Monday 26 February 2018

गवन के संदेशा.....


हमारी लोक संस्कृति में कई ऐसी भी परंपराएं हैं, जो देश, काल और समय के अनुसार अपना रूप परिवर्तित कर लेती हैं। गवन या गौन भी उनमें से एक है। वर्तमान पीढी में अनेक ऐसे युवक-युवती हो सकती हैं, जो इस परंपरा से शायद अनजान भी हों।

पहले हमारे यहां "बाल विवाह" की परंपरा काफी प्रचलित थी, इसलिए विवाह के पश्चात नव-व्याहता को उसके मायके में ही रहने दिया जाता था। वर-वधू दोनों जब गृहस्थ जीवन में प्रवेश कर लेने की उम्र में पहुंच जाते थे, तब गौना या गवन के रूप में विवाहिता की पुनः विदाई की जाती थी।

वर्तमान समय में वर-कन्या का विवाह काफी परिपक्व उम्र में किया जाता है, इसलिए गवन या गौना की परंपरा काफी कम ही देखने में आती है। लेकिन इसका एक परिवर्तित रूप आज भी प्रायः सभी जगहों पर देखने में आता है। नव-व्याहता विवाह के पश्चात भले ही तुरंत अपने पति के साथ ससुराल में रहने लगे, किन्तु विवाह के पश्चात का प्रथम होली पर्व वह अपने मायके में ही मनाती है। यह प्रथा गवन या गौना का ही परिवर्तित रूप है।

फाल्गुन पूर्णिमा से लेकर चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की प्रथमा तिथि के बीच का जो पंद्रह दिनों का समय होता है, वही गवन या गौना का असली समय होता है। भारतीय परंपरा के अनुसार फाल्गुन माह वर्ष का अंतिम माह होता है, तथा चैत्र शुक्ल पक्ष प्रथमा से नव वर्ष माना जाता है। इसलिए नव वर्ष पर नव ब्याहता को लिवाकर लाना शुभ माना जाता था।

हमारे लोक गीतों में गवन की इस परंपरा के लिए काफी प्रचलित गीत भी हैं-
ये दे लाल लुगरा ओ पिंयर धोती गवन के लाल लुगरा...
कहंवा ले आथे तोर लाली-लाली लुगरा, कहंवा ले आथे पिंयर धोती गवन के लाल लुगरा....
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एक गीत काफी लोकप्रिय हुआ है-
जरगे मंझनिया के घाम आमा तरी डोला ल उतार दे....

इस विषय पर एक गीत मैं भी लिखा हूं-
महर-महर महके अमराई फागुन के संदेशा ले के
बारी म कुहके कारी कोइली सजन के संदेशा ले के...

-सुशील भोले
डाॅ. बघेल गली, संजय नगर, रायपुर (छत्तीसगढ)
मो. 9826992811, 7974725684

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