Wednesday 20 November 2013

चलो गांव की ओर...

चलो गांव की ओर जहां सूरज गीत सुनाता है
तारों के घुंघरू बांध, चंद्रमा नृत्य दिखाता है.....

अल्हड़ बाला-सी इठलाती, नदी जहां से बहती है
मंद महकती पुरवाई, जहां प्रेम की गाथा कहती है
बूढ़ा बरगद पुरखों की, झलक जहां दिखलाता है....

रिश्ते-नाते जहां अभी भी मन को पुलकित करते हैं
दादी-नानी के नुस्खे, जीवन में रस-रंग भरते हैं
पूरा कस्बा परिवार सरीखा जहां अभी भी रहता है...

भाषा जिसकी भोली-भाली, तुतलाती बेटी-सी प्यारी
जहां संस्कृति पल्लवित होती जैसे मालिन की फुलवारी
धर्म जहां हिमालय जैसा, अडिग आशीष लुटाता है.....

सांझ ढले जब ग्वाले की, बंशी की तान बजती है
गो-धूली गुलाल सरीखी, जब माथे पर सजती है
तब पूरा परिवेश जहां का, गोकुल-सा बन जाता है....
सुशील भोले
संजय नगर, रायपुर (छ.ग.)
ई-मेल - sushilbhole2@gmail.com
मो.नं. 08085305931, 098269 92811,
http://www.youtube.com/watch?v=93Kvenj3nZ8

2 comments:

  1. बहुत सुन्दर गावं जैसी भोली भाली गाँव की मीठी याद दिलाती प्यारी रचना ..

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  2. धन्यवाद कविता जी...

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