Sunday 27 April 2014

अक्ती : पुतरा-पुतरी के बिहाव...

बाजार में पुतरा-पुतरी बेचती एक लड़की

वैशाख मास की शुक्ल पक्ष तृतीया तिथि को छत्तीसगढ़ में अक्ती के नाम से जाना जाता है। इसे हिन्दी भाषी इलाकों में अक्षय तृतीया के नाम से भी जाना जाता है। इस तिथि को शुभ मानकर देश के कई भागों में इस दिन बड़े पैमाने पर शादी-व्याह और अन्य मांगलिक कार्य किये जाते हैं। हमारे यहां इस दिन पुतरा-पुतरी (गुड्डे-गुडिय़ा) का विवाह बच्चों के द्वारा बड़े ही उत्साह के साथ किया जाता है।

पुतरा-पुतरी विवाह करती लड़कियां
 बाजे-गाजे के साथ चुलमाटी के लिए जाती बच्चियाँ
छत्तीसगढ़ में इस दिन को कृषि के नववर्ष के रूप में भी मनाया जाता है। इस दिन गांव के सभी किसान अपने-अपने घरों से धान लेकर एक जगह एकत्रित होते हैं, फिर उसे कोई एक सिद्ध व्यक्ति, जिसे यहां की भाषा में बैगा कहा जाता है, एक साथ मिलाकर उसे मंत्रों से  अभिमंत्रित करता है। और फिर उसे सभी ग्रामवायिों में वितरित कर देता है। गांव वाले इसी धान को लेकर अपने-अपने खेतों में जाते हैं और उसकी बुवाई करते हैं।  जिन गांवों में बैगा के द्वारा अभिमंत्रित नहीं किया जाता उन गांवों में किसान बोआई के लिए संग्रहित धान को एक टोकरी में लेकर जाता है, और अपने कुल देवता सहित अन्य ग्राम्य देवताओं में चढ़ाकर बाकी धान की रोपाई अपने खेत में कर देता है।
टिकावन के लिए पुतरा-पुतरी की सुवासिन बनी लड़की

सुशील भोले 
 संजय नगर, रायपुर (छ.ग.)
 ई-मेल -  sushilbhole2@gmail.com
 मो.नं. 080853-05931, 098269-92811

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