Wednesday 11 October 2023

कोंदा भैरा के गोठ-7


-कतकों लोगन अभी घलो हमर महतारी भाखा छत्तीसगढ़ी ल बोली आय कहिथें जी भैरा.
  -वो मनला भाखा के मानक के जानकारी नइ होही जी कोंदा.
   -कइसे भला?
   -जे भाखा के माध्यम ले हम अपन मन-अंतस के बात ल कोनो भी दूसर मनखे ल जस के तस समझा सकन वो सब भाखा ही कहाथे.
   -फेर लोगन तो जेकर व्याकरण अउ लिपि होथे, तेने ल भाखा कहे जाथे कहिथें.
   -जिहां तक व्याकरण के बात हे, त छत्तीसगढ़ी के व्याकरण ह बछर 1880 ले 1885 के बीच म काव्योपाध्याय हीरालाल चंद्रनाहू जी के द्वारा लिखे गे रिहिसे, जेला तब के बड़का व्याकरणाचार्य सर जार्ज ग्रियर्सन ह बछर 1890 म छत्तीसगढ़ी अउ अंगरेजी म समिलहा छपवाए रिहिसे. अउ तैं जानथस संगी?
   -का?
   -तब तक हिंदी के व्याकरण नइ बन पाए रिहिसे. हिंदी के व्याकरण ह बछर 1921 म कामता प्रसाद गुरु के माध्यम ले आइस.
   -अच्छा.. माने छत्तीसगढ़ी के व्याकरण ह हिंदी ले पहिली बने हे. फेर लिपि तो नइए न छत्तीसगढ़ी के?
   --कोनो भी भाखा खातिर लिपि के होना जरूरी नइए. हिंदी के लिपि कहाँ हे? एला तो नागरी लिपि म लिखे जाथे. संस्कृत, मराठी आदि ल घलो नागरी म ही लिखे जाथे. आज दुनिया भर म राज करत अंजरेजी के अपन खुद के लिपि नइए, उहू ल रोमन लिपि म लिखे जाथे. हाँ, छत्तीसगढ़ी के पहिली लिपि रहिसे जेला हर्ष लिपि कहे जाय, इहाँ के जुन्ना मंदिर मन म वोला अभी घलो शीलालेख के रूप म देखे जा सकथे.

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-राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मोहन भागवत ह जब तक समाज म भेदभाव हे, तब तक आरक्षण ल चालू रहना चाही काहत हे जी भैरा.
    -बने तो काहत हे जी कोंदा. काबर ते आरक्षण ह समाज म बनाए गे ऊंच नीच वाले सामाजिक व्यवस्था के सेती पिछवाए लोगन ल बरोबरी के ठउर म लाने खातिर बने हे, अउ जब तक समाज म बरोबरी के दर्शन नइ हो जाही तब तक ए आरक्षण ल चालू रहना चाही.
   -हव जी हजारों बछर ले चलत भेदभाव ह आरक्षण के नॉव म सिरिफ कुछ बछर के सहुलियत म भरा नइ पावय. मोहन भागवत के कहना वाजिब जनाथे.
    -हव जी.. जब तक सामाजिक भेदभाव कोनो न कोनो रूप म दिखत हे तब तक आरक्षण रहना चाही. काबर ते एकर निर्धारण आर्थिक असमानता के सेती नहीं, भलुक सामाजिक असमानता के सेती होय हे. संग म वो ग्रंथ मनला घलो प्रतिबंधित करना चाही, जेकर मन के सेती सामाजिक असमानता ह जड़ खोभे हे.

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-कहाँ चले जी भैरा.. चुकिया-पोरा धर के?
   -एदे गा अभी लइका मन बर नदिया बइला म डोरी बांध के खेत डहार जावत हौं, तैं नइ जावस जी कोंदा खेत म पोरा चघाए बर?
   -जाए बर तो महूं जाहूं जी.. फेर मोला एक बात समझ नइ आवय.. हर बछर पोरा परब के दिन पोरा म रोटी-पीठा भर के हमन खेत म मढ़ा के हूम-धूप काबर देथन?
   -अतको ल नइ जानस बइहा.. हम अपन धान के फसल ल सधौरी खवाथन जी आज के दिन.
  -फसल ल सधौरी?
   -हहो.. जइसे नवा बेटी-माई मन पहिली बेर गरभ धारण करथें त सात महीना म वो मनला सधौरी खवाथन नहीं.. ठउका वइसने हमर खेत म लहरावत खड़े अन्नपूर्णा दाई ह घलो जब पोठरी पान धरथे, त उहू ल सधौरी के नेंग करे खातिर पोरा म रोटी-पीठा धरके खेत म मढ़ा के हूम-धूप देथन जी, इही ह तो हमर मन के पुरखौती परंपरा आय.

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-जहाँ चुनाव लकठाथे, तहाँ ले एक-दूसर के धरम-पंथ के कमी-खनगी बताए-देखाए के चालू हो जाथे जी भैरा.
    -अतकेच भर नहीं जी कोंदा, कतकों लोगन तो वो धरम-पंथ ल पूरा के पूरा बीमारी अउ अछूत असन घलो कहि देथें.
   -फेर अइसन बात ह फभिक नइ हो सकय जी संगी. मोला लागथे, ए ह अज्ञानता अउ अज्ञानता ले बढ़ के कुंठा के सेती हो सकथे.
   -हव जी.. कोनो भी धरम-पंथ ह चुकता हीने के लाइक नइ हो सकय. हाँ भई.. वोमा कुछ मान्यता अउ परंपरा ह बेरा के मुताबिक फभिक नइ जनावत होही, वो मन म बदलाव अउ सुधार के उदिम करे जाना चाही. वोकर हीनमान अउ  अलगाव के नहीं.
    -सही आय... मोला लागथे- अब राजनीति के मंच ले धर्म अउ धर्म के मंच ले राजनीति के बात म प्रतिबंध लगाए जाना चाही.

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-एक बात बता जी भैरा.. आज के युग म धरमयुद्ध कइसे लड़े जा सकथे. कोनो ल मारबे-काटबे तब तो सोज्झे फॉंसी म ओरमा दिए जाबे?
   -धरमयुद्ध तो सबो युग म लड़े बर लागथे जी कोंदा. हाँ भई एकर स्वरूप अलग अलग होथे. पहिली राजा मन के बनाय नियम के अंतर्गत रहिके लड़े बर परय. आज के लोकतांत्रिक व्यवस्था म कानून अउ संविधान के अंतर्गत रहि के उहि सब करना हे. आज हम अपन अधिकार, अपन गौरव अउ अपन अस्मिता खातिर लोकतांत्रिक ढंग ले लड़थन, इहू तो हमर धरमयुद्ध ही आय जी.
  -अच्छा..!
  -हहो.. भगवान ह गीता म अइसने बात ल तो धरमयुद्ध कहे हे ना. आज हमन अपन भाखा, संस्कृति, ऐतिहासिक गौरव अउ अस्मिता के सुरक्षा संग बढ़वार खातिर संघर्ष करत हन, ए सबो ह धरमयुद्ध के ही रूप आय. अउ एकर खातिर हमला बिना ककरो मुलाजा करे रद्दा म अवइया जम्मो किसम के अवरोध अउ भरमाय भटकाय के उदिम ल चतवारत आगू बढ़त जाना हे.

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-कहाँ चले जी भैरा.. आज तो खॉंटी श्रमिक सजन बरोबर दिखत हावस?
   -जोहार जी कोंदा.. हव आज श्रम के देवता विश्वकर्मा जी के पूजा कार्यक्रम हे ना हमर कारखाना म.. उंहचे जावत हौं.
  -अच्छा हाॅं.. आज विश्वकर्मा भगवान के जयंती आय ना?
  -अरे नहीं बइहा.. विश्वकर्मा जी के जयंती तो माघ महीना के अंजोरी पाख म तेरस तिथि के आथे.
   -त फेर आज पूजा काबर?
   -आज के ए अंगरेजी तारीख ल सब कल-कारखाना म बुता करइया अउ आने श्रम साधक  मन बर अपन-अपन कार्यस्थल म पूजा करे खातिर जोंगे गे हे. तभे तो ए पूजा दिवस ल अंगरेजी तारीख के हिसाब ले मनाए जाथे. जयंती के रूप म मनाए जातीस त हमर भारतीय काल गणना के मुताबिक माघ अंजोरी तेरस के मनाए जातीस.

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-गणपति जोहार जी भैरा..
  -जोहार जी कोंदा.. कहाँ चले..
   -एदे जी लइका मन आज पंडाल बना के गणपति महराज ल बइठारत हें, तेही कोती जावत हौं.
   -बने बात आय.. फेर आजकाल लइका मन गणपति महराज के पंडाल ल कुछू सिद्धांत विशेष के फैलाव-बगराव बर कम अउ हॉंसी-तमाशा के माध्यम जादा बना डारथें. वोकर मूर्ति घलो ल कइसे आने-आने संग संघार डारथें.
   -हव जी.. गंभीरता अउ मर्यादा नंदाय असन जनाथे, जबकि एकर शुरूआत ह देश ल आजादी देवाय के आन्दोलन म बड़का भूमिका निभाय के रूप म रहे हे.
   -सही आय.. फेर अब तो अइसन पंडाल मन के आड़ म चंदाखोरी, मंद-मउहा अउ डीजे-फीजे संग रंगबाजी के नजारा जादा देखे म आवत रहिथे.
    -सही आय जी.. धरम के झंडा उठइया मनला एती चेत करना चाही, आस्था के नॉव म होवत अइसन चरित्तर ले बचाव करना चाही.

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-ऋषि पंचमी जोहार जी भैरा.. अब तो आज के जमाना म द्रोणाचार्य जइसन गुरु देखे-सुने म घलो नइ आवय जी संगी.
   - जोहार जी कोंदा.. अब के चेला मन घलो तो अर्जुन बरोबर समर्पित अउ सेवाभावी तो नइ मिलय जी संगी.. आधुनिक गुरुकुल म  जतका आथें सब दुर्योधन असन सिरिफ सत्ता प्रेमी मन ही आथें.
   -त अब के लइका मनला सार्थक अउ सही मायने म आदर्श शिक्षा पाए बर का करना चाही?
   -अब तो एके ऊपाय हे संगी- एकलव्य के परंपरा म आगू बढ़ के जिहां-जिहां ले सार अउ सार्थक ज्ञान मिलथे वो मनला खुदे होके बटोरे अउ आत्मसात करे जाना चाही.
  -फेर हर मनखे के जीवन म एक गुरु के होना तो जरूरी होथे कहिथें ना?
   -हाँ.. अध्यात्म म विधिवत एक गुरु बनाय के जरूरत तो होथे, फेर ज्ञान के मामला म सिरिफ वोकरे ऊपर ही आश्रित नइ रहि के जिहां-जिहां ले ज्ञान अउ आशीर्वाद मिलथे सबोच ल अपना लेना चाही.

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-देखत हस जी भैरा.. जब ले महिला आरक्षण बिल ह संसद म पेश होय हे, तब ले हमर इहाँ के सियानीन ह ए बछर के चुनाव ल महिच ह लड़हूं कहिके रोम्हिया दे हे.
   -बने तो आय जी कोंदा.. जब वो मन घर-परिवार ल सुघ्घर असन चला-सम्हाल सकथें, त देश ल काबर नहीं? बपरी मन सूत के उठते छरा-छिटका, गोबर-कचरा ले लेके रात के सोवा परत बेर अपन आदमी के मुरसरिया के खाल्हे म लोटा भर पानी के रखत तक कतेक  जिम्मेदारी के साथ बुता करथें तेला. मोला पूरा भरोसा हे, देश खातिर घलो अइसने करहीं.
   -फेर हमन गाँव के पंचइती म सरपंच-पति ल जम्मो कारज ल करत देखथन अउ बपरी सरपंचइन ह मुड़ ल ढांक के वोकर पाछू म मुस्की ढारत खड़े रहिथे. कहूँ संसद मन म घलो अइसने नजारा देखे बर मिल जाही त?
   - अइसन कुछू नइ होवय संगी.. धीरे धीरे उन सबो ल सीख जाहीं.. अरे एक पइत म नहीं ते दू पइत म, फेर सीखहीं जरूर. देखथस नहीं अब उही सरपंचइन ल दुसरइया बेर म सबो बुता ल कइसे खुदेच कर डारथे तेला.

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- सियनहा दिवस के जोहार जी भैरा.
    -जोहार जी कोंदा. फेर ए सियनहा दिवस का होथे, नवा जिनिस सुनत हौं.
   - वाह.. आज 1 अक्टूबर ल हमरे असन सियनहा मन के देखरेख के चेत कराए बर अंतर्राष्ट्रीय वृद्ध दिवस मनाए जाथे न जी.. फेर का बात हे संगी, तैं तो आजो बने टन्नक दिखत हस? अउ एदे मोला देख.. पेट ह कोहड़ा बरोबर फूलत जावत हे.
   -तोर अउ मोर उमर तो एके हे जी संगी, फेर तोर रहन-सहन मोर म अंतर हे.
   -वो कइसे?
   -तैं ह नौकरी ले रिटायर होगेंव कहिके घर म खुसरे रहिथस. खाथस-पीथस अउ गोड़ लमाके सूते रहिथस. अउ मोला देख, आजो नानमुन काम-बुता ल तो करतेच रहिथौं उप्पर ले मोर लिखना-पढ़ना अउ एती-तेती के कार्यक्रम म जवई ल घलो बढ़ा दिए हौं. अब तहीं बता, अइसे म मोर देंह-पाॅंव बने टन्नक दिखही के नहीं?
   -हव जी, तोर कहना तो सही आय.
   -अरे बइहा इही उमर म सक्रियता अउ जादा जरूरी होथे, जिहाॅं अलाली करे त वो तोला पूरा के पूरा बइठार देही.

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-आज के वैज्ञानिक युग म जइसे-जइसे हमन दुनिया संग जुड़े बर सोशलमीडिया के नॉव म अगास म उड़ियावत हावन.. वइसनेच-वइसे अपन जड़ अउ घर-परिवार ले दुरिहावत जावत हन जी भैरा.
   -कइसे जी कोंदा?
   -देखना.. सोशलमीडिया म कहे बर तो हमर हजारों संगी-साथी अउ हितु-पिरितु हे, फेर जब कभू जर-बुखार म खटिया धर लेथन त कोनो पानी पुछइया तक हमर तीर म नइ राहय.
   -ए बात तो सोला आना आय जी संगी.. अउ हम उही बिन आधार के संगी मन के चक्कर म अपन घर-परिवार सबो ले तिरिया जाथन. उंकर संग न कभू गोठ-बात न कभू मेल-जोल.
   -हव जी.. दुनिया संग जुड़े के नॉव म अगास म उड़ियाना तो ठीक हे, फेर अपन जमीन ल छोड़ के उड़ियाना ह जी के काल आय.

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-लोगन ल ए काहत सुनथन न जी भैरा.. वोला अतेक खवाएंव-पियाएंव फेर नमक नइ लगिस.. नमकहराम निकलगे.. न गुन के होइस न जस के.
   -हाँ.. लोगन कहिथें तो जी कोंदा.. ए तो चलन म हावय.
   -फेर चिकित्सा वैज्ञानिक मन के कहना हे- दूसर के नून ल तो खानच नइ चाही अपन घर-परिवार म घलो कमतीच नून बउरना चाही.
   -अच्छा.
   -हहो.. अभी हमर देश के राष्ट्रीय रोग सूचना विज्ञान अउ अनुसंधान केंद्र ह जेन सर्वेक्षण करे हे, तेकर मुताबिक इहाँ के लोगन रोज अपन खाना म 8 ग्राम नून के उपयोग कर डारथें, जबकि हमर देंह बर 5 ग्राम नून ह पर्याप्त होथे.
   -वाह भई.. हमला तो एकर गमे नइ रिहिसे.
   -चिकित्सा वैज्ञानिक मन के कहना हे- बीपी, स्ट्रोक, गैस्ट्रिक कैंसर जइसन कतकों किसम के रोग-राई अभी जेन देखे ले मिलत हे, तेन सबो ह जादा नून खाए के सेती ही होवत हे.

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-पितर जोहार जी भैरा.
   -जोहार जी कोंदा. तुंहर इहाँ पितर मिलाथौ नहीं जी.
    -हाॅं मिलाथन ना.. इही बहाना पुरखा मनला सुरता-जोहार कर लेथन, नइते काम-बुता के चेत म कहाँ ककरो चेत रहिथे.
    -हव जी सिरतोन आय.. फेर कतकों झन मन पितर मिलई ल अन्ते-तन्ते गोठिया के ढोंग अउ आडंबर आदि कहिथें ना.
   -ककरो कुछू गोठियाए म का होथे संगी.. हम तो ए मानथन के हमर जे पुरखा मनला मोक्ष या सद्गति मिल गे रहिथे, वो मन अपन परब-तिथि म जरूर आथें अउ हमर श्रद्धा के चढ़ावा झोंकथें घलो.
   -हव जी मोरो अइसने मानना हे.. हॉं भई जे मनला देंह छोड़े के तुरते बाद कोनो आने देंह या योनि मिल जाय रहिथे, ते मन भले नइ आवत होहीं, फेर जे मनला जीवन-मरन के फेर ले मुक्ति मिल गे रहिथे, वो मन खंचित आथें. तभे तो कहिथें-
   पुरखा मन बिसरय नहीं,
   लइका भले बिसर जाथे.
   भाव श्रद्धा के झोंके बर,
   देवता सही उन सउंहे आथे.

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-गणपति महराज ल विसर्जित कर के आगेव जी भैरा?
   -हव जी कोंदा.. दस दिन बने श्रद्धा-भक्ति ले पूजा-सुमरनी करेन, तहाँ ले एदे अभीच्चे सरो के आए हन जी.
   -अच्छा.. फेर मोला एक बात समझ म नइ आय जी संगी, के उनला दसेच दिन बर ही बइठार पूजा-सुमरनी काबर करे जाथे?
   -अइसे मान्यता हे, के एक पइत महर्षि वेदव्यास ह गणेश जी ल महाभारत कथा ल सरलग लिखे के अरजी करिस. तब गणेश जी एकेच आसन म बइठ के लिखे लागिन. बिन खाए-पीए अउ बिन नहाए-धोए. एकरे सेती दस दिन के सरलग लिखई म वोकर देंह म धुर्रा-माटी जम गे रिहिसे. जब लिखई बुता झरिस, तब सरस्वती नदिया म जाके गणेश जी नहाइन अउ अपन देंह म जमे धुर्रा-माटी ले मुक्ति पाईन. एकरे सेती हमन हर बछर गणेश चतुर्थी के गणपति महराज ल बइठारथन अउ दस दिन के पाछू कोनो पबरित नदिया-तरिया म सरो देथन जी.

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-नवरात जोहार जी भैरा. शीतला देवाला डहार जावत हावस तइसे जनाथे?
    -माता जोहार जी कोंदा. हव जी संगी ए बछर शीतला दाई के नौ दिन सेवा करे के मोरे भाग जागगे हे.
   -ए तो बने बात आय संगी. भागमानी मनला नवरात म पंडा बनके महतारी के सेवा करे के सौभाग्य मिलथे.
   -हाँ ए तो ठउका आय. फेर मोला एक बात जानना रिहिसे जी.. सबो देवता मन के तो बछर म एके पइत जयंती परब आथे, फेर माता दाई के जयंती परब ह बछर म दू पइत काबर?
   -लोकमान्यता ए हे संगी के माता दाई ह पहिली सती के रूप म अवतरे रिहिसे अउ फेर वोकर बाद म पार्वती के रूप म तेकर सेती हमन माता दाई के जयंती परब ल बछर म दू पइत मनाथन.
   -फेर पोथी-पतरा के जानकर मन बछर म चार बेर नवरात आथे कहिथें, चैत अउ कुवांर के छोड़े दू ठन गुप्त नवरात बताथें.
   -पोथी-पतरा वाले मन कुछू बतावंय या मानंय. हमर लोक परंपरा म तो सिरिफ दूएच आथे- चैत अउ कुवांर म.

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-वइसे तो मैं जात-पात ल मानौं नहीं जी भैरा, फेर देश म बगरे लोगन के मानसिकता ल देखबे त ए ह अमरबेल कस रोज के रोज छछलत असन जनाथे.
   -महूं ल अइसने जनाथे जी कोंदा. अभी देखना बिहार राज म जाति आधारित जनगणना होय हे त चारों मुड़ा ले एकर ऊपर राजनीतिक तिरिक-तिरा चालू होगे हे.
   -हव जी.. अभी प्रधानमंत्री ह हमर बस्तर म आके कहि दिस के ए देश म गरीबी ह इहाँ के सबले बड़का जाति आय.
   -ए तो वोकर धरम के नॉव म बना के राखे गे वोट बैंक ल बचा के राखे खातिर आय संगी. ए मन नइ चाहय के लोगन धरम के एकमई झंडा ल छोड़ के अलग-अलग जाति के झंडा धर लेवंय.
   - महूं ल अइसने जनाथे जी.. सिरिफ अमीरी-गरीबी ह जाति के मानक होतीस, त इहाँ के उच्च जाति के गरीब मन निम्न जाति के गरीब माने जाने वाला मन संग रोटी-बेटी के संबंध ल हरहिंछा होके बनावत नइ जातीन? फेर ए जगा अमीरी गरीबी के बदला कुल-जात काबर देखे जाथे?

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-छत्तीसगढ़ी भाखा ल कक्षा 1 ले कक्षा 8 तक पढ़ई के माध्यम बनाय खातिर जेन हाईकोर्ट म याचिका दायर करे गे हवय तेमा हाईकोर्ट ह याचिका ल छत्तीसगढ़ी भाखा म का कहिबो कहिके पूछे हवय जी भैरा.
   -जिहॉं तक याचिका शब्द के बात हे, त याचिका माने याचना करना या मॉंगना बर गोहराना या केलौली/गेलौली करना जइसन वैकल्पिक शब्द के उपयोग करे जा सकथे जी कोंदा. फेर मोला लागथे अभी अइसन किसम के जतका भी तकनीकी शब्द हे, वो मनला जस के तस लिए जा सकथे. छत्तीसगढ़ी के गुनिक मन के बीच अभी जेन गोठबात चलत हे, तेमा अइसन निर्णय लिए गे हवय के कोनो भी वाक्यांश ल छत्तीसगढ़ी म तो होना चाही. फेर वोमा हिंदी, अंगरेजी जइसन आने भाखा ले आने वाला शब्द मनला बिना टोर-फोर के जस के तस बउरे म कोनो किसम के अनफभिक नइ होही.
   -तोर कहना महूं ल वाजिब जनाथे. अब हमन टेलीविजन, कम्प्यूटर जइसन शब्द मनला जस के तस बउरथन नहीं. मोला लागथे के जेन शब्द मन आम बोलचाल म हवय, वोकर मन के अनावश्यक अनुवाद या रूपांतरण ले बॉंचे जाना चाही.

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-कहाँ चले जी भैरा.. आज तो गजब चिक्कन-चॉंदन अस जनावत हस?
-शहर कोती जावत हौं जी कोंदा, आज कवि सम्मेलन होवइया हे ना.. चल तहूं चलबे ते..
   -वइसे कवि सम्मेलन सुने तो गजब दिन होगे हे जी, आज कोन-कोन आवत हे ते?
   -वाह.. देश के जतका नामी हास्य कवि हें सबो सकलावत हें.
   -अरे ददा रे.. हास्य वाले मन! त फेर तहीं जा संगी, मोला हाहा-भकभक जमय नहीं, अउ सबले बड़े बात मैं अइसन मनला कवि मानौं नहीं.
   -त कइसन ल कवि मानथस जी?
   -जे मन लोगन के दुख-पीरा अउ न्याय के बात करथें, नीत-अनीत ल फोरिया के सफ्फा-सफ्फा लिखथें-कहिथें ना ते मनला. अउ कहूँ अइसन कबीर परंपरा के कवि मन के सम्मेलन होही ना, त जरूर बताबे.. खंचित जाहूं.

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-ए बछर के नोबेल शांति पुरस्कार खातिर ईरान के मानवाधिकार कार्यकर्ता नरगिस मोहम्मदी के नॉव ल सुन के मन आनंदित होगे जी भैरा.
   -होना ही चाही. जेन किसम ले वो ह ईरान म महिला अधिकार अउ लोकतंत्र जइसन मुद्दा मनला लेके सरलग संघर्ष करे के संग लिखत-पढ़त हे, वो ह सम्मान के पात्र तो बनाबे करथे.
   -हाँ जी.. संघर्ष अउ योग्यता के तो सम्मान होना ही चाही. फेर हमर इहाँ तो अइसन सम्मान ह योग्यता ले जादा आपसी सांठगांठ अउ चापलूसी ऊपर जादा आधारित होथे.
   -हव जी.. तभे तो हमर इहाँ हरि ठाकुर, लक्ष्मण मस्तुरिया अउ खुमान साव जइसन मनला उंकर कद के मुताबिक घलो सम्मान नइ मिल पावय अउ जोक्कड़, जोजवा अउ जुगाड़ू मन अपन घेंच म बड़का-बड़का तमगा लटका के किंजरत रहिथें.

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-चलना रावनभांठा डहार नइ जावस जी भैरा?
  -फेर अभी तो विजयादशमी ह गजब दिन बांचे हे ना जी कोंदा?
   -अरे.. का बताबे गा, ए बछर रावन बनवाय के जोखा ल मुही ल सौंप दे हे नेताजी ह. वो काहत रिहिसे- हमर पारा के रावन ल वो पारा के रावन ले ऊंचहा बनाना हे.
   -अच्छा..  फेर तुमन ए बात ल जानथौ का के विजयादशमी अउ दशहरा परब ह दू अलग-अलग प्रसंग के सेती मनाए जाथे?
   -नहीं भई.. हमन तो राम-रावन के छोड़े अउ कुछूच ल नइ जानन.
   -हाँ.. असल म राम-रावन वाले परब ह विजयादशमी आय अउ दशहरा ह दंस+हरा माने दंसहरा अर्थात विषहरण के परब आय. फेर हमर मन के अज्ञानता के सेती ए दूनों परब  ल संघार के एकमई कर दिए गे हे.
   -वाह भई!
   -समुद्र मंथन ले निकले विष के पान करे सेती भोलेनाथ ल नीलकंठ कहे गे रिहिसे ना.. तेकरे सेती ए परब के दिन नीलकंठ माने टेहर्रा चिरई ल देखना शुभ माने जाथे. अउ विषहरण के पॉंच दिन पाछू फेर अमरित पाए के परब शरदपुन्नी के रूप म मनाथन, काबर के विषहरण के पॉंच दिन बाद समुद्र मंथन ले अमृत निकले रिहिसे.

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-हमन लइका रेहेन त रोज बिहनिया प्रभात फेरी निकाल के गाँव भर घूमन अउ देश भक्ति गीत संग भजन कीर्तन घलो करत राहन जी भैरा.
   -हव जी कोंदा.. फेर अब के लइका मन तो बेरा उवे के बाद सूत के उठथें, तहाँ ले मोबाइल-सोबाइल म अॉंखी गड़िया के बइठ जाथें.
   -सही आय जी.. एकरे सेती अभी के लइका मन पहिली असन चेम्मर बानी के नइ जनावंय.. देखबे ते एकदम फोसफोसहा बानी के हरू जनाथें.
   -फेर कतकों जुन्ना बेरा के लोगन अभी ले प्रभात फेरी के टकर ल छोड़े नइएं. अभी 6 अक्टूबर के स्वामी आत्मानंद जी के जयंती के दिन अइसने एक सियान भक्तूराम वर्मा के स्वामी जी के जनमभूमि गाँव बरबंदा म सम्मान करे गिस.
   -अच्छा..
   -हव.. भक्तूराम वर्मा ह अभी 75 बछर के सियान होगे हे, अउ वोला बिना नागा के प्रभात फेरी करत 50 बछर ले आगर होगे हे.

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-एदे आचार संहिता लगे के संग चुनावी डुगडुगी बाजगे जी भैरा. तैं ए बछर कोन पार्टी ल वोट देबे ते?
   -मैं पार्टी के आधार म कभू वोट नइ देवौं जी कोंदा. हमर क्षेत्र ले जे उम्मीदवार सबले गुनी, काम-बुता म सक्रिय अउ हमर अस्मिता संग मया करइया जनाथे उहीच ल वोट देथौं.
   -तब तो तोर वोट पाए मनखे ह कतकों पइत हार घलोक जावत होही?
   -हार-जीत ले मतलब नइ राखौं संगी, मैं सबो दृष्टि ले अपन सिद्धांत के मुताबिक योग्य मनखे ल वोट डारे हौं, ए बात के मन म संतुष्टि होथे, इही ह मोर बर सार बात आय.
   -बने बात आय जी, अब महूं ह पार्टी-उर्टी के बदला मनखे अउ वोकर योग्यता ल देखहूं.
  -जरूरी हे, काबर ते कभू-कभार पार्टी के नॉव म खेदू-बिसाहू किसम के लोगन ल घलो चुनावी मैदान म उतार दिए जाथे, अइसन मन ले हमला सावचेत रहे बर लागही.

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