Friday 1 July 2022

'ढेंकी' के समीक्षा पोखनलाल जायसवाल


      
*छत्तीसगढ़ी अस्मिता अउ स्वाभिमान के प्रतीक  :  ढेंकी*

       हमर छत्तीसगढ़ संस्कृति, बोली-भाखा, रीत-रिवाज अउ लोकसाहित्य ले अपन अलगे चिन्हारी रखथे। कोनो भी परम्परा ह एक समय के पाछू संस्कृति के रूप म बदल जथे। छत्तीसगढ़ राज बर जउन भी आन्दोलन होय हे, वो सबो शांतिपूर्ण रहे हे। राज बन भी गे, फेर अपन राज बने के अपन सुख आजो नइ मिल पावत हे। छत्तीसगढ़ी ल ओ सम्मान नइ मिल पाय हे। जे कोनो राजभाषा ल मिलथे। भाषा संस्कृति के पोषक होथे। भाषा ले ही संस्कृति के बढ़वार हे, भाषा संस्कृति के संवर्धन बर खातू-पानी जस उपयोगी होथे। संस्कृति ल मिले गौरव ले अंतस् म अभिमान जागथे। अपन अस्मिता अउ अस्तित्व बर स्वाभिमान के होना जरुरी आय। अपन अस्मिता अउ अस्तित्व बर लड़ाई लड़े ल परथे। साहित्य ले साहित्यकार मन जागरण के अलख जगाथें। जन जन म चेतना भरथें। जनजागरण लाय म कहानी मन के बड़ भूमिका होथे। कहानी कोनो घटना ल लेके जिनगी ल नवा रस्ता दिखाय के बूता करथे। निराशा के अँधियारी ल मेट आशा के अँजोर बगराथे। कहानीकार मन अपन गढ़े पात्र मन के माध्यम ले कहानी म अपन विचार ल लिखथें। मानवीय मूल्य मन ल सहेज के समाज ल नवा दिशा देथें। समाज म फइले अंधविश्वास, कुरीति अउ आडंबर ल दूर खदेड़थें त दूसर कोती शोषण, भ्रष्टाचार, भेदभाव के विरुद्ध फौज खड़ा करथें। स्वाभिमान, अस्मिता अउ अस्तित्व बर संघर्ष करे के ताकत अंतस् म जगाथें।
        छत्तीसगढ़ अउ छत्तीसगढ़ी अस्मिता बर जिनगी भर संघर्षरत रहे सुशील भोले जी मन छत्तीसगढ़िया समाज म जनजागरण लाय के उदिम म कतको आन्दोलन म भाग लिन। इँकर अलावा उन मन साहित्य के माध्यम ले जागरण के स्वर ल जन-जन तिर पहुँचाय बर कहानी लिखिन। उही कड़ी म 13 कहानी मन के संग्रह ढेंकी निकालिन। ढेंकी छत्तीसगढ़ी स्वाभिमान अउ अस्मिता के प्रतीक आय। राज बने के पहिली गँवइहाँ जिनगी म ढेंकी घरोघर पाय जावत रहिस हे। पौनी पसारी के बूता कमइया मन रोज बनी भूती ले के बनी म मिले धान ल कूटँय, तब जाके घर के चूल्हा म आगी बरै। आज के सहीं तब गाँव-गँवई के दूकान मन म चाँउर नइ बेचावत रहिस हे। काम के बलदा म धान मिलत राहय। जेन ल कूट के खावँय। सबो गाँव म मिल नइ राहत रहिस। ढेंकी गरीब मजदूर वर्ग के प्रतिनिधित्व करथे। छत्तीसगढ़ के लोकजीवन ले जुड़े एक चिन्हारी आय ढेंकी।
         ए संग्रह के कहानी मन के संवाद मन अइसे लागथे, जना मना हमरे तिर तखार के गोठ बात हरे।जम्मो जिनिस मन आँखीं के आगू म फिलिम बरोबर दिखे लगथे। पात्र मन के मुताबिक संवाद लिखाय ले कहानी मन कोनो सच्ची घटना बरोबर लागथे। जेन मन ला कहानीकार ह अपन भाषई चतुरई ले कल्पना के पाग धरे लाड़़ू बरोबर बाँध डरे हे। भाषा के मिठास म  बूड़े पाठक कब कहानी ल पढ़ डारथे पार नइ पावँय। कल्पना के पाँख लगाय बिना कहानी म विस्तार नइ लाय जा सकय अउ अपन उद्देश्य ल पूरा नइ करे जा सकय। कुल मिला के ए कहे जा सकत हे कि कहानी मन अपन शिल्प म कहूँ मेर कोनो किसम के समझौता नइ करे हे। भाषा सरल सहज हे। पठनीय हे। मुहावरा अउ हाना मन ल बउरे ले कहानी के सुघरई बाढ़ गे हे।
       संवाद मन मन म गहिर छाप छोड़थे---"का करबे सेठईन..तुहीं मालिक मन घर ले काठा पइली पाथन, तेने ल अतके बेर कूट काट के राखथन, तभे चूल्हा बरथे....बइठे तक के फुरसुद नइ मिलय।"
       एक ठन अउ संवाद देखव, जेन म समाज के कर्ता-धर्ता मन के सुभाव म आय बदलाव ल सरेखत व्यंग्य हे अउ एक संदेश घलव हे---
" का करबे बेटी हमूँ मन तोरे जात समाज के होतेन त एती तेती कइसनो करके तोर हाड़ म हरदी चढ़ाए के बेवस्था ल करबे करतेन।फेर तोर समाज आन अउ हमर आन। कइसे ककरो घर उदुप ले चल देबे? तुँहर समाज के जतका झन हें...देखे भर के हें। ....समाज के नाँव म सिरिफ राजनीति करे...समाज के मन मरय ते बाँचय....।"
     हमर संस्कृति अउ संस्कार ल बट्टा लगइया मन ऊप्पर बरसत अपन अंतस् के पीरा ल कहिथे..." कहाँ ले दिखही बेटा कमाए-खाए ले आए रिहिन हें, फेर अब तो इही मन इहाँ के मालिक बनगे हें, हमर संस्कृति इतिहास अउ चिन्हारी के प्रवक्ता बनगे हें। ए मन लोगन ल हमर बारे म जइसन बताथें, चिन्हाथें, तइसने लोगन हम ल जानथें, चिन्हथें।"
      अब कुछ कहानी मन के स्वर के गोठ बात कर लन।
       संग्रह के नाँव ऊप्पर के कहानी ढेंकी म नियाव के बखत कोनो छोटे-बड़े नइ होवय। सब बरोबर होथे। नियाव सब ल मिलही। नियाव म भेद नइ करे जाय। इही सब बात के परछो मिलथे। अब वो जमाना गय जब गाँव पंचइत म नियाव मनखे चिन्ह के होवत रहिस। कहानी के छेवर ह मुंशी प्रेमचंद जी के पंच परमेश्वर के सुरता करा गिस।
         गुरु बनावौ जानके म विकास के लालीपाप धरा के हमर संस्कृति अउ परंपरा ल मेटत हम ल लुटइया मन ले बाँचे बर चेतवना हे।
         धरम युद्ध म राम राज के मरम अउ महत्तम ल बताय गे हे। अपन राज म अपने मनखे ल राजा के रूप म देखे के सपना पूरा होवत दिखाय गे हे। साँस्कृतिक हमला के कथानक ऊप्पर लिखे कहानी म बाहरी अउ स्थानीय म फरक करे के मूल स्वर हे।
         "धरमिन दाई" पात्र ल ही दान दे के संदेश देथे। पात्र मनखे नइ मिले ले समाज ल दान करके सामाजिक हित म धन दौलत लगाना चाही। जेकर ले समाज के उत्थान हो सकय। एकर संग कहानी म नारी शिक्षा बर बड़ संदेश हे।
      संसार के चक्र ल बनाय रखे म कन्या दान जरुरी हे। बेसहारा अउ अनाथ बेटी के बिहाव रच के पुन कमाय के नवा रद्दा दिखाय के कहानी आय "नवा रद्दा"। जेन म
       "एंहवाती" छत्तीसगढ़िया का?पूरा भारतीय समाज म विधवा के जिनगी ल सँवारे के उदिम म करे गे बेवस्था ल सही ठहरावत सुग्घर पारिवारिक अउ सामाजिक कहानी  आय। जे समाज म नारी ल हँसी खुशी के संग जिनगी जिएँ के मौका दे के रस्ता खोलथे।
          "अमरबेल" क्षेत्रीयता के स्वर ल मुखर ढंग ले पिरोए हे। अमरबेल प्रतीक के रूप म उपयोग करे गे हे। जउन ल परदेशिया मन बर बउरे गे हावय। परदेशिया मन हमरे आसरा लेके हमीं ल कइसे चूस डरथे? मन के बात गड़रिया जानै। इहीच भाव परदेशिया मन के अंतस् म रहिथे। जेन उजागर नइ होय। इही बात ल अमरबेल म कहानीकार मन रखे के उदिम करे हें।
       बड़े आदमी ( गाँव के धनी मनखे अउ नेता/सरपंच मन)के चतुरई अउ गाँव के विकास म भेंगराजी मारे के पोल खोलथे। संगेसंग सरकारी योजना मन के बंदरबाट कइसे होथे? एकर बढ़िया चित्रण "बड़े आदमी" म होय हे।
      डंगचगहा कहानी आस्था, विश्वास के भरोसा मया(प्रेम) के मँझधार म झूलत चंदा के एकतरफा प्रेम कहानी आय।
        "बलवा जुलूम" छत्तीसगढ़ के विकास म बाधा अउ बड़का समस्या नक्सलवाद के कथानक ले सिरजाय गे हे। नक्सली, पुलिस, सेना अउ नेतामन ले त्रस्त आम आदमी के पीरा ल परतवार खोल के रखे म कहानी सक्षम हे। कहानी म नक्सली अउ रक्षा म तैनात रक्षक मन के चरित्र (करिया मन) ल उघार के रख दे हे। कहानी म उँकर करतूत ल पढ़ के मन म आगी लग जथे। उँकर घिन बूता अउ विभत्स रूप ले सलवा जुडूम के दिशाहीन होय के सबूत मिलथे। तभे कहानीकार ह कहानी के नाँव बलवा जुलुम रखे हे।
          संग्रह के आखरी कहानी के शीर्षक मन ल सुख पहुँचाथे। किताब के समापन सुख ले होय म मन म शाँति हमाथे। शिक्षा ले जिनगी के जम्मो सुख पाए जा सकथे, जिनगी म शिक्षा बड़ जरूरी हे। इही संदेश देवत कहानी "मन के सुख" अंजलि के संघर्षमय जिनगी के राम कहानी आय। हाँ! अंजलि के डॉक्टर बने के बात थोकन अचरज लागिस। चौथी तक पढ़े अंजलि सग्यान होय ले गिरहस्थी जिनगी म पहुंचिस अउ फेर गिरहस्थी टूटे के पाछू पढ़ई करत डॉक्टर बनई ह मोर समझ नइ आइस। हाँ! लेखक ल हक हे, के पात्र ल कइसे गढ़ना हे? अउ कहानी ल कइसे मोड़ देना हे अउ कोन मेर खत्म करना हे?
           ए संग्रह के मूल स्वर तो छत्तीसगढ़िया अस्मिता अउ संस्कार ल समेटे क्षेत्रीयता ल सजोर करे के हावय। क्षेत्रीयतावाद ह राष्ट्र हित म सही नइ होवय। राष्ट्रीयता के मार्ग म क्षेत्रीयता ह बाधा आय। फेर भारत जइसन देश बर क्षेत्रीयता ह माला के एक ठन मोती सहीं होथे। जउन ल राष्ट्रीयता के सुतरी म पिरो-पिरो के माला ल पूरा गुँथे जा सकत हे। बस क्षेत्रीयता ह कट्टरता के हद ल पार झन करँय। संस्कृति अउ परंपरा लोगन ल जोर के रखे के बड़का बँधना आय। इही म बँध के ही मनखे सही मायने म अउ आने जीव मन ले श्रेष्ठ होथे। एक-दूसर के क्षेत्रीय संस्कृति, परंपरा, संस्कार अउ रिवाज ल कमजोर झन करन। नइ तो अवसरवादी मन अपन मकसद म कामयाब हो जही।
         ए संग्रह के आधा ले जादा कहानी मन बहुत पहिली लिखे गे कहानी आय, फेर इँकर प्रासंगिकता आजो हे। पाठक के मन ल जरूर हरषाही। सुग्घर-सुग्घर कहानी मन के बढ़िया संग्रह बर कहानीकार सुशील भोले जी ल बधाई अउ शुभकामना पठोवत हँव।

*संग्रह - ढेंकी (द्वितीय संस्करण)*
*कहानीकार - सुशील भोले*
*प्रकाशक - स्मृति प्रिंट हाऊस रायपुर*  
*वर्ष  - 2020*
*मूल्य - 260/-*
*पृष्ठ - 112*

✍️ *पोखन लाल जायसवाल*

पलारी (पठारीडीह)
जिला -बलौदाबाजार छग.
9977252202

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