ज्ञाता होगे हावॅंय.
   -हमर इहाँ के जोजवा आयोजक मन घलो तो अइसनेच मनला फूल-माला पहिरई ल अपन गरब समझथें जी.

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-कइसे दिनमान घलो बरत दीया ल धर के रेंगत हस जी भैरा?
   -एक झन सियान ह मोला 'अपन दीया खुदेच ल बनना चाही' केहे हवय जी कोंदा, तेकर सेती अब कहूँ जाथौं, त दीया ल धर के जाथौं.
   -वाह भई! ओ सियान के कहना ज्ञान के रद्दा ल धरे खातिर आय गा. उंकर कहना हे- अपन चिंतन-मनन अउ अनुभव ले जेन ज्ञान मिलथे  तेकर अॅंजोर म रेंगना चाही गा.. कोनो दूसर के सीखोना बुध म नहीं.
   -अच्छा.. अइसन बात आय..
   -हहो.. फेर इहू बात ल चेत राखबे संगी- 'दीया के तरीच म अंधियार' घलो होथे. तेकर सेती मोर तो इहू कहना हे- आरुग ज्ञान अउ आशीर्वाद जिहाॅं ले मिलथे, उहू ला झट अपना लेना चाही.

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-मोला अपन सियाना अवस्था कइसे पहाही तेकर गजब संसो होथे जी भैरा.
   -अइसे काबर?
   -तैं तो जानत हस, जिनगी भर रूतबा वाले पद म रेहेंव, तेकर सेती पलथिया के बइठे सबला झड़के-फटकारे के टकर परगे हे, फेर जब ले रिटायर होय हौं, तब ले लोगन मोर डहार ले कन्नेखी असन कर के छटक देथें. का करबे चुरमुरा के रहि जाथौं.
   -आजकाल तो बुढ़त खानी म गुरु बने के गजब रिवाज चलत हे जी कोंदा. तहूं कुछू-काॅंही के गुरु बन जाना. जवानी म नाचा-गम्मत, खेल-तमाशा कुछू तो करत रेहे होबे? वोकरे अब गुरु बनजा तहाँ ले फेर तोर जगा लोगन बतरकिरी असन झपाय परहीं.
   -फेर अइसन गुरु मन म तो गुरु कम अउ गुरुघंटाल जादा रहिथें जी भैरा.
   - त का होगे? तहूं वइसने वाले बन जा. आजकाल तो वइसने वाले मन के माँग घलो जादा हे.

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-पहिली देवारी म जब जुआ नइ खेलबे त वो जनम म छुछू-मुसवा बन जाबे कहिके डोकरी दाई ह ठेसरा मारे अस करय त रात भर खड़खड़िया खेलन तेकर सुरता हे नहीं जी भैरा?
   -ठउका सुरता हे संगी. एक ठन चउॅंच-चाकर के गोटी राहय, जेकर छयो मुड़ा म एक ले छै तक नान्हे-नान्हे छेदा राहय या वोमा करिया रंग भराय राहय. आजकाल वइसने गोटी म लइका मन 'लूडो' नॉव के खेल खेलथें.
   -हाँ.. ठउका जाने. उही खड़खड़िया या कहिन लूडो के चलन ह हमर छत्तीसगढ़ म अढ़ई हजार बछर ले चलत हे.
   -अच्छा!
   -हहो.. राजधानी रायपुर ले 32 किमी दुरिहा खारून नदिया के तीर म जेन तरीघाट  हे ना, उहाँ के जुन्ना बस्ती के डीह (टीला) के खनवई म माटी ल अइसने गोटी बना के पकाए गोटी मिले हे, जेला पुरातत्व विभाग के उहेंच बने संग्रहालय म रखे गे हवय.
   -वाह भई! मतलब हमर छत्तीसगढ़ म अइसन किसम के पारंपरिक खेल मन अढ़ई हजार बछर जुन्ना बेरा ले चलत हे.

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-अंगरी धर-धर रेंगे सीखेंव पारत तोला गोहार
मोर मयारुक दाई तोला अंतस ले पैलगी-जोहार
   -का बात हे संगी.. आज तो तोर कवि रूप के चिन्हारी मिलत हे?
   -हहो जी.. आज मदर्स डे आय ना. हर बछर मई महीना के दुसरइया इतवार के एला मनाये जाथे.
   -अच्छा.. अपन महतारी के त्याग तपस्या अउ सेवा के सुरता करत उनला सम्मान दे के दिन.
   -हव जी.. अमेरिका के एना जॉविस नॉव के माईलोगिन ह अपन महतारी ल गजब मया करय. वो ह वोकर देखरेख करे के सेती बिहाव तक नइ करे रिहिसे. जब वोकर महतारी ह सरग सिधार दिस, तब वोहर दुसरइया विश्व युद्ध म घायल होय सैनिक मन के महतारी बरोबर सेवा-जतन करय. वोकरे सुरता म 9 मई 1914 ले मई महीना के दुसरइया इतवार ल दुनिया भर के महतारी मनला उंकर त्याग-तपस्या अउ नि:स्वार्थ सेवा भाव के सम्मान देवत ए परब ल मनाये जाथे. हैप्पी मदर्स डे....

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-हमन ला पहिली अपन सुवारी के चेहरा तब देखे बर मिलय, जब बिहाव के झरे के बाद सब पहुना मन के बिदागरी हो जावय तब. फेर अब तो बिहाव के पहिली ले नोनी-बाबू के एक-दूसर ला देखिक-देखा, फेर मुंदरी पहिरई ले होवत एदे प्री वेडिंग के नाॅव म पहिली च ले संग म घुमई-किंजरई फोटू-सोटू खिंचई सब चले ले धर लिए हे जी भैरा.
   -सही कहे जी कोंदा. फेर हमर लइका मन के परदेशी संस्कृति के पाछू दौड़ई ह कतकों बेर अलहन घलो बन जाथे. एदे, अभीच्चे खबर आय हे- प्री वेडिंग के नॉव म घुमई-किंजरई अउ सकल पदारथ करे के बाद बाबू पिला ह वो नोनी संग बिहाव नइ करौं कहिके अंड़ दिए हे.
   -ले बता तो भला. अब अइसन म का होही? ए तो सिरतोन म अलहन होगे.

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-हमन मुंह के सुवाद खातिर जेन माँहगा-माँहगा चॉंउर-गहूं खाथन ना वो हा सी-ग्रेड के अन्न आय कहिथें जी भैरा, वोकर खाए ले लोगन शुगर जइसन कतकों बीमारी म अभरत जावत हें.
   -अरे ददा रे! त खाय-पीये ल छोड़ देइन का जी कोंदा?
   -अरे नहीं बइहा.. मोटहा अनाज कोदो-रागी, ज्वार-बाजरा जइसन अन्न मनला अपन जेवन के हिस्सा बनाए बर लागही जी.
   -वाह भई.. अइसन कोन काहत रिहिसे?
   -अभी राजधानी म आए मिलेट्समैन के नॉव ले प्रसिद्ध पद्मश्री डॉ. खादर वली ह अइसन काहत रिहिसे. वोकर कहना हे- जे दिन हमन ए मोटहा अनाज मनला अपन जिनगी म नियमित रूप ले अपना लेबो तेन दिन ले घेरी-भेरी अस्पताल के चक्कर लगई छूट जाही. अउ कहूँ मुंह से सुवाद म ही अरझे रहिबो त देख लेबे अवइया पीढ़ी के लइका मन जनम लेते ही शुगर के बीमारी म संचरे मिलहीं.

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-हंड़िया, फरिया-चेंदरी अउ ए लाठी-बेड़गा मनला धर के कहाँ चले जी भैरा?
   -नरवा कछार के बारी म जावत हौं जी कोंदा, ए मनला जोर के एक ठ झांका बनाहूं, तेमा चिरई-चिरगुन अउ गरुवा मन बारी म खुसर के नकसान झन करय.
   -अच्छा.. बारी-बखरी म वो पुतरा बरोबर बना के गड़ियाए रहिथे तेने ल झांका कहिथें ना?
   -हहो.. ए बछर मोर बारी म साग-भाजी अउ आने फसल मन बने दिखत हे, फेर खोर-किंजरा माल-मत्ता अउ चिरई-चिरगुन मन अतलंग करत हें, तेकर सेती ए मन ल जोर-जार के झांका बना के गड़िया देहूं, तेमा ओमन झझके-चमके असन दुरिहच ले चले जावॅंय.

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-गरमी के मारे जी हलाकान होगे हे जी भैरा, चलना कोनो जुड़हा राज म किंजरे-बुले ले जाबो.
    -अन्ते-तन्ते फोकटइहा कहाँ भटकबे जी कोंदा, हमरेच राज भीतर एक ले बढ़ के एक जगा हे चलना उहिंचे चली.
    -अच्छा! अइसन कोन जगा हे इहाँ जेन गरमी के दिन म घलो जुड़ बोलथे?
   -तैं तो घर के जोगी जोगड़ा गढ़न के गोठियावत हस. चलना अभी एदे लकठा म चैतुरगढ़ हे तिहें चलथन.
   -अच्छा ए बिलासपुर ले कोरबा डहार जाथे तेने वाले म?
   -हहो.. ए ह मैकाल पर्वत श्रृंखला के सबले ऊॅंचहा ठउर आय जिहां सुरूज ह कतकों अगनी बरसय तभो 30 डिग्री ले जादा गरमी नइ परय अउ जानते हस इहाँ एक ठ शंकर खोला हे तेला? इही ह वो जगा आय जिहां शंकर जी ह भसमासुर ले बांचे बर अमाय रिहिसे.

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-'कब बबा मरही त कब बरा खाबो' जइसन विचार अउ हाना मनला अब बदले बर लागही जी भैरा.
  -हव जी कोंदा तोर कहना महू ल वाजिब जनाथे. अरे.. कोनो बेरा म कोनो सियान-सामरत मनखे के मरई म भले माल-पुआ खवाए के चलन रिहिस होही फेर आज अइसन चरित्तर ह उजबक बानी के जनाथे
    -सबले अलकर तो तब लागथे जब कोनो जवान लइका के जवई म घलो समाज वाले मन लाड़ू पपची खाबो तभे मरइया के आत्मा ल शांति मिलही कहिथें.
   -सब फोकटइहा गोठ आय. लोगन ल अपन कर्म के सेती शांति अउ सद्गति मिलथे, कोनो ल माल-पुआ खवाए म नहीं.

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-जोहार जी भैरा
   -जोहार ले कोंदा
   -तोला रोज-रोज भैरा कहिथौं त रिस थोरे लागत होही, मोर असन सॉॅंगर-मोंगर मनखे ल भैरा काबर कहिथे कहिके?
   -का बात के रिस जी कोंदा. हमर गाँव-गंवई म तो ए ह मया अउ दुलार के नॉव होथे.
   -सिरतोन कहे जी संगी. हमर इहाँ काकी, मामी अउ भौजी नता के मन अपन भतीजा, भांचा अउ देवर मन के नॉव नइ लेवय, ओकर बलदा म वोमन अइसने कनवा, खोरवा, लेड़गा जइसन कतकों नॉव ले हुंत कराथें. वोकर मन संग म आने मन घलो कहि लेथें.
   -सिरतोन कहे जी, ए ह वोकर मन के मया अउ दुलार के नॉव होथे. अइसन नॉव धरे ले कोनो ल दिव्यांग कहना नइ होय.

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-आजकाल हर चीज ह आनलाईन होगे हे, अउ एकर चक्कर म सब घुनहा-सरहा मनला घलो खपाए अउ सजाए जावत हे जी भैरा.
   -सिरतो सुने हस जी कोंदा. तुंहर कला अउ साहित्य जगत के घलो तो इही हाल दिखथे. प्रमाण पत्र बंटइया अउ झोंकइया मन के गजबे बाढ़ आगे हे.
   -हहो जी.. चार झन मन मुताबिक पदाधिकारी बन जाथें, अपन अपन फोटू अउ नॉव गाँव वाले डिजाइन बना लेथें, तहाँ ले जतका नेवरिया लिखइया, गवइया बजइया हें, ते मन के नॉव लिख-लिख के बरपेली पठोवत रहिथें.
    -मैं तो अइसनो देखे हौं संगी.. कतकों झन मन खुदेच नरियर अउ शाल ल झोला य धर के किंजरत रहिथें, अउ कोनो मेर कुछू आयोजन होवत रहिथे, तिहां आयोजक जगा मेल-भेंट कर के लगे हाथ अपनो सम्मान करवा लेथें.

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-कइसे जी भैरा, काली पर्यावरण दिवस म के ठन पौधा के हत्या करे?
   -कइसे उजबक बानी के गोठियाथस जी कोंदा! पौधा लगई ल हत्या करई कइही का?
   -हमर छत्तीसगढ़ म 16 जून के बाद मानसून आथे जी, वोकर पहिली के पौधा बोवई ह वोला मारेच बरोबर हे.
   -अइसे का?
   -हहो..  देखस नहीं इहाँ हर बछर लाखों पौधा लगाए जाथे फेर वोमा के बांचथे के ठन ह?
असल म हमर इहाँ के भुइंया ह 16 जून ले 20 जुलाई तक के बेरा ही पौधा बोए बर उपयोगी होथे. ठकठक ले सुक्खा भुइंया म बो देथौ तेन ह कुछ दिन म मर जथे. फेर तुमन ल तो सिरिफ फोटू खिंचवाए ले मतलब रहिथे. पौधा रोपण खातिर तकनीकी जानकारी ले का लेनादेना हे. है ना. . !

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