Wednesday 11 October 2023

कोंदा भैरा के गोठ-6


-अंतर्राष्ट्रीय संगवारी दिवस के जोहार जी भैरा..
   - जोहार जी कोंदा.. फेर कतकों झन तो आने दिन मनावत रिहिन हें.
   -हाँ.. अलग-अलग देश म अलग-अलग दिन मना लेथें. फेर हमर देश म अगस्त महीना के पहिली इतवार के मनाए के परंपरा हे.
   -ए सबले तो हमर लोक परंपरा म मितानी के जेन चलन हे, तेन सबले बने हे. जे दिन भोजली विसर्जन ते दिन भोजली बद ले. जे दिन जंवारा सरोइन ते दिन जंवारा बद ले. जे दिन कोनो जगन्नाथ धाम ले आइस ते दिन महापरसाद बद ले.
   -हाँ तोर कहना वाजिब हे संगी... फेर मितानी म अउ संगी-संगवारी म अंतर होथे. मितानी तो कई पीढ़ी तक निभाए जाथे, जेला सबोच संग नइ बदे जा सकय. फेर संगी-संगवारी तो सबो ल बनाए जा सकथे. न महिला लागय न पुरुष.

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-ए बोकरा के पिलवा ल कहाँ तीरत-तीरत लेगत हस जी भैरा?
   -पूजवन खातिर बिसाय हौं जी कोंदा, हमर घर पहिलांवत लइका बर पूजवन दे के परंपरा हे ना.
   -वाह भई! पहिलांवत लइका बर पूजवन दे के परंपरा हे, त तुंहर पहिलांवत लइका के ही पूजवन देना चाही, ए बोकरा-सोकरा के काबर?
   -हमर घर पुरखौती बेरा ले अइसन चलत हे जी.
   -पुरखौती बेरा ले तो बहुत अकन परंपरा चलत हे संगी, फेर वोमा के कतकों अइसन हे, जे ह तर्क संगत नइए वो मनला बेरा के संग बदलना चाही, अउ जे मन बढ़िया हे, वो मनला कबिया के धरे रहि के बढ़वार के उदिम करना चाही. फेर हम सउंहे देखे हावन- देवी देवता मन सात्विक पूजा पाठ ले घलो खुश होके आशीष देथें, वोकर बर कोनो जीव के बलि देवई जरूरी नइए.

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-तुंहर मन के नॉव ल फोटू संग पेपर-सेपर म छपत देखथौं त महू ल कवि उवे बने के साध लागथे जी भैरा.
   -ए तो बने बात आय जी कोंदा.. तैं बस कागज मनला कलम म करियाना चालू कर दे, तहाँ ले.. तैं तो कवि कहिथस.. मैं तोला युगपुरुष घलो बनवा सकथौं. तोर देंहपॉंव आॅंखी-कान घलो बने वइसने गढ़न के टेड़ेग-बेड़ेग हे.
   -अच्छा.. त ए युगपुरुष ह कवि मनले घलो ऊँचहा पदवी के होथे का जी संगी.
   -अरे हहो बइहा.. तैं लिखे भर के तो चालू कर.. आजकाल अइसनेच मन तो चलत हें. चारों मुड़ा के पेपर मन म तोरो महिमा ल छपवा देहूं.
  -वाह भई.. सबो पेपर मन म?
   -हहो.. आजकाल के पेपर ठीहा म सब भोको-लोलो मन तो बइठे रहिथें जी. तैं जइसे लिख के दे दे तइसे छाप देथें. उन कुछू जानथे-समझथें थोरहे तेमा.

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-आने क्षेत्र ले आके इहाँ राजनीति करइया मन अपन संस्कृति के संरक्षण के नॉव म हमर संस्कृति ल कइसे तिरियाए असन कर डारथें जी भैरा.
   -कइसे का होगे जी कोंदा?
   -अभी ओड़िया समाज के महिला राजनीतिक मन राज्यपाल जगा जाके उंकर मन के नवाखाई परब म छुट्टी देके माँग रखे हें.
   -अच्छा.. एकर मतलब ए हे के उनला हमर इहाँ के नवाखाई के जानकारी नइए. अरे भई उंकर मन के नवाखाई अउ हमर इहाँ के नवाखाई ल आने-आने तिथि म मनाए जाथे. अउ कहूँ उंकर तिथि म सरकारी छुट्टी दे दिए जाही, त इहाँ वाले मन बर फेर का करे जाही?
   -तोर कहना सिरतोन हे संगी. वो मन भादो महीना म ऋषि पंचमी के मनाथें, जबकि इहाँ के मूल निवासी समाज वाले मन कुंवार म दशहरा बखत अउ हमर एती मैदानी भाग वाले मन कातिक म देवारी पइत अन्नकूट के दिन.
  -हव जी अइसे म कोनो एक वर्ग के आस्था ल मान दे के दूसर मन के आस्था के उपेक्षा कइसे करे जा सकथे?

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-आजादी जोहार जी भैरा.. का बात हे आज तो खांटी नेता डरेस म गजब के फभत हस?
   -आजादी जोहार जी कोंदा.. एदे जी स्कूल तनी जावत हौं, ए बछर गुरुजी मन मुही ल अतिथि बना दिए हें.
   -ए तो बढ़िया बात आय संगी. आज स्वतंत्रता दिवस के ध्वजारोहण करे बर तोला जोंगे हावय ते. अच्छा तैं जानथस संगी 15 अगस्त अउ 26 जनवरी के झंडा फहराय म का अंतर होथे तेला?
   -बताना संगी.
   -15 अगस्त के हमर देश ल आजादी मिले रिहिसे, तेकर सेती ए दिन झंडा ल नीचे ले डोरी म खींच के ऊपर ले जाए जाथे, फेर खोले जाथे. एला ध्वजारोहण कहिथें.
   -अउ 26 जनवरी के?
   -26 जनवरी माने गणतंत्र दिवस के झंडा ह ऊपरेच म बंधाय रहिथे, जेला खोल के फहराय जाथे, एला झंडा फहराना कहिथें.
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-जे मन इहाँ के इतिहास अउ संस्कृति के मुड़ी-पूछी तक ल नइ जानंय, ते मनला सत्ता म बइठार देबे त सब मटियामेट कर देथें जी भैरा.
   -तोर कहना सही आय जी कोंदा. हमर रायपुर के ऐतिहासिक बूढ़ा तरिया ल ही देखना, एकर नॉव ल विवेकानंद सरोवर धर दिए हें.
    -भारी अचरज के बात आय संगी. हमर इहाँ के पुरखौती देव बूढ़ादेव के नॉव म धराय तरिया के नॉव ल बदलना सिरिफ अज्ञानता के नहीं, भलुक कुटिलता के प्रमाण आय.
    -हव जी, विवेकानंद ल ए तरिया म नहाय के सेती सम्मान देना रिहिसे, त वो घठौंदा के नॉव ल ओकर नॉव म कर देतीस, जेन घठौंदा म वो नाहवत रिहिस होही.
    -तोर कहना वाजिब हे. हमर इहाँ के लोक आस्था के प्रतीक बूढ़ादेव के ऊपर कोनो दूसर ल लादना अन्याय अउ अधरम आय. वइसे भी कोनो विवेकानंद ह बूढ़ादेव ले ऊपर नइ हो सकय.

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-राजनीति वाले मन रोज नवा-नवा शब्द गढ़ के लोगन ल भरमावत रहिथें जी भैरा.
  -कइसे करबे जी कोंदा.. अइसने म तो उंकर अउ उंकर लगवार मन के पेट-रोजी चलथे.
   -अभी देखना.. इहाँ के मूल निवासी आदिवासी मनला वनवासी कहे के चलन बाढ़ गे हवय.
   -ए ह बाहिर ले आए लोगन के षडयंत्र आय. उन चाहथें के जंगल झाड़ी म खुसर के उहू मन वनवासी कहाय के नॉव म आदिवासी मन के चोला ओढ़ लेवंय.
  -हव भई.. आदिवासी मन मूल निवासी आय, जबकि बाहिर ले आके उहाँ रहत मन वनवासी. जइसे भगवान राम ह चौदा बछर वन म रहिस त वो वनवासी कहाइस फेर वोला आदिवासी नइ कहे जा सकय. ठउका अइसने बाहिर ले आके इहाँ बसत लोगन घलो आदिवासी नइ हो सकय.

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-का बात हे जी भैरा.. तुमन राज आन्दोलन संग भाखा संस्कृति खातिर घलो आन्दोलन करेव एला सम्हारे खातिर बड़का-बड़का जोंग मढ़ाएव, तभो आज ले तुंहर भाखा ल जंजीर म बंधाए गुलाम बरोबर हे कहिथें.
  -अइसन कहने वाला ल हमर भाखा संस्कृति के बगराव के पूरा जानकारी नइए तइसे जनाथे जी कोंदा. आज तो छत्तीसगढ़ी ह इंटरनेट आए के बाद ले पूरा दुनिया म अपन सोर बगरावत हे.
  -अच्छा..?
  -हहो.. इहाँ अइसन कतकों नामी संस्था अउ लोगन हे, जे मन कतकों बछर ले छत्तीसगढ़ी खातिर बड़का बुता करत हें. हमर सरकार ह घलो राजभाषा आयोग के माध्यम ले ठोसलग बुता करत हे. अब तो मुख्यमंत्री ह आजादी परब म छत्तीसगढ़ी ल सिलेबस म शामिल करे अउ छत्तीसगढ़ी साहित्य अकादमी के माध्यम ले छत्तीसगढ़ी के साहित्यकार मन के सम्मान करे के घोषणा घलो कर दिए हे. तब तहीं बता छत्तीसगढ़ी ह गुलामी के जंजीर म बंधाय हे, ते पॉंखी लगा के अगास म उड़ियावत हे.
   -तोर कहना सही आय संगी छत्तीसगढ़ी तो आज पूरा दुनिया म अपन सोर बगरावत हे.

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-आजकाल दूसर देश-राज म जाके पढ़ के अवइया मनला जादा योग्य अउ गुनिक माने जाथे जी भैरा?.
   -लोगन मानथें भले जी कोंदा फेर मोला अइसन जनावय नहीं.
  -भला काबर?
   बाहिर म लिखे पोथी-पतरा ल पढ़ के लोगन उंकरेच बारे म जान सकथें, अपन बारे म नहीं, जबकि मोर मानना हे- लोगन ल अपन बारे म पहिली जानना चाही. अध्यात्म के घलो कहना हे- एती-तेती के कागज-पातर के पाछू किंजरई ले बढ़ के आत्मज्ञान के रद्दा म आगू बढ़ के ज्ञान पाना होथे.
   -अच्छा..  आत्मज्ञान मतलब अपन तप-साधना अउ अनुभव ले पाए ज्ञान.
   -हहो.. अइसने हमू मनला पहिली अपन जिनगी, अपन अस्मिता, बोली-भाखा, संस्कृति, इतिहास अउ गौरव ल घलो जाने-समझे के उदिम करना चाही. सिरिफ पर के पाछू भटक-भटक के ज्ञान सकलई ल मैं घुरुवा के ऊँचान बढ़ाए वाला ज्ञान मानथौं.

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-राखी जोहार जी भैरा. कइसे कोन तनी जावत हस?
   -राखी जोहार जी कोंदा. एदे गा आज सावन पुन्नी के महादेव के पूजा खातिर मंदिर डहार जावत हौं.
   -अच्छा.. त बहिनी मन घर राखी बंधवाए बर नइ जावस जी.
   -उहों जाबो फेर पहिली महादेव के मंदिर.. जानथस काबर?
   -बताना संगी.
   -आजे के दिन महादेव ह सबला अपन पूजा प्रतीक के रूप म शिवलिंग दे रिहिसे, तेकर सेती ए सावन महीना ल शिव पूजा के विशेष महीना के रूप म मनाए जाथे.
  -अच्छा..
   -हव.. असल म ए राखी परब ह शिव के द्वारा अपन पूजा के पश्चात दिए जाने वाले रक्षा के आशीर्वाद के परब आय, फेर हमन एकर मूल कारण ल भुला के सिरिफ भाई-बहिनी के रूप ल धर लिए हन. असल म ए ह समस्त जीव-जगत के रक्षा के परब आय.

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-अब जिनगी के संझौती बेरा म धरम के कुछू ठोसहा बुता करे के मन होथे जी भैरा.
    -ए तो बने बात ए जी कोंदा.. अउ मोला लागथे लोगन ल धरम के नॉव म बगरे डर अउ अज्ञानता ले बचाय के उदिम ह सबले बढ़िया हो सकथे.
   -वो कइसे?
   -चाहे कोनो धरम-पंथ हो सबो म लोगन ल देवी-देवता के नॉव म डरवाए अउ भरमाए के जादा चलन देखे ले मिलथे. अइसे करबे त अइसे हो जाही अउ अइसे नइ करबे त दइसे. भइगे.. अतके के नॉव ले ही लोगन चमकथें-झझकथें अउ उंकर भंवरलाल म अरझत जाथें.
   -तोर कहना वाजिब आय संगी.. देवी-देवता मन कोनो दुष्ट-चंडाल नइ होय जेमा उन फोकटे-फोकट कोनो ल दुख-तकलीफ या पीरा देहीं. उन तो लोक कल्याण अउ सुख-शांति के पोषक होथें. असल म ए तो जे मन देवी-देवता मन के आड़ म अपन रोजगार चलावत हें ना वोकर मन के बगराय भरम-जाल आय. आज जरूरी ए हे के लोगन ल अइसन भरम जाल ले निकाले जाय. आज के बेरा म इही सबले बड़े धरम कारज आय.

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-आज हमर मुखिया के अवतरण दिन आय जी भैरा.. चलना बधाई दे बर नइ जावस?
   -अवतरण दिवस.. फेर अवतरण तो सिरिफ भगवान भर ल कहे जाथे ना अउ हमर असन आम लोगन के ल जनम दिन?
   -हमर इहाँ के मूल संस्कृति म लइका के अवतरई ल घलो कहे जाथे संगी. सियान मन बताथें न.. आज हमर घर नोनी अवतरे हे ते बाबू कहिके. हाँ भई.. जानवर जनमथे त जरूर कहे जाथे के बछरू या बछिया जमने हे कहिके.
   -फेर एक झन बड़का भाखा के ज्ञानी ह तो अइसने काहत मुड़पेलवा तीरिक-तीरा करत रिहिसे जी.
   -असल म वो तथाकथित ज्ञानी के दाई ह वोला जमने होही, तेकर सेती वोकर थोथना म जानवर बरोबर दूसर के पछलग्गू वाला गुन भराए होही.. हमला अपन संस्कृति परंपरा के मुताबिक चलना चाही संगी.. दूसर के सिखौना म नहीं.

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-तुंहर इहाँ बहुरिया के पॉंव भारी असन जनावत रिहिसे जी भैरा.. बधाई हो.. अब तो बबा बनबे.. तोर नान्हे संगी अवतरही.
    -हव जी कोंदा हमर इहाँ सियानीन ह सधौरी खवाए के तैयारी म घलो लग गे हे.
   -तैं जानथस संगी.. हमर भाखा म नारी परानी मन के ए अवस्था बर आधासीसी, पॉंव भारी, पोटपिट ले जइसन शब्द के प्रयोग करे जाथे, जबकि गाय-गरुवा मन खातिर गाभिन शब्द के. मतलब मनखे मन बर गाभिन शब्द के उपयोग नइ करे जाय त गाय-गरुवा बर पॉंव भारी के.
    -अच्छा.
   -हव.. ए ह हमर भाखा के शब्द भंडार अउ प्रयोग के ठउका उदाहरण आय. जइसे अभी वो दिन अवतरे अउ जमने शब्द के उपयोग ल मनखे अउ जानवर खातिर शब्द प्रयोग के अंतर देखे रेहेन न.

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-माता कौशल्या ह छत्तीसगढ़ के बेटी आय न जी भैरा.. त मोला ए जानना रिहिसे के वो ह तीजा माने बर इहाँ अपन मइके आवत रिहिस होही के नहीं?
    -आही कइसे नहीं जी कोंदा, अउ जइसे इहाँ दूसर तीजहारिन मन तीजा उपास के पहिली दिन संझा करू भात खाथें अउ उपास के बिहान भर सब नता-रिश्ता अउ सखी-सहेली मन घर बासी खाए ले जाथें, तइसने उहू जावत रिहिसे.
   -अच्छा.. अउ राम ह?
   -महतारी संग बेटा कइसे नइ आही संगी.. उहू आवत रिहिस होही, अउ जब कौशल्या ह बासी खाए बर सब घर जावत रिहिस होही, त उंकर पाछू-पाछू नदिया बइला ल ढुलावत दउंड़त रिहिस होही.
    -सिरतोन आय जी... इहाँ के बेटी-माई अउ वोकर लइका ह अपन परंपरा ल कइसे नइ मानहीं. मइके अउ मइके के परंपरा तो इंकर बर सबले बढ़ के होथे.

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-झोला-झंगड़ धर के कहाँ चले जी भैरा?
   -एदे बजार डहार जावत हौं जी कोंदा, हमर इहाँ के सियानीन ह करू भात खवइया मन बर देशी करेला लानबे कहिके चेताए हे.
   -अच्छा.. फेर अभी तो तीजा ल दू-तीन दिन बांचे हे जी. अच्छा.. तैं जानथस ए करू भात खाए के महत्व का हे तेला?
   -बताना भई.
   -तीजहारीन मन चोबीस घंटा के कटकट ले निर्जला उपास रहिथें ना तेला सहे के शक्ति देथे. करेला खाए ले पियास कम लागथे. करेला म विटामिन A, B अउ C पाए जाथे. एकर छोड़े कैरोटीन, बीटाकैरोटीन, लूटीन, आयरन, जिंक, पोटैशियम, मैग्नीशियम अउ मैगजीन आदि घलो पाये जाथे. जेकर सेती उपास ले होवइया जलन या गरमी ले बचाथे.
   -वाह भई.. मतलब हमर पुरखा मन कतेक वैज्ञानिक दृष्टिकोण के रिहिन जेन अइसन परंपरा ल बनाइन.
    -हव जी.. तोर कहना सिरतोन आय. हमर हर परंपरा अउ वोकर संग जुड़े रहन-सहन, खान-पान के कोनो न कोनो वैज्ञानिक कारण जरूर हे.

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-कइसे कोन डहार ले आवत हस जी भैरा.. भारी कुलकत असन दिखत हस?
   -हमर जिला के बड़का अस्पताल गे रेहेंव जी कोंदा, आज मैं अपन देंह ल दान करे के फारम भरे हौं. अब जब ए तन ले परान छूटही, त अस्पताल वाले मन ए देंह के अंग मन के कोनो जरूरत मंद मनखे के शरीर म उपयोग कर लिहीं.
    -वाह भई.. तोर शरीर ल दान कर देस. फेर लोगन तो एकर बारे म कतकों किसम के डरभुतहा बानी के गोठ करथें जी.
   -का कहिथें?
  -कहिथें के आॅंखी ल दान करे म अवइया जनम म बिन आॅंखी के पैदा होबे या किडनी उडनी ल देबे त उहू मनला बने अस नइ पाबे.
    -ए सब जोजवा मन के भकलाही वाले गोठ आय संगी. तोर मरे के बाद कहूँ तोर अंग मनले कोनो दूसर मनखे ल नवा जीवन मिलत हे, त एकर ले बढ़ के न कोनो पुन्न हो सकय अउ न कोनो धरम के कारज.

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-विज्ञान के नॉव म लोगन अध्यात्म के महत्व ल एकदम नकारे असन कर देथें जी भैरा, फेर अभी चंदा म चंद्रयान-3 ल सफलता पूर्वक भेजइया भारतीय अनुसंधान संस्थान के प्रमुख एस. सोमनाथ काहत रिहिन हें के विज्ञान अउ अध्यात्म दूनों के खोज उंकर जिनगी के उद्देश्य आय.
   -बने तो काहत रिहिसे जी कोंदा. विज्ञान ह बाह्यजगत के खोज करथे, त अध्यात्म ह हमर आंतरिक जगत के.
   -अच्छा.
  -हव.. जतका जरूरी हमर भौतिक अउ सांसारिक जीवन खातिर विज्ञान के हावय, वतकेच जरूरी हमर आंतरिक जीवन, हमर अंतस खोज खातिर अध्यात्म के हे. हम विज्ञान के माध्यम ले अंतरिक्ष के जम्मो रहस्य ल जान सकथन, त अध्यात्म के माध्यम ले अपन जीवन-मरण अउ एकर निर्धारण अउ उद्देश्य के.

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-परोसी राज मध्यप्रदेश के मंदसौर ले पानी गिरवाए खातिर ठउका टोटका करे के खबर आए हे जी भैरा.
   -कइसन टोटका करे के खबर जी कोंदा?
   -हमर राज बरोबर उहों पानी नइ गिरत रिहिसे त उहाँ दू ठन गदहा मनला नांगर म फांद के खेत जोतीन हें.
   अच्छा.. तहाँ ले पानी गिर गे का जी?
   -वोकर पाछू उहाँ के पार्षद ल गदहा म बइठार के घुमाइन अउ गदहा मनला बने ससन भर गुलाब जामुन खवाइन, तहाँ ले गदगद गदगद पानी बरसगे कहिथें जी.
   -वाह भई.. तब तो हमरो इहाँ अइसने टोटका करवाना चाही, सब पंच-पार्षद मनला गदहा के सवारी करवाना चाही, तभे तो इहों इंद्र देव ह किरपा करही.
   -पंच-पार्षद भर मनला काबर जी संगी, विधायक-सांसद मनला घलो गदहा के सवारी करवाए जा सकत हे. लोककल्याण के कारज म उहू मन अपन भागीदारी निभा सकत हें.

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-सोम्मारी जोहार जी भैरा.. यहा कहाँ ले फूल-पान धर के आवत हस जी ?
   - जोहार जी कोंदा.. खोरवा मंडल के बारी के ताय.. बने घमघम ले फूले रिहिसे त आज महादेव म चढ़ा के पूजा करहूं गुन के टोर के ले आएंव जी.
   -अच्छा.. मतलब चोरा के लानत हस? भगवान के पूजा ल चोराय फूल-पान म करबे त वोकर जम्मो पुन्न परसाद अउ आशीर्वाद ल तैं पोगरी कहाँ ले पाबे?
   -कइसे गोठियाथस संगी?
   -बने गोठियाथौं जी. भई जेकर बारी के फूल-पान ल चोराय हस तेन ह आधा पुन्न परसाद ल नइ पाही जी? हाँ भई तैं कहूँ ए फूल-पान ल पइसा म बिसा के लाने रहितेस या बारी वाले जगा ले अनुमति ले के टोरे रहितेस त भले पूजा के फल ल चुकता पातेस.
   -टार बुजा ल.. त अब मुंदरहा ले एकर-वोकर अंगना-बारी म अग्सी धर के जाथौं तेला छोड़े बर लागही.

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-आठे जोहार जी भैरा.. सज-धज के कहाँ चले?
   -जोहार जी कोंदा.. आज लइका मन दही-मरकी फोरे के कार्यक्रम राखे हवय न उही डहार जावत हौं, चलना तहूं जाबे ते.
  -ले राहन दे संगी.. मैं कृष्ण के गीता के उद्घोष करइया रूप के प्रशंसक हौं, मरकी फोरइया रूप के नहीं.
   -त का होगे जी कोनो रूप के होवय, भगवान के नॉव म होवइया सबो आयोजन म संघरना चाही.
   -मोर मन गवाही नइ देवय संगी.. काबर ते हम वोकर जेन रूप के पूजा-उपासना करथन हमला उहिच किसम के गुन अउ आशीष मिलथे. मोला लागथे के आज हमर देश ल गीता के उपदेश देवइया रूप के उपासना करे के जरूरत हे, काबर ते चारों मुड़ा अधरम ह रंग-रंग के मुखौटा खापे नंगत के रार मचावत हे.

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-अब छत्तीसगढ़िया सरकार के मुखियच अपन संस्कृति-परंपरा ल अन्ते-तन्ते जनवाही त करलईच तो हे जी भैरा.
   -कइसे का होगे जी कोंदा?
   -काली कमरछठ परब के बधाई देवत मुखिया ह हलषष्ठी संग बलराम जयंती के बधाई देवत रिहिसे.
  -अच्छा.. त एमा अन्ते-तन्ते कइसे होगे?
   -हमर इहाँ कमरछठ के परब मनाए जाथे संगी, जे ह कुमार षष्ठ के अपभ्रंश ले बने कमरछठ आय. हलषष्ठी ह आने राज ले अवइया मन के आय.
   -अच्छा.. जइसे अउ कतकों अन्ते के परब-तिहार मनला इहाँ सांझर-मिंझर करत बिगाड़त-थोपत हें तइसने.
  -हहो..
   -त एकर बर मुखिया ले जादा वो अधिकारी मन दोषी जनाथें संगी जे मन वोकर समाचार अउ विज्ञापन ल सब पेपर मन म ढीलथें. हाँ भई अतका जरूर हे के मुखिया ल अपन सलाहकार अधिकारी मन म आरुग छत्तीसगढ़ी संस्कृति के जानकर मनला रखना चाही. आधा डोमी आधा घोड़ाकरायत जइसन सांझर-मिंझर वाले मनला नहीं.

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-एक बात बता जी भैरा.. तोर नॉव भैरा हवय, त का दूसर भाखा ले लोगन एला अपन भाखा म बदल के जोजवा, भोकवा या अउ कुछू-काॅंही कर देहीं?
   -नहीं जी कोंदा.. अइसे-कइसे कर देहीं.. नॉव ल जस के तस लिखे जाथे, चाहे वो दुनिया के कोनो भाखा के बात होवय.. नॉव के अनुवाद या रूपांतरण नइ होय.
   -ठउका काहत हस संगी.. फेर हमर देश के नॉव ल आने देश वाले मन के संगे-संग इहों के कतकों लोगन इंडिया काबर कहिथें?
   -कहना तो नइ चाही.. वइसे भी आने मन के धरे नॉव ल हमला अपन चिन्हारी नइ बनाना चाही.
   -मोरो अइसने मानना हे. अभी हमर देश भारत ल भारत ही लिखे अउ बोले के चर्चा चलत हे, तेला संवैधानिक रूप ले पारित कर के अंतर्राष्ट्रीय स्तर म एकर मूल नॉव ले ही चिन्हारी करे के गोहार लगाना चाही.

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