Wednesday 19 December 2018

अब तो बंद हो फर्जी कुंभ का पाखण्ड......

अब तो बंद हो फर्जी कुंभ का पाखण्ड.....
छत्तीसगढ की  मूल संस्कृति मेला-मड़ई की संस्कृति है। यहां के लोक पर्व मातर के दिन मड़र्ई जागरण के साथ ही यहां मड़ई-मेला की शुरूआत हो जाती है, जो महाशिव रात्रि तक चलती है।

मड़ई का आयोजन जहां छोटे गांव-कस्बे या गांवों में भरने वाले बाजार-स्थलों पर आयोजित कर लिए जाते हैं, वहीं मेला का आयोजन किसी पवित्र नदी अथवा सिद्ध शिव स्थलों पर आयोजित होता चला आ रहा है। इसी कड़ी में पवित्र त्रिवेणी संगम राजिम का प्रसिद्ध मेला भी कुलेश्वर महादेव के नाम पर आयोजित होता था।
बचपन में हम लोग आकाशवाणी के माध्यम से एक गीत सुनते थे- "चलना संगी राजिम के मेला जाबो, कुलेसर महादेव के दरस कर आबो।" लेकिन अभी कुछ वर्षों से यह मेला काल्पनिक कुंभ या कहें फर्जी कुंभ का नाम धारण कर लिया है, और इसे "कुलेश्वर महादेव" के स्थान पर "राजीव लोचन" के नाम पर भरने वाला कुंभ के रूप में प्रचारित किया  जा रहा है।

जहां तक इस मेला को भव्यता प्रदान करने की बात है, तो इसे हर स्तर पर स्वागत किया जाएगा। किन्तु इसका नाम और कारण को परिवर्तित करना किसी भी सूरत में स्वीकार नहीं किया जा सकता। छत्तीसगढं बूढादेव के रूप में शिव संस्कृति का उपासक रहा है, तब भला किसी अन्य देव के नाम पर भरने वाला कुंभ या मेला के रूप में कैसे इसे स्वीकार किया जा सकता है?
कितने आश्चर्य की बात है, कि यहां के तथाकथित बुद्धिजीवी या जनप्रतिनिधि  भी इस पर कभी कोई टिका-टिप्पणी करते नहीं देखे गए। अपितु वहां आयोजित होने वाले कार्यक्रमों में भागीदारी पाने के लिए लुलुवाते हुए या अपने पत्र-पत्रिका के लिए विज्ञापन उगाही करने के अलावा और कुछ भी करते नहीं पाए गये।

सबसे आश्चर्य की बात तो यह है, कि यहां के तथाकथित संस्कृति और इतिहास के मर्मज्ञों को भी यह समझ में नहीं आया कि महाशिव रात्रि के अवसर पर भरने वाला मेला महादेव के नाम पर भरा जाना चाहिए या किसी अन्य के नाम पर?

मित्रों, जिस समाज के बुद्धिजीवी और मुखिया दलाल हो जाते हैं, उस समाज को गुलामी भोगने से कोई नहीं बचा सकता। आज छत्तीसगढ अपनी ही जमीन पर अपनी अस्मिता की स्वतंत्र पहचान के लिए तड़प रहा है, तो वह ऐसे ही दलालों के कारण है। शायद यह इस देश का एकमात्र राज्य है, जहां मूल निवासियों की भाषा, संस्कृति और लोग हासिए पर जी रहे हैं और बाहर से आकर राष्ट्रीयता का ढोंग करने वाले लोग तमाम महत्वपूर्ण ओहदे पर काबिज हो गये हैं।

ज्ञात रहे, इस देश में जिन चार स्थानों पर वास्तविक कुंभ आयोजित होते हैं, वे भी शिव स्थलों के नाम पर जाने और पहचाने हैं, तब यह काल्पनिक कुंभ क्यों नहीं कुलेश्वर महादेव के नाम पर पहचाना जाना चाहिए?
अब नई सरकार का युग आ गया है, तब विश्वास हो रहा है, कि पूर्ववर्ती सरकार के 15 वर्षों में यहां की संस्कृति, इतिहास और गौरव के साथ खिलवाड़ कर जिस तरह उसे भ्रमित कर समाप्त करने का खेल खेला गया, अब उस पर रोक लगेगा। फर्जी कुंभ का पाखण्ड बंद होगा। यहां की संस्कृति अपने मूल रूप में संरक्षित और विकसित होगी।।

-सुशील भोले
आदि धर्म जागृति संस्थान
संजय नगर, रायपुर
मो .नं. 9826992811

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