Sunday 7 May 2017

पांव फिसल तो जाही रे...

















सम्हल-सम्हल के रेंगबे बइहा पांव फिसल तो जाही रे
फेर झन कहिबे ठोकर खाके बताये नहीं कुछु-कांही रे....

ये दुनिया तो निच्चट बिच्छल जब देख पांव फिसलथे
आगू बढ़त देख के कतकों, गोड़ ल धर के तीरथें
पग-पग डबरा-खंचका इहां कब कोन मेर धंस जाही रे...

अपन-बिरान के दिखय नहीं अब ककरो चेहरा ले भेद
थोरको भरम होही ककरो बर त वोला देबे बिल्कुल खेद
बनके अपन नइते बैरी ह, पीठ म छूरा धंसवाही रे...

जब तैं सम्हल जाबे त सुन दूसर ल घलो सम्हाल लेबे
हर जीव ल सांस लिए बर, सुख के पल दू पल देबे
इही धरम के मूल भाव ये, नइ मानही ते पछताही रे...

सुशील भोले 
म.नं. 54-191, डॉ. बघेल गली,
संजय नगर (टिकरापारा) रायपुर (छ.ग.)
मोबा. 98269-92811, 79747-25684

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