Sunday 17 April 2022

आखर-अंजोर

आखर-अंजोर
ज्ञान के धनहा ले बिने हौं निच्चट सिला कस आखर-अंजोर
छांट-निमार के घस-घस पखरा म जांच लेवौ हे कतेक सजोर
जिनगी सिरतो उज्जर हो जाही जे धरही एला अंतस-ढाबा म
कभू कोनो बेंझिया नइ पाही चाहे कतकों उदिम करय झकझोर

ज्ञानी मनखे होथे वो जे नवा रद्दा खुद बनाथे
विद्वान कहाथे वो जे दूसर के दर्शन बगराथे
एक सर्जक एक प्रवक्ता के बुता उन दूनों करथें
इही आय भेद दूनों के जेला गुनिक मन टमड़थें

सरहा-गलहा परंपरा ल अब तो छोड़ देवौ
अंधश्रद्धा के रद्दा ले अब तो  मुंह मोड़ लेवौ
कब तक पूजत रइहौ, बिना मुंह के जीव ल
हर जीव म शिव होथे जिनगी उहू ल दे देवौ

धरम के सांचा म लोगन ल बनाए जावत हे कर्महीन
एकरे सेती समाज के चेहरा आज दिखत हे दीनहीन
जब कतकों पाप के बोझा कहूं दरस करे म उतर जाही
तब त्याग-सद्कर्म के रद्दा कोनो ल जी काबर भाही

सबले ऊंचा अउ पबरित हे आत्म ज्ञान के ठउर
एकरे सेती कहिथें गुनिक मन, एला मुकुट-मउर
तब काबर भटकत हावस तैं पोथी-पतरा के रद्दा म
का जिनगी भर सटके रहिबे कोरा कल्पना के गड्ढा म

तर्क-वितर्क अउ भाषणबाजी ले नइ हो जाय कोनो ज्ञानी
चटर-पटर लपराही गोठ ल हम साधना कइसे मानी
जे भटकथे अइसन के पाछू उनला अज्ञानी सिरतो जान
बिना तप-साधना के बिरथा होथे कतकोंच कागजी ज्ञान

कहूं नहाले नंदिया-नरवा या तीरथ कोनो धाम
माथ म घंस ले चंदन-बंदन नइ चमकय रे चाम
छोड़ देखावा रंगे कपड़ा के बस कर्म योग अपनाले
इही रद्दा ले मिलथे मुक्ति अउ शिव बाबा के धाम

जांच-टमड़ ले बने बइहा, का हावय करू-कस्सा
ठोस ज्ञान के मारग ते आय सिरिफ जी किस्सा
झन पाछू पछताना परय, ये बात ल बने गुन ले
नइते बन जाबे तहूं बस भेंड़िया धसान के हिस्सा

आँखी उघार के मानौ धरम संस्कृति अउ परंपरा
नइ ठगाहू फेर कभू तुमन तो जी कहूं ककरो करा
आज तो बाबा-बैरागी बनके किंजरत हावंय चोर
जेमन रहिथे करम म बिल्कुल निच्चट शंख-ढपोर

जइसे-जइसे उमर बाढ़थे कर्म घलो ल बढ़ना चाही
छोड़ लइकई के खेल-कूद आदर्श नवा गढ़ना चाही
इही मानक ये बड़े होय के सरलग एला चढ़ना चाही
कथा-कहानी-पोथी छोड़त आरुग ज्ञान अमरना चाही

रुक्खा-सुक्खा अउ करू होथे सत् ज्ञान के बानी
लगथे अइसे जस कोनो पिया दिस महुरा-पानी
रोग-राई ल फेर जइसे जड़ ले मिटाथे करू-दवाई
ठउका अइसनेच अज्ञान मिटाथे इहू ज्ञान-दवाई
-सुशील भोले
संजय नगर, रायपुर
मो/व्हा. 9826992811

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