Friday 20 February 2015

सुशील भोले के चार डांड़ी... (3)

कतकों जी-हुजुरी करले नइ मिलय अधिकार
थोर-बहुत भले मिल जाही चटनी के चटकार
एक बात तो गांठ बांध ले तैं भोले के बानी
जब लड़बे तैं भीरे कछोरा होही तभे उजियार

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जे सच के संगवारी होथे  तेला तो दुख मिलथे
कभू-कभू लबरा-टोली अपमान घलो कर देथे
फेर बेरा के पासा घलो चलथे गजब के चाल
जतका लंदी-फंदी उंकर जी-जंउहर कर देथे

            ***

लिगरी लगाथे अब मुड़ी के चूंदी
डाढ़ी अउ मेंछा ल कइसे के छेंकी
चारों मुड़ा होगे सादा-कपसा सहीं
उमर उडिय़ावत हे बनके फुरफुंदी

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