Saturday 11 May 2013

चलो गांव की ओर...












चलो गांव की ओर जहां सूरज गीत सुनाता है
तारों के घुंघरू बांध, चंद्रमा नृत्य दिखाता है.....

अल्हड़ बाला-सी इठलाती, नदी जहां से बहती है
मंद महकती पुरवाई, जहां प्रेम की गाथा कहती है
बूढ़ा बरगद पुरखों की, झलक जहां दिखलाता है....

रिश्ते-नाते जहां अभी भी मन को पुलकित करते हैं
दादी-नानी के नुस्खे, जीवन में रस-रंग भरते हैं
पूरा कस्बा परिवार सरीखा जहां अभी भी रहता है...

भाषा जिसकी भोली-भाली, तुतलाती बेटी-सी प्यारी
जहां संस्कृति पल्लवित होती जैसे मालिन की फुलवारी
धर्म जहां हिमालय जैसा, अडिग आशीष लुटाता है.....

सांझ ढले जब ग्वाले की, बंशी की तान बजती है
गो-धूली गुलाल सरीखी, जब माथे पर सजती है
तब पूरा परिवेश जहां का, गोकुल-सा बन जाता है....
                                           सुशील भोले 
                                    संजय नगर, रायपुर (छ.ग.)
                           ई-मेल -   sushilbhole2@gmail.com
                                     मो.नं. 098269 92811

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