Friday 22 November 2013

फुदुक-फुदुक भई फुदुक-फुदुक....

(छत्तीसगढ़ी भाषा के इस बालगीत को मैं अपनी मझली बेटी के लिए तब लिखा था, जब वह करीब एक वर्ष की थी, और थोड़ा-बहुत लडख़ड़ा कर चलने की कोशिश कर रही थी। उस समय भी आज की ही तरह ठंड का आगमन हो चुका था, और वह बिना कपड़ा पहने घर के आंगन में इधर-उधर खेल रही थी....)












फुदुक-फुदुक भई फुदुक-फुदुक
खेलत हे नोनी फुदुक-फुदुक....

बिन कपड़ा बिन सेटर के
जाड़ ल बिजरावत हे।
कौड़ा-गोरसी घलो ल,
एहर ठेंगा देखावत हे।
बिन संसो बिन फिकर के,
कुलकत हे ये गुदुक-गुदुक......

कभू गिरथे, कभू उठथे,
कभू घोनडइया ये मारथे।
कभू तो मडिय़ावत ये,
अंगना-परछी किंजर आथे।
कभू-कभू तो जलपरी कस,
पानी खेलथे चुभुक-चुभुक.....

सुशील भोले 
संजय नगर, रायपुर (छ.ग.)
ई-मेल - sushilbhole2@gmail.com
मो.नं. 08085305931, 098269 92811

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