Thursday, 1 July 2021

षष्ठी पूर्ति.. सुशील भोले

षष्ठीपूर्ति : वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुशील भोले जी

हमारे देश में ऐसे पूर्णकालिक साहित्यकार बहुत कम हैं जो पूरी तरह लेखन में समर्पित हो और जिन्होंने लेखन को ही अपनी आजीविका बनाया हो। अक्सर होता यह है कि जिनकी आजीविका के लिए एक सुविधाजनक सरकारी नौकरी हो और वह लेखन और स्वाध्याय में रुचि रखता हो वही अंशकालिक रूप से लेखन में जुड़ जाता है। ऐसे लोग अक्सर सरकार के शिक्षा विभाग से जुड़े होते हैं। लेकिन मैं आज छत्तीसगढ़ के एक ऐसे सुपरिचित साहित्यकार का जिक्र करना चाहता हूँ जिनके पास कोई सुविधाजनक सरकारी नौकरी नहीं थी और जिन्होंने अपनी रुचि के अनुसार जीवनमार्ग पर चलने का हौसला दिखाया। हम बात कर रहे हैं आध्यात्मवादी साहित्यकार, कवि और गीतकार सुशील भोले जी की। जिनका आज जन्मदिवस है और साथ ही षष्ठीपूर्ति भी।

सन् 1961 में आज ही के दिन शुभ मुहूर्त में भोले जी का जन्म नगरगाँव, थाना धरसींवा, जिला रायपुर में पिता श्री रामचंद्र वर्मा और माता श्रीमती उर्मिला देवी की दूसरी संतान के रूप में हुआ। चार भाइयों और दो बहनों मे भोले जी दूसरे क्रम के हैं। भोले जी के पिता श्री रामचंद्र वर्मा प्राथमिक शाला के शिक्षक थे। शिक्षक की संतान में लेखन-पठन का संस्कार होना स्वाभाविक होता है। इसी संस्कार में कवि, लेखक और संपादक होने के बीज छिपे हुए थे जिसे भविष्य में एक विशाल  जीवनदायी और फलदायी वृक्ष का आकार लेना था। इसी दिशा में पदार्पण करते हुए ग्यारहवीं की परीक्षा पास करने के बाद प्रिंटिंग के क्षेत्र में विशेष रुचि ने उन्हें इसी ट्रेड में आई.टी.आई करने के लिए प्रेरित किया।

आई.टी.आई. से डिप्लोमा प्राप्त करने के पश्चात कुछ प्रेसों में कम्पोजिटर का काम किया। पहले वे दैनिक अग्रदूत (तब वह साप्ता‍हिक था) में रहे। वहां उनकी साहित्यिक प्रतिभा को देखकर कम्पोजिटर से संपादकीय विभाग में लाया गया। यहाँ उल्लेखनीय है कि भोले जी को शासकीय प्रेस भोपाल में नौकरी मिल गई थी लेकिन छत्तीसगढ़ महतारी के माटी प्रेम ने उन्हें महतारी भुँइया से अलग नहीं होने दिया।  दैनिक अग्रदूत में ही सन् 1983-84 में उनकी पहली कविता एवं कहानी का प्रकाशन हुआ। प्रदेश के यशस्वी व्यंग्यकार प्रो. विनोद शंकर शुक्ल जो अग्रदूत के साहित्यिक परिशिष्ट के संपादक थे, उन्होंने ही उनकी रचनाओं में आवश्यक संशोधन (संपादन) कर प्रकाशित किया था। इसके पश्चात फिर उनकी लेखनी सरपट दौड़ने लगी, जो अब तक सरपट दौड़ रही है।
दैनिक अग्रदूत के पश्चात कुछ दिन दैनिक तरूण छत्तीसगढ़, दैनिक अमृत संदेश एवं दैनिक छत्तीसगढ़ में सह संपादक के पद पर कार्यरत रहे। बीच में सन् 1988 से 2005 तक स्वयं का व्यवसाय- प्रिटिंग प्रेस संचालन, मासिक पत्रिका ‘मयारू माटी’ का प्रकाशन-संपादन एवं ऑडियो कैसेट रिकार्डिंग स्टूडियो का संचालन किया। टेक्नोलॉजी बदलने के कारण उन्हें अपने निजी प्रेस का संचालन बंद करना पड़ा उसके साथ ही संपूर्ण छत्तीसगढ़ी की पहली पत्रिका 'मयारू माटी' भी बंद हो गई। कुछ अंतराल के बाद वे ब्लॉग लेखन की दुनिया में भी आए और एक कुशल ब्लॉगर के रूप में भी ख्याति प्राप्त किए। कवि सम्मेलनों में सामाजिक, राजनीतिक विद्रुपताओं और विसंगतियों पर प्रहार करती उनकी कविताओं की एक अलग ही धमक महसूस की जा सकती है-

पहुना मन बर पलंग-सुपेती, अपन बर खोर्रा माची
उंकर दोंदर म खीर-सोंहारी, हमर बर जुच्छा बासी
मोला गुन-गुन आथे हांसी, रे ....

जेन उमर म बघवा बनके, गढ़ते नवा कहानी
तेन उमर म पर के बुध म, गंवा डारेस जवानी
आज तो अइसे दिखत हावस, जइसे चढग़े हावस फांसी .. रे ...

:

आधा बुता के अभी आधा बधाई
नइया पार लगही, ते होही करलाई..

कोरोना के नांव म
अबड़ बुता पिछवागे
फेर कइसे निगम-मंडल म
राजनीतिक मन अगुवागें?
बस भाखा-संस्कृति के
चेत नइ आइस
लइका मन के पाठ्यक्रम म
महतारी भाखा जगा नइ पाइस.
तोर अधिकारी मन
गजब लाहो लेवत हें
इहाँ के पाठ्यक्रम म
आने-आने भाखा ल
जोंगत हें
लइका मन बर शिक्षा
सहज बन पाही
ते परदेशिया राज सही
हो जाही भुगताई?

छत्तीसगढ़िया स्वाभिमान रैली म
नंगत हम संघरे रेहेन
क्रांति के गीत गा-गा
लोगन ल दंदोरे रेहेन
फेर छत्तीसगढ़िया राज
अभी घलो लागथे
जइसे मुसवा ल ताकत हे बिलाई

अभो आस बांचे हे, होही ठोसहा काज
छत्तीसगढ़ म चलही आरुग छत्तीसगढ़िया राज
नइ बांचही कुछु आधा न होही दंतनिपोराई
आधा बुता के अभी आधा बधाई...

पिताजी स्व. श्री रामचंद्र वर्मा प्राथमिक शाला में शिक्षक थे, इसलिए निम्न-मध्यम वर्गीय परिवेश में पालन-पोषण हुआ। पिताजी के पास पै‍तृक ग्राम नगरगांव में पैतृक संपत्ति के रूप में एक कच्चा मकान, खलिहान तथा करीब दो एकड़ खेत था। चार भाइयों के बीच हुए बंटवारा के पश्चात अब स्थायी संपत्ति के नाम उनके पास संजय नगर (टिकरापारा) रायपुर स्थित एक छोटे मकान के अलावा उनके पास और कुछ भी नहीं है। चार भाइयों और दो बहनों में दूसरे नंबर के भोले जी की तीन संतानों में तीनों ही लड़कियां हैं, जिनका विवाह हो चुका है। पत्नी श्रीमती बसंती देवी वर्मा मात्र प्राथमिक तक शिक्षित है, इसलिए उससे लेखन या पठन-पाठन के क्षेत्र में कोई सहयोग का सवाल ही नहीं उठा। बल्कि कई महत्वपूर्ण प्रकाशनों की कतरनें और किताब आदि भी उसकी अज्ञानता की भेंट चढ़ गई।

मानव जीवन में पल-पल परीक्षा की घड़ियों से सामना करना पड़ता है जिसमें बहुत कम लोग ही पास होते हैं, वरना लोग तो परिस्थितियों के आगे घुटने टेककर वह कैरियर अपना लेते हैं जो उनकी रुचि से कतई मेल नहीं खाता। इस मामले में सुशील भोले को मैं उन बिरले लोगों में मानता हूँ जिन्होंने अपने मन की सुनी और उसे चरितार्थ भी किया। आध्यात्म क्षेत्र में उनका पदार्पण इसी की बानगी है। सन् 1994 से 2008 तक 14 साल की लंबी अवधि वे आध्यात्म और शिवोपासना में रमे रहे और सुशील वर्मा से सुशील 'भोले' हो गए।

भोले जी का रचना संसार भी बहुत व्यापक है। उनकी प्रकाशित पुस्तकें निम्नानुसार हैं-
1. छितका कुरिया (काव्य  संग्रह) 
2. दरस के साध (लंबी कविता)
3. जिनगी के रंग (गीत एवं भजन संकलन)
4. ढेंकी (कहानी संकलन)
5. आखर अंजोर (छत्तीसगढ़ की मूल संस्कृति पर
    आधारित लेखों का संकलन)
6. भोले के गोले (व्यंग्य संग्रह)
7. सब ओखरे संतान (चरगोड़िया मनके संकलन)
8. सुरता के बादर (संस्मरण मन के संकलन)

कालम लेखन- 
1. तरकश अउ तीर (दैनिक नवभास्कर सन-1990)
2. आखर अंजोर (दैनिक तरुण छत्ती‍सगढ़
     2006-07)
3. डहर चलती (दैनिक अमृत संदेश- 2009)
4. गुड़ी के गोठ (साप्ताहिक इतवारी अखबार 2010
    से 2015)
5. बेंदरा बिनास (साप्ताहिक छत्तीसगढ़ सेवक
    1988-89)
6. किस्सा कलयुगी हनुमान के (मासिक मयारू माटी
    1988-89)

अन्य लेखन-
1.प्रदेश एवं राष्ट्रीय स्तर के अनेक पत्र-पत्रिकाओं में लेख, कविता, कहानी, समीक्षा, साक्षात्कार आदि का नियमित रूप से प्रकाशन।
2. ‘लहर’ एवं ‘फूलबगिया’ ऑडियो कैसेट में गीत लेखन एवं गायन।
3. अनेक सांस्कृतिक मंचों द्वारा गीत एवं भजन गायन

संपादन एवं प्रकाशन-
1. मयारू माटी (छत्तीसगढ़ी भाषा की प्रथम संपूर्ण
    मासिक पत्रिका)

सह संपादन-
1. दैनिक अग्रदूत
2. दैनिक तरुण छत्तीसगढ़
3. दैनिक अमृत संदेश
4. दैनिक छत्तीसगढ़ ‘इतवारी अखवार’
5. जय छत्तीसगढ़ अस्मिता (मासिक)
6. अनेक साहित्यिक एवं सामाजिक पत्र-पत्रिकाओं में

इतनी साहित्य सेवा के बाद भी एक साहित्यकार का जो मूल्यांकन होना चाहिए वह नहीं हुआ। यह भोले जी का एक त्रासद पक्ष है। छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के संघर्ष में भी उनकी महती भूमिका थी। लेकिन उनके संघर्षों को भी राज्य निर्माण के बाद भुला दिया गया। वह श्रेय उनको नहीं मिला जिसके वे हकदार थे।

आर्थिक स्थिति तो पुस्तैनी रूप से ही कमजोर थी जो आगे भी कभी मजबूत नहीं हुई। पिताजी स्व. श्री रामचंद्र वर्मा प्राथमिक शाला में शिक्षक थे, इसलिए निम्न-मध्यम वर्गीय परिवेश में पालन-पोषण हुआ। अभी भी आर्थिक रूप से लगभग यही स्थिति है। इसके पूर्व सन् 1994 से 2008 तक के आध्यात्मिक साधना काल में सभी प्रकार के अर्थापार्जन के कार्यों से अलग रहने के कारण अत्यंत गरीबी का सामना करना पड़ा, जिसका असर बच्चों  के भरण-पोषण पर भी हुआ।
24 अक्टबूर 2018 से लकवा रोग से पीड़ित होने के कारण घर पर ही रहकर साहित्य साधना कर रहे भोले जी पर शायद भोले जी की बड़ी कृपा है। कोई भी पुत्र न होने के बाद उन्हें पुत्रियों के भाग से पुत्र स्वरूप तीन दामाद मिले हैं, जो इस अस्वस्थता में उनकी जैसी तीमारदारी कर रहे हैं उतना शायद सगे बेटे भी न करते।

सम्मान- 
1. छत्तीसगढ़ी राजभाषा आयोग द्वारा सन 2010 में प्राप्त ‘भाषा सम्मान’ सहित अनेक साहित्यिक, सांस्कृतिक एवं सामाजिक संगठनों द्वारा सम्मानित।

विशेष-
1. छत्तीसगढ़ के मूल आदिधर्म एवं संस्कृति के लिए विशेष रूप से लेखन, वाचन, प्रकाशन एवं जमीनी तौर पर पुनर्स्थापना के लिए कार्यरत। इसके लिए सन् 1994 से 2008 तक (करीब 14 वर्ष) साहित्य, संस्कृति कला एवं गृहस्थ जीवन से अलग रहकर विशेष आध्यात्मिक साधना के माध्यम से आत्मज्ञान प्राप्त किया।

2. गुजरात की राजधानी अहमदाबाद में 8 अक्टूबर 2017 को भारत सरकार के सहित्य अकादमी द्वारा गुजराती एवं छत्तीसगढ़ी साहित्य का आयोजन किया गया। जिसमें मैं प्रतिभागी के रूप में कवितापाठ किया। छत्तीसगढ़ी के अन्य प्रतिभागियों में डॉ. केशरीलाल वर्मा, डॉ. परदेशी राम वर्मा, रामनाथ साहू एवं मीर अली मीर जी भी सहभागी थे।

श्री रामचंद्र वर्मा, जिनके द्वारा लिखित प्राथमिक हिन्दी  व्याकरण एवं रचना (प्रकाशक- अनुपम प्रकाशन, रायपुर) संयुक्त मध्यप्रदेश के समय कक्षा तीसरी, चौथी एवं पांचवीं में पाठ्य पुस्तक के रूप में चलती थी। मुझे याद आ रहा है हिंदी व्याकरण की यह पुस्तक मैंने भी पढ़ी थी। तब मुझे कहाँ पता था कि इन्हीं के सुपुत्र सुशील भोले जी आगे चलकर मेरे साहित्यिक मित्र बनेंगे। ऐसे गुणी पिता के होनहार पुत्र भोले जी अपने पिताश्री और उनके द्वारा लिखित व्याकरण पुस्तक को अपने लेखन का प्रेरणास्रोत मानते हैं।

किन्ही वरिष्ठ साहित्यकार ने कहा है, पहले सौ लाइन पढ़ो तब एक लाइन लिखो। यही लेखन का प्रथम गुर है। पता नहीं आज के स्वनामधन्य लेखक, कवि और साहित्यकार इस गुर पर कितना अमल करते हैं। पर भोलेजी इस परीक्षा में भी असफल नहीं हैं। उनका स्वाध्याय भी कितना व्यापक है उस पर भी एक नजर डाल ही लिया जाए-
अध्यात्म में – कबीर दास जी, अंतर्राष्ट्रीय में – गोर्की,
राष्ट्रीय में – मुंशी प्रेमचंद, स्थानीय में – लोक जीवन एवं जन चेतना से जुड़े प्राय: सभी लेखक।

लक्ष्य
उनकी हार्दिक इच्छा है कि छत्तीसगढ़ के मूल आदि धर्म एवं संस्कृति के मापदंड पर यहां के सांस्कृतिक-इतिहास का पुर्नलेखन हो। क्योंकि अभी तक यहां के बारे में जो भी लिखा गया, या लिखा जा रहा है, वह उत्तर भारत से आए ग्रंथों के मापदंड पर लिखा गया है। इसलिए ऐसे किसी भी ग्रंथ को छत्तीसगढ़ के धर्म, संस्कृति एवं इतिहास के संदर्भ में मानक नहीं माना जा सकता। इसलिए आवश्यक है कि छत्तीसगढ़ की संस्कृति को, धर्म या इतिहास को इसके अपने संदर्भ में लिखा जाए। इस लक्ष्य प्राप्ति की दिशा में वे अस्वस्थता की दशा में भी प्राणप्रण से जुटे हैं। साहित्य, कला, संस्कृति और आध्यात्म के उन्नयन में छत्तीसगढ़ को उनसे बड़ी अपेक्षाएँ हैं।
लेकिन फिलहाल उनकी आर्थिक विपन्नता, अस्वस्थता और अर्थोपार्जन में असमर्थता को देखते हुए भोले जी को तत्काल मासिक पेंशन की जरूरत है। ऐसी घोषणा करने की अपेक्षा लोकप्रिय मुख्यमंत्री माननीय भूपेश बघेल जी से है। यही उनकी षष्ठीपूर्ति और जन्मदिन की श्रेष्ठ बधाई और उपहार होगा।

आज उनके जन्मदिन पर हम उन्हें बधाई देते हुए उनके पूर्ण स्वास्थ्य लाभ की कामना करते हैं। उनके सफल और सक्रिय भविष्य की शुभकामना के साथ जन्मदिन की हार्दिक बधाई प्रेषित करते हैं।
जोहार छत्तीसगढ़!

संपर्क- सुशील भोले, 54/191, डॉ. बघेल गली, संजय नगर (टिकरापारा) रायपुर, मो.नं.- 9826992811.

-दिनेश चौहान,
छत्तीसगढ़ी ठीहा, शीतला पारा, नवापारा-राजिम।

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