Thursday 21 April 2022

कलावंत दाऊ महासिंह चंद्राकर

28 अगस्त पुण्यतिथि म सुरता//
सोनहा बिहान के सपना ल जीवंत करइया कलावंत दाऊ महासिंह चंद्राकर
    हमर इहाँ जब कभू  छत्तीसगढ़ी सांस्कृतिक मंच के सोनहा बेरा के सुरता करे जाही, त सन् 1970 अउ 80 के दशक ल हमेशा गौरव काल के रूप म चिन्हारी करे जाही. 'चंदैनी गोंदा' अउ 'कारी' के माध्यम ले जिहां दाऊ रामचंद्र देशमुख जी एकर नेंव रचे के बुता करिन, उहें दाऊ महासिंह चंद्राकर जी 'सोनहा बिहान' अउ 'लोरिक चंदा' के माध्यम ले वो नेंव म जबर महल-अटारी बनाए के कारज ल सिध पारिन. मैं इन दूनों पुरखा ल गंगा-यमुना के पवित्र संगम बरोबर इहाँ के सांस्कृतिक मंच ल उज्जर-निरमल करइया के रूप म देखथौं. एक बेर मैं उनला ए बात ल कहे घलो रेहेंव. मोर भेंट इंकर मन संग पहिली बेर तब होए रिहिसे, जब छत्तीसगढ़ी मासिक पत्रिका 'मयारु माटी' के विमोचन खातिर पहुना के रूप म बलाए बर दूनों झन के सहमति लेना रिहिसे.
    बात सन् 1987 के नवंबर-दिसंबर महीना के आय. तब मोर सलाहकार रहे वरिष्ठ साहित्यकार-पत्रकार टिकेन्द्रनाथ टिकरिहा जी के रद्दा बताय म दूनों पुरखा के इहाँ जाना होवत राहय. तब घंटो चर्चा घलो चलय. छत्तीसगढ़ी गीत-संगीत, कला अउ साहित्य के संगे-संग छत्तीसगढ़ी समाज के दशा-दिशा ऊपर घलो गोठबात होवय. दूनों आरुग छत्तीसगढ़ी सांचा म ढले राहयं, तब मैं उनला काहवं- आप दूनों मोला गंगा-यमुना के संगम बरोबर जनाथव. दाऊ रामचंद्र देशमुख जी जिहां गंगा बरोबर तेज-तर्रार जनाथें, उहें दाऊ महासिंह चंद्राकर जी यमुना बरोबर धीर-गंभीर लागथें. उन दूनों मुस्कुरा देवत राहयं.
    वइसे मोर बइठकी तो दूनों संग होवय, फेर जादा गोठबात दाऊ महासिंह चंद्राकर जी संग जादा होवय. कतकों बखत तो उन अपन कोनों आदमी ल भेज के घलो मोला बलवा लेवत रिहिन हें. एक पइत तो 'लोरिक चंदा' के प्रदर्शन देखाय खातिर अपन संग बिलासपुर जिला के एक गाँव लेगे रिहिन हें, जिहां वरिष्ठ साहित्यकार श्यामलाल चतुर्वेदी जी के सम्मान करे रिहिन हें. उंकर मनके ए बुता मोला गजब सुग्घर लागय. वो मन अपन हर मंच म कोनो न कोनो साहित्यकार के सम्मान जरूर करयं, तेकर पाछू फेर कार्यक्रम के प्रस्तुति देवयं.
    दाऊ रामदयाल चंद्राकर के सुपुत्र के रूप म गाँव आमदी म 19 मार्च 1919 के जनमे दाऊ महासिंह चंद्राकर के जुड़ाव कला डहार बचपन ले रिहिसे. उंकर प्राथमिक शिक्षा तो आमदीच म होइस. आगू के पढ़ई खातिर दुरुग भेजे गइस. उहाँ के स्कूल म उंकर पढ़ाई होए लागिस, फेर उंकर चेत कला डहार जादा जावय. अपन संगी मन संग रात-रात भर जाग के नाचा-गम्मत देख देवयं. लेद-बरेद छठवीं कक्षा पास करिन अउ पढ़ेच बर छोड़ दिन. सियान मन घलो थक-हार के वोला कुछु बोले बर छोड़ दिन.
    पढ़ई छोड़े के बाद तो महासिंह जी पूरा के पूरा कला खासकर के लोककला के विकास खातिर समर्पित होगें. कलागुरु मनके संगति करना अउ लोककला ल उजराना, नवा-नवा कलाकार मनला मांजना उनमा निखार लाना इही सब उंकर मिशन बनगे राहय. वोमन खुद सरवन केंवट ले तबला अउ बालकृष्ण ले हारमोनियम बजाए बर सीख लेइन. जब 40 बछर के रिहिन तब पं. जगन्नाथ भट्ट के मार्गदर्शन म तबला म शास्त्रीता के ज्ञान लेइन अउ फेर 1964 म प्रयाग संगीत समिति इलाहाबाद ले तबला म डिप्लोमा प्राप्त करिन.
    दाऊ जी हमेशा गुनिक कलाकार मनके सम्मान करयं. जब कभू कोनो बड़का कलाकार के छत्तीसगढ़ आना होवय, त उन दाऊ जी के पहुनई म जरूर राहयं. नवा कलाकार मनला तो अपन घरेच म राख के खवाना-पियाना, कपड़ा-लत्ता सबो के ब्यवस्था ल कर देवत रिहिन हें.
    वोमन बीसवीं सदी के 70 के दशक म एक नाचा पार्टी के गठन कर के पारंपरिक कला के संरक्षण के बुता के नेंव रखिन. इही दौरान उंकर भेंट छत्तीसगढ़ के यशस्वी साहित्यकार रहे डॉ. नरेंद्रदेव वर्मा संग होइस. दूनों के गोठ-बात म फेर 'सोनहा बिहान' के सपना गढ़े गिस. जे हा 7 मार्च 1974 के ग्राम ओटेबंद म पहला प्रदर्शन के रूप म साकार होइस. ए लोकनाट्य ह डॉ. नरेंद्रदेव वर्मा के उपन्यास 'सुबह की तलाश' ऊपर आधारित रिहिस. इही म आज छत्तीसगढ़ राज के 'राजगीत' बन चुके गीत 'अरपा पइरी के धार' के सिरजन अउ प्रस्तुति होइस. ए गीत ल सुनते लोगन भाव-विभोर होके सुने लागयं.
    डॉ. नरेंद्रदेव वर्मा ल दाऊ महासिंह चंद्राकर जी 'नरेंद गुरुजी' काहयं. दाऊ जी संग मोर जब कभू भेंट होवय त उन डॉ. नरेंद्रदेव वर्मा के संबंध म जरूर गोठियावयं, अउ काहयं- 'नरेंद तो मोर गुरु, सलाहकार अउ बोली-भाखा सब रिहिसे. वो ह जब ले ए दुनिया ले गये हे, तब ले मैं कोंदा-लेड़गा बरोबर होगे हौं. न बने ढंग के कुछु बोल सकौं न बता सकौं.'
    दाऊ महासिंह चंद्राकर जी सोनहा बिहान के संगे-संग लोरिक चंदा अउ लोक रंजनी कार्यक्रम के माध्यम ले लगभग तीन दशक तक छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहारबिहार अउ ओडिशा आदि के जम्मो प्रमुख जगा मन म छत्तीसगढ़ी लोककला के झंडा लहराईन. एक पइत मोला एकर संबंध म कहे रिहिन हें- 'सुशील, मैं एक हाथ म सरस्वती अउ एक हाथ म लक्ष्मी ल लेके चलथौं, तब जाके अतका बड़ बुता ल कर पाथौं.'
    जिनगी के आखिरी बेर तक उन शारीरिक रूप ले चुस्त दुरूस्त रिहिन. 28 अगस्त 1997 के उन न ए नश्वर दुनिया ले बिदागरी ले लेइन. आज बिदागरी तिथि के बेरा म उंकर सुरता ल डंडासरन पैलगी... सादर जोहार...
-सुशील भोले
संजय नगर, रायपुर
मो/व्हा. 9826992811

No comments:

Post a Comment