Friday 31 January 2014

नाट्य मंचों की कलाकार ममता अहार

छत्तीसगढ़ नाट्यमंच की जन्मभू्मि है। दुनिया की प्रथम नाट्यशाला यहां के जिला सरगुजा स्थित रामगढ़ पर्वत पर है, जिसे इतिहास प्रसिद्ध भरतमुनि ने पहाड़ की एक गुफा को तराश कर विकसित किया था। स्थानीय लोग इसे सीताबेंगरा के नाम से भी जानते हैं। ऐसा कहा जाता है कि भगवान राम अपने वनवास काल में यहां आये थे, तथा सीता इसी गुफा में रुकी हुई थीं, इसीलिए इस गुफा को सीताबेंगरा कहा जाता है। महाकवि कालिदास से भी इस स्थान का संबंध बताया जाता है। उनकी प्रसिद्ध कृति मेघदूत की सर्जना इसी स्थान पर होना बताया जाता है।

छत्तीसगढ़ में भरतमुनि के साथ प्रारंभ हुए इस नाट्यप्रयोग में यहां के कई प्रसिद्ध व्यक्तित्वों ने इस विधा को आगे बढ़ाया है, इसी के चलते यहां की लोकपरंपरा में अनेक प्रकार के नाट्य रूप देखे जाते हैं। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में जन्मी और पली-बढ़ी ममता अहार भी इसी नाट्यश्रृंखला की एक कड़ी है, जो अपने नाट्य लेखन, निर्देशन और अभिनय के माध्यम से छत्तीसगढ़ की सीमा को लांघकर पूरे देश और विदेशों में भी अपनी सफलता का परचम लहरा रही हैं।

अंतर्राष्ट्रीय कलाकार के रूप में पहचान बना चुकी ममता अहार ने श्रीया आर्ट के सचिव के पद पर रहते हुए अपने निर्देशन में सन् 2009 में अखिल भारतीय सांस्कृतिक संघ पुणे एवं युनेस्को के सहयोग से आयोजित राष्ट्रीय बहुभाषीय नाट्य स्पर्धा में *कलियुग लीला* छत्तीसगढ़ी नाटक में बेस्ट प्रोडक्शन का पुरस्कार जीता था।


संपन्न कृषक परिवार में जन्मी ममता पेशा से शिक्षिका हैं। उनका पैतृक ग्राम-टोर और मेरा पैतृक ग्राम-नगरगांव (धरसींवा, जिला-रायपुर) आपस में जुड़ा हुआ है। हम दोनों के गांव को मुंबई-कोलकाता रेलमार्ग बीच से विभाजीत करता है, यही रेलमार्ग हम दोनों के गांव की सीमारेखा है। ममता श्रेया आर्ट के बैनर पर छोटे-छोटे बच्चों और बड़ों को लेकर तो मंचन करती ही हैं, इनका मीरा, द्रौपदी और यशोधरा जैसे ऐतिहासिक पात्रों पर आधारित एकाभिनय भी देखने योग्य होता है।

रायपुर में इनका जब भी कोई मंचन होता है, तो मुझे जरूर याद करती है। फोन करके कहती है- भैया आपको आना ही है। 31 जनवरी 2010 को एकपात्रीय मीरा का प्रथम मंचन किया गया था, तब से लेकर अब तक इसका करीब 54 बार मंचन हो चुका है। इसी तरह द्रौपदी का 8 बार और यशोधरा का 4 बार।

नाट्य विधा को पूर्णत: समर्पित ममता अपनी हर एकपात्रीय प्रस्तुति के प्रथम मंचन के पूर्व उसका अंतिम रिहर्सल अपने घर पर ही आयोजित करती है, और हमारे जैसे कुछ कला और साहित्य से जुड़े लोगों को आमंत्रित कर उससे संबंधित टिप्पणी भी लेती है। यही ममता की सफलता का प्रमुख कारण भी कि उसे मंच के पर जाने के पश्चात केवल तारीफ ही तारीफ मिलती है। अन्य कलाकारों को भी इसका अनुसरण करना चाहिए।

भरतमुनि के साथ प्रारंभ हुआ छत्तीसगढ़ का नाट्य-संसार ममता अहार जैसे समर्पित कलाकारों के सद्प्रयास से निरंतर समृद्ध होता जा रहा है। हमारी शुभकामना है कि वे निरंतर सफलता की सीढिय़ां पार करती रहें, और अपने साथ ही साथ छत्तीसगढ़ और पूरे देश का नाम रौशन करती रहें।

सुशील भोले
म.नं. 54-191, डॉ. बघेल गली,
संजय नगर (टिकरापारा) रायपुर (छ.ग.)
मोबा. नं. 080853-05931, 098269-92811
ईमेल - sushilbhole2@gmail.com

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