Wednesday 8 May 2013

महतारी के अंचरा...













जीयत-मरत जे संग-संग रहिथे, छिन-छिन करथे पहरा
मोर तो सरबस तीरथ-बरत आय, महतारी के अंचरा.....

सुख-दुख म जे पल-पल रहिथे, नीत-अनीत घलो सहिथे
संग छोड़ जाथे छइहां तबले, वो स्वांसा कस धड़कत रहिथे
जिनगी ल पबरित कर देथे, जइसे गंगा के लहरा....

अंगरी धर के रेंगेंव जे दिन, दुनिया के हर भेद बताइस
गुरु सहीं समझा-बुझा के, मनसा भरम ल भगवाइस
फेर छछले-बाढ़े के बेरा म, बनिस सावन के बदरा....

सृष्टि के संचालन खातिर, जब आइस जिनगी म बेरा
तब संग लगा दिस संगवारी, अउ बना दिस एक डेरा
फेर मोह-माया के जोरन जोर के, आंजीस आंखी म कजरा...
                                          सुशील भोले 
                                    संजय नगर, रायपुर (छ.ग.)
                           ई-मेल -  sushilbhole2@gmail.com
                                     मो.नं. 098269 92811

1 comment:

  1. apki rachna un katipay beto ke liye satik hai jo mata pita se dur hote ja rahe hai

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