Wednesday 28 April 2021

आमा तिहार..

मरका पंडूम (आमा तिहार)
     बस्तर में नदी नालों के किनारे आम के पेड़ लगाने वाले अपने पूर्वजों को याद कर मरका पंडूम मनाया गया। इस मरका पंडूम द्वारा पेड़ लगाकर सदा के लिए अमर होने की बात बस्तर में अक्षरशः सिद्ध हो रही है। गोंडी में आम को मरका कहा जाता है और पंडुम एक उत्सव या तिहार है।
     अपने पूर्वजों के सम्मान में मरका पंडूम जैसा उत्सव आपको और कहीं भी दिखाई नहीं देगा। मरका पंडूम में किसी एक आम पेड़ के नीचे सभी ग्रामीण एकत्रित होते हैं। उस पेड़ की पूजा करते हैं। फिर पहली बार उस पेड़ से आम तोड़े जाते हैं। वहीं पूजा स्थल पर महिलाएँ आम की फाकियां बनाकर इसमें गुड़ मिलाती हैं। फिर सभी को आम की फांकियां प्रसाद स्वरूप वितरित की जाती है।
    बस्तर मे ऐसी परंपरा है कि जब तक आम, महुआ या ईमली जैसे फलों के तोड़ने लिये ऐसे तिहार (त्यौहार) ना मना लिया जाये तब तक पेड़ों से इन फलों को तोड़ा नहीं जाता है। इसके पीछे मान्यता है कि बिना पूजा किये फल तोड़ने से ग्राम देवता नाराज हो जायेंगे। महामारी फैल जायेगी। सारे पशु मर जायेंगे। इसलिए पहले पूर्वजों को फल अर्पित करने एवं ग्राम देवता की पूजा के बाद ही पेड़ो से फल तोड़ा जाता है।
    गांव के सभी लोग किसी नाले के पास एकत्रित होकर पूर्वजों की याद में वहां आम की फांकियां नाले में विसर्जित करते हैं। फिर वहां जामून की लकड़ी गाड़कर उसके नीचे धान से भरे दोने रखते हैं। उन दोनों पर दीपक जलाये जाते हैं। फिर अपने पितरों को याद करते हुए सुख समृद्धि की कामना करते हैं।
    दूसरे दिन ग्राम के युवा मुख्य मार्गों पर नाका लगाकर मुसाफिरों से उपहार स्वरूप पैसे लेते हैं, यहां लेन देन की प्रतिबद्धता नही होती है जो मिल जाए उसी में खुशी के तर्ज पर संतोष कर लिया जाता है। आमा पंडुम की खुशियां, मिले पैसे से गोठ बनाकर बांटी जाती है।
    बस्तर के विभिन्न क्षेत्रों में अलग अलग  समाजों द्वारा विभिन्न तिथियों को मरका पंडूम मनाते हैं। सामान्यतः मरका पंडूम के लिए अक्षय तृतीया (अक्ती परब) अंतिम दिन होता है। इस दिन जो ग्रामीण मरका पंडूम नहीं मना पाते हैं वे पूरे साल भर आम नहीं खा पाते हैं। मरका पंडूम को आमा जोगानी के नाम से भी जाना जाता है.
( साभार  वीर बघेल,  केशकाल )
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**मरका पण्डुम (आमा तिहार) **
    बस्तर के संस्कृति दुनिया भर म प्रसिद्ध हे । इहाँ के तिजतिहार के  अलग पहिचान हे जेमे मरका पण्डुम  आदिवासी समाज  के खास तिहार में जाने जाथे।
     आमा ह कतको लट-लट ले फरे रहय  या हवा गरेर में गिर जाय फेर तब तक नइ उठाय, नइ खाय जब तक  मरका पण्डुम नइ मना लेय । जब प्रकृति  ह फल फूल के रूप मे कोन्हो नवा चीज देथे त सब ले पहली  ये मन अपन पेन ( देवी-देवता ) पुरखा  ल हुम जग देके वोमे चढाथे । केहे के मतलब ये हे  कि  प्रकृति  ले पाय चीज ल पहली प्रकृति ल लहुटाथे  ये बहुत बड़े बात आय।
     आमा  तिहार म गाँव के हर घर से एक एक आदमी  शिकार करे बर  तीर धनुष, टंगिया, फरसा  धरके जंगल में जाथे । जंगल में बरहा, खरगोश, पडकी, परेवा जो मिल जाय  शिकार करके लाथे । साथ में लकडी के खोल म चमडा के चादर ल ढ़ाक के  पेड के छाल के  रस्सी से बांध के  ढोल बनाय जाथे । शिकार मिले मे इंकर खुशी दिखत बनथे काबर कि शिकार ह ये तय करथे कि अवइय्या  समय म गाँव म धान पान कइसे रही।
    शिकार ल पूरा गाँव म घुमाथे सबो गाँव के मनखे मन येमे शामिल  होके नाचथे गाथे अउ सबो मन वो शिकार ल मिल बांट के खाथें ।
     जे गाँव म आमा तिहार होथे वो गाँव के सियार ल दूसर गाँव के मनखे मन पार करके नइ जा सकय ।येकर बर नाका बनाय जाथे यदि कोन्हो आदमी ल जानच परगे तब नेंग नियम के तौर म कुछ दण्ड के रूप म पइसा कौडी़ देय के जाय ल परथे  येकर ले गाँव के देवी के अपमान नइ होय.
     आमा तिहार म एक गाँव के आदमी
दूसर दिन गाँव के कुल देवी म अपन- अपन घर ले सियाड़ी पेड़ के पत्ता के दोना म धान अउ  साथ म कुकरी, मंद, चउर दार धर के जाथे । कुल देवी म धान आमा के फर अउ कुकरी, मंद चढाके हुम जग देथे अउ सब झन भात साग रांध के आमा तिहार मनाथें। नान-नान पुड़िया म हुम जग देय धान ल घर में लाथे । बाद में खेत म अउ धान मिलाके  छिच देथें.
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