अभी सुवा नृत्य को लेकर विश्व रिकार्ड बनाने के लिए एक आयोजन किया जाने वाला है। इसके प्रचार-प्रसार के तरीके को देखकर मन में सहसा एक विचार कौंध गया- " क्या सुवा केवल एक लोकनृत्य है या धर्म आधारित संस्कृति का एक अंग?
निश्चित रूप से सुवा नृत्य यहां के मूल धर्म पर आधारित संस्कृति का एक अंग है, जिसे केवल लोकनृत्य कहना उसके मूल कारण और संदर्भ को अनदेखा करना है।यह गीत-नृत्य कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष में केवल 15 दिनों तक ही प्रदर्शित किया जाता है। जिसका मूल कारण कार्तिक अमावस्या को संपन्न होने वाले गौरा-ईसरदेव विवाह पर्व का संदेश देना होता है।
हमारे यहां के मूल धर्म और संस्कृति को बाहर से पोथी-पतरा लेकर आने वाले फर्जी विद्वानों ने बहुत नुकसान पहुंचाया है। सुवा गीत को ये लोग नारी विरह का गीत भी कहते हैं। यहां के तथाकथित भाषा वैज्ञानिक और संस्कृति मर्मज्ञ लोग अपने शोध ग्रंथों एवं आलेखों में ऐसा अनेक स्थानों पर उल्लेख किए हैं।
मैं सुवा नृत्य को लेकर किए जाने वाले महोत्सव का स्वागत करता हूं, लेकिन साथ ही यह सुझाव भी देना चाहता हूं कि इसके साथ इसके मूल कारण और संदर्भ को भी प्रचारित किया जाए।
-सुशील भोले
संजय नगर, रायपुर
मो नं 9826992811

बहुत अच्छी प्रस्तुति
ReplyDeleteगजब सर
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