Thursday 26 October 2023

कोंदा भैरा के गोठ-8

कोंदा भैरा के गोठ-8

-आज बस्तर दशहरा ल बिन कोनो बाधा के मनाय खातिर काछन देवी ह अनुमति देही जी भैरा.. चलना काछन देवी के दरस करे बर नइ जावस?
    -काछन देवी.. ए ह का होथे जी कोंदा?
   -75 दिन चलइया विश्व प्रसिद्ध बस्तर दशहरा के ए ह सबले महत्वपूर्ण विधान आय, जेमा काछन देवी ह आज कुंवार अमावस के कांटा के झूलना म बइठ के दशहरा मनाय के अनुमति देथे.
   -अच्छा.
   -हहो.. पनिका, मिरगान या माहरा समाज के कुंवारी नोनी ऊपर काछन देवी के सवारी आथे. पाछू बछर आठ साल के पीहू नॉव के नोनी ऊपर सवारी आय रिहिसे, इहू बछर उहिच नोनी ऊपर काछन देवी ह बिराजित होय हे, एकरे सेती कक्षा दूसरी म पढ़इया पीहू ह रोज संझा-बिहनिया देवी के पूजा-पाठ म लगे हे. आज वोला बेल के बड़े-बड़े कांटा ले बने झुलना म बइठारे जाही, जेमा बइठ के राजा ल फूल दे के दशहरा परब ल मनाय के अनुमति देही.
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-अभी नवरात म उपास-धास तो चलत होही जी भैरा?
   -हव जी कोंदा.. माता रानी के किरपा ले पूरा नौ दिन सक जाथौं.
   -अच्छा हे.. कई किसम के रोग-राई मन के नियंत्रण म उपास-धास ह फायदा के होथे.. अउ फरहार म का लेवत होबे?
   -चोबीस घंटा म एक पइत साबुदाना, सिंघाड़ा जइसन जिनिस मन ला ले के पानी उनी पी लेथौं जी संगी.
   -स्वास्थ्य विशेषज्ञ मन के कहना हे के साबुदाना अउ सिंघाड़ा जइसन जिनिस के बलदा मिलेट्स माने हमर इहाँ जेन कोदो, कुटकी, रागी जइसन मोटहा अनाज मिलथे ना अइसन मन के उपयोग करे जाय त ए ह शरीर खातिर जादा फायदा के हो सकथे.
   -अच्छा!
   -हव.. अइसने भाजी-पाला मन म घलो कोंहड़ा, रखिया जइसन फाइबर वाले जिनिस मन के उपयोग करे म कतकों किसम के रोग-राई मन घलो नियंत्रण म रइही.
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-हमर छत्तीसगढ़ म अइसन कतकों परंपरा हे, जे मन देश के अउ कहूँ भाग म देखब म नइ आय जी भैरा.
   -ए बात तो सिरतोन आय जी कोंदा.. अब देखना बस्तर दशहरा के ही विधान मनला काछन देवी ले कुवांर अमावस के अनुमति मिले के  बाद कुवांर अंजोरी एकम माने नवरात के पहला दिन जोगी बिठाई के रसम करे गिस.
   -अच्छा..
   -हव.. एमा सिरहासार भवन म 6 ×3 फुट के गड्ढा कोड़े जाथे, जेमा हल्बा जनजाति के लोगन ल मावली देवी के पूजा करे के बाद बइठारे जाथे. ए बछर आमाबल गाँव के 22 बछर के रघु ल जोगी के रूप म बइठारे गे हे, जे ह पूरा 9 दिन तक योगासन के मुद्रा म उही गड्ढा म बइठे रइही.
   -वाह भई.. अद्भुत हे हमर इहाँ के परंपरा अउ एकर साधक मन. जय मावली दाई.
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-पंचमी जोहार जी भैरा.
   -जोहार जी कोंदा.. आज पंचमी के तुमन कोन माता के पूजा करत हौ जी?
   -हमन तो इहाँ के जेन पारंपरिक पूजा विधि, प्रतीक अउ मान्यता हे तेकरे मुताबिक पूजा-सुमरनी करथन संगी.
  -अच्छा.. माने नौ दिन ले नौ माता मन के जेन परंपरा हे तेकर मुताबिक नइ करौ?
   -हमर इहाँ के परंपरा म सतबहिनिया माता के पूजा परंपरा हे. हमन पुरखौती बेरा ले इही दाई मन के पूजा- सुमरनी करत आवत हन. हाँ.. फेर अब कतकों लोगन जेन इहाँ के मूल परंपरा ले परिचित नइए वो मन जरूर नौ माता मन के मान्यता के मुताबिक चल लेथें.
   -अच्छा हे... सम्मान तो सबो के करना चाही जी, फेर जिहां तक जिए के बात हे, त सिरिफ अपन मूल संस्कृति ल ही जीना चाही.
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-दाई-ददा के सेवा ल भगवान के सेवा मान के उंकर जतन करे के बात ल पोथी-पतरा म पढ़े-सुने बर मिल जावत रिहिसे जी भैरा, फेर अभी मैं हमर गाँव के एक सीमा नॉव के नोनी ल घलो अपन सियान के देखरेख अउ सेवा खातिर अपन जम्मो सांसारिक सुख-सुविधा ल छोड़ के अइसने सेवा-जतन करत देखे हौं.
   -भागमानी मनला अइसन शिक्षा अउ संस्कार मिले रहिथे जी कोंदा. अपन निजी मोह-माया ले उबर के दाई-ददा के सेवा ह सबले बढ़ के परमारथ अउ देव सेवा के कारज होथे, एकरे सेती तो आज घलो हमन श्रवण कुमार के नॉव ल जानथन न.
   -हव जी.. भगवान गणेश ल घलो तो अपन महतारी-सियान ल पूरा दुनिया मान के उंकर तीन भांवर किंजर के पूजा करे के सेती प्रथम पूज्य के आशीर्वाद मिले रिहिसे.
   -सिरतोन आय संगी.. अपन जीयत दाई-ददा के सेवा ह सबो जिनिस खातिर फलदायी होथे. अइसन सेवा करइया के नॉव ह जुग-जुग बर अम्मर हो जाथे.
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-ए बछर हमर गाँव म के घर जंवारा बोए हें जी भैरा?
   -याहा... ए कुवांर नवरात म कहाँ जंवारा बोथें जी कोंदा.. हाँ.. चइत वाले म बोथें भई बदना बदे वाले मन.
   -अरे हव जी.. मोरो चेत ह कती अभर गे रिहिसे ते.
   -हमन लइका रेहेन त जंवारा सरोए के दिन भंइसासुर बनन तेकर सुरता हे नहीं जी?
   -रइही कइसे नहीं संगी.. मार तरिया के चिखला-माटी ल देंह भर बोथ के तरिया म जामे नार-ब्यार मनला मुड़ म बोहे राहन अउ जंवारा सरोए बर जावत लोगन के आंवर-भांवर  कूदत राहन.
   -हव जी.. हमर इहाँ के कतकों परंपरा मन शास्त्र आधारित परंपरा ले अलगेच हे भई.. दुर्गा दाई ह जेन भंइसासुर (महिषासुर) के संहार करथे, हमर इहाँ वोकरो मान-गौन अउ पूजा करे जाथे.
   -हव जी.. जंवारा सरोए के बेर तो लोगन भंइसासुर बनबे करथें, इहाँ के कतकों गाँव मन म भंइसासुर (भंइसादेव) के देवता के रूप म पूजा घलो करे जाथे. उंकर निर्धारित ठउर  म हूम-धूप दिए जाथे.
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-छत्तीसगढ़ राज स्थापना दिवस के बधाई जी भैरा.
   -तहूं ल बधाई जी कोंदा, हमर नवा राज सिरजन दिवस के.
   -मन म खुशी तो होथे संगी अलग छत्तीसगढ़ राज बने के, फेर हमर पुरखा मन के सपना ह आजो अधूरा जनाथे.
   -कइसे भला?
   -हमर पुरखा मन ह भाषाई अउ सांस्कृतिक अस्मिता ऊपर आधारित अलग छत्तीसगढ़ राज के सपना देखे रिहिन हें. उन चाहत रिहिन हें, के इहाँ भाखा अउ संस्कृति के स्वतंत्र पहचान बनय, फेर अइसन आज राज बने दू दशक बीते के बाद घलो नइ हो पाय हे.
   -हाँ जी अइसन तो महू ल जनाथे. आने-आने राज म लिख के लाने गे पोथी-पतरा मनला ही इहाँ के सांस्कृतिक चिन्हारी के मापदंड के रूप म हमर आगू म रखे जाथे. भाखा के घलो इही घ हाल हे.
   -हव जी संगी अउ जब तक अइसन होवत रइही.. हमर भाखा संस्कृति के स्वतंत्र पहचान नइ बनही तब तक अलग छत्तीसगढ़ राज निर्माण के अवधारणा अधूरा ही रइही.
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-एक बात मोला समझ नइ आय जी भैरा, मैं देखथौं ते कतकों झन अइसन साधू, संत अउ तपस्वी हें, जे मन कोनो न कोनो किसम के शारीरिक दुख-पीरा म बूड़ेच असन दिखथें. भई हमर असन लंदर-फंदर मनखे के अइसन तकलीफ ह तो फभ जथे, फेर तपस्वी मन घलोक अइसनेच म अभरे रहिथें.
   -हाँ.. अइसन तो होथेच जी भैरा.. एला अध्यात्म म प्रारब्ध भोग कहिथें.
   -प्रारब्ध भोग?
   -हहो.. अउ एला पूरा करे बिना कोनो ल मोक्ष या कहिन सद्गति नइ मिलय.
   -अच्छा... ताज्जुब हे भई!
   -ए ह वो तपस्वी मन के पाछू जनम मन म कोनो भी कारन ले होय गुण-दोस मनला बराबर करे के एक प्रक्रिया होथे, जेला अध्यात्म के भाखा म प्रारब्ध भोग कहे जाथे. मान ले वो तपस्वी ह ए जनम म ए प्रारब्ध भोग ल पूरा नइ करही, त वोला फेर दूसर जनम ले बर लागही, फेर वोला पूरा करेच बर लागही.
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-कातिक जोहार जी भैरा. कते डहार ले आवत हस?
   -जोहार जी कोंदा.. एदे लइका मनला आज ले कातिक नहाए ले जाही कहिके उठा के आए हौं. हमन लइकई म कातिक नहाए ले जावन तेकर सुरता हे नहीं जी संगी?
   -रइही कइसे नहीं संगी.. पारा भर के नोनी मनला मुंदरहा ले उठावन तहाँ तरिया जावन.
  -हव जी उंकर मन बर फूल अउ बेलपान तो हमीं मन सकेलन, फेर उंकर मन के नाहवत ले तरिया पार के चिरी-उरी अउ सुक्खा असन लकड़ी मन ल सकेल के भुर्री बारन.
  -सही आय संगी, नोनी मन नहा-धो के भुर्री ताप लेवय तहाँ ले महादेव के पूजा करय अउ भोग-परसाद चघावय, ते मनला तो फेर हमीं मन झड़कन ना.
   हव जी.. अउ संझा बेरा जब नोनी मन सुवा नाचे बर जावंय, तब वो मनला मिले चॉंउर-दार ल धरे बर झोला घलो तो हमीं मन धरे राहन ना.
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-अब देवी देवता मनला दे जाने वाला बलि प्रथा म थोक-बहुत बदलाव अउ कमी आवत असन जनाथे जी भैरा. काली महाअष्टमी परब के दिन ऐतिहासिक बस्तर दशहरा के बेरा म निशा जात्रा म रतिहा 12 बजे 12 बोकरा मन के बलि दे गइस. पहिली न इहाँ रियासत काल के बेरा म अतके अकन भैंसा के बलि दे जावय.
   -सबके अपन परंपरा अउ मान्यता होथे जी कोंदा, फेर मोला लागथे के देवी-देवता मनला सात्विक पूजा ले घलो मनाए जा सकथे. हमर गाँव म पहिली मातर परब म बोकरा अउ कुकरा मन के बलि दे जावय, अब बोकरा के बलदा कोंहड़ा रखिया मनला काट के काम चला लेथें.
   -अच्छा हे संगी.. हमर रायपुर के बंगाली समाज वाले मन अभी अष्टमी के दिन काली माता के पूजा म सादा रंग के कोंहड़ा अउ कुसियार के पूजवन देइन हें. अइसने सबो समाज के लोगन मनला सोच-विचार करत सात्विकता डहर बढ़ना चाही.
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-लोगन ल अगुवा बन के मुड़ म पागा खापे के गजब साध रहिथे जी भैरा.
   -ए तो मानव स्वभाव आय जी कोंदा.. कोनो पगबंधी के पागा अउ पगरईती के पागा के अंतर ल भले नइ समझय, तभो ले अस्मिता के रखवार होय के रूप म अपन आप ल सबले बड़का गुनिक अउ सबले जादा योग्य मानथे.
   -हव जी संगी.. महूं ल अइसने जनाथे, तभे तो उन ए बात ल समझ नइ पावंय के पगबंधी कोनो मनखे के मरे के बाद दशगात्र के दिन वोकर बड़े बेटा या उत्तराधिकारी के मुड़ म खापे जाथे, जबकि पगरईती के पागा वोकर मुड़ म खापे जाथे, जे ह कोनो बड़का बुता या कारज के सियानी करे खातिर सबले योग्य अउ गुनिक जनाथे.
   -हव जी.. हमन ल अइसन नासमझ लोगन के सियानी ले बांच के रेहे बर लागही.. अइसन मन के हाथ म अपन अस्मिता ल रखवारी ल सौंपे नइ जा सकय.
   -सही आय संगी.. सड़क म वानर सेना बरोबर उछल कूद करना आने बात आय अउ कोनो गंभीर विषय म कारज करना आने बात.
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-अब जिनगी के संझौती बेरा म धरम के कुछू ठोसहा बुता करे के मन होथे जी भैरा.
    -ए तो बने बात ए जी कोंदा.. अउ मोला लागथे के लोगन ल धरम के नॉव म बगरे डर, अज्ञानता अउ अंधविश्वास ले बचाय के उदिम ह सबले ठोसहा बुता हो सकथे.
   -वो कइसे?
   -चाहे कोनो धरम-पंथ हो सबो म लोगन ल देवी-देवता के नॉव म डरवाए, भरमाए अउ अंधविश्वास म बोरे के जादा चलन देखे ले मिलथे. अइसे करबे त अइसे हो जाही अउ अइसे नइ करबे त दइसे. भइगे.. अतके के नॉव ले ही लोगन चमकथें-झझकथें अउ उंकर भंवरलाल म अरझत जाथें, अपन सरी जिनिस अउ जिनगी ल उंकर बहकावा म खिरोवत जाथें.
   -तोर कहना वाजिब आय संगी.. देवी-देवता मन कोनो दुष्ट-चंडाल नइ होय जेमा उन फोकटे-फोकट कोनो ल दुख-तकलीफ या पीरा देहीं. उन तो लोक कल्याण अउ सुख-शांति के पोषक होथें. असल म ए तो जे मन देवी-देवता मन के आड़ म अपन रोजगार चलाथें ना वोकर मन के बगराय भरम-जाल होथे. आज जरूरी हे, लोगन ल अइसन भरम जाल ले निकाले जाय. आज के बेरा म इही सबले बड़े धरम कारज आय.
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-बछर 2019 म 3 नवंबर के राजधानी रायपुर के साइंस कॉलेज मैदान म आयोजित राज्योत्सव म हमर राज के राजगीत 'अरपा पैरी के धार... ' ल राजगीत घोषित करे गे रिहिसे जी भैरा.. तैं जानथस आज हमन एला जेन धुन म सुनथन वोकर पहिली एला दू अउ धुन म गाये जावत रिहिसे.
   -अच्छा.. बताना जी कोंदा.
   -डॉ. नरेंद्र देव वर्मा जी जब ए गीत ल लिखिन तब उन खुदेच एला अपन बनाए धुन म गावंय. पाछू जब उन 'सोनहा बिहान' संग जुड़िन त वो बखत उहाँ के गायक केदार यादव ह एमा थोड़ा परिमार्जित कर के अपन ढंग ले गाये लगिस. बाद म जब शास्त्रीय संगीत के जानकर गोपाल दास वैष्णव जी के हाथ म ए गीत आइस, त उन एकर धुन म अउ परिमार्जित करीन. ए नवा परिमार्जित धुन ह सोनहा बिहान के सर्जक महासिंह चंद्राकर जी ल गजब सुहाइस, त फेर वो ह एला केदार यादव के बलदा ममता चंद्राकर जगा मंच म गवाए लगिन, फेर आगू चल के ममता के ही आवाज म एकर रिकार्डिंग होइस, जे आज हम सब के कंठ म राजगीत के रूप म बिराजे हे.
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-शरद पुन्नी के आते मौसम म कुंवर जुड़हा के आरो मिले ले धर ले हे जी भैरा..
   -हव जी कोंदा.. मोर घर तो अब ए चरमस्सी जुड़हा म गोरसी तापे के उदिम चालू हो जाही.
   -हाँ भई सियाना देंह-पॉंव खातिर जोखा तो करेच बर लागथे. महूं ह ए चार महीना म जुड़हा बानी के खान-पान ले बाॅंच के रहिथौं.
   -फेर ए जुड़हा बेरा ह जवनहा मन बर देंह-पॉंव ल तंदरुस्त राखे के बढ़िया बेरा होथे जी संगी.. हमन जब वो अवस्था म रेहेन तब रोज मुंदरहा ले उठन अउ बस्ती के बाहिर म पैंठू म जाके कसरत करन, तहाँ ले बेरा के उवत ले कबड्डी नइते अउ काॅंही खेल खेलतेच राहन.
   -हर उमर के अलग उदिम होथे जी संगी.. अब हमर बर वो सब हा तइहा ल बइहा लेगे बरोबर होगे हे.
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