गजब बिटामन भरे हे छत्तीसगढ़ के बासी म...
छत्तीसगढ़ राज्य के स्वप्नदृष्टा डाॅ. खूबचंद बघेल जी के एक मयारुक कविता हे-
बासी के गुण कहुँ कहाँ तक,
इसे न टालो हाॅंसी में.
गजब बिटामन भरे हुये हैं,
छत्तीसगढ़ के बासी में..
पहिली उंकर ए कविता ल हमन अपन परंपरा के संरक्षण-संवर्धन खातिर लिखे गे मयारुक रचना समझत रेहेन. फेर जब ले वैज्ञानिक मन बासी उप्पर शोध कारज करिन हें अउ बताइन हें, के बासी खाए ले ब्लडप्रेशर ह कंट्रोल म रहिथे, गरमी के दिन म बासी खाए ले लू घलो नइ लगय, एकर ले हाइपर टेंशन घलो कंट्रोल म रहिथे. गरमी के दिन म बुता करइया मन के देंह-पाॅंव के तापमान ल घलो बने-बने राखथे. संग म पाचुक होए के सेती हमर पाचन तंत्र ल घलो बरोबर बनाए रखथे. जब ले ए वैज्ञानिक शोध ल जानेन तबले अपन पुरखा मन के वैज्ञानिक सोच अउ अपन परंपरा ऊपर गरब होए लागिस.
आज अचानक ए बात के सुरता ए सेती आवत हे, काबर ते हमर छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री ह अब ले 1 मई श्रमिक दिवस ल बोरे-बासी के महत्व ल जन-जन म बगराए अउ एला अपन पारंपरिक गरब के रूप म जनवाए खातिर 'बोरे-बासी' डे के रूप म मनाए के अरजी करे हे.
वइसे हमर संस्कृति म 'बासी' खाए के एक रिवाज हे. भादो महीना के तीजा परब म जब बेटी-माई मन अपन-अपन मइके आए रहिथें, तब उपास रहे के पहिली दिन करू भात खाये के नेवता दिए जाथे अउ तीजा के बिहान दिन बासी खाये के नेवता देथें. फेर ए नेंग ह सिरिफ तीजहारिन मन खातिर ही होथे. आज बासी के महत्व ल समझे के बाद मोला अइसे लागथे, के अभी जेन 'बोरे-बासी' डे मनाए के बात सरकार डहार ले होवत हे, वोला 'बासी उत्सव' के रूप म मनाए जाना चाही. जइसे आने उत्सव के बेरा जगा-जगा वो उत्सव ले संबंधित आयोजन करे जाथे, ठउका वइसनेच जगा-जगा बासी पार्टी या बासी खवाये के भंडारा आयोजन करे जाना चाही.
अब तो बासी खवई ह सिरिफ परंपरा या रोज के भोजन ले आगू बढ़के सेहत अउ रुतबा के घलो प्रतीक बनत जावत हे, तभे तो फाइवस्टार होटल मन म घलो एला बड़ा शान के साथ उहाँ के मेनू म शामिल करे जाथे, अउ लोगन वतकेच शान ले एला मंगा के खाथें घलो.
मोला अपन चार डांड़ के सुरता आवत हे-
दिन आगे हे गरमी के, नंगत झड़क लव बासी
दही-मही के बोरे होवय, चाहे होवय तियासी
तन तो जुड़ लागबेच करही, मन घलो रही टन्नक
काम-बुता म चेत रइही, नइ लागय कभू उदासी
-सुशील भोले
संजय नगर, रायपुर
मो/व्हा. 9826992811
Thursday, 28 April 2022
गजब बिटामन भरे हे बासी म..
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