Saturday, 20 September 2025

सादगी और साहित्य.. सुशील वर्मा भोले

सादगी और साहित्य साधक का दूसरा नाम है सुशील वर्मा भोले

आलेख -कमलेश प्रसाद शर्माबाबू 

  छत्तीसगढ़ी साहित्य के प्रमुख साहित्यकारों में सुशील वर्मा भोले एक ऐसा नाम है। जिसके बारे में कहा जा सकता है कि उनका लेखन हर विषय पर शोध परक होता है।छत्तीसगढ़ की लोक संस्कृति, लोक कला, लोक जीवन और मानवीय संवेदनाओं को उभारने में विशेष स्थान रखता है। उन्होंने छत्तीसगढ़ी भाषा में कविता, कहानी, व्यंग्य, संस्मरण और विभिन्न विधाओं में रचनाएँ की हैं।उनका कलम छत्तीसगढ़ी अस्मिता और स्वाभिमान के लिए एक सिपाही के रूप खड़ा होता है।वे किसी भी विषय पर आलेख लिखते समय उसे यथार्थ की धरातल में परखते हैं।चाहे ठेठरी खुरमी को शिवलिंग और जलहरी की बात हो या श्राद्ध में तरपन का महत्व हो या किसी मंदिर वा पर्यटन स्थल का आलेख हो उसमें वैज्ञानिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण के दर्शन होते हैं।उनका भगवान शिव पर अटल विश्वास है।
   छत्तीसगढ़ साहित्य में उनका योगदान वर्तमान और भावी पीढ़ी के लिए सदैव प्रेरणादायक रहेगा।वे लम्बे समय तक एक कर्तव्यनिष्ठ पत्रकार के रूप में अपनी सेवाएं दी हैं। छत्तीसगढ़ी भाषा की प्रथम संपूर्ण मासिक पत्रिका "मयारू माटी" के संपादक थे।साथ ही उन्होंने दैनिक अग्रदूत,तरुण छत्तीसगढ़,अमृत संदेश आदि समाचार पत्रों के सह संपादक के रूप में कुशल भूमिका भी निभाई है।
     प्रत्येक साहित्यकार का एक सपना होता है कि उसके साहित्य को लोग जाने पहचाने और पाठ्यक्रम में शामिल हो।भोले जी की छत्तीसगढ़ी कहानी 'ढेंकी' को पं.रविशंकर शुक्ल विवि.द्वारा एम ए छत्तीसगढ़ी के सेमेस्टर 2 में शामिल किया गया है।
   दरस के साध(लंबी कविता)जिनगी के रंग- (गीत और भजन संकलन)
कहानी संग्रह
 ढेकी (कहानी संकलन),छितका कुरिया(काब्य संग्रह),
 भोले के गोले(व्यंग्य संग्रह)
सुरता के संसार (संस्मरण संग्रह)आखरअंजोर(छत्तीसगढ़ की मूल संस्कृति पर आधारित लेखों का संकलन है।
सुशील भोले की रचनाओं में छत्तीसगढ़ी भाषा की मिठास और लोकजीवन के यथार्थ स्वरूप दोनों के जीवंत रूप के दर्शन होते हैं । उनकी कहानियाँ और व्यंग्य संग्रह सामाजिक मुद्दों पर तीखा कटाक्ष करते हैं और पाठकों को सोचने पर मजबूर करते हैं। उनके लेखन में छत्तीसगढ़ी तीज-त्योहार, ग्रामीण जीवन, और लोक परंपराओं का गहरा प्रभाव देखा जा सकता है। समसामयिक मुद्दों को लेकर प्रतिदिन लिखने वाले उनके लघु आलेख "कोंदा भैरा के गोठ" भी काफी लोकप्रिय हैं जो सरलग जारी है।
पेशे से कुशल पत्रकार रहे आदरणीय सुशील भोले भैया अपनी तमाम शारीरिक परेशानियों को मात देते हुए आज भी उम्र के इस पड़ाव में सतत् लेखन कार्य कर रहे हैं। ईश्वर उसे दीर्घायु प्रदान करें ताकि वे हमेशा अपनी कलम से छत्तीसगढ़ महतारी की सेवा करते रहें।
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आलेख -
कमलेश प्रसाद शर्माबाबू
(छग.साहित्यकार, छंदकार)
कटंगी-गंडई जिला केसीजी छत्तीसगढ़-9977533375
04-09-2025

Thursday, 11 September 2025

रामचंद्र वर्मा संक्षिप्त परिचय..

   स्व. श्री रामचंद्र वर्मा का जन्म ग्राम नगरगाँव, थाना धरसींवा, जिला रायपुर के किसान स्व. बुधराम वर्मा एवं 
माता दया बाई के घर पर हुआ था.
   वे दो भाई और दो बहनों के भरेपूरे परिवार में सबसे बड़े थे. रामचंद्र वर्मा और अनुज देवचरण वर्मा दोनों ही शिक्षक थे. रामचंद्र की शिक्षक के रूप में प्रथम नियुक्ति ग्राम कूँरा (कुँवरगढ़), थाना धरसींवा जिला रायपुर में हुई थी. उसके पश्चात उनका स्थानांतरण ग्राम सिनोधा (नेवरा) में हुआ था, फिर भाठापारा शहर के मेन हिंदी स्कूल में स्थानांतरित होकर आए.
   यहीं मेन हिंदी स्कूल में शिक्षकीय कार्य करने के दौरान ही उन्होंने प्राथमिक हिंदी व्याकरण एवं रचना किताब कक्षा 3 री, चौथी एवं पाँचवीं का लेखन किया था, जिसे उस समय सभी शालाओं में पाठ्यपुस्तक के रूप में शामिल किया गया था. 
   भाठापारा शहर के ही एक शिक्षक आत्माराम जी जो अपने पिताजी के नाम पर अनुपम प्रकाशन के नाम से पुस्तक प्रकाशन का व्यवसाय करते थे, उनके ही प्रोत्साहन पर उन तीनों किताबों की रचना हुई थी, इसलिए उन किताबों का प्रकाशन अधिकार भी अनुपम प्रकाशन को दिया गया था.
   रामचंद वर्मा के अनुज देवचरण वर्मा का एक सड़क दुर्घटना में निधन हो जाने के कारण उनके माता पिता असहाय से रहने लगे थे, इसलिए उन्होंने अपना स्थानांतरण भाठापारा से रायपुर करवा लिया था. रायपुर में तेलीबांधा रविग्राम स्कूल में उनका स्थानांतरण हुआ था. उसके पश्चात रामकुंड रायपुर स्थित सखाराम दुबे स्कूल में प्रधान पाठक के रूप में स्थानांतरण हुआ जहाँ से वे प्रधान पाठक के रूप में ही सेवानिवृत्त हुए.
   रामचंद्र वर्मा भाठापारा के हथनीपारा वार्ड में रहते थे, उस समय वहाँ घासीराम जी साव पार्षद थे. घासीराम जी का अत्यंत स्नेह रामचंद्र वर्मा को प्राप्त था, इसीलिए रामचंद्र के घर बहुत पूजा पाठ और तप जप के पश्चात आठ वर्षों के अंतराल पर उनका मझला सुपुत्र सुशील (छत्तीसगढ़ी के वरिष्ठ साहित्यकार सुशील वर्मा भोले का) जन्म हुआ तो उसकी छट्ठी बरही सब घासीराम जी ने अपने ही घर पर अपने देखरेख और संरक्षण में करवाया था.
   रामचंद्र वर्मा के द्वितीय सुपुत्र साहित्यकार सुशील वर्मा भोले बताते हैं कि उनके पिताजी प्राथमिक व्याकरण रचना किताब को प्रतिवर्ष संशोधित करते थे. गरमी के दिनों में शालाओं का अवकाश होता था, तब वे उन तीनों किताबों का संशोधन संवर्धन करते थे. सुशील वर्मा भोले कहते हैं कि मैं उन्हें गरमी की छुट्टी भर लिखते पढ़ते ही देखता था. उनके इसी गतिविधियों को देख देख कर ही मेरे मन में भी लेखन के प्रति आकर्षण उत्पन्न हुआ.