Friday 4 April 2014

दलबदलू...


















सब इधर से उधर, अब आ-जा रहे हैं
जिन्हें देते थे गाली, उन्हें गले लगा रहे हैं
नीति और ईमान की, खूब होती थीं बातें
चुनावी-टिकट के लिए सब भुलाये जा रहे हैं
                                                     * सुशील भोले

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