Monday 1 April 2024

कोंदा भैरा के गोठ-17

कोंदा भैरा के गोठ-17

-हमर छत्तीसगढ़ के मयारुक संगीतकार रहे स्व. खुमान लाल साव जी के जनम बछर ह कोनो जगा 1929 लिखाय रहिथे, त कोनो जगा 1930 लिखाय रहिथे, तेकर कारण ल जानथस जी भैरा.
   -कोन जनी भई.. फेर अतेक बड़ मनखे के जनम बछर म अइसन अलहन कइसे हो सकथे जी कोंदा? 
   -ए ह थोकन लापरवाही अउ थोकन अनाड़ी पन के सेती आय.
   -अच्छा... अइसे? 
   -हव.. असल म खुमान साव जी के जनम 5 सितम्बर 1929 आय, फेर जब स्कूल म दाखिला कराय बर उंकर सियान ह घर के पहाटिया ल वोकर संग म स्कूल भेजिन, त उनला चेताय रिहिन के 5 सितम्बर 1929 लिखवाबे कहिके.
   -हाँ त बने ल बने चेताइस.
  -हव.. फेर पहाटिया घर ले स्कूल के जावत ले 'उनतीस' के 'उन' ल भुलागे अउ सिरिफ 'तीस' भर ल लिखवा दिस. अइसे किसम स्कूल के दाखिला म खुमान साव जी के जनम बछर 1930 लिखागे, जेन अब सबो जगा के सरकारी रिकॉर्ड म चलत हे.
   -भारी अलकर हे भई.. अरे भई.. कागज म लिख के दे दिए रहितीस, या फेर सियान ल पहाटिया ल स्कूल भेजे के बलदा खुदे जाय रहितीस त अइसन नइ होए रहितीस.
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-काली राजधानी म प्रदेश के उत्कृष्ट खिलाड़ी मनके सम्मान होइस हे जी भैरा... वोमा के कतकों झन गोल्ड मेडल जीतइया मन बतावत रिहिन हें, के उनला अपन जिनगी चलाय बर छोटे मोटे मजदूरी करे बर लागथे.. कोनो कोनो तो काहत रिहिन हें, के उनला रायपुर तक आए बर अपन संगी मन ले पइसा उधार लेना परिस हे.
   -अइसन सबो क्षेत्र के प्रतिभा मन संग देखे म आथे जी कोंदा.. मैं ह कला अउ साहित्य क्षेत्र के अइसने कतकों अद्भुत प्रतिभा मनला देखे हौं, जेकर मन जगा अइसने मंच म जाए खातिर न तो मोटर गाड़ी के टिकट खातिर पइसा राहय न पहिरे बर बने गतर के कपड़ा लत्ता.
   -ए ह न सिरिफ सरकार खातिर सोचे-गुने के बात आय भलुक सबो मानव समाज खातिर घलोक आय.
   -सही आय संगी.. सिरिफ पुरस्कार बॉंट दे भर म हमर मन के कर्तव्य पूरा नइ हो जावय.. जरूरी हे अइसन मन के सम्मान जनक जीवकोपार्जन खातिर चेत करे जाना चाही.
   -सही आय जी.. सम्मानित कर के सिरिफ इनला प्रोत्साहित करे जा सकथे, सम्मान जनक जीवन नइ दिए जा सकय.. सरकार ल अइसन मनला नौकरी आदि म विशेष अवसर देना चाही.
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-हमर इहाँ कतकों जगा के परंपरा मनला देख-सुन के ताज्जुब लागथे जी भैरा.
   -हव जी कोंदा.. अब हमरे परोसी गाँव मोहदा ल देख ले.. इहाँ होली के रतिहा महादेव के मंदिर म जब्बर मेला भराथे.. हजारों के संख्या म लोगन आने-आने देश राज ले सकलाथें. इहाँ होली ल जलाथें घलो त रतिहा 12 बजे के बाद, मेला झरे के नेंग होय के बाद.
   -हाँ.. ए रायपुर ले बिलासपुर रद्दा के मोहदा गाँव के बात ल तो महूं सुने हौं.. उहाँ जाए के अउ तरिया पार के मोहदेश्वर महादेव के दर्शन करे के सौभाग्य मिले हे.
    -जे मन सावन महीना म मनौती माने रहिथें ना.. जब उंकर मनोकामना पूरा हो जाथे, वो मन इहाँ होली के रतिहा आके महादेव के पूजा करथें.. अब तो ए दिन इहाँ जबर मेला भराथे.. हाँ.. फेर एक बात हे.. महादेव के पूजा करे बर सकलाय दूसर गाँव के लोगन मन ऊपर ए गाँव वाले मन कोनो किसम के रंग-गुलाल नइ लगावंय.
   -बने बात आय.. जे मन उहाँ महादेव के पूजा करे के उद्देश्य ले जाए रहिथें, उंकर ऊपर होली के रंग नइ डारना चाही.
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-हमर गाँव म ए बछर के घर म जंवारा बोवत हें जी भैरा? 
   -कोन जनी जी कोंदा, अभी तो मंडल पारा भर म सुनाय हे.. अउ बस्ती डहार ले शीतला म तो बोवाबेच करथे.
   -जतका जादा जगा जंवारा बोवाथे, वतके जादा गद बोलथे न गाँव ह? 
   -हव जी ए बात तो हे.. रतिहा ह माता जी सेवा करे अउ जस गाये म कइसे पहाथे तेकरो गम नइ मिलय.. नौ दिन ले नम्मी तक तिहार बरोबर जनाथे.
    -फेर अब तो कोनो कोनो मेर नवा चलागन देखे म आवत हे जी.. लोगन आठे के हूम-जग करवा के उहिच दिन ले या फेर नम्मी के बिहनिया जंवारा सरोय के नेंग कर देथें.
   -ए ह बने बात नोहय संगी.. जंवारा सरोय के नेंग ल दसमीं के ही करना चाही, इही हमर पुरखौती परंपरा आय. 
   -भांठा वाले महराज ह तो नम्मी के चल जाथे काहत रिहिसे जी.
   -आने गाँव ले आके इहाँ बसुंद्रा बसे मनखे ह हमर गाँव के परंपरा ल काय जानही.. इहाँ के जुन्ना बइगा ल पूछबे वो ह बताही तोला हमर असली परंपरा ल.. ए बाहिर ले आए पेट-पोंसवा मनखे मन तो इहाँ के परंपरा ल भरमाए अउ भटकाए के छोड़ अउ कुछू नइ करत हें.. वो बसुंद्रा महराज ल पूछबे- आज तक एको झन वोकर लरा-जरा मन कभू अपन घर म जंवारा बो के नौ दिन ले माता जी के सेवा करे होहीं का? अउ खुद वो मन अइसन नइ करे होहीं त फेर एकर ले जुड़े परंपरा ल जानहीं कइसे?
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-अब के लइका मन के नवा-नवा चरित्तर के सेती आजकाल कोनो मेर 'कॉंके पानी' घलो पीये बर नइ मिलय जी भैरा.
    -सिरतोन ताय जी कोंदा.. न बपरी छेवरहीन ल अउ वोकर संग म छट्ठी म पहुंचे हमर असन मयारुक पहुना मनला.
   -हव भई.. उरई के जड़ ल माटी के मरकी म खूब चुरो के बनाए जाय कॉंके पानी ल एमा सुवाद के मुताबिक गुड़ अउ तिलि म बघार के सब नता-गोता मनला घलो दिए जाय.
   -हव सही आय.. छेवरहीन महतारी ल कॉंके पानी पीयाय के पहिली दू दिन लांघन रखे जाय त फेर तीसरइया दिन पीयाए जाय.. ए कॉंके म अद्भुत पुष्टई राहय, तेकर सेती छेवरहीन महतारी के देंह-पॉंंव ह जल्दी पहिली असन तंदुरुस्त हो जावय.
   -उरई ह अम्मर पौधा आय न संगी..ए ह कतकों सूखा जाय राहय फेर जब एमा थोरको पानी परथे त पुनर्जीवित हो जाथे.. अपन इही गुन के सेती एकर जड़ ले बने कॉंके ह छेवरहीन ल घलो पुनर्जीवित कर देवय.. हष्ट पुष्ट कर देवय, फेर अब तो हमर परंपरा मन के संग म प्रकृति ले मिलइया जीवन के अद्भुत अवसर घलो नंदावत जावत हे.
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-हमर इहाँ आज घलो कतकों लोगन हनुमान जी ल बेंदरा (बंदर) समझ जाथें जी भैरा, फेर मोला ए ह सही नइ जनावय.
   -बिल्कुल सही नोहय जी कोंदा.. उहू मन हमरे मन असन मानव ही रिहिन हें.. इहाँ के मूल निवासी समाज के मनखे रिहिन हें. 
   -हव महू ल अइसने जनाथे.. अब जइसे हमन इहाँ नाग या नागवंशी समाज के लोगन मनला जानथन नहीं.. ठउका वइसने.
   -हव इहू मन मूल निवासी समाज के लोगन आॅंय.. नाग या नागवंशी के मतलब सॉंप या सॉंप के वंशज नइ होवय, ठउका वइसने वानर कहे ले बेंदरा या बेंदरा मन के वंशज नइ होवय.
   -हव इही बात सही आय.. हमर इहाँ बिंझवार अउ संवरा जाति के मूल निवासी समाज वाले मनला बाली अउ ओकर भाई सुग्रीव के वंशज माने जाथे. बाली ले बिंझवार अउ सुग्रीव ले संवरा.. अउ हमन तो सब ए बात ल जानथन के बाली, सुग्रीव अउ हनुमान सबो एके प्रजाति के लोगन रिहिन हें... इहाँ के मूल निवासी समाज के लोगन रिहिन हें.
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-पहिली होरी तिहार ल मान के अंगना म सूते के जोखा मढ़ा देवत रेहेन तेकर सुरता हे नहीं जी भैरा? 
   -रइही कइसे नहीं जी कोंदा.. मैं तो तरिया पार के महादेव के मंदिर ऊपर छत म सूत जावत रेहेंव.. एक्के नींद म रतिहा पहावय.
   -हव जी फेर अब तो ए बड़े-बड़े फैक्टरी मन के चिमनी ले निकलत धुंगिया मन के मारे उसनत गरमी म घलो कुरिया भीतर छटपटावत सूते रेहे के मजबूरी होगे हे.
   -हव जी.. औद्योगीकरण के नॉव म प्रदूषण के दुकान खुलत हे चारों मुड़ा. न तो शुद्ध हवा मिल पावत हे अउ न शुद्ध पानी.
   -सही आय संगी.. हमर एती तो ए फैक्टरी मन म आने-आने देश राज ले आए लोगन मन सांस्कृतिक प्रदूषण घलो बगरावत हें. बेटी-बहू मन के कहूँ अकेल्ला दुकेल्ला अवई जवई ह अलहन बरोबर होगे हे.
   -हमर गाँव डहार के घलो इही च हाल हे.. औद्योगिक क्षेत्र बनाय के नॉव म गाँव गंवई के जम्मो चिन्हारी अउ संस्कार मिटावत हे.
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-होरी परब ह तो फागुन पुन्नी के दिन काम दहन या कहिन होलिका दहन के संग ही झर जाथे जी भैरा, फेर एला धूर पंचमी जेला रंग पंचमी घलो कहे जाथे, तक काबर मनाए जावत होही? 
   -अब अतका ल तो महूं ह फरी-फरा नइ जान पाए हौं जी कोंदा, फेर एक मान्यता इहू हवय के भगवान भोलेनाथ ह माता सती के मृत देंह ल ए दिन बनारस के मणिकर्णिका घाट म आगी दिए रिहिन हें, आउ फेर माता सती के चिता के राख ले होरी खेले रिहिन हें, एकरे सेती आज घलो ए मणिकर्णिका घाट म रंग पंचमी के दिन 'शिव जी के अड़भंगी होली' के सुरता म अइसने होरी खेले जाथे. इहाँ रंग गुलाल के नहीं, भलुक चिता के राख के होली खेलथें अउ गाथें-
खेले मसाने म होरी दिगंबर, खेले मसाने म होरी, 
भूत पिशाच बटोरी दिगंबर, खेले मसाने म होरी
    -वाह भई.. मोला तो एकर गमे नइ रिहिसे.
   -हव.. एकरे सेती एला धूर पंचमी कहे जाथे.. हो सकथे अउ कोनो मन के अउ कुछू अलग मान्यता होही.
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-इहाँ के मूलनिवासी गोंडीयन समुदाय के मन होली ल शिमगा/शिवमगवरा के रूप म मनाथें जी भैरा.
   -अच्छा.. ए शिवमगवरा का होथे जी कोंदा? 
   -गोण्डवाना धर्म एवं संस्कृति के तिरूमाल संतोष कुमार मरकाम के वाल म एक पोस्ट हे, ओकर मुताबिक शिवमगवरा माने होथे- 'शिव ले जाओ गौरा को'.
   -वाह भई..! 
   -संतोष मरकाम के पोस्ट के मुताबिक जब दक्ष के यज्ञ म पार्वती (पोस्ट म पार्वती ही लिखाय हे, सती नहीं) ल अग्नि कुंड म ढकेल दिए जाथे, त संभु के सेवक मन शिवमगवरा.. शिवमगवरा.. काहत दउंर परथें, अउ गवरा दाई के राख ल अपन माथा म लगाथें. एकर खबर मिले के बाद जब संभु ह क्रोधित होके आथे, त दक्ष के महल ल जला के राख कर देथे. ए किसम राजा दक्ष के महल के होली संभु ह जलाथे, एकरे सुरता म गोंडीयन समुदाय के मन शिमगा/शिवमगवरा परब मनाथें.
   -वाह भई.. परब तो हमन ल सब एकेच कस जनाथे, फेर सबके मान्यता अलग-अलग हे.
   -हव.. एकरे सेती तो इहाँ के संस्कृति अउ इतिहास मनला समझे म आम लोगन ल अकबकासी कस जनाथे.
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-पहिली के चुनाव म मुहर-ठप्पा लगाय के नियम नइ रिहिसे जी भैरा.
   -त कइसन चुनाव होवय जी कोंदा? 
   -हमर देश के शुरूआती दू आम चुनाव म प्रत्याशी मन के नॉव अउ ओकर चुनाव चिन्ह के छप्पा लगे वाला अलग अलग मतपेटी रख दिए जावय. मतदाता ह अपन मतपत्र ल अपन पसंद के उम्मीदवार के मतपेटी म डार देवय.
   -अच्छा..! 
   -हव.. दू चुनाव के बाद जब मतपत्र म मुहर-ठप्पा लगाय के शुरुआत होइस, त कतकों झन तो ए नवा पद्धति के विरोध घलो करीन.
   -हाँ.. फेर अब तो इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन आगे हवय ना.
   -हाँ सही आय.. अउ हो सकथे अवइया बेरा वोट डारे के अउ कुछू नवा आविष्कार हो सकथे, फेर शुरूआती दू चुनाव के ऐतिहासिक महत्व हे.. वो बखत के बिना मुहर-ठप्पा वाले मतदान ल "मुहर न ठप्पा, जीत गए क्का" वाले दौर कहिके आज तक सुरता करे जाथे.
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-अभी कतकों जगा ए देखे म आथे जी भैरा के होले डांड़ म माढ़े लकड़ी म एक माईलोगिन के पुतरी ल बइठार के पहिली ओकर पूजा करथें. पूजा करइया मन म माईलोगिन मन घलो रहिथें, अउ पूजा के पाछू फेर वोमा आगी ढीले गिस.
   -हव अइसन परंपरा ह शहरी क्षेत्र म वो जगा देखे ले मिलथे, जिहां आने देश राज ले आए लोगन मन एला मनाथें. हमर गंवई गाँव म जिहां आरुग छत्तीसगढ़िया पद्धति ले होले म आगी ढीले जाथे, उहाँ अइसन नइ होवय. हमर इहाँ तो होले डांड़ म माईलोगिन मन के जवई तक ह प्रतिबंधित रहिथे, होले म पुतरी बइठार के पूजा करई तो दुरिहा के बात आय. काबर ते इहाँ होले डांड़ म वासनात्मक गीत नृत्य के चलन हो जाथे, अइसन म माईलोगिन मन ल उहाँ कहाँ जावन दे जाही? 
   -हव सिरतोन आय जी.. तभे तो हमर बूढ़ी दाई ह पहिली कोनो लड़ई झगरा म अश्लील गढ़न के गारी गुप्तार करयं त वो मनला कहि देवय- तुंहर घर म दाई बहिनी नइए का तेमा ए जगा फुहर फुहर के होले बकत हौ? 
   -हां.. अब समझे डोकरी दाई ह अश्लील शब्द ल होले बकत हौ काबर काहय तेला? काबर ते इहाँ काम दहन के परब म अइसन शब्द गीत के चलन होय.
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-बस्तर बियर के नॉव ले प्रसिद्ध सल्फी के रस कभू पीए हावस नहीं जी भैरा? 
   -हाँ.. कतकों बेर पीए के जोंग जमे हे जी कोंदा.. सल्फी ल इहाँ के आदिवासी संस्कृति म पूजनीय पेड़ माने जाथे, अउ जब कोनो ल सल्फी पेड़ के पौधा भेंट करे जाथे, त जइसे हमन अपन बेटी के बिदागरी ल बाजा-गाजा के संग करथन नहीं, ठउका वइसने बाजा-गाजा संग सल्फी पौधा के बिदागरी करे जाथे.
   -हव सही आय.. एकरे सेती ए सल्फी के पेड़ म हर कोई ल चढ़ के वोकर रस निकाले के अनुमति नइ राहय. सल्फी पेड़ ले रस केवल उही मनखे ह निकाल सकथे, जेला वोकर पति के रूप म चिन्हारी दिए जाथे. मान्यता हे, के कहूँ दूसर मनखे ह सल्फी के पेड़ म चढ़ के रस निकाल दिही त सल्फी के पेड़ ह सूखा के मर जाथे.
   -हव जी जब बेटी के रूप म बिदागरी करे जाथे, त फेर वोमा ले रस निकाले के अनुमति हर कोई ल कइसे होही? ए बेटी बरोबर सल्फी के बिदागरी के परंपरा कोंडागांव, नारायणपुर, अंतागढ़ अउ फरसगांव आदि क्षेत्र म जादा देखे म आथे.
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-हमर इहाँ के कतकों गौरवशाली इतिहास के लेखन म अनदेखा करे गे हवय जी भैरा, जेकर सेती हम खुद आज अपन गौरव ले अनचिन्हार बने हावन.
   -हव जी कोंदा महूं तोर ए बात ले सहमत हौं.. अब देखना द्वापरयुग के वो गौरवशाली घटना ल जेमा धर्मराज युधिष्ठिर के अश्वमेध यज्ञ के घोड़ा ल हमर बस्तर के राजकुमारी प्रमिला देवी ह छेंक के बाॅंध दे रिहिसे, अउ जब अर्जुन ह वो घोड़ा ल छोड़वाय बर आइस त प्रमिला देवी ह अर्जुन ल वोकर सेना सहित हरवा के वोकर अहंकार ल टोरे रिहिसे.
   -सही आय.. ए बात के जानकारी महूं ल मिले हे, तब बस्तर ल महाकांतार के नॉव के जाने जाय. वो बखत इहाँ स्त्री शासन रिहिसे, जेकर रानी रिहिसे प्रमिला देवी. 
   -हव जी.. हमर बस्तर के पुरखा साहित्यकार लाला जगदलपुरी ह अपन किताब म प्रमिला देवी के शौर्य गाथा के जबर उल्लेख करे हे. अब कमीश्नर कार्यालय जगदलपुर डहार ले प्रमिला देवी के प्रतिमा स्थापित करे के उदिम करे जावत हे.
    -ए तो बने बात आय.. हमला अपन गौरवशाली इतिहास मनला खोज खोज के निकाल के नवा पीढ़ी ले चिन्हारी करवाना चाही.
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-आजकाल लोगन अबड़ पूजा पाठ करथें.. कथा प्रवचन सुनथें, तभो कतकों किसम के लिगरी-लाई म परे रहिथें जी भैरा.
   -असली म लोगन धरम-करम के परिभाषा नइ समझंय जी कोंदा.
   -अच्छा.. अइसे हे का? 
   -हव.. धरम के मतलब मंदिर-मस्जिद म दिन-रात खुसरे राह, तिलक-टोपी खापे लोगन ल अपन धार्मिकता देखावत राह.. अइसन नइ होवय संगी.
   -अच्छा.. त फेर का होथे जी? 
   -इंसानियत के सच्चाई के साथ पालन करना होथे. अब देख स्वीडन नॉव के देश के 80 प्रतिशत लोगन नास्तिक हें, लेकिन ए अइसन देश आय जिहां अपराध के संख्या दुनिया म सबले कम हे.
   -अच्छा.. वाह भई? 
   -हव.. अउ एकर खातिर ओकर मन के धरम-करम ह नहीं, भलुक सच्चा इंसानियत ह असल कारण आय. मंदिर मस्जिद, पूजा उपासना सबो बने आय, फेर ए सबले पहिली इंसानियत के ठउर हे, अउ कहूँ इही ल छोड़ डारे त का बात के धरम अउ का बात के धार्मिक?
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