Tuesday, 9 March 2021

पुतरी अउ करनफुल ...

पुतरी... करनफूल….
                 साथियो, हमारा छत्तीसगढ़ विभिन्न पारंपरिक और सांस्कृतिक विशेषताओं के साथ-साथ आभूषणों के मामले में भी समृद्ध है। हमारे पारंपरिक आभूषण हमें अन्य राज्यों और देश में पृथक पहचान दिलाते हैं। इस वर्ष जनसंपर्क विभाग द्वारा राष्ट्रीय पर्व 26 जनवरी गणतंत्र दिवस के अवसर पर दिल्ली में इन छत्तीसगढ़ी आभूषणों की झांकी भी प्रदर्शित की गयी थी जिसे लोगों ने खूब सराहा। यह झांकी प्रथम स्थान पर भी रही। पिछले दिनों मातृ भाखा (भाषा) दिवस पर विभाग द्वारा प्रेसक्लब में एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया था। इस कार्यक्रम में हमारी माताएं- बहनें ज्यादातर छत्तीसगढ़ी परिधान में ही आई थीं और साथ ही सब तरह-तरह के छत्तीसगढ़ी गहनें पहनी हुई थीं। फोटो में इन दो बहनों द्वारा पहने गए आभूषण लोगों के बीच आकर्षण के केन्द्र में रहे। पहले चित्र में गले में जो गहना पहनी हैं उसे “पुतरी” कहते हैं (यही गहना जब चांदी का बनाया जाता है तो उसे रुपिया कहते हैं और सोने से बने इस गहने को पुतरी कहते हैं) दूसरे चित्र में कान में जो गहना है उसे “करनफूल” कहते हैं। यह झुमके की तरह और आकार में काफी बड़ा होता है।
                             आप सबकी जानकारी के लिए यहां कुछ पारंपरिक गहनों के नाम बताना चाहता हूं। हालांकि आप सब जानते हैं। नाक में पहने जाने वाले गहनों में फुल्ली, नथ, सरजा, गले के गहने सूता, सूतिया, पुतरी, औरीदाना, हंसूली, चैन, माला, सुर्रा, गेहूंदाना, कान के लिए खिनवा, बारी, तितरी, झुमका, करनफूल, ठार, कलाई के लिए पट्टा, अंइठी, चूरी, कड़ा, ककनी, पैरों के लिए कोतरी बिछिया, जाली बिछिया, चुटकी, देवरहा, सांटी/पैरपट्टी, पायल, लच्छा, ठोढ़िया चेनकास करहा, बांह के लिए पहुंचा (बाजूबंद) इसके अलावा ऐंठी, ककनी, बनुरिया, बालों के लिए क्लिप, झाबा आदि।पुतरी... करनफूल….
                 साथियो, हमारा छत्तीसगढ़ विभिन्न पारंपरिक और सांस्कृतिक विशेषताओं के साथ-साथ आभूषणों के मामले में भी समृद्ध है। हमारे पारंपरिक आभूषण हमें अन्य राज्यों और देश में पृथक पहचान दिलाते हैं। इस वर्ष जनसंपर्क विभाग द्वारा राष्ट्रीय पर्व 26 जनवरी गणतंत्र दिवस के अवसर पर दिल्ली में इन छत्तीसगढ़ी आभूषणों की झांकी भी प्रदर्शित की गयी थी जिसे लोगों ने खूब सराहा। यह झांकी प्रथम स्थान पर भी रही। पिछले दिनों मातृ भाखा (भाषा) दिवस पर विभाग द्वारा प्रेसक्लब में एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया था। इस कार्यक्रम में हमारी माताएं- बहनें ज्यादातर छत्तीसगढ़ी परिधान में ही आई थीं और साथ ही सब तरह-तरह के छत्तीसगढ़ी गहनें पहनी हुई थीं। फोटो में इन दो बहनों द्वारा पहने गए आभूषण लोगों के बीच आकर्षण के केन्द्र में रहे। पहले चित्र में गले में जो गहना पहनी हैं उसे “पुतरी” कहते हैं (यही गहना जब चांदी का बनाया जाता है तो उसे रुपिया कहते हैं और सोने से बने इस गहने को पुतरी कहते हैं) दूसरे चित्र में कान में जो गहना है उसे “करनफूल” कहते हैं। यह झुमके की तरह और आकार में काफी बड़ा होता है।
                             आप सबकी जानकारी के लिए यहां कुछ पारंपरिक गहनों के नाम बताना चाहता हूं। हालांकि आप सब जानते हैं। नाक में पहने जाने वाले गहनों में फुल्ली, नथ, सरजा, गले के गहने सूता, सूतिया, पुतरी, औरीदाना, हंसूली, चैन, माला, सुर्रा, गेहूंदाना, कान के लिए खिनवा, बारी, तितरी, झुमका, करनफूल, ठार, कलाई के लिए पट्टा, अंइठी, चूरी, कड़ा, ककनी, पैरों के लिए कोतरी बिछिया, जाली बिछिया, चुटकी, देवरहा, सांटी/पैरपट्टी, पायल, लच्छा, ठोढ़िया चेनकास करहा, बांह के लिए पहुंचा (बाजूबंद) इसके अलावा ऐंठी, ककनी, बनुरिया, बालों के लिए क्लिप, झाबा आदि।
(गोकुल सोनी जी के वाल से)

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