नवरात्रि में कन्या पूजन का महत्व...
नवरात्र पूजन से जुड़ी कई परंपराएं हैं। इनमें से एक है कन्या पूजन। देवी का साक्षात स्वरुप हैं कन्याएं.
शास्त्र कहते है कि नवरात्रि में छोटी कन्या एक तरह की अदृश्य ऊर्जा की प्रतीक होती हैं और उसकी पूजा करने से यह ऊर्जा सक्रिय हो जाती है। इनका पूजन करने वाले को समस्त ब्रह्माण्ड की देवशक्तियों का आशीर्वाद मिलने लगता हैं।
नवरात्रों में कन्या की संख्या के हिसाब से शुभ फल...
धर्म ग्रंथों में 3 वर्ष से लेकर 9 वर्ष की कन्याएं साक्षात माता का स्वरूप मानी जाती हैं।
1. कन्या की पूजा से ऐश्वर्य,
2. की पूजा से भोग और मोक्ष,
3. की पूजा करने से अर्चना से धर्म, अर्थ एवं काम,
4. की पूजा से राज्यपद,
5. कन्याओं की पूजा करने से विद्या,
6. कन्याओं की पूजा से 6 प्रकार की सिद्धि,
7. कन्याओं की पूजा से राज्य,
8. कन्याओं की पूजा से संपदा और
9. कन्याओं की पूजा से पृथ्वी के प्रभुत्व की प्राप्ति होती है।
*नवरात्र में सभी तिथियों को एक-एक और अष्टमी या नवमी को नौ कन्याओं की पूजा होती है।*
हमारी संस्कृति में बड़ा ही अर्थ-गंभीर और महिमामय शब्द कुंवारी कन्याओं के नाम के आगे “कुमारी” और विवाहित महिलाओं के नाम में “देवी” शब्द जोड़कर स्पष्ट किया है कि प्रत्येक नारी देदीप्यमान ज्योतिर्मय सत्ता है। इस कारण अष्टमी और नवमी को घर-घर में देवी की पूजा सिर्फ कन्या के रूप में होती है। वह देवी ही हमें मां के रूप में जन्म देती है। पत्नी के रूप में सुख और पुत्री बनकर आनंद का प्रसाद बांटती है।
नवरात्र पर्व के दौरान कन्या पूजन का बड़ा महत्व है. नौ कन्याओं को नौ देवियों के प्रतिबिंब के रूप में पूजने के बाद ही भक्त का नवरात्र व्रत पूरा होता है. अपने सामर्थ्य के अनुसार उन्हें भोग लगाकर दक्षिणा देने मात्र से ही मां आदि शक्ति प्रसन्न हो जाती हैं. विधिवत, सम्मानपूर्वक कन्या पूजन से व्यक्ति के हृदय से भय दूर हो जाता है। साथ ही मां की कृपा से मार्ग में आने वाली सभी बाधाएं दूर हो जाती हैं।
*देवी का साक्षात स्वरुप हैं कन्याएं*
*कन्या के किस रूप से किस फल की प्राप्ति*
*नवरात्र में सभी तिथियों को एक-एक और अष्टमी या नवमी को नौ कन्याओं की पूजा होती है*
*दो वर्ष की कन्या (कुमारी) के पूजन से दुख और दरिद्रता मां दूर करती हैं*
*तीन वर्ष की कन्या त्रिमूर्ति रूप में मानी जाती है |त्रिमूर्ति कन्या के पूजन से धन-धान्यक आता है और परिवार में सुख-समृद्धि आती है*
*चार वर्ष की कन्या को कल्याणी माना जाता है. इसकी पूजा से परिवार का कल्याण होता है*
*पांच वर्ष की कन्या रोहिणी कहलाती है. रोहिणी को पूजने से व्यक्ति रोगमुक्त हो जाता है*
*छह वर्ष की कन्या को कालिका रूप कहा गया है. कालिका रूप से विद्या, विजय, राजयोग की प्राप्ति होती है*
*सात वर्ष की कन्या का रूप चंडिका का है. चंडिका रूप का पूजन करने से ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है*
*आठ वर्ष की कन्या शाम्भूवी कहलाती है. इसका पूजन करने से वाद-विवाद में विजय प्राप्त होती है. - नौ वर्ष की कन्या दुर्गा कहलाती है. इसका पूजन करने से शत्रुओं का नाश होता है तथा असाध्य कार्यपूर्ण होते हैं*
*दस वर्ष की कन्या सुभद्रा कहलाती है. सुभद्रा अपने भक्तों के सारे मनोरथ पूर्ण करती है |
मान्यता है कि यदि वास्तुदोष से ग्रसित भवन में पांच कन्याओं को नियमित भोजन कराया जाए तो उस भवन के सारे दोष मिट जाते हैं*
*कन्याओं की आयु दो वर्ष से ऊपर तथा 10 वर्ष तक होनी चाहिए और इनकी संख्या कम से कम 9 तो होनी ही चाहिए और एक बालक भी होना चाहिए जिसे हनुमानजी का रूप माना जाता है . कन्या-पूजन के समय एक बालक को भी भोजन कराना बहुत जरूरी होता है. यदि 9 से ज्यादा कन्या भोज पर आ रही हैं तो कोई आपत्ति नहीं है*
*जीवन भर करें इनका सन्मान*
नवरात्रों में भारत में कन्याओं को देवी तुल्य मानकर पूजा जाता है. पर कुछ लोग नवरात्रि के बाद यह सब भूल जाते हैं. कई जगह कन्याओं का शोषण होता है और उनका अपनाम किया जाता है. आज भी भारत में बहुत सारे गांवों में कन्या के जन्म पर दुःख मनाया जाता है |
कन्याओं और महिलाओं के प्रति हमें अपनी सोच बदलनी पड़ेगी. देवी तुल्य कन्याओं का सम्मान करें. इनका आदर करना ईश्ववर की पूजा करने जितना ही पुण्य प्राप्त होता है. शास्त्रों में भी लिखा है कि जिस घर में स्त्रीयों का सम्मान किया जाता है वहां भगवान खुद वास करते हैं |
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