Wednesday 11 October 2023

कोंदा भैरा के गोठ-5


-मैं गुनत रेहेंव जी भैरा के अनाथ लइका मन ल राखे बर जेन अनाथाश्रम बनाए जाथे, उहंचे वृद्धाश्रम म रहइया सियान मनला घलो रखे जाही त उन सबो बर आपस एक परिवार असन हो जाही. लइका मनला सियान अउ सियान मनला लइका मिल जाही. फेर अभी कांकेर के अनाथालय म एक झन लइका ल उहाँ के कर्मचारी ह पटक पटक के मारत रिहिसे तइसनो ले बांचहीं.
   -तोर कहना तो ठउका हे जी भैरा, फेर उंकर मनके देखरेख कोन करही, काबर ते  इही उमर म लइका अउ सियान दूनों मन के जादा ले जादा देखरेख के जरूरत होथे.
    -वाह.. आपस म एक दूसर के आसरा बनहीं अउ ए सबो झन संघरा रइहीं त उहाँ के कर्मचारी मन घलो सोझबाय बुता काम बने करहीं.

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-पुरखा मन के सुरता ल कइसे सुग्घर गढ़न ले संजो के रखे जाथे, एला देखना हे त कभू बस्तर किंजर के आबे जी भैरा
    -कइसे संजोथें जी कोंदा?
   - जेन जगा उनला दफनाए जाथे ना ठउका वोकरेच बाजू म पखरा के या लकड़ी के सुग्घर चित्रकारी ले सजे खाम गड़ियाये जाथे, आजकाल सीमेंट के घलो बना देथें
   -अच्छा!
   -हहो.. अउ वो खाम म ना वो आदमी के आदत व्यवहार अउ कुछू सपना या रुचि ले संबंधित चित्र घलो बनाए जाथे. इतिहासकार मन बताथें तीन हजार बछर ले आगर होगे हे उहाँ के ए परंपरा ल. उहाँ के कतकों अइसने पखरा ल पुरातत्व स्थल अवशेष अधिनियम के अंतर्गत संरक्षित स्मारक घोषित घलो करे गे हे.

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-ए बछर तो दू ठी सावन बतावत हें जी भैरा, तुंहर मन के तो गदर हो जाही.
   -का बात के गदर जी कोंदा?
   -महादेव म परसाद चढ़ावत हन कहिके आठ हफ्ता ले गांजा-भांग झड़कहू!
   -अइसन नोहय बइहा असल म तैं ह अइसन चढ़ाए के दर्शन ल समझे नइ हस.
   -कइसे भला?
   -अइसन जिनिस मनला भगवान ल चढ़ाए के मतलब होथे- उनला अइसन नशा पानी के जिनिस ल समर्पित कर के हमन एकर मन ले मुक्त हो जावन. अच्छा.. तैं ह एक बात तो बता.
   -का?
   - भगवान तो समुद्र मंथन के जहर ल घलो पीये रिहिसे, त फेर तहूं मन जहर काबर नइ पीयव?

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-ए परलोखिया बुजा मन कहाँ-कहाँ ले इहाँ आगे हें, अउ लंदर-फंदर नियम-कायदा बनावत रहिथें.
  -कइसे का होगे जी भैरा.. अपने-अपन बड़बड़ावत कहाँ जावत हस?
   -देखना जी कोंदा.. एदे हमर बस्तरिहा बजार के रौनक कहे जाने वाला मुर्गा लड़ई म घलो अब प्रतिबंध लगा दे हवय.
  -वाह भई! कोन अइसन करत हे?
   -एदे नारायणपुर ले खबर मिलत हे. परलोखिया मन इहाँ के परंपरा संस्कृति ल जानय समझय नहीं अउ ए कुकरा लड़ई ल जुवा के रूप बतावत हें.
   -अच्छा... टीवी म रोज चार झन कलाकार मन रमी खेले बर लोगन ल गोहरावत रहिथें तेन ह जुवा नोहय.. वोकर जइसन कतकों जुवा-चित्ती ऊपर प्रतिबंध लगाए बर ककरो जॉंगर नइ चलय अउ हमर ए सैकड़ों बछर जुन्ना परंपरा ऊपर प्रतिबंध लगावत हें.

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-छत्तीसगढ़ी जोहार जी भैरा...नाती-बबा के सवारी कहाँ चले हे?
   -छत्तीसगढ़ी जोहार जी कोंदा.. एदे, आज स्कूल के मुंह उघरई हे ना उही म लेगत हौं नाती ल.
   -बहुत बढ़िया.. बने उमर म लइका ल भर्ती करत हस, फेर गुरुजी मनला लइका के मातृभाषा ल छत्तीसगढ़ी लिखे बर कहिबे. नहीं ते बिन पूछे-सरेखे वो मन हिंदी लिख देथें.
   -हहो, छत्तीसगढ़ी च लिखे बर कहिथौं गा, हिंदी हमर देश के राजभाषा संपर्क भाषा जरूर आय.. फेर हमर मन के मातृभाषा तो छत्तीसगढ़ी च ह आय ना.

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-अतेक अकन नवा-नवा बांस मनला लाद के कहाँ चले जी भैरा..
   -एदे जी कोंदा.. गेंड़ी बनाहूं कहिके लेगत हौं बांस मनला.
    -वाह भई... फेर अतेक अकन बांस के गेंड़ी म तैं अकेल्ला मनखे कइसे चढ़बे?
   -अरे.. मोर चढ़े बर नहीं जी संगी, गुनत हौं ए बछर ले हरेली परब म गेंड़ी बेंचे के धंधा करे करहूं.
   -अच्छा.. गेंड़ी बेंचे के रोजगार चलाबे!
   -हहो.. अब देखना.. लइका मन हरेली म गेंड़ी चघे के सउंख तो करथें, फेर उनला गेंड़ी बनाय बर आवय नहीं. एकरे सेती मैं गुनत रेहेंव के गेंड़ी बेंचे के धंधच कर लिए जाय.
   -ठउका सोंचे हस संगी, अरे आजकाल के लइका मनला तो छोड़ उंकर दाई-ददा मनला घलो गेंड़ी बनाय बर नइ आवय. बने रट्ठ मार के चलही तोर धंधा ह. फेर हमर संस्कृति के बढ़वार घलो तो होही तोर अइसन उदिम ले.

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-आज के ए खबर ल पढ़ के मन खुश होगे जी भैरा.
   -का खबर हे जी कोंदा.. का लिखाय हे?
   -एमा लिखाय हे, के हमर इहाँ के पुलिस विभाग म आरक्षक खातिर जेन 13 झन किन्नर मन के चयन  होए रिहिसे ना उंकर मन के प्रशिक्षण पूरा होगे, अब उनला अलग अलग थाना मन म पोस्टिंग करे जाही.
    -ए तो वाजिब म बढ़िया खबर आय संगी, ए उपेक्षित लोगन ल घलो समानता के व्यवहार मिलही.
   -तोर कहना सही हे जी, फेर असल बात तो तब हे, जब समाज के नजरिया बदलही, इहू मनला समान नजर ले देखे अउ अपनाए जाही.

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-इहाँ के आदिवासी समाज ह गैर आदिवासी मन संग बिहाव कर के भगइया नोनी मन के परिवार ऊपर एक लाख रुपिया के डांड़ लगाय के नियम बनाय हें जी भैरा.
   -हौ जी कोंदा.. सुने तो महूं हौं.. अउ इहू सुने हौं, के जे परिवार वाले मन डांड़ नइ देहीं तेकर मन के सामाजिक बहिष्कार करे जाही.
   -वइसे ए डांड़-बोड़ी वाले नियम ह मोला थोकुन बने असन घलो लागत हे जी संगी, काबर ते अभी हमर धरम के चोला ओढ़ के दूसर धरम के शातिर टूरा मन इहाँ जेन किसम के लव जिहाद के खेल खेलत हें ना, तेकर ले नोनी मनला सावचेत राखे के बात ल बल मिलही.
   -तोर कहना सही हे जी.. ठीक हे मया-पिरित ह प्राकृतिक जिनिस आय.. एमा जाति-धरम या उमर के कोनो बंधना नइ राहय, फेर मया के नॉव म छल अउ धोखा करना तो बने नोहय ना.

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-हमर पहला तिहार हरेली ल बने-बने मना डारेव जी भैरा?
   -हौ जी कोंदा बने-बने मना डारेन गा, फेर ए हरेली परब ह हमर संस्कृति के पहला परब नोहय जी.
   -अच्छा! फेर सब झन तो काली एकर बधाई देवत  पहला काहत रिहिन हें जी.
   -असल म का हे ना.. जे मन इहाँ के मूल परब-तिहार के मुड़ी-पूछी तक ल नइ जानॅंय, तेही मन इहाँ के संस्कृति के अगुवा बने फोकटइहा म मटमटावत रहिथें, ए सब वोकरे मन के नादानी के सेती बगरे बात आय. असल म हमर संस्कृति के पहला परब अक्ती ह आय संगी, जे दिन 'मूठ धरे' के रूप म किसानी के शुरुआत होथे, जम्मो पौनी-पसानी अउ खेतिहर श्रमिक मन के नवा बछर खातिर नियुक्ति होथे. एकर पाछू जुड़वास आथे जेला माता पहुंचनी घलो कहिथन अउ वोकर बाद सवनाही आथे, तेकर पाछू फेर हरेली आथे जी संगी.

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-ए सोशलमीडिया के ठीहा मन तो ठगिक-ठगा के जबर साधन बनत जावत हे जी भैरा.
   -कइसे का होगे तेमा जी कोंदा?
   -एदे मोर जगा हमर गुरुवईन दाई के फोटू लगे फ्रेंड रिक्वेस्ट आइस त मैं अपन संगी मन संग संघार लेंव.. तहाँ ले का पूछत हस रे ददा.. लंदर-फंदर फोटू अउ मेसेज आए लगिस.
   -अरे मोरो संग वइसने होवत रहिथे संगी... कोनो चिन-चिन्हार के नॉव अउ फोटू लगा के पइसा उवे घलो मॉंगत रहिथे.
   -बाद म मैं गरुवईन दाई ल फोन लगा के पूछेंव त जानेंव, वोकर नॉव अउ फोटू के कोनो दुरूपयोग करत हे.
    -बहुत सावचेत रहे के जरूरत हे संगी, ए सोशलमीडिया लागथे तो बने, फेर कभू-कभार जी के जंजाल बरोबर घलो जना जाथे.

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-अभी बरखा के मौसम म बादर गरजथे तहाँ ले गजब के पुटू फूटथे जी भैरा, एकर मन के साग रांध के खाए म गजबेच आनंद आथे संगी.
   -हहो जी कोंदा सही काहत हस, ए प्राकृतिक मशरूम जेला पुटू, पिहरी आदि कहिथन ए मन गजब के स्वादिष्ट होए के संगे-संग जबर पुष्टई घलो होथे, फेर एमा के कतकों मन जहरीला घलो होथे, तेकरो चेत राखे बर लागथे.
   -अच्छा.. जहरीला घलो होथे?
  -हहो.. अभी हमर छत्तीसगढ़ म पाए जाने वाला पुटू पिहरी मन ऊपर शोध करे वैज्ञानिक के कहना हे- हमर छत्तीसगढ़ म कुल 28 किसम के मशरूम मिलथे, जेमा के 4 किसम के पुटू मन जहरीला होथे. ए पुटू मन लाल, पीला, नीला, हरा, बैगनी, नारंगी आदि रंग के दिखत होही त वोला बिल्कुल नइ खाना चाही. अइसने कहूँ पुटू के छतरी चेपटा असन जनावय तभो वोला नइ खाना चाही.

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-अंधविश्वास ह लोगन के जिनगी ल नरक असन बना देथे, ए बात ल तो देखे अउ सुने रेहेन जी भैरा, फेर अब भगवान मन घलो एकर नॉव म अपन अस्तित्व के संकट म पर जाही, अइसन पहिली बेर देखत हावन.
    -कइसे का होगे जी कोंदा?
    -एदे.. हमर बस्तर के नारायणपुर जिला के भोंगापाल ले खबर आय हे. उहाँ पुरातत्वीय महत्व के भगवान बुद्ध के एक मूर्ति हे, वोला खुरच-खुरच के लोगन चारों मुड़ा ले चीथ डारे हें, अउ काबर जानथस?
   -बताना संगी.
   -वो मूर्ति के संबंध म ए अंधविश्वास हे, के जे ह वोकर चूर्ण ल कोनो नोनी ल खवा देथे, त वो नोनी ह चूर्ण खवाने वाला मनखे के मया म सबर दिन बर मोहाय रहिथे.
   -वाह रे अंधविश्वास.. मतलब भगवान के मूर्ति ले निकले धुर्रा ह मोहनी के दवई बन जाथे.

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-अब लोगन चातुर्मास म घलो बर-बिहाव करे बर धर लिए हें जी भैरा, एदे देख ले आजे के पेपर म छपे हे- रायपुर के दूनों आर्य समाज मंदिर म रोज-दिन बिहाव करइया मन आवत रहिथें. कोर्ट मैरिज करइया मन घलो रोज इहाँ के कोर्ट म बिहाव करत हें. 
    -त का होगे जी कोंदा. अरे भई हमर इहाँ के मूल संस्कृति म जब चातुर्मास के महीना म भगवान के बिहाव हो जाथे त लोगन ल बिहाव करे म का मनाही हे.
    -अच्छा.. भगवान के बिहाव होथे चातुर्मास म?
   -हहो.. सावन म भीमा-भीमिन के अउ कातिक अंधियार पाख म गौरा-ईसरदेव के. वइसे भी इहाँ के मूल संस्कृति म चातुर्मास के व्यवस्था लागू नइ होवय जी संगी. हमर संस्कृति ह निरंतर जागृत देवता मन के संस्कृति आय.

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-का बात हे.. एकदम खांटी नेता डरेस म गुलदस्ता धर के कहाँ चले जी भैरा?
   -आज हमर पार्टी के माटी पुत्र नेता के जनमदिन हे ना जी कोंदा, उही म संघरे बर जावत हौं.
    -अच्छा... माटी पुत्र नेता के.. उही ना.. जेन राष्ट्रीयता के नॉव म पर के भाखा, पर के संस्कृति अउ पर के गौरव ल मुड़ म लाद के किंजरत रहिथे... फेर मैं पूछथौं संगी.. हमर अस्मिता के जम्मो चिन्हारी के उपेक्षा करने वाला मनखे माटी पुत्र कइसे हो सकथे?
   -अरे वाह.. हमर ए माटी म जनम धरे हे, त माटी पुत्र कइसे नइ होही?
   -सिरिफ जनम धरे भर म कुछू नइ होय संगी. इहाँ के भाखा, संस्कृति अउ अस्मिता खातिर जे मन तन-मन-धन ले बुता करथे ते मन असल म माटी पुत्र होथे, अउ जे मन सिरिफ पर के पछलग्गू होथे ना.. असल म वो मन सिरिफ माटी के पुतला होथे.
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-छत्तीसगढ़ सरकार ह जब ले छत्तीसगढ़िया ओलंपिक के नॉव म इहाँ के पारंपरिक खेल-कूद मन के आयोजन करत हे, तब ले एक ले बढ़ के एक प्रतिभा मन आगू आवत हें जी भैरा.
   -हव जी कोंदा सिरतोन आय. अभी देखना दुरुग वाली मंटोरा दाई के गेंड़ी म उस्तादी देखई ल. चारों मुड़ा ले मोहनी होगे हे. वोकर विडीयो ह भारी वायरल होवत हे.
   -हव जी.. अइसने हर क्षेत्र के प्रतिभा मन आगू आवत हें. जेन छत्तीसगढ़िया मनला खेल-कूद म फोसवा हें काहत रिहिन हें, तेही मन अपन जबर जोश अउ प्रतिभा के प्रदर्शन करत हें.
    -सिरतोन आय जी.. प्रतिभा ल जब अवसर मिलथे तभे वो अपन असल रंग ल देखाथे. पहिली घलो अइसने अवसर मिले रहितीस, त पहिली च ले हमर इहाँ के प्रतिभा मन दिखे ले धर लिए रहितीन.

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-अब महिला मन सिरतोन म चारों मुड़ा बरोबरी के भागीदारी करत आगू बढ़त हें जी भैरा.
    -हाँ ए बात तो वाजिब आय जी कोंदा.
   -ए बछर ना... हमर छत्तीसगढ़ पुलिस के महिला सिपाही मन स्वतंत्रता दिवस के कार्यक्रम म बैंड बाजा के धुन म पहिली बेर तिरंगा ल सलामी देहीं.
   -अच्छा.. तब तो ए बछर के स्वतंत्रता दिवस वाले परेड ल देखे बर जाना च परही जी संगी.
   -हव जरूरी हे.. एकर खातिर ए मनला छै महीना के विशेष प्रशिक्षण दे गे हवय.
   -अच्छा.. तब तो फेर हर बछर अब एकर मन के करतब देखे बर मिलही जी.

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