Thursday 9 October 2014

छत्तीसगढ़ी म एमए के पढ़ई, माने बिन नेंव के घर गढ़ई

कोनो भी भाखा के पढ़ई ल अ आ इ ई ले शुरू करे जाथे तब जाके अं अ: के पारी आथे। अइसने जब कहूं मेर अपन बर घर-दुवारी, महल-अटारी बनाबे त पहिली नेंव कोड़ के वोला भरबे तेकर पाछू वोकर ऊपर छत ऊपर छत ढारत जाबे तभे वोहर इच्छा मुताबिक बनही या कहिन के सही मायने म उपयोग लायक बनही। बिना नेंव के घर कब रदरद ले भोसक जाही तेकर कोनो ठिकाना नइ राहय। जिहां तक छत्तीसगढ़ी भाखा ल शिक्षा के माध्यम बनाये के बात हवय त उहू ल इही मानक संग देखे जाना चाही। माने पहिली प्राथमिक शिक्षा दिए जाना चाही, तेकर पाछू फेर उच्च शिक्षा।

हमर रायपुर के पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय द्वारा छत्तीसगढ़ी भाखा म एमए के पढ़ई चालू करे गे हवय। मैं व्यक्तिगत रूप ले ए कारज के सुवागत करथौं। अभी इहां के शिक्षा विभाग ह घलोक हायर सेकेंडरी म छत्तीसगढ़ी ल एक विषय के रूप म पढ़ाये के बात करे हावय। मैं व्यक्तिगत रूप ले ये निर्णय के घलोक सुवागत करथौं। जे मन अपन सद्प्रयास ले अइसन बुता करत हें, वोकर मन के भावना के मैं सम्मान करथौं।  फेर जिहां तक व्यावहारिक या कहिन तकनीकी रूप ले देखिन त ए बात ह बड़ा उजबक किसम के लागथे। काबर ते जब हम कोनो लइका ल प्राथमिक शिक्षा छत्तीसगढ़ी म दे नइ हन अउ हर्रस ले एमे-वोमे पढ़ाये ले घर लेबो त वोला कोनो भी भाखा के  प्रारंभिक ज्ञान अउ अभ्यास कइसे हो पाही? अभी इहां जे मन एमे-वोमे करे हें या करत हें वोमा के कतकों झन ल मैं व्यक्तिगत रूप ले जानथौं। वोकर मन के लिखे-पढ़े अउ समझे के स्तर ल देखथौं त बड़ा दुख होथे।

अइसन दुखदाई छापा सिरिफ पढऩे वाला मन के नहीं भलुक पढ़ाने वाला गुरुजी मन के घलोक देखे बर मिलथे। काबर ते उन जम्मो झन हिन्दी माध्यम ले पढ़ के गुरूजी बने हें न कि छत्तीसगढ़ी माध्यम ले। जतका झन छत्तीसगढ़ी म एम ए या अन्य कक्षा पढ़ाने वाला हें, उन सबो झन ला दस-दस पेज के मौलिक छत्तीसगढ़ी लेखन खातिर कहि दौ, अउ फेर उंकर मन के जांच करौ, त सब पता चल जाही के उंकर छत्तीसगढ़ी के ज्ञान कतका आरूग अउ ठोस हे।

अतका तो निश्चित जानव के कहूं वोमन छत्तीसगढ़ी ल प्राथमिक स्तर ले पढ़त आए रहितीन त हमर मन के दशा ह उंकर कारज म अंगरी उठाये के लायक नइ रहितीस! एकरे सेती दुनिया के जम्मो बड़का विद्वान प्राथमिक शिक्षा ल महतारी भाखा के माध्यम ले दे के बात करथें। हमर संविधान तको म ए बात स्पष्ट रूप ले लिखाय हवय के प्राथमिक शिक्षा मातृभाषा के माध्यम ले दिये जाना चाही। त फेर एला का समझे जाना चाही के हमर सरकार ह संविधान के उल्लंघन करत हावय?

शासन के महत्वपूर्ण पद म बइसे एक-दू संगवारी मन संग मोर ये विषय म चरचा होथे, त उन हर्रस ले ये कहि देथें के गणित, विज्ञान अउ आने विषय के किताब ल छत्तीसगढ़ी म कइसे लिखहू। अउ नइ लिख सकव त वोला शिक्षा के माध्यम कइसे बना पाहू। अइसन संगवारी मनला मोर सिरिफ अतके कहना हवय के उन  अभी एकदम से उच्च शिक्षा के गोठ झन करंय काबर के एहर लम्बा रस्दा आय। एकर बर बड़का बेरा लागही। फेर उच्च शिक्षा के झांसा दे के प्राथमिक शिक्षा के रस्दा ल तोपे नइ जाना चाही। बल्कि होना ये चाही के प्राथमिक शिक्षा के व्यवस्था ल तुरंत कर के उच्च शिक्षा के रस्दा ल धीरे-धीरे करत खोले जाना चाही।

जिहां तक प्राथमिक शिक्षा के किताब के बात हे त एला आसानी के साथ बनाये जा सकथे। इहां के तमाम शिक्षाविद् अउ साहित्य लेखन संग जुड़े छत्तीसगढ़ी के मयारूक मन एकर बर हर दृष्टि ले सक्षम हें। फेर असल सवाल सरकार के नीयत अउ इरादा के हे। काबर ते सरकार ह एला राज्य स्तर म राजभाखा के तो दरजा दे दिए हावय, इहां राजभाषा आयोग के गठन कर दिये हावय। फेर इंकर एकोठन कारज ह ठोसहा नइ दिखय। साल म दू-तीन पइत साहित्यकार मन ल जोर-जार के खवा-पिया के बिदा कर दिए जाथे। जेन नेंव के असल बुता होना चाही वो दिशा म एको ठोसहा बुता आज तक नइ हो पावत हे। ए दिशा म न तो शिक्षा विभाग कुछू करत हे न आयोग करत हे। अइसे लागथे के सरकार के मनसा ए विषय म पोठ नइये।

पहिली ए विषय म कुछु चरचा करन त प्रदेश के जिम्मेदार लोगन मन केन्द्र सरकार के मुड़ म नरियर फोर देवत रिहिन हें के उन तो संविधान के आठवीं अनुसूची अभी तक छत्तीसगढ़ी ल शामिल नइ करत हें। असल म प्रदेश म अउ केन्द्र म आने-आने पारटी के सरकार हवय तेकर सेती वोमन इहां के कुछु चेत नइ करत हें।

ठीक हे, फेर अब तो दूनों जगा एके पारटी के सरकार बनवा डारे हावन न, त फेर अब का बात के बहाना हे। अब तो आठवीं अनुसूची के घलोक व्यवस्था करव, अउ प्राथमिक शिक्षा ल छत्तीसगढ़ी के माध्यम ले पढ़ाये के घलोक अउ फेर धीरे-धीरे उच्च शिक्षा अउ राजकाज के भाखा बनाये के घलोक।

सुशील भोले 
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