Wednesday 11 October 2023

कोंदा भैरा के गोठ-3


-अभी जम्मो राजनीतिक दल वाले मन सामाजिक सद्भावना सप्ताह चलावत हें जी भैरा, चलना कुंदरा पारा नइ जावस?
   -सद्भावना सप्ताह के कुंदरा पारा ले का संबंध हे जी कोंदा?
   -वाह.. गौंटिया पारा के मन उहाँ घरों-घर आज अपन पार्टी वाले मन संग जेवन करहीं ना.
   -अच्छा! त अतके भर तहाँ ले सद्भावना आ जही ना?
   -पार्टी वाले मन तो अइसने कहिथें रे भई...
   -कभू कुंदरा पारा वाले मनला घलो गौंटिया पारा वाले मन घरों-घर बला के झारा-झारा खवाहीं-पियाहीं, उंकर पॉंव पखारहीं तब तो सद्भावना आवत दिखही जी संगी.

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-बबा-नाती के जोड़ी कहाँ चलत हे जी भैरा?
   -एदे गा.. सरकार ह अंगरेजी स्कूल खोले हे ना तेने म भर्ती कराए बर लेगत हौं.
   -वाह भई! फेर तैं तो महतारी भाखा म प्राथमिक शिक्षा होना चाही कहिके गोठियावत रहिथस ना?
   -गोठियाथौं घलो अउ चाहथौं घलो, फेर काय करबे जी संगी.. बेरा के संग रेंगे बर घलो लागथे. देखना.. अभी ए स्कूल मन म लइका मनला भर्ती ले खातिर जतका जगा हे, वोकर ले चार गुना आवेदन तो एकेच दिन आगे हे काहत हें. तब तहीं बता मोर पिछवाय रहना ह वाजिब हे का?
   -तोर ल तैं जान जी, फेर मैं अपन घर के लइका ल अपनेच गाँव के स्कूल म भेजिहौं अउ सरकार ल महतारी भाखा म प्राथमिक शिक्षा खातिर दंदोरत रइहौं.

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-इहाँ के कतकों क्षेत्र ले आजकाल बड़ा अभियावन बानी के खबर आवत हे जी भैरा
   -वो का?
   -हमर इहाँ के कतकों समाज म बेटी मनला पुरखौती जमीन-जायदाद म बांटा दे के परंपरा हे ना, वो समाज के बेटी मनला मया-जाल म फांस के उंकर संग बिहाव कर लेथें, तहाँ ले वोकर बांटा के जमीन ल अपन नॉव म लिखवा लेथें तहाँ ले इहाँ के निवासी तो बनीच जाथें, संग म वो जमीन मनला बेच देथें या फेर वोला आने धंधा के जरिया बना लेथें.
   -वाह भई! ए तो बड़ा चिंता के बात आय. ए सब बाहिर ले लोगन मन जादा करत होहीं?
   - हहो... कतकों जगा ले इहू सुनई म आवत हे, जेकर मन के नाॅव म जमीन नइ राहय, वो मनला अन्ते ले जाके बेंच देथें, माने मानव तस्करी करथें.
   -ओहो.. ए तो अउ जादा चंडाली बात आय. आखिर अइसन लइका मन के आॅंखी कब उघरही ते?

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-हमर संस्कृति तो निरंतर जागृत देवता के संस्कृति आय जी भैरा, तभो लोगन मुहरूत-फुहरूत के झमेला म काबर परे रहिथे?
   -तोर कहना वाजिब हे जी कोंदा. हमर देवता न सूतय, न उंघावय, न थिरावय त फेर कुछू बुता करे खातिर शुभ-अशुभ के झंझट म परे के जरूरते नइए. जइसे मनखे के जनमे अउ मरे खातिर कोन मुहरूत देखे बर नइ लागय, ठउका वइसनेच वोकर अउ आने बुता खातिर घलो कुछू देखे-सुने बर नइ लागय.
    -ठउका कहे जी. शुभ अशुभ कुछू होथे, त हमर करम ह होथे. बने बुता करे त शुभ अउ गिनहा म अभरगे त अशुभ.

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-तोर लिखे मन तो चारों मुड़ा अबड़ छपत रहिथे जी भैरा, एको दिन तोर घर आके सबो लिखे मनला एकमई देखे के मन होवथे.
   -अभी वैज्ञानिक आविष्कार के सेती इंटरनेट म जे मन हावय, तेला तो तोला घर बइठे पढ़वा देहूं जी कोंदा, फेर पहिली के छपे किताब अउ कतरन मन सब दान-पुन्न अउ चढ़ावा म चल देहे.
   -मतलब?
   -हमर सियानीन ह भारी धारमिक अउ दानी गढ़न के हे ना. एकरे सेती जब कोनो दुकान वाले ल सामान लपेट के बेचे बर थथर-मथर करत देखथे, त कतकों ल उहाँ अमरा देथे, अइसने कभू अग्नि देवता ल लरघियावत देखथे त ओला बने भभकाय खातिर ओमा हूम डार देथे अउ कभू-कभू दियाॅंर बपरा मनला भूख मरत देखथे त उहू मनला जेवन करा देथे.

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-हमर गाँव नगरगाँव के नॉव म नगर घलो हे अउ गाँव घलो. पुरखा मन का गुन के अइसन नॉव धरे होहीं जी?
   -हमर गाँव के उत्ती मुड़ा म जेन जुन्ना डीह हे ना, उही ह एकर असल कारण आय.
   -वो कइसे?
   -हमर ए गाँव ह पहिली कोनो विकसित नगर रिहिसे. ए डीह ह वोकरे चिनहा आय. बाद म कोनो कारन ले वो ह उजर गे, त फेर बाद म वोकरे उप्पर मुड़ा म फेर ए गाँव ह बसत गिस, तेकरे सेती ए नगर उप्पर म बसत गाँव ह नगरगाँव कहाइस.
   -अच्छा.. तभे वो जुन्ना डीह ले लोगन ल कभू हंडा, कभू बटलोही, कभू जुन्ना सिक्का त कभू टुटहा बर्तन-भांड़ा मिलत राहय ना जी.
   -हहो जी.. डाॅ. लक्ष्मीधर झा जी ह प्रसिद्ध इतिहासकार डाॅ. रमेन्द्रनाथ मिश्र जी के मार्गदर्शन म हमर गाँव के ए डीह ऊपर जेन शोध कारज करे हे ना, उहू ह एला कोनो बेरा के विकसित अउ समृद्ध नगरी के रूप म चिन्हित करे हे.

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-अहा.. घाम भारी लाहकत हे ददा.. दे तो जी भैरा तुंहर घर फ्रिज के जुड़ पानी होही ते?
   -आ बइठ.. थोकिन थिराले जी कोंदा. तहाँ ले तोला बढ़िया करसी के जुड़ पानी पियाहूं. डॉक्टर मन के कहना हे- तापमान कहूँ 40 डिग्री ले आगर होइस, तहाँ बाहिर ले आए के तुरते बाद कृत्रिम जुड़ पानी नइ पीना चाही, एकर ले हमर शरीर के छोटे नस (रक्त वाहिका) ह फट सकथे अउ  अटैक आए के खतरा घलो रहिथे.
   -अरे.. टोटा हर तो चपियाय असन करत हे ददा!
   -बस दुएच मिनट छॉंव म जुड़ा ले तहाँ ले हमर घर के करसी के जुड़ पानी बने साॅंस भर के पी लेबे.

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-मोला एक बात के गजब संसो होथे जी भैरा
   -का बात के जी कोंदा?
   -इही के- हमर इहाँ के माटी पूत मन लोटा धर के अन्ते ले अवइया मन संग चुनावी कुश्ती म कइसे हार जाथें?
   -चुनाव म बाहिर-भीतर ले जादा लोगन के आदत-व्यवहार ह मायने रखथे जी संगी.
   -वो कइसे?
   -अब तैं ह जेन लोगन ल छोटे-बड़े, ऊँच-नीच अउ बड़हर-गरीब के भेद करत दुत्कालत रहिबे, उंकर हिनमान करत रहिबे, अउ गुनबे के चुनाव के बखत ए सब तोला बाहिरी-भितरी के नॉव म वोट दे दिहीं, त तोर गुनई ह अबिरथा आय संगी.

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