सुनो कबीर, अब युग बदला, क्यूं राग पुराना गाते हो।
भाटों के इस दौर में नाहक, ज्ञान मार्ग बतलाते हो।।
भाटों के इस दौर में नाहक, ज्ञान मार्ग बतलाते हो।।
कौन यहाँ अब सच कहता, कौन साधक-सा जीता है
लेखन की धाराएँ बदलीं, विचारों का घट रीता है
जो अंधे हो गये उन्हें फिर, क्यूं शीशा दिखलाते हो....
लेखन की धाराएँ बदलीं, विचारों का घट रीता है
जो अंधे हो गये उन्हें फिर, क्यूं शीशा दिखलाते हो....
धर्म-पताका जो फहराते, वही समर करवाते हैं
कोरा ज्ञान लिए मठाधीश, फतवा रोज दिखाते हैं
ऐसे लोगों को तुम क्यूं, संत-मौलवी कहलवाते हो....
कोरा ज्ञान लिए मठाधीश, फतवा रोज दिखाते हैं
ऐसे लोगों को तुम क्यूं, संत-मौलवी कहलवाते हो....
राजनीति हुई भूल-भुलैया, जैसे मकड़ी का जाला
कौन यहाँ पर हँस बना है, और कौन कौवे-सा काला
नहीं परख फिर भी तुम कैसे, एक छवि दिखलाते हो...
कौन यहाँ पर हँस बना है, और कौन कौवे-सा काला
नहीं परख फिर भी तुम कैसे, एक छवि दिखलाते हो...
सुशील भोले
41-191, डॉ. बघेल गली,
संजय नगर (टिकरापारा), रायपुर (छ.ग.)
मो.नं. 080853-05931, 098269-92811
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