Friday 8 October 2021

किताब.// दिनेश चौहान.. सांच कहे

किताब के गोठ//
महतारी भाखा बर तुतारी कोंचत "साँच कहे तो..."
     छत्तीसगढ़ी म गाये-बजाए, नाचे-कूदे, लड़े-झगरे अउ जम्मो ओढ़ना-दसना बरोबर ओढ़े-बिछाए के आस लिए एकसुर्री लेखन कारज म भिड़े दिनेश चौहान जी के अभी एक नवा किताब हाथ म आए हे- "साँच कहे त़ो मारन धावै". एक फर्रा देखे म एमा के अबड़ अकन ह पहिली देखे-पढ़े बरोबर जनाइस. फेर सुरता घलो आवत गिस. दिनेश चौहान मूल रूप ले चित्रकार आय. मैं खुद उँकर जगा अपन किताब अउ कतकों आने कारज खातिर मयारुक रेखांकन करवा डारे हँव, तेकर सेती उँकर ए गुन ल ठउका चिन्हथँव. जइसे उँकर चित्र मन संबंधित विषय के भाव ल झट एक नजर म फोरिया देथे, ठउका उँकर लेखन घलो ह वइसने गढ़न के जगजग ले जना जाथे. एकर पहिली उँकर 'कइसे होही छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया', 'छत्तीसगढ़ी  बर तुतारी', अउ 'चौखड़ी जनउला' पढ़े बर मिले रिहिसे. सबो म महतारी भाखा बर पीरा अउ एकर बढ़वार के उदिम के पंदोली के आसा दिखत रिहिसे.
अभी ए जे 'साँच कहे तो मारन धावै' आए हे, ए ह वइसे तो चार अलग अलग खण्ड म खँचाय हे, फेर एकर पहला खण्ड ह पूरा के पूरा छत्तीसगढ़ी भाखा ऊपर समर्पित हे. इही वो खण्ड घलो आय, जेला ए किताब के आत्मा घलो कहि देबो त कोनो गलती नइ होही.
   वइसे खण्ड दू, तीन अउ चार घलो पढ़े अउ गुने के लाइक हे. खण्ड दू म जिहाँ कुछ महत्वपूर्ण विषय ऊपर उँकर गंभीर चिंतन देखे बर मिलथे, उहें खण्ड तीन म उँकर एक प्रखर व्यंग्यकार के रूप के आरो मिलथे. खण्ड चार आज दुनिया भर म महामारी के रूप म चिन्हें जावत 'कोरोना' खातिर एक आलोचनात्मक नजरिया के रूप आय. सोशलमीडिया म जे मन दिनेश चौहान जी के संग जुड़े होहीं, वो मन उँकर ए रूप ल ठउका देखे होहीं. अउ जानत घलो होहीं, के ए रोग ल महामारी घोषित करे ले लोगन ल कतका किसम के दुख-पीरा अउ समस्या मन  जूझना परिस. फेर आज ए किताब ल पढ़े के बाद मोर पूरा के पूरा मनसुभा खण्ड एक ऊपर ही गोठियाए के होगे हे.
   दिनेश चौहान जी के ए कहना सही आय के इहाँ छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग के गठन होए दशक भर ले आगर बेरा होगे हे, फेर जेन किसम ले एकर माध्यम ले ठोस बुता होना रिहिसे वो आज तक नइ हो पाइस. वोमन खुद शिक्षा माध्यम ले जुड़े हें, तेकर सेती एकर संबंध म ठउका जानथें अउ पढ़ई के माध्यम म संघरे के महत्व अउ प्रक्रिया ल घलो समझथे. एकरे सेती उन जोर देके एला कक्षा 1 ले कक्षा 10 तक कोनो न कोनो किसम ले संघारे के बात करथें. आठवीं अनुसूची म शामिल करे के ठोसलग गोठ करथें. मानकीकरण के विषय म अपन विचार ल स्पष्ट करथें. अंगरेजी के हिमायती मन के अंधदौड़ म छत्तीसगढ़ी कोन मेर खड़े हे, तेकरो संसो करथें. फेर जिहाँ तक संस्कृति के बात हे, त उन अभी के नवा सरकार के उदिम ल सकारात्मक ढंग ले देखथें. फेर जिहाँ तक मोर बात हे. मैं एकर ले सहमत नइ हँव. काबर ते आज संस्कृति के नाँव म कला के मंचीय रूप ल देख के ही लोगन सांस्कृतिक विकास के मानक ल पूर्ण समझे बर धर लिए हें.
    मैं दिनेश चौहान जी के संगे-संग अउ जम्मो लेखक बिरादरी मन ले जोजियाना चाहथौं, उनला बताना चाहथौं, के संस्कृति के केवल मंचीय पक्ष ल नहीं, भलुक एकर आध्यात्मिक पक्ष ल देखे के जरूरत हे. आज मोला संत कवि पवन दीवान जी के वो बात के सुरता आवत हे, जब वो मन डा. परदेशी राम वर्मा जी संग मिलके माता कौशल्या के नाँव म जमीनी अभियान चालू करे रिहिन हें. तब वो मन एक बात हर मंच म काहँय- 'बंगाल के मन अपन देवी देवता धर के आइन हम उँकरो पाँव परेन, उत्तर प्रदेश अउ बिहार के मन अपन देवता धर के आइन हम उँकरो पाँव परेन, पंजाब अउ गुजरात के मन अपन देवता धर के आइन हम उंँकरो पाँव परेन. भइगे चारों मुड़ा के देवता मन के पाँव परई चलत हे. फेर मैं पूछथौं अरे ददा हो, भइगे दूसरेच मन के देवता के पाँव परत रहिबो त अपन देवता के पाँव कब परबो??"   ए बात ल घलो सबो लेखक बिरादरी ल समझे बर लागही, के हमला अपन पारंपरिक देवता मन के पाँव ल अपन पारंपरिक पूजा-उपासना के विधि ले अउ हमर खुद के जीवन पद्धति के अंतर्गत ही जीए बर लागही. धरम अउ संस्कृति के नाँव म कोनो भी किसम ले आने राज्य ले आने वाले मन के पाछू जाए के टकर ल छोड़े बर लागही तभे सही मायने म अलग राज निर्माण के उद्देश्य सार्थक हो पाही.
    मोला पुरखा साहित्यकार हरि ठाकुर जी के वो बात के घलो सुरता आवत हे, जब छत्तीसगढ़ राज बने के बाद छत्तीसगढ़ी साहित्य के जलसा म उन कहें रिहिन हें- "जब तक छत्तीसगढ़ी भाखा अउ संस्कृति के स्वतंत्र चिन्हारी नइ बन जाही, तब तक राज निर्माण के अवधारणा अधूरा रइही."  एकरे सेती मोरो जम्मो छत्तीसगढ़ी के हितवा मन ले अरजी हे, सबो झन भाखा के संगे-संग संस्कृति, खास कर के आध्यात्मिक संस्कृति खातिर घलो चेत करँय तभे अलग छत्तीसगढ़ राज निर्माण के पुरखा मन के सपना ह सही अर्थ म साकार हो पाही.
' साँच कहे तो मारन धावै' खातिर दिनेश चौहान जी ल ए अरजी संग बधाई अउ शुभकामना के अब अपन लेखनी के रद्दा ल भाखा संग संस्कृति खातिर घलो धराही.
-सुशील भोले
संजय नगर, रायपुर
मो/व्हा. 9826992811

No comments:

Post a Comment