Tuesday 25 June 2024

झुमर के बरस रे बादर

** झुमर के बरस रे बादर **

एसो अइसे झुमर के
बरसबे रे बादर, 
लोगन के जम्मो
मन के मइल
धोवा जावय। 

छल, कपट, इरखा के
चिखला 
बने चिक्कन के
खलखल ले
बोहा जावय। 

मया मितानी के
फूटय पिका
हिरदय के धनहा म
अउ फेर
घमघम ले
उपज जावय। 

चम्मसहा
उसने
बोइर खोइला कस
जे हा
सबोच झनला 
बने चोग्गर चोग्गर
गुरतुर भावय। 
-सुशील भोले-9826992811

Sunday 23 June 2024

'कोंदा-भैरा के गोठ-20

'कोंदा-भैरा के गोठ-20

-बस्तर म देवी देवता मनला अपन घर परिवार के सदस्य बरोबर ही मानथें जी भैरा.
   -हव ए तो सही आय जी कोंदा.. तभे तो उहाँ जेन  देवता मन इंकर मन मुताबिक बुता नइ करंय, वो मनला माई भंगाराम के अदालत म सजा घलो देवाथें.
   -सही आय संगी.. कांगेरघाटी के वनग्राम कोटमसर के कोतवाल पारा म देवी बास्ताबुंदिन के देवाला हे जिहां माता जी ल रंगीन चश्मा भेंट करे जाथे, तेमा माता जी के आॅंखी बने राहय अउ ओकर कृपादृष्टि ह अपन भक्त मन ऊपर बने राहय.
   -अच्छा.. रंगीन चश्मा! 
   -हव.. इहाँ हर तीन बछर म एक बार मेला भराथे, जेमा आसपास के तीस गाँव के लोगन जुरियाथें, वो मन मनोकामना पूरा होय म चश्मा के संगे-संग बोकरा, कुकरा अउ बदक आदि घलो बलि के रूप म चढ़ाथें. लोगन के मानना हे के माता जी ल चश्मा चढ़ाए ले उनला आॅंखी ले संबंधित कोनो किसम के बीमारी नइ होवय, संग म माता जी ह उनला अउ कतकों रोग-राई ले बचाथे.
   -सबके अपन मान्यता अउ आस्था हे संगी.
    -जानकर मन बताथें के बास्ताबुंदिन माता ल चश्मा चढ़ाए के परंपरा सैकड़ों बछर ले चले आवत हे.
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-जादा पढ़ाकू मनखे मनला देख के डरभुतहा बानी के जनाथे जी भैरा.
   -अइसे काबर जी कोंदा.. जे मनखे जतके जादा पढ़थे-लिखथे वो वतके गुनिक अउ सुलझे हुए होथे.. कभू कोनो ल बरपेली नुकसान पहुंचाए या अपमानित करे के उदिम नइ करय, फेर एकर उल्टा जरूर देखे ले मिलथे. 
   -कइसे ढंग के उल्टा जी? 
   -जे मन कम पढ़े लिखे होथे अउ धोखाधड़ी म कहूँ एकाद ठन धरम-करम के पोथी ल पढ़ डारे रहिथें, वो मन उहिच पोथी के गोठ ल ही ज्ञान अउ सत्य के प्रतीक बतावत तोर मुड़ी म चघे के कोशिश जरूर करही.
   -वाह भई..! 
   -हव..  दार्शनिक फ्रेडरिक नीत्शे ह एकरे सेती एक जगा कहे हे- 'जेकर जगा लाइब्रेरी हे अउ जे नंगते पढ़थे, वोला झन डर्रावौ.. डर्रावौ वोला जेकर जगा एके ठन किताब हे, जेला वो ह पवित्र मानथे, फेर पढ़य नहीं'.
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-मोला जनाथे जी भैरा के ए वयस्क माने के जेन उमर अभी 18 बछर हे ना.. एला घटा के 16 कर देना चाही.
   -फेर तो 16 बछर के लइका मनला मोटर-गाड़ी चलाय के लाइसेंस मिल जाही जी कोंदा.. तहाँ ले तो ए मन राही छंड़ा देहीं.
   -गाड़ी-मोटर चलाय के लाइसेंस खातिर नइ काहत हौं संगी, एकर लाइसेंस बर तो 25 बछर करना चाही.. मैं तो आने-आने अपराध मन म नाबालिग के नॉव म ए मनला दूध-भात दे असन रिपोर्ट तक लिखे बर ढेरियाय असन करथें, तेकर सेती काहत हौं.
   -तोर कहना वाजिब जनाथे जी.. अभीच्चे पुणे म जेन एक नाबालिग लइका ह दू झन इंजीनियर मनला अपन माँहगी कार म रेत के मार डरिस, तेन मामला म पुलिस ह वोला 300 शब्द म निबंध लिखवा के जमानत दे दिए रिहिसे ते ह अलकर जनाय रिहिसे.
   -हव.. अइसने सब कारण के सेती कहिथौं नाबालिग के उमर ल 16 बछर करे जाय.. काबर ते अभी ए देखे म जादा आथे के 16 ले 18 बछर के बीच वाले मन कतकों किसम के अपराध म अगुवा बरोबर रहिथें.
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-तुंहर छत्तीसगढ़िया कलाकार मन के आजकाल भारी उजबक बानी के पहिनई-ओढ़ई देखे ले मिलथे जी भैरा.
    -कइसे का होगे तेमा जी कोंदा? 
   -दू झन माईलोगिन के फोटू देख परेंव.. कोनो फिलिम के होही तइसे जनावत रिहिसे. वोमा के एक झन माईलोगिन ह जींस अउ टॉप पहिरे रिहिसे.
   -अच्छा... त आजकाल तो कतकों झन जींस अउ टॉप पहिनथें जी एमा नवा का हे? 
   -जींस के उप्पर म चार लर के करधन अउ टॉप के उप्पर म चॉंदी के रुपिया पहिरे रिहिसे ते ह उजबक किसम के जनाइस हे जी.
   -हां ए तो उजबक बानी के गोठेच आय.. अरे भई जींस अउ टॉप पहिनना रिहिसे त करधन अउ रुपिया ल नइ ओरमाना रिहिसे, अउ कहूँ करधन रुपिया पहिनना रिहिसे त लुगरा-पोलखा के उप्पर पहिनना रिहिसे.
    -हव.. सोशलमीडिया के लइका मन अब्बड़ तमतमाए असन ओकर मन के बहिष्कार करे के गोठ करत रिहिन हें.
    -कलाकार मन के बहिष्कार करे ले का होही संगी.. वो मन तो पेटपोसवा आय.. पेट रोजी खातिर जेन जइसे कइहीं, तइसे नाच-कूद देहीं. बहिष्कार करना ही हे त अइसन उजबक बानी के फिलिम बनइया निर्माता निर्देशक मन के करना चाही, भलुक अइसन मनला बने हकन के थुथरना घलो चाही.
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-विज्ञान ह आजकाल कोनो मरे मनखे के कंकाल ले ये जान जाथे कहिथे जी भैरा के वो मनखे ह बुढ़वा रिहिसे ते जवान, करिया रिहिसे ते गोरिया, नर रिहिसे ते मादा.
   -हव ए बात तो सिरतोन आय जी कोंदा.. विज्ञान ह मनखे जेन कोनो भी रहिथे, वोकर सबकुछ ल बता देथे.
   -वाह भई.. गजब हे, फेर संगी विज्ञान ह इहू बता सखथे का के वो कंकाल ह बाम्हन के रिहिसे ते शूद्र के या हिन्दू के रिहिसे या मुसलमान के? 
   -ए बात ल विज्ञान कइसे बता सकही संगी.. ए तो लोगन के बनाय अउ माने जिनिस आय.. जेकर विज्ञान के नजर म कोनो कीमत नइए.. विज्ञान तो सिरिफ वोला मानथे, जानथे अउ बताथे, जेला प्रकृति ह बनाय हे.. या तुंहर नजर म कहिन के परमसत्ता ह सिरजाय हे.
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-अब के बेरा म जिहां अनाथ आश्रम मन के संख्या म बढ़ोत्तरी देखे बर मिलत हे, उहें वृद्धाश्रम के संख्या म घलो दिनों दिन बढ़ोत्तरी आवत हे जी भैरा.
   -हव जी कोंदा महूं ल अइसने जनाथे.. कोनो दाई-ददा मन अपन लइका मनला एते-तेती छोड़ के भागत हें, त कतकों लइका मन अपन दाई-ददा के सेवा बजाए अउ पोसे के डर म उनला वृद्धाश्रम म पटक के भागत हें.
   -हव भई बड़ा बिचित्र बेरा आगे हे! 
   -एकरे सेती मैं गुनत रेहेंव संगी, के वृद्धाश्रम अउ अनाथालय ए दूनों ल अलग अलग संचालित करवाए के बलदा एकमई कर देना चाही, एकर ले ए फायदा होही के नान नान अनाथ लइका मनला जिहां दाई-ददा मिल जाही उहें सियान मनला अपन बेरा पहवाए के साधन के रूप म लइका.
   -तोर गोठ तो वाजिब जनावत हे संगी दूनों किसम के लोगन ल एक-दूसर के सहारा मिल जाही.
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-पर्यावरण दिवस अवइया हे जी भैरा.. ए बछर तैं ह के ठन पौधा लगाके वोकर जोखा करबे? 
   -पौधा तो मैं एके ठन बोथौं जी कोंदा, फेर हमर तीर-तखार म जतका रूख-राई हे सबोच के जोखा-संवागा करथौं अउ बारों महीना करथौं.. हमन नेता थोरे अन जी तेमा फोटू खिंचवाए बर एक ठन पौधा लगा के ओमा बिन पानी डारे मरे बर छोड़ देबो.
   -सही आय संगी.. हमर-तुंहरे मन कस किसनहा मन के सेती ही पेड़ पौधा लगथे.. ओ मन बाॅंचथें अउ फरथे-फूलथे, नइते बाकी मन तो एसी कुरिया म बइठ के प्लास्टिक अउ पॉलीथीन ल बगराए म मगन रहिथें अउ बछर भर म एक दिन एक ठन पौधा ल धर के जाथें अउ पंद्रा झन जुरिया के फोटू खिंचवाथें बस. 
   -भइगे पर्यावरण संरक्षण अउ बढ़ोत्तरी के नॉव म अइसनेच ढोंग चलत हे संगी, तभो ले अखबार वाले मन अइसने देखावटी मन के फोटू ल छापथें घलो.
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-ए बछर मानसून ह हमर छत्तीसगढ़ म जल्दी आवत हे काहत हें जी भैरा.
    -ए तो बने बात आय जी कोंदा.. ए बछर बरखा घलो बने हेलमेल होही कहिके वैज्ञानिक मन आरो करावत हें.
    -हव जी प्रकृति तो अपन मया-दुलार ल बनेच देथे, बस हमीं मन ओकर बने गढ़न के जोखा सकेला अउ उपयोग नइ कर पावन, तेकर सेती कभू सुक्खा ते कभू पनिया दुकाल के अभेरा म पर जाथन.
   -ठउका कहे संगी.. अभी तक हमन बरखा के पानी ल पूरा सकेले के जोखा घलो नइ कर पाए हन. एकरे सेती जम्मो पानी नदिया नरवा ले बोहावत समुंदर म बोहा जाथे.
   -सही आय.. अभी घलो इहाँ के नदिया नरवा मन म कतकों जगा छोटे छोटे स्टाप डेम के जरूरत जनाथे, ठउका अइसने रेनवाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम के घलो सही मायने म उपयोग नइ दिखय.
    -हव जी.. इहाँ के हर नदिया नरवा म पॉंच किमी के अंतराल म छोटे छोटे स्टाप डेम बनना चाही, वइसने रेनवाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम ल अनिवार्य करे जाना चाही
   -होना तो चाही संगी फेर अभी तो सरकारी भवन म ही एकर ठिकाना नइए त आम लोगन के कतका सरेखा करबे.
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-ए बछर ले मैं हमर जुन्ना खेती किसानी जेला आजकाल 'जैविक खेती' कहिथे, तइसने चालू करे के गुनत हौं जी भैरा.
   -मन तो मोरो होथे जी कोंदा.. पहिली ददा-बबा मन संग घुरुवा के खातू ल गाड़ा म पलोवन तेन बखत के चॉंउर के सुवाद अउ खुशबू के सुरता करथौं, त अब के ह तो भइगे दुनिया भर के बीमारी संग पेट भरई कस भर होवत हे.
   -भइगे उत्पादन बढ़ाए के नॉव म रसायन के गुलाम होगे हावन, तभो न सर के न सुवाद के धरती के उत्पादकता घलो सिरावत हे.
   -हव भई.. जमीन ह अब बने गतर के पानी ल घलो नइ सोख पावय, रासायनिक खातू मन के सेती कतकों किसम के मित्र कीट मन घलो मर जाथें.
    -ए रसायन मन के सेती खेत-खार के संगे-संग तीर तखार के भुइयॉं मन घलो अपन मूल गुण ल बिसार डारे हे.. अब तैं बर, पीपर अउ गस्ती जइसन पेड़ के पिकरी मनला ही खाके देख ले पहिली के ह जइसे गुत्तुर जनावय, तइसे अब लागबे नइ करय. 
   -सिरतोन आय संगी.. रासायनिक खेती ह चारों मुड़ा ले चौपट कर डारे हे, अब हर किसान ल जैविक खेती डहार लहुटे बर लागही.
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-हमर खान-पान, रहन-सहन अउ संगति के असर होथे नहीं जी भैरा? 
   -जरूर होथे जी कोंदा, तभे तो हमर पुरखा मन हाना गढ़े रिहिन हें- जइसे खाबे अन्न, तइसे बनही मन.. अउ जइसे करबे संगति, तइसनेच होही तोर गति। 
   -महूं ल ए सब ह वाजिब जनाथे जी संगी.. अभी एक झन पुलिस वाले ल देखत रेहेंव, ओकर गोठ म गारी-गुफ्तार ह सहज कस जनाथे। 
   -जनाबेच करही, जिनगी भर अपराधी मन के आगू-पाछू भगई संग उंकर संग गोठ-बात के असर तो दिखबेच करही. एक झन प्रायमरी स्कूल के गुरुजी हे वो ह जम्मो लोगन ल पढ़इया लइका बरोबर अउ अपनआप ल दुनिया के सबले बड़े ज्ञानी बरोबर समझथे, वोकर व्यवहार म ए सबो ह दिखथे घलो। 
   -हव जी.. वइसने एक झन जानवर के डॉक्टर ल घलो देखे हौं.. वो ह जब गोठियाथे त मुड़पेलवा बरोबर.. जइसे माल-मत्ता मन बरपेली हुमेले असन करत रहिथे ना.. ठउका उहू ह वइसने कस जनाथे, अपन अनीत रइही तभो घेक्खर बानी के मुड़पेलवा असन करबेच करथे।
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-जहाँ घुड़ुर-घाड़र के दिन आइस तहाँ ले गाज गिरे के खबर आय लगथे जी भैरा.
    -सिरतोन आय जी कोंदा.. अब कालेच देख ले, मोहला अउ कवर्धा के रेंगाखार ले गाज गिरे के खबर आइसे, तेमा के रेंगाखार म तो एक झन ह तुरते मरगे, मोहला के कोरलदंड नर्सरी म घलो 15 झन मजदूर मन घायल होगें.
   -ए गाज गिरे वाले घटना म तैं एक चीज ल चेत करे हावस संगी.. दूनों जगा के लोगन आंधी पानी ले बॉंचे खातिर पेड़ के छॉंव म लुकाए रिहिन हें.
   -हां.. इहीच ह तो गड़बड़ होय हे.. जब कभू लउकना चमकना, गरजना संग पानी गिरथे त कभू भी पेड़ के छॉंव म नइ ओधना चाही, काबर ते पेड़ पौधा अउ लोहा के खंभा आदि मन आकाशीय बिजली जेला हमन गाज कहिथन, तेला अपन डहार आकर्षित करथे.. अच्छा हे के अइसन बेरा म हम कहूँ भॉंठा या खेत के बीच म हावन, त उही जगा चुरूमुरू होके कलेचुप बइठ जावन.
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-हमर इहाँ छट्ठी म छेवरहीन महतारी ल मुनगा बरी के साग खवाए के परंपरा हावय तेकर महत्व ल जानथस नहीं जी भैरा? 
   -जानबे कइसे नहीं जी कोंदा.. मुनगा म भरपूर मात्रा म विटामिन अउ पोषण तत्व होथे जे ह छेवरहीन महतारी ल जल्दी तंदुरुस्त करे म सहायक होथे.
   -ठउका कहे संगी.. जइसे उरई के जड़ ल डबका के कॉंके पियाय के महत्व होथे ठउका वइसने मुनगा खवाए के घलो होथे.. अभी मुनगा के इही पुष्टई वाले महत्व ल समझ के लइका मन के कुपोषण ल दुरिहाय बर बस्तर के महिला एवं बाल विकास विभाग ह कुपोषित लइका के घर के संगे-संग आंगनबाड़ी मन म मुनगा पेड़ लगाए अउ ओकर साग खवाए के उदिम करे के निर्णय लिए हे.
   -ए तो बने बात आय संगी.. मुनगा के फर के संगे-संग ओकर फूल अउ पाना ह घलो  जबर पुष्टई के होथे एकरो मन के उपयोग लइका मन के जेवन संग करे जा सकथे.. कुपोषण के खिलाफ हथियार बनाए जा सकथे
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-आज तोर संगवारी मन के कुर्बानी तिहार आय जी भैरा.. तहूं वोकर मन संग संघरबे नहीं? 
   -ककरो परब-तिहार म संघरना अलग बात आय जी कोंदा, फेर जिहां तक कुर्बानी या पूजवन के बात हे, त ए तो हमरो मन म चलथे.. कोनो बदना के नॉव म करथे त कोनो अउ कुछू के नॉव म. 
   -हव जी ए तो सही आय.. अइसन मामला म कोनो एक वर्ग ऊपर अॅंगरी उठाना सही नोहय.. अब हमरे गाँव के बात ल देख ले.. बोहरही मेला सब म अपन अपन बोकरा ल चॉंउर चबवा के कइसे ओसरी-पारी खड़े रहिथें! 
   -हव जी.. एक-दू पइत सामाजिक संगठन के लोगन रैली निकाल के पूजवन के परंपरा ल सिरवाय बर अरजी-बिनती करीन, फेर कहाँ कोनो मानीन! 
   -नइ तो मानीन.. अब पुरखौती परंपरा ल लोगन हर्रस ले छोड़े घलो तो नइ सकय ना.
   -हव गा.. फेर तोला कइसे जनाथे, तहूं तो गजब दिन ले साधना-उपासना म रेहे? 
   -मैं तो सात्विक पद्धति ले अपन साधना ल पूरा करे हौं संगी, अउ जेन उद्देश्य ल ले के करे हौं, वोला पाए घलो हौं.. अउ आज वोकरे आधार म कहि सकथौं, के अपन ईष्ट ल मनाए-पाए बर सिरिफ फूल-पान, नरियर के माध्यम ले पूजा करई ह सार्थक होथे.
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-ए बछर मानसून के पछुवाय के सेती हमर किसानी ह घलो पिछुवागे जी भैरा.
    -सिरतोन आय जी कोंदा.. ए बछर तो प्री-मानसून जेला हमन अंकरस के बरसा कहिथन तेनो ढेरिया दे हवय भई. 
   -हव जी न खेत म अंकरस जोते सकेन अउ न खुर्रा बोनी कर पाएन.
   -रोपा लगाए बर पहिली जेन नर्सरी बोए जाथे तेकरो तो ए बछर चेत नइ कर पाएन जी संगी.. मोला तो अब सरग भरोसा के किसानी ह जुआ खेले असन होवत जावत हे तइसे जनाथे.
    -हमर असन एक फसली किसान मन बर तो जुअच आय. अपासी के कुछू साधन नइए त सरग के आसरा म बइठे रहिथन.
   -हव जी.. ए मौसम के अवई-जवई ह जब ले गड़बड़ाय हे, तब ले जादा च बाय बरोबर होगे हे.
   -सरकार के नीति घलो तो अनदेखना बरोबर बनथे, हमरो डहार नहर के मुड़ी-पूछी ल लमातीस त जम्मो पानी ल मार फैक्टरी मन के भोभस म भर देथे.. मानो विकास के मापदंड बस उही मन आय.. खेती किसानी ह नोहय तइसे केहे कस.
   -भइगे.. लोहा लक्कड़ ल लोगन खा-पी के जी जहीं तइसे केहे कस!
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-मोबाइल म हेडफोन लगाके गोठ-बात करे अउ झकाझक गीत-संगीत सुनई ह अब अलहन हो सकथे जी भैरा.
   -अच्छा.. अइसे हे का जी कोंदा? 
   -हव.. एकर ले कान म वायरल अटैक के खतरा हो सकथे.. अभी हमर बालीवुड के प्रसिद्ध पार्श्व गायिका अलका याग्निक ह एकरे सेती भैरी असन होगे हे.
   -वाह भई..! 
   -अलका याग्निक ह अपन सब प्रशंसक मनला तेज संगीत अउ कान म हेडफोन लगाके सुने बर बरजत बताय हे के अभी कुछ सप्ताह पहिली वो ह हवाई जहाज ले निकलीस त जनाइस के वोला कुछू सुनावत नइए. 
   -वाह भई.. सोहलियत अउ मजा लेके नॉव म बाढ़त ए रकम-रकम के जिनिस मन वाजिब म अलहन बरोबर हे जी... सिरतोन म अइसन मन के उपयोग थोकिन चेतलग बानी के करना चाही.
   -हव.. गायिका ह अपन प्रशंसक मनला अपन जिनगी ल फेर व्यवस्थित ढंग ले शुरू करत ले धीर धरे बर केहे हे.
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-तैं ह कवि मन म कबीर साहेब ल ही ऊँचहा आसन देथस जी भैरा.. आखिर अइसन काबर? 
   -पहिली बात तो ए हे जी कोंदा के मैं सिरिफ कबीर साहेब म ही जइसे कथनी तइसनेच करनी के रूप देखथौं... जबकि कतकों अइसनो कवि मनला मैं जानथौं जेकर मन के उपदेश ह सिरिफ दूसर मन खातिर रहिथे, वोकर खुद के जीवन चरित्र ल देखबे त थोथो -लोलो बरोबर जनाथे.
   -अच्छा... अइसे? 
   -हव.. दूसर अउ महत्वपूर्ण बात ए हे जेन ह मोर हिरदे म मया घोरथे वो हे.. इही कबीर जयंती माने जेठ पुन्नी के  मोला पहिली बेर पिता कहइया मोर बड़का नोनी ह ए धरती म आए रिहिसे.
   -अच्छा.. अइसे? 
   -हव जी.. कबीर साहेब से तो मैं छात्र जीवन म उंकर रचना पढ़त रेहेंव तब ले प्रभावित रेहेंव, फेर जब मैं खुद आध्यात्मिक साधना म गेंव अउ मोर वो जम्मो महत्वपूर्ण माध्यम मन संग साक्षात होइस.. ज्ञान मिलत गिस तब ले उंकर खातिर मोर हिरदे म सम्मान के भाव अउ बाढ़त गिस.
   -ले बने हे, त आज कबीर जयंती अउ तोर पिता कहाए के पहिली तिथि जेठ पुन्नी के बधाई अउ जोहार.
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-हमर देश के न्याय संहिता ह 1 जुलाई ले बलदही काहत हें जी भैरा.
   -अच्छा.. न्याय संहिता माने न्याय दे के तरीका ह बलदही जी कोंदा? 
   -नहीं संगी.. तरीका तो पहिली असन अदालत के माध्यम ले ही दिए जाही, फेर एकर धारा अउ सजा के प्रावधान म थोकिन बदलाव रइही.
   -अच्छा.. वो कइसे गढ़न के? 
   -जइसे पहिली हत्या के अपराध म धारा 302 दर्ज होवय, अब ए ह धारा 103 के रूप म दर्ज होही, अइसने अउ कतकों अकन धारा मन म बदलाव करे गे हवय. अब कोनो कारण ले तोला तुरते थाना जाके एफआईआर कराए म अड़चन आवत हे त तैं डिजिटल तरीका ले माने ई-एफआईआर करवा सकथस अउ फेर तीन दिन या निर्धारित तिथि के भीतर संबंधित थाना म जाके अपन पहचान अउ हस्ताक्षर ल सत्यापित करवा सकथस.
   -ए तो बने बात आय संगी.
   -हव जी.. अब छोटे अपराध म लिप्त आरोपी मनला सुधरे के अवसर घलो दिए जाही.
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Monday 3 June 2024

छितका कुरिया मुकुटधर पाण्डेय के आशीर्वचन..

सुरता//
मोर पहला कविता संग्रह 'छितका कुरिया' म पद्मश्री पं. मुकुटधर पाण्डेय जी के आशीर्वचन... 
    छायावाद के प्रवर्तक, पद्मश्री, साहित्य वाचस्पति पं. मुकुटधर पाण्डेय जी के आशीर्वचन के सौभाग्य मोला तब मिले रिहिसे, जब मैं अपन नान्हे उमर मनके कविता ल 'छितका कुरिया' के नॉंव ले अपन जिनगी के पहला काव्य संकलन निकलवाए रेहेंव.
     महाशिवरात्रि 8 मार्च 1989 के लिखे अपन आशीर्वचन ल देवत श्रद्धेय पाण्डेय जी तब कहे रिहिन हें- 'मैं अपन जिनगी म कोनो रचनाकार खातिर पहिली बेर छत्तीसगढ़ी भाषा म संदेश या आशीर्वचन लिखे हौं.' 
    वो बखत आज जइसे कम्प्यूटर अउ आफसेट प्रिंटिंग के जमाना नइ रिहिसे, तेकर सेती मैं उंकर वो आशीर्वचन के ब्लाक बनवा के संकलन म छपवाए रेहेंव. आशीर्वचन के लेखा देखव-
"श्रीराम"
नवोदित कवि सुशील वर्मा (वो बखत मैं अपन नाम सुशील वर्मा ही लिखत रेहेंव) के काव्य संकलन 'छितका कुरिया' म नाम के अनुरूप गरीबी रेखा ल पार करइया हमर मजदूर किसान मन के जीवन के विदग्धता पूर्ण चित्रण हवय. एमा एक तरफ तो गंवई गाँव के उमंग, उत्साह अउ भोलापन हे, प्रकृति सौंदर्य के सुघ्घर झॉंकी हे, तो दूसर तरफ शोषण कर्ता मन के विरुद्ध आक्रोश हे. कवि म यथार्थ अउ कल्पना के बढ़िया मेल हवय. कवि म प्रतिभा हे. उनमें अपन माटी के पीरा अउ महक समाय हवय. एतके नहीं उन मा युग के पहिचान अउ ओला वाणी देहे के सामरथ घलो हवय. भाषा शिल्प म मार्जन के जरूरत हवय. लेखनी धीरे 2 मंजाथे, ए बात ल ध्यान म रखना चाही.
    अभी तक मैं उनकर सम्पादकीय रूप के प्रशंसक रहेंव. उन कर दुवारा सम्पादित 'मयारु माटी' के छत्तीसगढ़ी साहित्य के इतिहास म स्थायी महत्व रइही, ए बात जानत हौं. फेर उन कर कवि रूप ल देख के अउ ज्यादा खुशी होइस. 'छितका कुरिया' संकलन पढ़ के मोला 'होनहार बिरवान के होत चीकने पात' वाला उक्ति याद आ गइस. 
    उज्जवल भविष्य के कामना सहित.. 
मुकुटधर पाण्डेय
रायगढ़
महाशिवरात्रि