Tuesday 27 August 2013

लइकई के हांसी...














तैं कहां गंवा गेस मोर लइकई के हांसी
सुरता कर देथे मोला अब तोर रोवासी......

कन्हैया कस महूं ह फुदर-फुदुर रेंगव
मंद पिये कस फेर भुदरुस ले गिरंव
महतारी ह धरा-रपटा उठावय
ठउका कूदे हस कहिके हंसावय
फेर पलथिया के झड़कंव मैं बासी.......

थोरके बाढ़ते मैं फुतकी म खेलंव
पावडर कस देंह भर उही ल चुपरंव
घर-घुंदिया कभू ते सगा-पहुना खेलन
गुठलू ल फोर के चिरौंजी ल रांधन
घानीमुंदी किंजरत फेर आवय मतासी........

पीपर छइहां म इब्भा हम खेलन
कभू-कभू बांटी अउ भौंरा रट्ठोवन
डंडा-पचरंगा ते कभू खेलन खुडवा
कभू-कभू गम्मत कस बनन हम बुढ़वा
ये सब उछाह ल आज लगगे फांसी.......

सुशील भोले
डॉ. बघेल गली, संजय नगर (टिकरापारा), रायपुर (छ.ग.)
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2 comments:

  1. " सियान मन जिनगी भर पाथें भइगे दुख , कहॉ ले पाबो अब लइकई के सुख ।" सुन्दर प्रस्तुति ।

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