Thursday 30 July 2015

ज्ञान-सार....


* ज्ञान और आशीर्वाद चाहे जहां से भी मिले उसे अवश्य ग्रहण करना चाहिए।

* दुनिया का कोई भी ग्रंथ न तो पूर्ण है, और न ही पूर्ण सत्य है। इसलिए सत्य को जानने के लिए साधना के माध्यम से आत्मज्ञान प्राप्त करें।

* जहां तक सम्मान की बात है, तो दुनिया के हर धर्म और संस्कृति का सम्मान करना चाहिए, लेकिन जीयें सिर्फ अपनी ही संस्कृति को। क्योंकि अपनी ही संस्कृति व्यक्ति को आत्म गौरव का बोध कराती है, जबकि दूसरों की संस्कृति गुलामी का रास्ता दिखाती है।

* महत्वपूर्ण यह नहीं है कि आप कितना अच्छा लिखते या बोलते हैं... महत्वपूर्ण यह है कि क्या आप सत्य लिखते और सत्य ही बोलते हैं?

* सब उनकी ही संतान हैं, इसलिए न तो कोई छोटा है न बड़ा... न कोई ऊँच है न ही कोई नीच...

* सुशील भोले *

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