Monday 8 July 2019

भोजली परब...

भोजली परब...
छत्तीसगढ़ के संस्कृति म कतकों अइसन परब-तिहार हे, जे ह मौलिक स्वरूप खातिर पूरा देश म अलग जनाथे, चिन्हब म आथे। अइसने परब म इहाँ के "भोजली परब" के सुरता घलो आथे।
भोजली परब ल सावन महीना के अंजोरी पाख म मनाए जाथे। एकर बोए के तिथि म आने आने जानकर मन के आने आने विचार हे। कतकों एला पंचमी तिथि ले मानथें, त कतकों सप्तमी ले।
एक मान्यता इहू हावय के पहिली जब इहाँ के हर गाँव अउ शहर म नागपंचमी के दिन जम्मो अखाड़ा मन म कुश्ती के आयोजन करे जावय, त कुश्ती सिराए के बाद संझा बेरा वो अखाड़ा के माटी ल लान के उही माटी म भोजली बोए के कारज संपन्न करे जावय। फेर अब न तो अखाड़ा के चलन जादा देखब म आवय न कुश्ती के, अइसन म अखाड़ा के माटी म भोजली बोए के रिवाज कहाँ देखब म आही?
भोजली बोए के बाद, जइसे जंवारा के सेवा करे जाथे, वइसनेच भोजली के घलो सावन पुन्नी के राखी चढ़ाए के बाद विसर्जन के करत ले रोज संझा-बिहनिया सेवा करे जाथे।
-सुशील भोले

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