Tuesday 12 April 2022

गुरतुर गीत.. कवि लक्ष्मण मस्तुरिया

जन्म -7 जून 1949
निधन - 3 नवंबर 2018

गुरतुर गीत के माध्यम ले जन-जन के कंठ म बिराजे कवि लक्ष्मण मस्तुरिया

मोर गंवई गंगा ए, मोर गंवई गंगा ए,
छोड़ के गंवई सहर डहर झन जा झन जा झन जा रे...
ए मया के बादर ए, धरती माँ के काजर ए
ए भुंइया के अंचरा, ए धरती के गजरा
जुगुर-जागर रात इहाँ के, चुहुल-पुहुल संझा रे...
    लक्ष्मण मस्तुरिया छत्तीसगढ़ी जनमानस म बसे एक अइसे नांव आय, जेकर बारे म जादा गोठियाए के उदिम करे के जरूरते मोला नइ जनावय.  लोगन उनला कोनो गीतकार के रूप म, त कोनो गायक के रूप म, त कोनो कवि अउ लेखक के रूप म जानबेच करथें. फेर ए ह मोर सौभाग्य आय के उंकर सबोच रूप ल थोर-बहुत जानबेच करथौं. एकर असल कारण ए आय, के हमन एके इलाका म राहत रेहेन, साहित्य के एके रद्दा म रेंगत रेहेन, तेकर सेती कतकों कार्यक्रम म संग म आवन-जावन. एक-दूसर के घर घलो पहुँच जावत रेहेन.
    लक्ष्मण मस्तुरिया जी अपन गीत लेखन के शुरुआत के बारे म बतावयं- 'मैं तो छात्र जीवन ले ही लिखे बर धर लिए रेहेंव. वो बखत हमन ल आकाशवाणी ले 'तोला भालू कुदावय रे दोस' जइसन गीत सुने ल मिलय, तब मोर तरुवा धमके बर धर लेवय, अउ मन म विचार उठय के मैं छत्तीसगढ़ी म अइसे गीत लिखहूं, जेला सुनके लोगन के मन म गरब के भाव जागय. अइसने गुनत मैं सबले पहिली 'झन होवे मोर भुइयां उदास' लिखेंव. इही ह मोर पहिली रचना आय.
    जब मैं मिशन स्कूल म पढ़त रेहेंव, त कवि सम्मेलन म घलो जाए लगे रेहेंव. उहाँ ले आकाशवाणी वाले लाल रामकुमार सिंह ह पहुँच के रिकार्डिंग घलो कर लेवत रिहिसे. वइसने बेरा म 'मोर धरती मइया जय होवय तोर' गीत ह रिकार्ड होके लोगन ल सुनाय लगिस. इही गीत ह मोर जिनगी के टर्निंग पाइंट बनिस. एला चारों मुड़ा प्रसिद्धि मिलिस तब मैं पवन दीवान, कृष्णा रंजन जइसन वो बखत के चर्चित लोगन संग घलो मंच म संघरे लगेंव. दाऊ रामचंद्र देशमुख जी घलो आकाशवाणी ले ए गीत ल सुन के मोर ले संपर्क करिस. तब तक वोमन देवार मन के गाए गीत मनला रिकार्ड करवा डारे रिहिन हें. फेर वोमन सम्मान जनक नइ जनावत रिहिसे. फेर वोकर धुन मन बड़ा लाजवाब राहय, तब हमन वोमन के शब्द अउ थोड़ा बहुत संगीत म सुधार-परिमार्जन कर देवत रेहेन. आज उही गीत मन छत्तीसगढ़ी के कालजयी गीत बनगे हवंय. जइसे- चंदर छबेला रे बघली ल .. एला मैं लिखेंव- मंगनी म मांगे मया नइ मिलय रे.. अइसने- दोऊना म गोंदा केजुआ आबे बारी म काल रे... एला सुधार के.. चौंरा म गोंदा रसिया मोर बारी म पताल रे... अइसने सुधार करे ले देवार डेरा के गीत मन चंदैनी गोंदा के गीत बनगे.
    मस्तुरिया जी आज मनोरंजन के नांव म जेन फूहड़ अउ  दूअर्थी गीत लिखे अउ गाए जावत हे, तेकर ले भारी नाराज राहय. उन कहंय- 'कुछ विशुद्ध व्यापारी किसम के लोगन अधकचरा लेखक अउ गायक मन के माध्यम ले छत्तीसगढ़ी बजार ल मटियामेट करत हें. वोमन सांस्कृतिक कार्यक्रम के मंच के संगे-संग कवि सम्मेलन के मंच म घलो हास्य के नांव म चुटकिला ढकेलत लोगन बर भारी खिसियावंय. अइसने एक तथाकथित हास्य कवि ल जवाब देवत उन एक मंच म कविता पढ़े रिहिन हें- डंडे को बेलन कहोगे क्या? टुनटुन को हेलन कहोगे? चुटकुले सुनाने वाले को कवि सम्मेलन कहोगे क्या? उन कहयं- मोर मानना हे, कवि अपन युग के स्वर होथे. वोला अपन युग के बात. लोगन के बात लिखना चाही, उंकर दुख-पीरा अउ अधिकार के बात ल लिखना चाही. विषय वस्तु अउ शील्प के महत्व समझना चाही.
     मस्तुरिया जी गीत के छोड़े निबंध, कहानी अउ कालम लेखन घलो करिन. उंकर एक कहानी ल तो मैं अपन 'मयारु माटी' म घलो छापे रेहेंव. दैनिक भास्कर, जेन शुरू म 'नव भास्कर' के नांव ले निकलत रिहिस एमा वोमन 'माटी कहे कुम्हार से' शीर्षक ले कालम लिखिन, तब महूं उहिच म 'तरकश अउ तीर' शीर्षक ले कालम लिखत रेहेंव. बाद म मस्तुरिया जी अपन खुद के पत्रिका 'लोक सुर' चालू करिन तब एमा 'पीरा ल तो कहिबो साहेब' शीर्षक ले कालम लिखिन. कुछ बेरा तक दैनिक समवेत शिखर म एक छत्तीसगढ़ी परिशिष्ट घलो निकालिन, तब मोला काहयं- भइगे भाई तोरे 'मयारु माटी' के कटिंग चलावत रहिथंव. देखत तो हावस, छत्तीसगढ़ी म गद्य लिखइया मन के का हाल हे तेला?
    वइसे उंकर 'हमू बेटा भुंइया के, घुनही बंसुरिया, माटी कहे कुम्हार से ( ए ह नव भास्कर म छपे कालम के ही संकलन रिहिसे), मोर संग चलव, सिर्फ सत्य के लिए, छत्तीसगढ़ के महान क्रांतिकारी शहीद वीर नारायण सिंह के जीवन गाथा ऊपर बड़का कविता 'सोनाखान के आगी' जइसन किताब छप चुके रिहिसे.
     फेर मैं व्यक्तिगत रूप ले मस्तुरिया जी के गीतकार रूप के जादा प्रशंसक रेहेंव, काबर ते महूं गीत लिखत रेहेंव अउ सस्वर गाये के उदिम घलो कर लेवत रेहेंव. मस्तुरिया जी काहय- मोला गाये ले जादा गवाए म आनंद मिलथे. उन बतावंय- पहिली केदार यादव ह कार्यक्रम म सिरिफ तबला भर बजावय. 'मोर झुल तरी गोंदा सेम्हर फुलगे अगास तरी' ए गीत ल महीं वोला गवाएंव. असल म वो गीत ल गावत बेरा मैं भुला जावत रेहेंव, तब केदार ल गवाएंव. वोकर बाद तो फेर केदार पूरा के पूरा गायन म आगे. हो सकथे के ए बेरा वोला नइ मिले रहितीस त तबला म ही जिनगी भर रमे रहितीस. तब महूं ह सांस्कृतिक मंच म गीत गवई के बलदा कवि मन के मंच ल प्राथमिकता देंव. एकर एक अउ कारण हे, सांस्कृतिक मंच के श्रोता वर्ग अउ कवि मंच के श्रोता वर्ग म बहुतेच अंतर होथे. मोला कवि या कहिन साहित्यिक मंच के बौद्धिक श्रोता वर्ग जादा बने लागत रिहिसे.
    उन गीत लिखे के प्रेरणा कहाँ ले मिलथे, एकर संबंध म पूछे म कहंय- ए तो नइ जानंव के मोला कोन लिखवाथे या लिखे बर कोन प्रेरित करथे? फेर जब मन म वोकर तरंग आथे त 4-5 मिनट म ही एक पूरा गीत लिखा जाथे. अउ कहूँ वो तरंग नइ मिलिस त चार घंटा म घलो चार लाईन नइ लिखावत रिहिसे. जिनगी के आखिरी बेरा तक उंकर मन म वो तरंग उमड़ परत रिहिसे. एकरे सेती वो सरलग लेखन म रमे रिहिन हें.
    मस्तुरिया जी संग हमर मन के एकदम घरोबहा कस संबंध रिहिसे, एकरे सेती सुख-दुख के बेरा म एक-दूसर के घर आना-जाना हो जावत रिहिसे. फेर वो 3 नवंबर 2018 के दिन ल मैं कभू नइ भुलावौं जब उन ए दुनिया ले बिदागरी लेइन. ठउका वोकर 10 दिन पहिली 24 अक्टूबर के मोला लकवा के अटैक आए रिहिसे, तेकर सेती मैं एम्स अस्पताल म भर्ती रेहेंव. उहाँ सब साहित्यकार मन मोला देखे के नांव म आवंय, वोकरे मनले जानकारी मिलिस के मस्तुरिया जी ए दुनिया ले बिदागरी ले लिए हें. बड़ा दुख होइस, मैं उंकर अंतिम यात्रा म संघर नइ पाएंव. उंकर बड़े बेटा दिनेश जब मोला देखे बर मोर जगा आइस तभो ए बात ल गोठियाए रेहेंव.
    आज उंकर बिदागरी तिथि म फेर उही बात के सुरता आवत हे. उंकर सुरता ल पैलगी जोहार करत उंकरेच ये कालजयी गीत...
मोर संग चलव रे, मोर संग चलव जी
ओ गिरे-थके हपटे मन, अउ परे-डरे मनखे मन..
अमरइया कस जुड़ छांव म मोर संग बइठ जुड़ा लव,
पानी पी लव मैं सागर अवं, दुख-पीरा बिसरा लव,
नवा जोत लव, नवा गाँव बर, रस्ता नवा गढ़व रे...
-सुशील भोले
संजय नगर, रायपुर
मो/व्हा. 9826992811

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