Wednesday 11 December 2013

पंडवानी के आदि गुरु




वर्तमान छत्तीसगढ़ में पंडवानी गायन की एक समृद्ध परंपरा देखी जा रही है। इस विधा के गायक-गायिकाओं को राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिल रही है। पद्मश्री से लेकर अनेक राष्ट्रीय और प्रादेशिक पुरस्कारों से ये नवाजे जा रहे हैं। लेकिन इस बात को कितने लोग जानते हैं कि इस विधा के छत्तीसगढ़ में प्रचलन को कितने वर्ष हुए हैं और उनके पुरोधा पुरुष कौन हैं?

आपको यह जानकर सुखद आश्चर्य होगा कि ग्राम झीपन (रावन) जिला-बलौदाबाजार के कृषक मुडिय़ा राम वर्मा के पुत्र के रूप में जन्मे स्व. श्री नारायण प्रसाद जी वर्मा को छत्तीसगढ़ में पंडवानी गायन विधा के जनक होने का गौरव प्राप्त है। उन्होंने गीता प्रेस से प्रकाशित सबल सिंह चौहान की कृति से प्रेरित होकर यहां की पारंपरिक लोकगीतों के साथ प्रयोग कर के पंडवानी गायन कला को यहां विकसित किया।

मुझे स्व. नारायण प्रसाद जी के पुश्तैनी निवास जाने का अवसर प्राप्त हुआ है। उनकी चौथी पीढ़ी के संतोष और निलेश कुमार के साथ ही साथ ग्राम के ही एक शिक्षक ईनू राम वर्मा, जो  नारायण प्रसाद जी के व्यक्तित्व-कृतित्व पर काफी काम कर रहे हैं, तथा आसपास के कुछ बुजुर्गों से यह जानकारी प्रप्त हुई कि नारायण प्रसाद जी अनेक ग्रंथों का अध्ययन किया करते थे। और उन सभी का निचोड़ वे अपने पंडवानी गायन में किया करते थे।

उनके जन्म एवं निधन की निश्चित तारीख तो अभी प्राप्त नहीं हो पायी है (संबंधित थाना एवं पाठशाला में आवेदन दे दिया गया है, और उम्मीद है कि जल्द ही प्रमाणित तिथि हम सबके समक्ष आ जायेगी।) लेकिन यह बताया जाता है कि उनका निधन सन् 1971 में हुआ था, उस वक्त वे लगभग 80 वर्ष के थे।

पंडवानी शब्द का प्रचलन
नारायण प्रसाद जी को लोग भजनहा (भजन गाने वाला) कहकर संबोधित करते थे। यह इस बात का प्रमाण है कि उनके समय तक पंडवानी शब्द प्रचलन में नहीं आ पाया था। पंडवानी शब्द बाद में प्रचलित हुआ होगा, क्योंकि उसके बाद के पंडवानी गायकों को पंडवानी गायक के रूप में संबोधित किया जाता है, साथ ही इन्हें शाखाओं के साथ (वेदमति या कापालिक) जोड़कर चिन्हित किया जाता है। ऐसा इसलिए हो रहा है, क्योंकि पंडवानी गायन के साथ ही साथ इस विषय पर अब काफी काम हो चुका है, लेकिन जिस समय नारायण प्रसाद जी इस विधा को मंच पर प्रस्तुत करना आरंभ किये थे तब यह बाल्यावस्था में था। तब इसे भजन के रूप में देखा जाता था, और इसके गाने वाले को भजनहा अर्थात भजन गाने वाले के रूप में।

पंडवानी की मंचीय प्रस्तुति के लिए वे अपने साथ में एक सहयोगी जिसे आज हम रागी के रूप में जानते हैं, रखते थे। उनके रागी गांव के ही भुवन सिंह वर्मा थे, जो खंजेड़ी भी बजाते थे और रागी की भूमिका भी निभाते थे। नारायण प्रसाद जी तंबूरा और करताल बजाकर गायन करते थे। उनके कार्यक्रम को देखकर अनेक लोग प्रभावित होने लगे और उनके ही समान प्रस्तुति देने का प्रयास भी करने लगे, जिनमें ग्राम सरसेनी के रामचंद वर्मा का नाम प्रमुखता के साथ लिया जाता है, लेकिन उन लोगों को न तो उतनी लोकप्रियता मिली और न ही सफलता।

रात्रि में गायन पर प्रतिबंध
नारायण प्रसाद जी के कार्यक्रम की लोकप्रियता इतनी ज्यादा थी कि लोग उन्हें सुनने के लिए दूर-दूर से आते थे। जिस गांव में कार्यक्रम होता था, उस गांव के साथ ही साथ आसपास के तमाम गांव तो पूर्णत: खाली हो जाते थे। इसके कारण चोर-डकैत किस्म के लोगों की चांदी हो जाती थी। जहां कहीं भी कार्यक्रम होता, तो उसके आसपास चोरी की घटना अवश्य घटित होती, जिसके कारण उन्हें रात्रि में कार्यक्रम देने पर प्रतिबंध का सामना करना पड़ रहा था। वे पुलिस प्रशासन के निर्देश पर केवल दिन में ही कार्यक्रम दिया करते थे।  

एक मजेदार वाकिया बताया जाता है। महाराष्ट्र के विदर्भ क्षेत्र में नारायण प्रसाद जी का कार्यक्रम था, वहां भी चोरी की घटनाएं होने लगीं। ब्रिटिशकालीन पुलिस वाले उन्हें यह कहकर थाने ले गये कि कार्यक्रम की आड़ में तुम खुद ही चोरी करवाते हो। असलियत जानने के पश्चात  बाद में उन्हें छोड़ दिया गया था। ज्ञात रहे कि उनके कार्यक्रम केवल आसपास के गांवों में ही नहीं अपितु पूरे देश में आयोजित होते थे।

प्रशासनिक क्षमता
नारायण प्रसाद जी एक उच्च कोटि के कलाकार और सांस्कृतिक कार्यक्रमों के पुरोधा होने के साथ ही साथ प्रशासनिक कार्यों में भी निपुण थे। बताते हैं कि वे अपने जीवन के अंतिम समय तक ग्राम पटेल की जिम्मेदारी को निभाते रहे। इसी प्रकार ग्राम के सभी तरह के कार्यों की अगुवाई वे ही करते थे।

लगातार 18 दिनों तक कथापाठ
ऐसा कहा जाता है कि पंडवानी (महाभारत) की कथा का पाठ लगातार 18 दिनों तक नहीं किया जाता। इसे जीवन के अंतिम समय की घटनाओं के साथ जोड़ा जाता है। लेकिन नारायण प्रसाद जी ने अपने जीवनकाल में दो अलग-अलग अवसरों पर 18-18 दिनों तक कथा पाठ किया।
एक बार जब वे शारीरिक रूप से सक्षम थे, तब अपने ही गांव में पूरे सांगितीक गायन के साथ ऐसा किया, तथा दूसरी बार जब उनका शरीर उम्र की बाहुल्यता के चलते अक्षम होने लगा था, तब बिना संगीत के केवल कथा वाचन किया था।

ऐसा बताया जाता है कि पहली बार जब वे 18 दिनों का पाठ कर रहे थे, तब यह अफवाह फैल गई थी कि नारायण प्रसाद जी इस 18 दिवसीय कथा परायण के पश्चात समाधि ले लेंगे। इसलिए उन्हें अंतिम बार देख-सुन लेने की आस में लोगों का हुजुम उमडऩे लगा था। लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। अलबत्ता यह जरूर बताया जाता है कि दूसरी बार जब वे 18 दिनों का कथा वाचन किये उसके बाद ज्यादा दिनों तक जीवित नहीं रह पाये... कुछ ही समय के पश्चात इस नश्वर दुनिया से प्रस्थान कर गये।

समाधि और जन आस्था 
आम तौर पर गृहस्थ लोगों के निधन के पश्चात उनके शव का श्मशान घाट पर अंतिम संस्कार कर दिया जाता है। लेकिन उनके ग्राम वासियों ने नारायण प्रसाद जी के निधन के पश्चात उन्हें श्मशान घाट ले जाने के बजाय ग्राम के तालाब में उनकी समाधि बनाना ज्यादा उचित समझा। और अन्य ग्राम्य देवताओं के साथ उन्हें भी शामिल कर लिया। ज्ञात रहे कि किसी भी पर्व-त्यौहार के अवसर पर नारायण प्रसाद जी की समाधि (मठ) पर ग्रामवासियों के द्वारा अन्य ग्राम्य देवताओं के साथ धूप-दीप किया जाता है।

पारिवारिक स्थिति
नारायण प्रसाद जी के पारिवारिक वृक्ष के संबंध में जो जानकारी उपलब्ध हो सकी है, उसके मुताबिक उनके पिता मुडिय़ा के पुत्र नारायण जी,  नारायण जी के पुत्र हुए घनश्याम जी, फिर घनश्याम जी के पुत्र हुए पदुम और फिर पदुम के दो पुत्र हुए जिनमें संतोष और निलेश अभी वर्तमान में घर का काम-काज देख रहे हैं।

यहां यह बताना आवश्यक लगता है कि नारायण प्रसाद जी के पुत्र घनश्याम भी अपने पिता के समान कथा वाचन करने की कोशिश करते थे। प्रति वर्ष पितृ पक्ष में बिना संगीत के वे कथा वाचन करते थे। लेकिन उनके पश्चात की पीढिय़ों में कथा वाचन के प्रति कोई रूझान दिखाई नहीं देता। आज जो चौथी पीढ़ी संतोष और निलेश के रूप में है, ये दोनों ही भाई केवल खेती-किसानी तक सीमित रहते हैं। शायद इसी के चलते नारायण प्रसाद जी का व्यक्तित्व-कृतित्व हमें पूर्ण रूप से उपलब्ध नहीं हो पाया। यदि इस क्षेत्र में रुचि रखने वाले वारिश होते तो शायद उनका संपूर्ण इतिहास लोगों के समक्ष उपलब्ध होता।

फोटो कैप्शन-
1- पंडवानी के आदिगुरु नारायण प्रसाद वर्मा
2- नारायण प्रसाद वर्मा एवं उनके रागी भुवन सिंह वर्मा
3- नारायण प्रसाद वर्मा जी की चौथी पीढ़ी के संतोष वर्मा के साथ, लेखक सुशील भोले एवं छत्तीसगढ़ी फिल्मों के नायक चंद्रशेखर चकोर
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सुशील भोले
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3 comments:

  1. नारायण प्रसाद जी ल नमन

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  2. बढि़या गंभीर जानकारी.

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  3. आप सभी को धन्यवाद...

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